साभार :
https://www.facebook.com/vijayprakashagrawal
"चिकित्सा समाज सेवा है,व्यवसाय नहीं"
Monday, 27 October 2014
Tuesday, 21 October 2014
मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली का पर्व धन तेरस ---विजय राजबली माथुर
आज धनतेरस अर्थात धन्वन्तरी जयंती है आज से पाँच दिनों तक स्वास्थ्य रक्षा के पर्व प्रारम्भ हैं किन्तु बाज़ार जनता को अस्वस्थ बनाने का सामान जुटाये हुये हैं जिनसे बचना ही खुशियाँ मनाना होगा ---
दीपावली पर्व धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक पाँच दिन मनाया जाता है .इस पर्व को मनाने क़े बहुत से कारण एवं मत हैं .जैन मतावलम्बी महावीर जिन क़े परिनिर्वाण तथा आर्य समाजी महर्षि दयानंद सरस्वती क़े परिनिर्वाण दिवस क़े रूप में दीपावली की अमावस्या को दीप रोशन करते हैं .शेष अवधारणा यह है कि चौदह वर्षों क़े वनवास क़े बाद श्री राम अयोध्या इसी दिन लौटे थे ,इसलिए दीपोत्सव करते हैं .
हमारा भारत वर्ष कृषि -प्रधान था और अब भी है .हमारे यहाँ दो मुख्य फसलों रबी व खरीफ क़े काटने पर होली व दीपावली पर्व रखे गए .मौसम क़े अनुसार इन्हें मनाने की विधि में अंतर रखा गया परन्तु होली व दीवाली हेतु वैदिक आहुतियों में ३१ मन्त्र एक ही हैं .दोनों में नए पके अन्न शामिल किये जाते हैं .होली क़े हवन में गेहूं ,जौ,चना आदि की बालियों को आधा पका कर सेवन करने से आगे गर्मियों में लू से बचाव हो जाता है .दीपावली पर मुख्य रूप से धान और उससे बने पदार्थ खील आदि नये गन्ने क़े रस से बने गुड खांड़ ,शक्कर आदि क़े बने बताशे -खिलौने आदि हवन में शामिल करने का विधान था .इनके सेवन से आगे सर्दियों में कफ़ आदि से बचाव हो जाता है .
आज भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक अवनति क़े युग में होली और दीवाली दोनों पर्व वैज्ञानिक पद्धति से हट कर मनाये जा रहे हैं .होली पर अबीर ,गुलाल और टेसू क़े फूलों का स्थान रासायनिक रंगों ने ले लिया है जिसने इस पर्व को विकृत कर दिया है .दीपावली पर पटाखे -धमाके किये जाने लगे हैं जो आज क़े मनुष्य की क्रूरता को उजागर करते हैं .मूल पर्व की अवधारणा सौम्य और सामूहिक थी .अब ये दोनों पर्व व्यक्ति की सनक ,अविद्या ,आडम्बर आदि क़े प्रतीक बन गए हैं .इन्हें मनाने क़े पीछे अब समाज और राष्ट्र की उन्नति या मानव -कल्याण उद्देश्य नहीं रह गया है.
दीपावली का प्रथम दिन अब धन -तेरस क़े रूप में मनाते हैं जिसमे नया बर्तन खरीदना अनिवार्य बताया जाता है और भी बहुत सी खरीदारियां की जाती हैं .एक वर्ग -विशेष को तो लाभ हो जाता है शेष सम्पूर्ण जनता ठगी जाती है. आयुर्वेद जगत क़े आदि -आचार्य धन्वन्तरी का यह जनम -दिन है जिसे धन -तेरस में बदल कर विकृत कर दिया गया है धनतेरस बाज़ारों में मना ली जायेगी क्योंकि उसका ताल्लुक मानव -स्वास्थ्य क़े कल्याण से नहीं चमक -दमक ,खरीदारी से है.
आचार्य -धन्वन्तरी आयुर्वेद क़े जनक थे .आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है .इस चिकित्सा -पद्धति में प्रकृति क़े पञ्च -तत्वों क़े आधार पर आरोग्य किया जाता है .
