Sunday, 29 November 2015

पान,लहसुन और रामदाना

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भारतीय समाज में पान के पत्‍तों का प्रयोग सदियों से पूजा-पाठ और बारातियों के स्‍वागत जैसे कई चीजों में किया जाता रहा है। पान खाने के शौकीन तो नवाबों से लेकर आम जनता तक रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि पान में सुपारी, तंबाकू और चूना मिलाकर खाने से स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी कई बीमारियां हो सकती हैं। लेकिन अगर बात सिर्फ पान के पत्‍तों की की जाए, तो इसके कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ भी हैं। आइए इस लेख के माध्यम से हम आपको बताते हैं पान के ऐसे ही 12 फायदे।
  बेडरूम के माहौल को रोमैंटिक बनाने के लिए खाएं पान
1) पाचन में सुधार- 
पान के पत्‍ते चबाने में काफी प्रयास करना पड़ता है जिससे लार ग्रंथि पर असर पड़ता है। इससे सलाइव (saliva) लार जारी होने में मदद मिलती है। लार पाचन की दिशा में पहला कदम होता है। इसमें कई ऐसे गुण होते हैं जिनसे खाने को आसानी से पचाने में मदद मिलती है।
2) मुंह के कैंसर से बचाव
पान के पत्‍ते चबाने से सलाइवा (saliva1) में एस्कॉर्बिक एसिड का स्‍तर सही बना रहता है जिससे मुंह के कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है। एस्कॉर्बिक एसिड एक उत्‍कृष्‍ट एंटीऑक्सिडेंट है जो बॉड़ी में फ्री रैडिकल को कम करता है।
3) बेहतर माउथ-फ्रेशर
पान के पत्‍तों में कई ऐसे यौगिक होते हैं जो सांसों में बदबू के लिए जिम्‍मेदार बैक्‍टीरिया को खत्‍म करते हैं। इसके अलावा पान में लौंग, सौंफ, इलायची जैसे विभिन्न मसाले मिलने से ये एक बेहतरीन माउथ-फ्रेशर भी बन जाता है।
4) सेक्‍स पावर
पान को सेक्‍स का सिंबल भी माना जाता है। सेक्‍स संबंध से पहले खाने से इस क्रिया का अधिक सुख लिया जा सकता है। इसलिए नए जोड़े को पान खिलाने की परंपरा भी काफी पुरानी है। पढ़ें-  पान काली मिर्च के साथ खाये और वज़न घटायें
5) गैस्ट्रिक अल्सर-
 पान के पत्‍ते के रस को गैस्‍ट्रोप्रोटेक्टिव गतिविधी के लिए भी जाना जाता है जिससे गैस्ट्रिक अल्सर को रोकने में मदद मिलती है।
6) मसा का उपचार
पान के पत्ते मसा के इलाज में प्रयुक्त विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं में से प्रमुख घटक हैं। इस दवा के इस्तेमाल से बिना कोई निशान छाेड़े मसा को पूरी तरह से सही किया जा सकता है।
7) बाल तोड़ में सहायक
इसका आयुर्वेद में बाल तोड़ फोड़े-फुंसी के इलाज के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है। पान के पत्‍ते गरम करके उसमें आरंडी का तेल लगाकर फोड़े पर लगाने से आराम मिलता है।
8) डायबिटीज में सहायक
पान के पत्ते का ब्‍लड शुगर कन्‍ट्रोल करने में सहायक होते हैं। और इसे एंटी डायबिटिक गुण के लिए भी जाना जाता है।
9) खांसी करे सही
पान के पत्‍ते में शहद लगाकर खाने से खांसी में आराम मिलता है। इसके अलावा इससे छाती से बलगम दूर किया जा सकता है।
10) सिरदर्द में राहत
पान को एनाल्जेसिक (analgesic) गुण के लिए भी जाना जाता है। पान के पत्‍तों को दर्द वाले हिस्‍से पर लगाने से आराम मिलता है।
11) घाव भरने में सहायक
पाने के पत्‍तों का रस घाव पर लगाने और उस पर पट्टी बांधकर दो दिन के भीतर घाव को सही किया जा सकता है।
12) कब्‍ज करेगा सही

