Friday 16 October 2015

चेस्ट रोग विशेज्ञ डॉ सूर्यकांत जी की अच्छे स्वास्थ्य हेतु सलाह

**08/10/2015 को लखनऊ पुस्तक मेले के मंच से :



Yashwant Yash
3 hrs
कल 08/10/2015 को लखनऊ पुस्तक मेले के मंच से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत जी ने फेफड़े एवं श्वास रोगों से संबन्धित परिचर्चा के अंतर्गत स्वस्थ जीवन शैली हेतु कुछ महत्वपूर्ण बातें बतायीं उनका सारांश इस प्रकार है-
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 * 30 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के सभी व्यक्तियों को जिम जाने व ट्रेडमिल आदि के प्रयोग से बचना चाहिए। साईक्लिंग एक्सरसाइज़ ज़्यादा बेहतर है। बल्कि सबसे अच्छा तो यह है कि अपनी आयु के (क्षमता से)सामान्य से अधिक तेज़ गति से चलने की आदत डालनी चाहिए। धीमे धीमे टहलने से कोई लाभ नहीं है।
 * fast food (कोल्ड ड्रिंक नूडल्स,चाउमीन ,बर्गर,पेटीज,चाट आदि) के प्रयोग से बचें। केले से बेहतर कोई fast food नहीं हो सकता। केला अपनी diet में ज़रूर शामिल करें।
 * मधुमेह (sugar)के रोगी भी रोज़ एक केला खा सकते हैं।
 * अपनी रसोई में refined oil /dalda आदि के खाना बनाने मे प्रयोग से बचें। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। सबसे बेहतर सरसों का तेल है। सरसों के तेल में बना खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
 * चीनी का प्रयोग भी कम से कम करना चाहिये। यदि चीनी का प्रयोग करना ही है तो रसायनों से साफ की हुई अधिक सफ़ेद चीनी के बजाय कत्थई (brown) रंग की चीनी का प्रयोग करना चाहिए।
वैसे मिठास के लिए गुड़ से बेहतर स्वास्थ्यवर्धक और कोई चीज़ नहीं है।
 * नमक का प्रयोग भी कम से कम और सिर्फ दैनिक भोजन मे ही करना चाहिए।
( मूँगफली या खीरा अथवा भोजन के अतिरिक्त अन्य चीजों के साथ नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। )
 * अपनी क्षमतानुसार कोई भी एक मौसमी फल नियमित लेना चाहिए।
 * सिगरेट/शराब इत्यादि के सेवन बिलकुल न करें।
 * 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों को पूर्ण शाकाहार अपनाना चाहिए,यद्यपि कई चिकित्सा शोधों से यह प्रमाणित हुआ है कि शाकाहार सभी आयु वर्ग के लिए पूर्ण एवं हानि रहित है।
 * जो रोग (जैसे एलर्जी/मधुमेह/अस्थमा आदि) हमारे साथ जीवन भर रहने हैं, उन से संबन्धित उपचार/दवाओं आदि को अपना दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त मानना चाहिए।
 * नियमित,संयमित एवं उचित जीवन शैली ही अच्छे स्वास्थ्य का मूल आधार है।
( जनहित में प्रस्तुतकर्ता -Yashwant Yash)
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हाल ही में सम्पन्न लखनऊ पुस्तक मेले के एक जन-जागरण कार्यक्रम के अंतर्गत मेडिकल यूनिवर्सिटी के पलमोनरी विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत जी की सलाहें सुनने का सुअवसर मिला था। सार-संक्षेप में उनकी बातें उपरोक्त रूप में प्रस्तुत की जा चुकी हैं। लेकिन डॉ साहब द्वारा बताई और अनेक ऐसी बातें हैं जिनका हमारे स्वस्थ जीवन से गहरा संबंध है, उन पर भी प्रकाश डालना इस पोस्ट का उद्देश्य है। 