ज्योतिष में हम सम्बंधित तत्व क़े अधिपति ग्रह क़े मन्त्रों का प्रयोग करके तथा उनके अनुसार हवन में आहुतियाँ दिलवा कर उपचार करते हैं .साधारण स्वास्थ्य -रक्षा हेतु सात मन्त्र उपलब्ध हैं और आज की गंभीर समस्या सीजेरियन से बचने क़े लिए छै विशिष्ट मन्त्र उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से सम्यक उपचार संभव है .एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य (और ज्योतिषी ) जी ने पंजाब -केसरी में जनता की सुविधा क़े लिए बारह बायोकेमिक दवाईओं को बारह राशियों क़े अनुसार प्रयोगार्थ एक सूची लगभग सत्ताईस वर्ष पूर्व दी थी उसे आपकी जानकारी क़े लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ .सूर्य की चाल पर आधारित इस राशि क्रम में बायोकेमिक औषद्धि का प्रयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है और रोग होने पर उस रोग की दवाई क़े साथ इस अतिरिक्त दवाई का प्रयोग जरनल टॉनिक क़े रूप में किया जा सकता है :-
आप क़े मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही हमारी दीवाली है .आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .
उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.
बवासीर-बवासीर रोग सूखा हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.
सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.
थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.
श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)
आज रोग और प्रदूषण वृद्धि क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.
नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन प्रनिओं का शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.
क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाता था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.
क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चला रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.
गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.
प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.
कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.
आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.
पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.
बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.
मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.
मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.
आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.
कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.
रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.
गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.
आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.
~विजय राजबली माथुर © दीपावली पर्व धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक पाँच दिन मनाया जाता है .इस पर्व को मनाने क़े बहुत से कारण एवं मत हैं .जैन मतावलम्बी महावीर जिन क़े परिनिर्वाण तथा आर्य समाजी महर्षि दयानंद सरस्वती क़े परिनिर्वाण दिवस क़े रूप में दीपावली की अमावस्या को दीप रोशन करते हैं .शेष अवधारणा यह है कि चौदह वर्षों क़े वनवास क़े बाद श्री राम अयोध्या इसी दिन लौटे थे ,इसलिए दीपोत्सव करते हैं .
हमारा भारत वर्ष कृषि -प्रधान था और अब भी है .हमारे यहाँ दो मुख्य फसलों रबी व खरीफ क़े काटने पर होली व दीपावली पर्व रखे गए .मौसम क़े अनुसार इन्हें मनाने की विधि में अंतर रखा गया परन्तु होली व दीवाली हेतु वैदिक आहुतियों में ३१ मन्त्र एक ही हैं .दोनों में नए पके अन्न शामिल किये जाते हैं .होली क़े हवन में गेहूं ,जौ,चना आदि की बालियों को आधा पका कर सेवन करने से आगे गर्मियों में लू से बचाव हो जाता है .दीपावली पर मुख्य रूप से धान और उससे बने पदार्थ खील आदि नये गन्ने क़े रस से बने गुड खांड़ ,शक्कर आदि क़े बने बताशे -खिलौने आदि हवन में शामिल करने का विधान था .इनके सेवन से आगे सर्दियों में कफ़ आदि से बचाव हो जाता है .
आज भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक अवनति क़े युग में होली और दीवाली दोनों पर्व वैज्ञानिक पद्धति से हट कर मनाये जा रहे हैं .होली पर अबीर ,गुलाल और टेसू क़े फूलों का स्थान रासायनिक रंगों ने ले लिया है जिसने इस पर्व को विकृत कर दिया है .दीपावली पर पटाखे -धमाके किये जाने लगे हैं जो आज क़े मनुष्य की क्रूरता को उजागर करते हैं .मूल पर्व की अवधारणा सौम्य और सामूहिक थी .अब ये दोनों पर्व व्यक्ति की सनक ,अविद्या ,आडम्बर आदि क़े प्रतीक बन गए हैं .इन्हें मनाने क़े पीछे अब समाज और राष्ट्र की उन्नति या मानव -कल्याण उद्देश्य नहीं रह गया है.
दीपावली का प्रथम दिन अब धन -तेरस क़े रूप में मनाते हैं जिसमे नया बर्तन खरीदना अनिवार्य बताया जाता है और भी बहुत सी खरीदारियां की जाती हैं .एक वर्ग -विशेष को तो लाभ हो जाता है शेष सम्पूर्ण जनता ठगी जाती है. आयुर्वेद जगत क़े आदि -आचार्य धन्वन्तरी का यह जनम -दिन है जिसे धन -तेरस में बदल कर विकृत कर दिया गया है धनतेरस बाज़ारों में मना ली जायेगी क्योंकि उसका ताल्लुक मानव -स्वास्थ्य क़े कल्याण से नहीं चमक -दमक ,खरीदारी से है.