पान के पत्‍ते के डंठल को आरंडी के तेल में मिलाकर खाने से कब्‍ज से राहत पाई जा सकती है। इसके अलावा पान के पत्‍ते के साथ फ्लैक्‍सीड, त्रिफला और नींबू के सेवन से भी कब्‍ज का इलाज किया जा सकता है।

साभार :
http://www.thehealthsite.com/hindi/diseases-and-conditions-articles-in-hindi-these-are-some-amazing-health-benefits-of-betel-leaves-in-hindi-u1115/

Thursday, 26 November 2015

विभिन्न रोगों में उपचार : आयुर्वेदिक चिकित्सा

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आयुर्वेदिक चिकित्सा  :
26-11-2015  
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
दस्त :
कच्ची शलगम को खाने से दस्त आना बंद हो जाते हैं।
बिवाइयां (एड़ी फटना) :
शलगम को उबालकर इसके पानी से फटी हुई एड़ियों को धोकर उसके बाद उन पर शलगम रगड़े। रात के समय इसका इस्तेमाल करके फटी हुई एड़ियों पर साफ कपड़ा लपेट लें। इसके प्रयोग से फटी हुई एड़ियां ठीक हो जाती हैं।
मधुमेह :
मधुमेह के रोग में रोजाना शलगम की सब्जी खाना लाभदायक होता है।
दमा, खांसी, गला बैठना :
शलगम को पानी में उबालकर उसके पानी को छानकर और उसमें चीनी मिलाकर पीने से दमा, खांसी और गला बैठने का रोग ठीक हो जाता है।
अंगुलियों की सूजन :
50 ग्राम शलगम को 1 लीटर पानी में उबालें। फिर उस पानी में हाथ-पैर डालकर रहने से अंगुलियों की सूजन खत्म हो जाती है।
पेशाब रुक-रुक कर आना :
1 शलगम और कच्ची मूली को काटकर खाने से पेशाब का रुक-रुककर आने का रोग दूर हो जाता है।
मसूढ़े और दांतों के रोग :
कच्चे शलगम को चबा-चबाकर खाने से मसूढ़े और दांतों के रोग ठीक हो जाते हैं तथा दांत भी साफ रहते हैं।
खांसी :
शलगम को पानी में उबालकर इसके पानी को छानकर इसमें शक्कर मिलाकर पीने से खांसी में लाभ मिलता है।
दमे या श्वास का रोग :
शलगम, गाजर, पत्तागोभी तथा सेम की फली का रस एकसाथ मिलाकर इसमें थोड़ा सा सेंधानमक डालकर सेवन करने से दमा या श्वास रोग ठीक हो जाता है।
बंदगोभी, गाजर, सेम और शलगम का रस मिलाकर सुबह-शाम 2 सप्ताह तक रोजाना पीने से दमा रोग में लाभ होता है।
1 कप शलगम का रस लेकर गर्म करें। इस रस में थोड़ी सी शक्कर मिलाकर सेवन करने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
1 कप शलगम के रस, 1 कप गाजर के रस और 1 कप पत्ता गोभी के रस में आधा कप सेम की फली का रस मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाना चाहिए। इसको पीने से कुछ ही दिनों में दमा, खांसी, सीने की जकड़न तथा कफ बनना आदि रोग नष्ट हो जाते हैं।
कब्ज :
कच्चे शलगम को खाने से पेट साफ होकर कब्ज दूर हो जाती है।
मसूढ़ों का रोग :
मसूढ़ों के रोग में कच्ची शलगम को चबा-चबाकर खाने से लाभ होता है।
मूत्ररोग :
शलगम के रस में मूली का रस डालकर पीने से रुक-रुक कर आने वाला पेशाब ठीक हो जाता है।
एलर्जी :
100 ग्राम शलगम को पानी में उबाल ले फिर उस पानी को ठण्डा कर लें। इस पानी से शरीर पर मालिश करने से एलर्जी के रोग में आराम आता है।
हृदय रोग :
शलगम, बंदगोभी, गाजर और सेम का रस मिलाकर सुबह-शाम 2 सप्ताह तक पीने से हृदय रोग (दिल के रोग) में लाभ होता है।
आवाज का बैठ जाना :
शलगम को पानी में उबाल लें फिर उस पानी को छानकर उसमें शक्कर मिलाकर रोजाना 2 बार पीने से बैठा हुए गले में आराम आ जाता है।
शलगम को उबालकर उसका पानी पीने से बैठा हुआ गला खुल जाता है और आवाज भी साफ हो जाती है।
https://www.facebook.com/oldveda.ayurveda/posts/1021998374518843