डॉ सूर्यकांत जी ने बताया कि प्राचीन काल में घर इस प्रकार बानए जाते थे कि उनमें सूर्य का प्रकाश सुगमता से पहुँच जाता था । सूर्य के प्रकाश में कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता तो होती ही है उससे 'विटामिन' 'A' और 'D ' भी प्राप्त होता है जो हड्डियों की मजबूती  व आँखों की रोशनी के लिए बेहद ज़रूरी है। डॉ साहब का कहना था कि उगते हुये सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा इसी लिए रखी गई थी कि इस प्रकार आँखों पर सूर्य की रश्मियों से आँखों को ऊर्जा मिलती रहेगी और वे स्वस्थ बनी रहेंगी। 
सूर्य का प्रकाश सीलन और घुटन से भी बचाता है। लेकिन अब भवन निर्माण इस प्रकार न होने से सूर्य के प्रकाश से शहरी आबादी दूर है जिस कारण TB रोग, श्वान्स संबंधी रोग और एलर्जी की समस्याएँ बढ़ रही हैं। डॉ साहब का कहना था कि किसी को छींक आना तो किसी की त्वचा में खुजली होना इसी एलर्जी का प्रभाव हो सकता है। धूप सेवन को उन्होने एक अच्छा उपचार बताया जिसे अपना कर स्वस्थ व्यक्ति भी रोगों से बचाव कर सकते हैं। कम से कम 10 मिनट और आध घाटे तक धूप का सेवन ऊर्जा से भर देता है। 
उन्होने बताया कि घर न तो अधिक पुराना और न ही अधिक आधुनिक होना चाहिए। अधिक पुराना होने से सीलन का भय रहेगा तो अधिक आधुनिक होने से उसमें टंगे पर्दे व बिछे कालीनों में जमी धूल की परतें 'एलर्जी' को उत्पन्न कर देती हैं। यदि पर्दों व कालीन का प्रयोग कर रहे हैं तो नियमित रूप से उनकी धूल साफ करते रहना चाहिए जिससे एलर्जी से बचा जा सके। 
डॉ साहब का कहना था कि धूम्रपान करने वाले को 30 प्रतिशत और उसके आस-पास उपस्थित लोगों को 70 प्रतिशत वह धुआँ नुकसान पहुंचाता है अतः धूम्रपान से बचना भी एलर्जी और TB से बचाव की एक शर्त है। मदिरा पान को भी लीवर व किडनी के लिए उन्होने घातक बताया और मांसाहार को भी। इनसे भी बचने की उन्होने सलाह दी। 
डॉ साहब का कहना था कि आजकल फर के खिलौने,  साफ्ट ट्वायाज़ और टेडी बियर भी धूल जमा होने से बच्चों में एलर्जी होने का कारण बन रहे हैं। बच्चों के स्वास्थ्य  के दृष्टिकोण से उनको इनसे दूर रखना चाहिए।
डॉ साहब का कहना था कि पहले घरों में पशु-पक्षियों के लिए अलग से बाड़ा बंनता था लेकिन अब घर बहुत छोटे होते हैं और लोग  बिल्ली,कुत्ता,तोता,चिड़िया आदि  अपने साथ ही पाल लेते हैं इनसे भी एलर्जी का प्रसार होता है। डॉ साहब का कहना था मनुष्यों के साथ पशु-पक्षी न रहें तो एलर्जी आदि अनेक रोगों से बचाव हो सकता है। 
TB के कीटाणु सिर्फ छींकने  या खाँसने से ही फैलते हैं इसलिए रोगी को अपने मुंह पर रूमाल रख कर खाँसना या छींकना चाहिए। उससे हाथ मिलाने व साथ खाने से कीटाणु नहीं फैलते हैं। TB का इलाज 6 माह से 2 वर्ष तक का होता है। डॉ की सलाह से पहले खुद ही इलाज बंद कर देना इस रोग को और भयानक बना देता है। यदि किसी को TB हो जाये तब 6 महीने तक उसका इलाज ज़रूर चलाना चाहिए उसके बाद डॉ हाल देख कर बंद करने को कहें तभी बंद करें। यह अब लाइलाज नहीं है और परहेज दवा के साथ चलाने से ठीक हो जाता है। 

डॉ साहब ने समुद्री नमक का प्रयोग न करने या कम से कम करने व इसके स्थान पर 'सेंधा नमक' प्रयोग करने की भी सलाह दी। 
उनका कहना था कि जिनको 'खुर्राटे' आने की समस्या हो उनको 'इन्हेलर' का प्रयोग करना चाहिए जिससे लाभ मिल सके। जिस प्रकार कमजोर आँख वाले 'चश्मा' लगाते हैं उसी प्रकार खुर्राटे वालों को इन्हेलर का प्रयोग करना सहायक रहता है। 
डॉ साहब ने कहा कि 'दस्त' रोग का उपचार केला फल का सेवन है। डायबिटीज़ वाले भी एक केला रोजाना खा सकते हैं। 6 केलों से पूर्ण पौष्टिक आहार प्राप्त हो जाता है , उन्होने फास्ट फूड के स्थान पर केलों का सेवन करने की सलाह दी। फास्ट फूड एलर्जी का जनक है। 

1 comment:

  1. बहुत उपयोगी जानकारी...आभार

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