आचार्य -धन्वन्तरी आयुर्वेद क़े जनक थे .आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है .इस चिकित्सा -पद्धति में प्रकृति क़े पञ्च -तत्वों क़े आधार पर आरोग्य किया जाता है .
भूमि +जल =कफ़
वायु +आकाश = वात
अग्नि = पित्त
पञ्च -तत्वों को आयुर्वेद में
वात ,पित्त ,कफ़ तीन वर्गों में गिना जाता है .जब तक ये तत्व शरीर को
धारण करते हैं धातु कहलाते हैं ,जब शरीर को दूषित करने लगते हैं तब दोष और
जब शरीर को मलिन करने लगते हैं तब मल कहलाते हैं .कलाई -स्थित नाडी पर
तर्जनी ,मध्यमा और अनामिका उँगलियों को रख कर अनुमान लगा लिया जाता है कि
शरीर में किस तत्व की प्रधानता या न्यूनता चल रही है और उसी क़े
अनुरूप रोगी का उपचार किया जाता है .(अ )तर्जनी से वात ,(ब )मध्यमा से
पित्त तथा (स )अनामिका से कफ़ का ज्ञान किया जाता है .
ज्योतिष में हम सम्बंधित तत्व क़े अधिपति ग्रह क़े मन्त्रों का प्रयोग करके तथा उनके अनुसार हवन में आहुतियाँ दिलवा कर उपचार करते हैं .साधारण स्वास्थ्य -रक्षा हेतु सात मन्त्र उपलब्ध हैं और आज की गंभीर समस्या सीजेरियन से बचने क़े लिए छै विशिष्ट मन्त्र उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से सम्यक उपचार संभव है .एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य (और ज्योतिषी ) जी ने पंजाब -केसरी में जनता की सुविधा क़े लिए बारह बायोकेमिक दवाईओं को बारह राशियों क़े अनुसार प्रयोगार्थ एक सूची लगभग सत्ताईस वर्ष पूर्व दी थी उसे आपकी जानकारी क़े लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ .सूर्य की चाल पर आधारित इस राशि क्रम में बायोकेमिक औषद्धि का प्रयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है और रोग होने पर उस रोग की दवाई क़े साथ इस अतिरिक्त दवाई का प्रयोग जरनल टॉनिक क़े रूप में किया जा सकता है :-
बायोकेमिक
दवाईयां होम्योपैथिक स्टोर्स पर ही मिलती हैं और इनमे कोई साईड इफेक्ट या
रिएक्शन नहीं होता है ,इसलिए स्वस्थ व्यक्ति भी इनका सेवन कर सकते हैं
.इन्हें 6 x शक्ति में 4 T D S ले सकते हैं .
अंग्रेजी कहावत है -A healthy mind in a healthy body लेकिन मेरा मानना है कि "Only the healthy mind will keep the body healthy ."मेरे
विचार की पुष्टि यजुर्वेद क़े अध्याय ३४ क़े (मन्त्र १ से ६) इन छः वैदिक
मन्त्रों से भी होती है . इन मन्त्रों का पद्यात्माक भावानुवाद श्री
''मराल'' जी ने किया है आप भी सुनिये और अमल कीजिए :-आप क़े मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही हमारी दीवाली है .आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .
जब
मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद से
आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ
था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण
रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब
प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क
दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर
बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी
जानने वालों को नि :शुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न
करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को
लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स
में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विश्वास नहीं है.अतः होम्योपैथी और
आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.
एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है
और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा
ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी
कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा
वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत
हैं-
उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.
बवासीर-बवासीर रोग सूखा हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.
सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू
दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें
,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़
कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख
लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.
डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.
थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.
श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)
आज रोग और प्रदूषण वृद्धि क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.
नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन प्रनिओं का शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.
क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाता था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.
क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चला रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.
विश्व देव जी के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं
आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट
,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.यह भूख
जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत
भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल कर खाने से लाभ होता है.गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.
प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.
कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.
आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.
पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.
बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.
मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.
मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.
आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.
कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.
रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.
गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.
आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.