Wednesday, 11 November 2015

एक स्वस्थ 'मस्तिष्क' ही 'शरीर' को स्वस्थ रख सकता है ------ विजय राजबली माथुर

आप क़े मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही हमारी दीवाली है .आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .
 पाँच दिनों तक स्वस्थ्य रक्षा के पर्व प्रारम्भ हैं किन्तु बाज़ार जनता को अस्वस्थ बनाने का सामान जुटाये हुये हैं जिनसे बचना ही खुशियाँ मनाना होगा ---


दीपावली पर्व धन तेरस से शुरू होकर भाई दूज तक पाँच दिन मनाया जाता है .इस पर्व को मनाने क़े बहुत से कारण एवं मत हैं .जैन मतावलम्बी महावीर जिन क़े परिनिर्वाण तथा आर्य समाजी महर्षि दयानंद सरस्वती क़े परिनिर्वाण दिवस क़े रूप में दीपावली की अमावस्या को दीप रोशन करते हैं .शेष अवधारणा यह है कि चौदह वर्षों क़े वनवास क़े बाद श्री राम अयोध्या इसी दिन लौटे थे ,इसलिए दीपोत्सव करते हैं .

हमारा भारत वर्ष कृषि -प्रधान था और अब भी है .हमारे यहाँ दो मुख्य फसलों रबी व खरीफ क़े काटने पर होली व दीपावली पर्व रखे गए .मौसम क़े अनुसार इन्हें मनाने की विधि में अंतर रखा गया परन्तु होली व दीवाली हेतु वैदिक आहुतियों में ३१ मन्त्र एक ही हैं .दोनों में नए पके अन्न शामिल किये जाते हैं .होली क़े हवन में गेहूं ,जौ,चना आदि की बालियों को आधा पका कर सेवन करने से आगे गर्मियों में लू से बचाव हो जाता है .दीपावली पर मुख्य रूप से धान और उससे बने पदार्थ खील आदि नये गन्ने क़े रस से बने गुड खांड ,शक्कर आदि क़े बने बताशे -खिलौने आदि हवन में शामिल करने का विधान था .इनके सेवन से आगे सर्दियों में कफ़ आदि से बचाव हो जाता है .


आज भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक अवनति  क़े युग में होली और दीवाली दोनों पर्व वैज्ञानिक पद्धति से हट कर मनाये जा रहे हैं .होली पर अबीर ,गुलाल और टेसू क़े फूलों का स्थान रासायनिक रंगों ने ले लिया है जिसने इस पर्व को विकृत कर दिया है .दीपावली पर पटाखे -धमाके किये जाने लगे हैं जो आज क़े मनुष्य की क्रूरता को उजागर करते हैं .मूल पर्व की अवधारणा सौम्य और सामूहिक थी .अब ये दोनों पर्व व्यक्ति की सनक ,अविद्या ,आडम्बर आदि क़े प्रतीक बन गए हैं .इन्हें मनाने क़े पीछे अब समाज और राष्ट्र की उन्नति या मानव -कल्याण उद्देश्य नहीं रह गया है.

दीपावली का प्रथम दिन अब धन -तेरस क़े रूप में मनाते हैं जिसमे  नया बर्तन खरीदना अनिवार्य बताया जाता है और भी बहुत सी खरीददारियां की जाती हैं .एक वर्ग -विशेष को तो लाभ हो जाता है शेष सम्पूर्ण जनता ठगी जाती है. आयुर्वेद जगत क़े आदि -आचार्य धन्वन्तरी का यह जनम -दिन है जिसे धन -तेरस में बदल कर विकृत कर दिया गया है  धनतेरस बाज़ारों में मना ली जायेगी क्योंकि उसका ताल्लुक मानव -स्वास्थ्य क़े कल्याण से नहीं चमक -दमक ,खरीदारी से है.




आचार्य -धन्वन्तरी आयुर्वेद क़े जनक थे .आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है .इस चिकित्सा -पद्धति में प्रकृति क़े पञ्च -तत्वों क़े आधार पर आरोग्य किया जाता है .
भूमि +जल =कफ़
वायु +आकाश = वात
अग्नि  = पित्त

पञ्च -तत्वों को आयुर्वेद में वात ,पित्त ,कफ़ तीन वर्गों में गिना जाता है .जब तक ये तत्व शरीर को धारण करते हैं धातु कहलाते हैं ,जब शरीर को दूषित करने लगते हैं तब दोष और जब शरीर को मलिन करने लगते हैं तब मल कहलाते हैं .कलाई -स्थित नाडी पर तर्जनी ,मध्यमा और अनामिका उँगलियों को रख कर अनुमान लगा लिया जाता है कि शरीर में किस तत्व की प्रधानता या न्यूनता चल रही है और उसी क़े अनुरूप रोगी का उपचार किया जाता है .(अ )तर्जनी से वात ,(ब )मध्यमा से पित्त तथा (स )अनामिका से कफ़ का ज्ञान किया जाता है .

ज्योतिष में हम सम्बंधित तत्व क़े अधिपति ग्रह क़े मन्त्रों का प्रयोग करके तथा उनके अनुसार हवन में आहुतियाँ दिलवा कर उपचार करते हैं .साधारण स्वास्थ्य -रक्षा हेतु सात मन्त्र उपलब्ध हैं और आज की गंभीर समस्या सीजेरियन से बचने क़े लिए छै विशिष्ट मन्त्र उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से सम्यक उपचार संभव है .एक प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य (और ज्योतिषी  ) जी ने पंजाब -केसरी में जनता की सुविधा क़े लिए बारह बायोकेमिक दवाईओं को बारह राशियों क़े अनुसार प्रयोगार्थ एक सूची लगभग सत्ताईस वर्ष पूर्व दी थी उसे आपकी जानकारी क़े लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ .सूर्य की चाल पर आधारित इस राशि क्रम  में बायोकेमिक औषद्धि का प्रयोग करके स्वस्थ रहा जा सकता है और रोग होने पर उस रोग की दवाई क़े साथ इस अतिरिक्त दवाई का प्रयोग जरनल टॉनिक क़े रूप में किया जा सकता है :-

       
बायोकेमिक दवाईयां होम्योपैथिक स्टोर्स पर ही मिलती हैं और इनमे कोई साईड इफेक्ट  या रिएक्शन नहीं होता है ,इसलिए स्वस्थ व्यक्ति भी इनका सेवन कर सकते हैं .इन्हें 6 x  शक्ति में 4 T D S ले सकते हैं .
अंग्रेजी  कहावत है -A healthy  mind  in  a healthy body  लेकिन मेरा मानना है कि "Only  the healthy  mind will keep the body healthy ."मेरे विचार की पुष्टि यजुर्वेद क़े अध्याय ३४ क़े (मन्त्र १ से ६) इन छः  वैदिक मन्त्रों से भी होती है . इन मन्त्रों का पद्यात्माक भावानुवाद  श्री ''मराल'' जी ने किया है आप भी सुनिये और अमल कीजिए :-
  




आप क़े मानसिक -शारीरिक स्वास्थ्य की खुशहाली ही हमारी दीवाली है .आप को सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं .