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Monday, 20 October 2014
खान-पान और स्वास्थ्य का खजाना
हमारे खान-पान में ऐसी कई चीजें शामिल हैं, जिनमें खूबसूरती और
स्वास्थ्य का खजाना छिपा होता है। दही भी एक ऐसा ही खजाना है, जिसका उपयोग
हर तरह से फायदेमंद है। आइए जानें दही के गुण-
दही के रोजाना सेवन से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। दही में अजवाइन मिलाकर पीने से कब्ज की शिकायत दूर होती है। गर्मी के मौसम में दही की छाछ या लस्सी पीने से पेट की गर्मी शांत होती है। इसे पीकर बाहर निकले तो लू से भी बचाव होता है। दही पाचन क्षमता बढ़ाता है। दही में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है। इसे रोजाना खाने से पेट की कई बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। दही का रोजाना सेवन सर्दी और साँस की नली में होने वाले इंफेक्शन से बचाता है। अल्सर जैसी बीमारी में दही के सेवन से विशेष लाभ मिलता है। मुँह में छाले होने पर दही के कुल्ला करने से छाले ठीक हो जाते हैं। http://hindi.webdunia.com/home-remedies/
दही के रोजाना सेवन से शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। दही में अजवाइन मिलाकर पीने से कब्ज की शिकायत दूर होती है। गर्मी के मौसम में दही की छाछ या लस्सी पीने से पेट की गर्मी शांत होती है। इसे पीकर बाहर निकले तो लू से भी बचाव होता है। दही पाचन क्षमता बढ़ाता है। दही में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में होता है। इसे रोजाना खाने से पेट की कई बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। दही का रोजाना सेवन सर्दी और साँस की नली में होने वाले इंफेक्शन से बचाता है। अल्सर जैसी बीमारी में दही के सेवन से विशेष लाभ मिलता है। मुँह में छाले होने पर दही के कुल्ला करने से छाले ठीक हो जाते हैं। http://hindi.webdunia.com/home-remedies/
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Sunday, 14 September 2014
पथरी के लिए घरेलू उपचार
Stone, पथरी के लिए घरेलू उपचार
आजकल हर दूसरा व्यक्ति पथरी की समस्या से परेशान है। पथरी होने की कोई उम्र नहीं होती है, यह किसी भी उम्र में हो जाती है। पथरी होने पर ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। शरीर में पानी की कमी होने से गुर्दे में पानी कम छनता है। पानी कम छनने से शरीर में मौजूद कैल्शियम,यूरिक एसिड और दूसरे पथरी बनाने वाले तत्व गुर्दे में फंस जाते हैंजो बाद में धीरे-धीरे पथरी का रूप ले लेते हैं।शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है .शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है ,जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़ जाती है .जिसको भी शरीर मे पथरी है वो चुना कभी ना खाएं !(काफी लोग पान मे डाल कर खा जाते हैं )क्योंकि पथरी होने का मुख्य कारण आपके शरीर मे अधिक मात्रा मे कैलशियम का होना है |मतलब जिनके शरीर मे पथरी हुई है उनके शरीर मे जरुरत से अधिक मात्रा मे कैलशियम है
लेकिन वो शरीर मे पच नहीं रहा है ,दूध व बादाम का नियमित सेवन से पथरी की संभावना
कम होती है।गुर्दे की पथरी एक बार होने के बाद दोबारा भी हो सकती है।खान-पान पर नियंत्रण रखकर पथरी की आशंका को कम कर सकते हैं।
खासतौर पर गर्मियों में दो से ढाई लीटर पानी जरूर पीना चाहिए।पेशाब का रंग यदि पीला है तो यह समझ जाएं कि शरीर में पानी की मात्रा कम है।आजकल पथरी का रोग लोगों में आम समस्या बनती जा रही है| जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होता है। जरुरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे की पथरी का निर्माण होता है। हम बात करते हैं गुर्दे की पथरी के बारे में-आपको बता दें कि गुर्दे की पथरी मूत्रतंत्र का एक रोग है जिसमें गुर्दे के अन्दर छोटे-छोटे पत्थर जैसी कठोर वस्तुएं बन जाती हैं| आमतौर पर यह ये पथरियाँ मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं। बहुत से लोगों में पथरियाँ बनती हैं और बिना किसी तकलीफ के बाहर निकल जाती हैं, वहीँ अगर यही पथरी बड़ी हो जाएँ तो मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर देती हैं| इस स्थिति में मूत्रांगो के आसपास असहनीय पीड़ा होती है। यह बीमारी आमतौर से 30 से 60 वर्ष के उम्र के लोगों में पाई जाती है और स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में चार गुना अधिक पाई जाती है। मधुमेह रोगियों में को गुर्दे की पथरी होने की ज्यादा सम्भावना रहती है|