 ब मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद  से आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर  बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी जानने वालों को निशुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विशवास नहीं है.अतः होम्योपैथी और आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.


एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत हैं-

उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.

बवासीर-बवासीर रोग सूखा  हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.

सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें ,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़ कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.

डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां  -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.

थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.

श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.

(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S  सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)

आज रोग और प्रदूषण वृद्धि  क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.


 नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन प्रनिओं का शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.


क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाता  था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.


क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चला  रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.



विश्व देव  के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट ,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा  में पाया जाता है.यह भूख जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल  कर खाने से लाभ होता है.

गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.



प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.


कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.

आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.


पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.


बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.


मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.

मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.

मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.


आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.


कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.


रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.


गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.


आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.

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Thursday, 5 November 2015

WOMEN CONSUMED THIS BEVERAGE FOR TWO MONTHS; THE WEIGHT LOSS RESULTS WERE UNBELIEVABLE!

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WOMEN CONSUMED THIS BEVERAGE FOR TWO MONTHS; THE WEIGHT LOSS RESULTS WERE UNBELIEVABLE!

Experts from the University of Taiwan decided to do a simple experiment: a group of women of different ages and weight were given to drink one cup (250 ml) of tomato juice every day for two months.

The tested women were not changing their eating habits nor did they exercise. However, the results were visible already a few days – scientists who conducted the experiment reveal.

The fastest and most visible change was the loss of excess body weight. Experts say that it is not excess fluids that are ejected, but pure fat has been lost.

Women who participated in the experiment analyzed their blood at the beginning and in end of the study.

Lowering cholesterol and increased lycopene (tomato’s antioxidant that brings many benefits to health) have been noticed.

The experiment showed that just a glass of tomato juice a day strengthens the immune system, protects against heart disease, but also reduces the risk of developing cancer. Moreover, this refreshing beverage helps with problems with digestion, helps in the process of ejecting fluid from the body, and prevents diseases of the bladder, pancreas, liver and lungs.

Tomato juice is also great for skin and shiny complexion. It significantly reduces cough, prevents anemia, relieves rheumatic symptoms and improves blood counts.

If you are tired after a workout, drink a glass of tomato juice and the exhaustion will disappear. This juice is excellent for muscle cramps because it is a treasure trove of magnesium-containing 11 mg. of magnesium in 100 grams of tomato juice.

Since it is rich with potassium, calcium, soy proteins, carbohydrates and vitamin C you should start consuming this juice as soon as possible.

If you consume tomato juice bought from the store, then at least buy organic matter, otherwise the effect will not be the same. However, it is best to make the juice at home with familiar ingredients:

– 6 kg of tomatoes

– 4 tablespoons of sugar

– 2 tablespoons of salt

Method of preparation


Take the steams off, wash the tomatoes well with cold water, then chop and grind them and finally add the sugar and salt and bring the mixture to boil. Stir often so it does not burn. Once the mixture starts boiling, cook for another 10 minutes by constantly stirring. Put the hot cooked tomato juice in glass bottles and close the tightly. Once they cool, store the bottles in a cool place.
http://greatlifeandmore.com/index.php/2015/11/01/women-consumed-this-beverage-for-two-months-the-weight-loss-results-were-unbelievable/

Wednesday, 4 November 2015

पाचन तंत्र में चाय की भूमिका और मसाला चाय

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सुबह सुबह गर्म चाय पीना  हमारी जीवनशैली का एक अहम् हिस्सा है। कुछ लोगों को खाने के साथ या खाने के बाद  चाय पीने की आदत होती है। खाने के साथ चाय पीना हमेशा से ही एक विवादास्पद विषय रहा है। जहाँ कुछ शोध का कहना है कि चाय पीना पाचन तंत्र के लिए सही होता है, वहीँ कुछ रिसर्च के अनुसार चाय में पाये जाने वाला पदार्थ कैफीन, हमारे पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा पहुंचाते हैं। आइये देखतें है कि यह कैसे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
पाचन तंत्र में चाय की भूमिका :
कुछ शोधों से पता चला है कि खाने के दौरान या उसके बाद चाय पीने से यह पेट में बनी गैस को बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे हमारा पाचन तंत्र सही रहता है। लेकिन यह बात हमेशा ध्यान में रखें कि हर तरह की चाय इन मामलों में फायदेमंद नही होती है। ग्रीन टी, हर्बल टी जैसे की अदरक वाली चाय जिनमें एंटीऑक्सीडेंटस और पोलीफेनोल(polyphenols) की मात्रा बहुत अधिक होती है, हमारे डाईजेशन सिस्टम के लिए बहुत फायदेमंद हैं।
चाय, हमारे पाचन तंत्र को साल्विया, पित्त और गैस्ट्रिक जूस को बनाने में सहायक का काम करती है। इनमे एंटीऑक्सीडेंटस की मात्रा अधिक होने के कारण ये शक्तिशाली एंटीइंफ्लेमेटरी की तरह काम करते हैं ,जो हमारे पाचन से जुडी कई खामियों को कम करता है। ग्रीन टी और हर्बल टी में कैटकिन (catechins) नाम का पालीफेनोलिक(polyphenolic) यौगिक पाया जाता है जो हमारे पाचक रस के कार्य क्षमता को बढ़ा देता है।
खाने के साथ चाय पीना क्यों सही नही है :
कुछ शोध बतातें हैं कि चाय में पाया जाने वाला फेनोलिक यौगिक, हमारी पेट के आँतों की आंतरिक परतों में आयरन काम्प्लेक्स को बनाकर, आयरन के अवशोषित  होने में बाधा डालता है। ऐसा कहा जाता है की यदि आप खाने के साथ ही चाय पीना चाहते हैं, तो अपने डाइट में आयरन और विटामिन सी से भरपूर चीजों को शामिल करिये जिससे ये आयरन के अवशोषण में होने वाले प्रभाव को कम कर देगा। इसीलिए आयरन की कमी से पीड़ित लोगों को खाने के साथ चाय नही लेना चाहिए। यह भी पाया गया है की खाने के दौरान चाय पीने से शरीर में कैटचिन की कमी हो जाती है। कैटकिन चाय में पाया जाने वाला एक यौगिक है जिसका हमारे कई साइकोलाजिकल कामों में महत्वपूर्ण रोल है।
इसलिए अगर आप खाने के साथ या उसके बाद में चाय पीना चाहते हैं तो आप ग्रीन टी या जिंजर टी में से चुन सकते हैं क्योंकि ये आपके पाचन में सहायक हैं। और जो लोग आयरन की कमी से पीड़ित हैं वो खाने के दौरान चाय का सेवन बिलकुल न करें या फिर किसी डॉक्टर कि सलाह लें।