गुर्दे की पथरी के लक्षण-
गुर्दे की पथरी से पीठ या पेट के निचले हिस्से में अचानक तेज दर्द होता है| यह दर्द कुछ मिनटो या घंटो तक बना रहता है तथा बीच-बीच में आराम मिलता है। दर्दो के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी होने की शिकायत भी हो सकती है। यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं मूत्र में रक्त भी आ सकता है।
पथरी का घरेलू इलाज-
जिस व्यक्ति को पथरी की समस्या हो उसे खूब केला खाना चाहिए क्योंकि केला विटामिन बी-6 का प्रमुख स्रोत है, जो ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता है व ऑक्जेलिक अम्ल को विखंडित कर देता है। इसके आलावा नारियल पानी का सेवन करें क्योंकि यह प्राकृतिक पोटेशियम युक्त होता है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है और इसमें पथरी घुलती है।
कहने को करेला बहुत कड़वा होता है पर पथरी में यह भी रामबाण साबित होता है| करेले में पथरी न बनने वाले तत्व मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस होते हैं और वह गठिया तथा मधुमेह रोगनाशक है। जो खाए चना वह बने बना। पुरानी कहावत है। चना पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है।
गाजर में पायरोफॉस्फेट और पादप अम्ल पाए जाते हैं जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। गाजर में पाया जाने वाला केरोटिन पदार्थ मूत्र संस्थान की आंतरिक दीवारों को टूटने-फूटने से बचाता है।
इसके अलावा नींबू का रस एवं जैतून का तेल मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लीटर नींबू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें।
इस प्राकृतिक उपचार से बहुत जल्द हीं आपको गुर्दे की पथरी से निजात मिल जायेगी साथ हीं पथरी से होने वाली पीड़ा से भी आपको मुक्ति मिल जाएगी।
पथरी को गलाने के लिये अध उबला चौलाई का साग दिन में थोडी थोडी मात्रा में खाना हितकर होता है, इसके साथ आधा किलो बथुए का साग तीन गिलास पानी में उबाल कर कपडे से छान लें, और बथुये को उसी पानी में अच्छी तरह से निचोड कर जरा सी काली मिर्च जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर इसे दिन में चार बार पीना चाहिये, इस प्रकार से गुर्दे के किसी भी प्रकार के दोष और पथरी दोनो के लिए साग बहुत उत्तम माने गये है।
जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इसके अलावा तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।
एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें, उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे, पथरी में लाभ होगा|
प्याज में पथरी नाशक तत्व होते हैं। करीब 70 ग्राम प्याज को अच्छी तरह पीसकर या मिक्सर में चलाकर पेस्ट बनालें। इसे कपडे से निचोडकर रस निकालें। सुबह खाली पेट पीते रहने से पथरी छोटे-छोटे टुकडे होकर निकल जाती है।
अगर किसी कारण से पेशाब गाढा हो जाता है तब शरीर में पथरी होना शुरू हो जाता है।
पहले छोटे-छोटे दाने बनते हैं बाद में दाने बढ जाते हैं जिसे पथरी कहते हैं।
- मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना
(युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन
आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर
छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।- गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है
आयुर्वेदिक इलाज
सबसे पहले आप सोनोग्राफी करवा के पता करें की
पथरी कितने साइज़ की है|
पखानबेद नाम का एक पौधा होता है !
उसे पथरचट भी कुछ लोग बोलते है !
उसके पत्तों को पानी मे उबाल कर काढ़ा बना ले !
और आधा आधे या एक कप काढ़ा रोज पीएं |
15 दिन बाद सोनोग्राफी करवाइए ,
मात्र 7 से 15 दिन मे पूरी पथरी खत्म हो जायेगी
या फिर टूट कर आधी हो जायेगी
और कई बार तो इससे भी जल्दी खत्म हो जाती है
पथरी से बचने के लिए निम्न चीजों का सेवन अधि करें
- मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .
- ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलाकर
२१ दिन तक
प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।
-: नारियल पानी :-
इसमें जैविक परमाणु होते हैं जो खनिज पदार्थो को
उत्पन्न होने से रोकते हैं
अर्थात् पथरी को बनने से रोकते हैं।
नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है।
पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।
15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी
और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर
सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।
-: पका हुआ जामुन :-
पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।
-: बार्ली :-
यह पथरी को बढ़ने से रोकता है अथवा नष्ट करने में सफल माना गया है।
-: अनन्नास :-
इसमें एंजाइम्स होते हैं जो फैब्रिन का नाश करते हैं।
-: केला :-
इसमें पाई जाने वाली विटामिन बी 6 : आक्सेलिक एसिड में परिवर्तित होती है
और पथरी को बनने से रोकती है।
-: नींबू, संतरा, मुसम्मी :-
इसमें पाया जाने वाला सिट्रेट पथरी की उत्पत्ति पर रोक लगाने में मददगार साबित होता है।
-: आंवला :-
भी पथरी में बहुत फायदा करता है। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।
- जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ दिन में तिन बार लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
-: सहजन की सब्जी :-
खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है।
आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा।
मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर
डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए।
अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए
और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए,
इस घोल को पीजिए। पथरी निकल जाएगी।
-: चना :-
यह भी पथरी निरोधक पदार्थ माना गया है।
-: गाजर :-
इसमें फॉस्फेट अथवा विटामिन ए पाए गए हैं
जो पथरी को खत्म करने में मदद करते हैं।
-: करेला :-
इसमें मैग्नीशियम तथा फास्फोरस जैसे पथरी निरोधक तत्व पाए जाते हैं। तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
-------------------------- ----------
आइये अब देखते हैं की किन चीजों के सेवन से
पथरी होने की सम्भावना बढ़ जाती है
- पालक, चौलाई और हरे पत्ते वाली सब्जियों में
अधिक मात्रा में आक्सेलेट तत्व पाए जाते हैं।
-: काले अंगूर :-
काले अंगूरों के सेवन से परहेज करें।
-तिल, काजू अथवा खीरे, आँवला अथवा चीकू (सपोटा) में भी आक्सेलेट अधिक मात्रा में होता है।
-: तरबूज और मशरूम :-
इनमें भी अधिक मात्रा में यूरिक एसिड व प्यूरीन पाई जाती है।
- बैंगन में यूरिक एसिड व प्यूरीन अधिक मात्रा में पाई जाती है।
फूल गोभी में यूरिक एसिड व प्यूरीन की मात्रा अधिक होती है।
चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है,
उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।
कोल्ड्रिंक बिलकुल मत पीजिए।
आजकल हर दूसरा व्यक्ति पथरी की समस्या से परेशान है। पथरी होने की कोई उम्र नहीं होती है, यह किसी भी उम्र में हो जाती है। पथरी होने पर ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। शरीर में पानी की कमी होने से गुर्दे में पानी कम छनता है। पानी कम छनने से शरीर में मौजूद कैल्शियम,यूरिक एसिड और दूसरे पथरी बनाने वाले तत्व गुर्दे में फंस जाते हैंजो बाद में धीरे-धीरे पथरी का रूप ले लेते हैं।शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है .शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है ,जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़ जाती है .जिसको भी शरीर मे पथरी है वो चुना कभी ना खाएं !(काफी लोग पान मे डाल कर खा जाते हैं )क्योंकि पथरी होने का मुख्य कारण आपके शरीर मे अधिक मात्रा मे कैलशियम का होना है |मतलब जिनके शरीर मे पथरी हुई है उनके शरीर मे जरुरत से अधिक मात्रा मे कैलशियम है
लेकिन वो शरीर मे पच नहीं रहा है ,दूध व बादाम का नियमित सेवन से पथरी की संभावना
कम होती है।गुर्दे की पथरी एक बार होने के बाद दोबारा भी हो सकती है।खान-पान पर नियंत्रण रखकर पथरी की आशंका को कम कर सकते हैं।