एक कप गर्म चाय हर भारतीय की पहली पसंद होती है, चाहे वह अमीर हो या गरीब। आजकल लोग आम चाय के बदले ग्रीन टी पीना पसंद कर रहे हैं। और इसके फायदे भी अनेक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि देसी मसाला चाय भी समान रूप से हेल्दी होता है। हाँ, अगर टेस्ट के बारे में सोचे तो यह सादा ग्रीन टी की तुलना में ज़्यादा टेस्टी होता है। इसको बनाने के लिए जितने मसालों की ज़रूरत होती है वह सारे आपके किचन में ही मिल जायेंगे, जैसे- लौंग, इलायची,अदरक, दालचीनी, तुलसी और थोड़ी-सी चाय की पत्ती। यहाँ कुछ ऐसे चीजों के बारे में जानकारी दी जा रही है, जो इस चाय को अनोखा और स्वास्थ्यवर्द्धक बनाता है।
एन्टी इन्फ्लैमटोरी गुण होता है- इस मसाला चाय को बनाने के लिए जिन मसालों की ज़रूरत होती है, उन सब के अलग-अलग फायदें तो हैं ही साथ ही यह सब एक साथ मिलकर शरीर में किसी भी प्रकार के सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इस काम में सबसे ज़्यादा मदद अदरक करता है। नैशनल इन्स्टिटूट ऑफ हेल्थ के द्वारा प्रकाशित एक पत्र के अनुसार अदरक प्रोस्टोग्लैंडीस (prostaglandins) और ग्लूकोट्राइन (leukotriene) के संश्लेषण को रोकता है ( जो सूजन के प्रक्रिया में अहम् भूमिका निभाता है),जिससे सूजन से राहत मिलती है। लौंग भी इस कार्य में बहुत मददगार साबित होता है, क्योंकि इसमे यूजेनॉल नाम का यौगिक होता है जो मांसपेशियों के सूजन को कम करता है। यह दोनों मसालें विशेष रूप से पेनकिलर का काम करते हैं।
थकान दूर करता है- दिन भर के थकान को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है एक कप गर्म मसाला चाय। चाय में जो टैनीन होता है वह शरीर को स्फुर्ति प्रदान करता है। चाय में जो कैफ़ीन होता है वह उत्तेजक का काम करता है, लेकिन कॉफी के तुलना में इसमें कम कैफ़ीन की मात्रा होती है। इन मसालों का सम्मिश्रण थकान को दूर करने में मदद करता है।
सर्दी-खाँसी और फ्लू से लड़ता है- मसाला चाय में एन्टी-बैक्टिरियल, एन्टी फंगल, एन्टी पैरसिटिक (anti parasitic) गुण होते हैं जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता (immunity) को बढ़ाकर सर्दी-खाँसी या ज़ुकाम से राहत दिलाने में मदद करते हैं। इस काम में मुख्य रूप से लौंग, दालचीनी, इलायची और अदरक काम करते हैं।
हजम शक्ति को बढ़ाता है- आप सोच रहे होंगे ये कैसे हो सकता है? होलिस्टिक गुरू मिक्की मेहता के अनुसार मसाला चाय में लौंग, तुलसी, अदरक और इलायची डाला जाता है ,लेकिन इसका एसिडिक स्वभाव तब बदल जाता है जब इसमें दूसरे मसालों के साथ अदरक को डाल दिया जाता है। अदरक के कारण यह सुपाच्य बन जाता है। इसलिए जब आप एक कप चाय पीते हैं तब एक अलग ही प्रकार की ताजगी और शांति महसूस करने लगते हैं।
दिल के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी- ब्लैक टी जो मसाला चाय का एक तत्व होता है वह एन्टी-ऑक्सिडेंट का स्रोत होता है लेकिन इसके अलावा लौंग और इलायची बैड कोलेस्ट्रोल के मात्रा को कम करके शरीर में गुड कोलेस्ट्रोल के मात्रा को बढ़ाता है। इससे शरीर में गुड कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ती है। साथ ही यह धमनियों में प्लैक के उत्पत्ति को रोकता है और इसमें जो टैनीन होता है वह दिल के धड़कन को नियंत्रित और रक्त-वाहिका के प्रेशर को ठीक रखता है।
चयापचय (metabolism) को बढ़ाता है- यह चयापचय के दर को बढ़ाकर वज़न को घटाने में मदद करता है। साथ ही हजम शक्ति को बढ़ाता है। आयुर्वेद के अनुसार गर्म खाद्द पदार्थ शरीर के चयापचय दर को बढ़ाने में मदद करता है।
मधुमेह होने के संभावना को कम करता है- लौंग, दालचीनी और इलायची शरीर के ब्लड-शुगर को कम करके मधुमेह के संभावना को कम करता है। दालचीनी मानसिक स्वास्थ्य को सुधारकर अल्ज़ाइमर के संभावना को कम करता है। लौंग शरीर के शुगर का सही तरह से इस्तेमाल करता है।
माहवारी (period) के दर्द को कम करता है- इलायची, लौंग और दालचीनी पेनकिलर का काम करता है और पिरियड के दौरान दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है।
अनुवादक-  Mousumi Dutta