खासतौर पर गर्मियों में दो से ढाई लीटर पानी जरूर पीना चाहिए।पेशाब का रंग यदि पीला है तो यह समझ जाएं कि शरीर में पानी की मात्रा कम है।आजकल पथरी का रोग लोगों में आम समस्या बनती जा रही है| जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होता है। जरुरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे की पथरी का निर्माण होता है। हम बात करते हैं गुर्दे की पथरी के बारे में-आपको बता दें कि गुर्दे की पथरी मूत्रतंत्र का एक रोग है जिसमें गुर्दे के अन्दर छोटे-छोटे पत्थर जैसी कठोर वस्तुएं बन जाती हैं| आमतौर पर यह ये पथरियाँ मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं। बहुत से लोगों में पथरियाँ बनती हैं और बिना किसी तकलीफ के बाहर निकल जाती हैं, वहीँ अगर यही पथरी बड़ी हो जाएँ तो मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर देती हैं| इस स्थिति में मूत्रांगो के आसपास असहनीय पीड़ा होती है। यह बीमारी आमतौर से 30 से 60 वर्ष के उम्र के लोगों में पाई जाती है और स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में चार गुना अधिक पाई जाती है। मधुमेह रोगियों में को गुर्दे की पथरी होने की ज्यादा सम्भावना रहती है|
गुर्दे की पथरी के लक्षण-
गुर्दे की पथरी से पीठ या पेट के निचले हिस्से में अचानक तेज दर्द होता है| यह दर्द कुछ मिनटो या घंटो तक बना रहता है तथा बीच-बीच में आराम मिलता है। दर्दो के साथ जी मिचलाने तथा उल्टी होने की शिकायत भी हो सकती है। यदि मूत्र संबंधी प्रणाली के किसी भाग में संक्रमण है तो इसके लक्षणों में बुखार, कंपकंपी, पसीना आना, पेशाब आने के साथ-साथ दर्द होना आदि भी शामिल हो सकते हैं मूत्र में रक्त भी आ सकता है।
पथरी का घरेलू इलाज-
जिस व्यक्ति को पथरी की समस्या हो उसे खूब केला खाना चाहिए क्योंकि केला विटामिन बी-6 का प्रमुख स्रोत है, जो ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता है व ऑक्जेलिक अम्ल को विखंडित कर देता है। इसके आलावा नारियल पानी का सेवन करें क्योंकि यह प्राकृतिक पोटेशियम युक्त होता है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है और इसमें पथरी घुलती है।
कहने को करेला बहुत कड़वा होता है पर पथरी में यह भी रामबाण साबित होता है| करेले में पथरी न बनने वाले तत्व मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस होते हैं और वह गठिया तथा मधुमेह रोगनाशक है। जो खाए चना वह बने बना। पुरानी कहावत है। चना पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है।
गाजर में पायरोफॉस्फेट और पादप अम्ल पाए जाते हैं जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। गाजर में पाया जाने वाला केरोटिन पदार्थ मूत्र संस्थान की आंतरिक दीवारों को टूटने-फूटने से बचाता है।
इसके अलावा नींबू का रस एवं जैतून का तेल मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लीटर नींबू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें।
इस प्राकृतिक उपचार से बहुत जल्द हीं आपको गुर्दे की पथरी से निजात मिल जायेगी साथ हीं पथरी से होने वाली पीड़ा से भी आपको मुक्ति मिल जाएगी।
पथरी को गलाने के लिये अध उबला चौलाई का साग दिन में थोडी थोडी मात्रा में खाना हितकर होता है, इसके साथ आधा किलो बथुए का साग तीन गिलास पानी में उबाल कर कपडे से छान लें, और बथुये को उसी पानी में अच्छी तरह से निचोड कर जरा सी काली मिर्च जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर इसे दिन में चार बार पीना चाहिये, इस प्रकार से गुर्दे के किसी भी प्रकार के दोष और पथरी दोनो के लिए साग बहुत उत्तम माने गये है।
जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है। इसके अलावा तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।
एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें, फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें, उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे, पथरी में लाभ होगा|
प्याज में पथरी नाशक तत्व होते हैं। करीब 70 ग्राम प्याज को अच्छी तरह पीसकर या मिक्सर में चलाकर पेस्ट बनालें। इसे कपडे से निचोडकर रस निकालें। सुबह खाली पेट पीते रहने से पथरी छोटे-छोटे टुकडे होकर निकल जाती है।
अगर किसी कारण से पेशाब गाढा हो जाता है तब शरीर में पथरी होना शुरू हो जाता है।
पहले छोटे-छोटे दाने बनते हैं बाद में दाने बढ जाते हैं जिसे पथरी कहते हैं।
- मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना
(युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन
आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर
छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।- गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है
आयुर्वेदिक इलाज
सबसे पहले आप सोनोग्राफी करवा के पता करें की
पथरी कितने साइज़ की है|
पखानबेद नाम का एक पौधा होता है !
उसे पथरचट भी कुछ लोग बोलते है !
उसके पत्तों को पानी मे उबाल कर काढ़ा बना ले !
और आधा आधे या एक कप काढ़ा रोज पीएं |
15 दिन बाद सोनोग्राफी करवाइए ,
मात्र 7 से 15 दिन मे पूरी पथरी खत्म हो जायेगी
या फिर टूट कर आधी हो जायेगी
और कई बार तो इससे भी जल्दी खत्म हो जाती है
पथरी से बचने के लिए निम्न चीजों का सेवन अधि करें
- मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .
- ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलाकर
२१ दिन तक
प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।
-: नारियल पानी :-
इसमें जैविक परमाणु होते हैं जो खनिज पदार्थो को
उत्पन्न होने से रोकते हैं
अर्थात् पथरी को बनने से रोकते हैं।
नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है।
पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।
15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी
और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर
सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।
-: पका हुआ जामुन :-
पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।
-: बार्ली :-
यह पथरी को बढ़ने से रोकता है अथवा नष्ट करने में सफल माना गया है।
-: अनन्नास :-
इसमें एंजाइम्स होते हैं जो फैब्रिन का नाश करते हैं।
-: केला :-
इसमें पाई जाने वाली विटामिन बी 6 : आक्सेलिक एसिड में परिवर्तित होती है
और पथरी को बनने से रोकती है।
-: नींबू, संतरा, मुसम्मी :-
इसमें पाया जाने वाला सिट्रेट पथरी की उत्पत्ति पर रोक लगाने में मददगार साबित होता है।
-: आंवला :-
भी पथरी में बहुत फायदा करता है। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।
- जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ दिन में तिन बार लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
-: सहजन की सब्जी :-
खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है।
आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा।
मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर
डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए।
अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए
और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए,
इस घोल को पीजिए। पथरी निकल जाएगी।
-: चना :-
यह भी पथरी निरोधक पदार्थ माना गया है।
-: गाजर :-
इसमें फॉस्फेट अथवा विटामिन ए पाए गए हैं
जो पथरी को खत्म करने में मदद करते हैं।
-: करेला :-
इसमें मैग्नीशियम तथा फास्फोरस जैसे पथरी निरोधक तत्व पाए जाते हैं। तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
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आइये अब देखते हैं की किन चीजों के सेवन से
पथरी होने की सम्भावना बढ़ जाती है
- पालक, चौलाई और हरे पत्ते वाली सब्जियों में
अधिक मात्रा में आक्सेलेट तत्व पाए जाते हैं।
-: काले अंगूर :-
काले अंगूरों के सेवन से परहेज करें।
-तिल, काजू अथवा खीरे, आँवला अथवा चीकू (सपोटा) में भी आक्सेलेट अधिक मात्रा में होता है।
-: तरबूज और मशरूम :-
इनमें भी अधिक मात्रा में यूरिक एसिड व प्यूरीन पाई जाती है।
- बैंगन में यूरिक एसिड व प्यूरीन अधिक मात्रा में पाई जाती है।
फूल गोभी में यूरिक एसिड व प्यूरीन की मात्रा अधिक होती है।
चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है,
उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।
कोल्ड्रिंक बिलकुल मत पीजिए।
Monday, 1 September 2014
सर्दी और जिगर की खराबी के विभिन्न उपचार
Most important foods to fight against the common cold
1. Ginger : Ginger is the best one to fight against common cold. Take Ginger as in the form of Ginger Tea for best results. It helps to reduce the cough and flu.
2. Vitamin C Sources : Foods which are rich in Vitamin C will be beneficial to fight against cold such as Citrus fruits, Potatoes, Strawberrie, pineapples.
3. Fluids : Many people thinks that drinking fluids and water increase the cold when we are suffering from cold but its wrong drink more fluids to keep you from liquefied.
4. Citrus fruits : Citrus fruits are rich sources of Vitamina C, Try to take Orange juice, Lemon juice. It gives good result.
5. Hot and Spicy food : Chillis or spicy sauces to help congestion and gives good breathing.
6. Garlic : Garlic contains flavoring agent called alliin which acts as a antioxidant and destroy radicals,oxygen molecules that damages the cells.
1. Ginger : Ginger is the best one to fight against common cold. Take Ginger as in the form of Ginger Tea for best results. It helps to reduce the cough and flu.
2. Vitamin C Sources : Foods which are rich in Vitamin C will be beneficial to fight against cold such as Citrus fruits, Potatoes, Strawberrie, pineapples.
3. Fluids : Many people thinks that drinking fluids and water increase the cold when we are suffering from cold but its wrong drink more fluids to keep you from liquefied.
4. Citrus fruits : Citrus fruits are rich sources of Vitamina C, Try to take Orange juice, Lemon juice. It gives good result.
5. Hot and Spicy food : Chillis or spicy sauces to help congestion and gives good breathing.
6. Garlic : Garlic contains flavoring agent called alliin which acts as a antioxidant and destroy radicals,oxygen molecules that damages the cells.
WBCF:
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