Tuesday, 12 January 2016

special attention to the spine

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Often, problems with our spine cause pain in completely different parts of the body. Then, we begin to address and treat other symptoms and diseases, of course, to no avail.
Therefore, it’s necessary to pay special attention to the spine.
If you feel pain, it can be precisely determined which segment of the spine it originates from, and you can observe the anomalies and problems with specific organs.
This infographic above shows you how all our organs are connected to the spine.
According to osteopaths, about 70% of headaches originate from the spine.
Ringing in the ears, difficulty swallowing food, vision problems – all these symptoms can be due to a dysfunction in intervertebral discs and surrounding anatomy.
If you’re experiencing hand pain and numbing hands, a trained osteopath can check the cervical (neck) portion of your spine.
Problems within the upper thoracic region (chest) of the spine can lead to heart pain, stomach and intestinal issues.
Problems with the lumbar part of your spine can affect, not only the pain in your lower back, but it can manifest itself as hip pain, thigh pain, impairing the sensitivity of the legs, and also affects walking.
Therefore, treating and strengthening the spine will help you get rid of many symptoms directly associated with organs and other parts of the body.
 http://www.yourstylishlife.com/the-real-cause-of-pain-how-the-spine-is-connected-with-all-organs/

Thursday, 31 December 2015

निगेटिव एप्रोच, भ्रष्टाचार और कैंसर का इलाज

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विद्वान लेखक खुद ही लिख रहे हैं कि 22 लाख रुपए खर्च करके भी  वे बचे नहीं फिर निष्कर्ष दे रहे हैं " खूब भ्रष्टाचार करो और रुपया कमाओ। "

सबसे बड़ी बात तो यह है कि पाश्चात्य प्रभाव में 'मूल निवासी आंदोलन' के नाम पर 'चारों वेदों को भाड़ में झोंक दो' मुहिम चला कर इस देश की  जनता को गहरे गर्त में धकेला जा रहा है जिसका दुष्परिणाम अफरा-तफरी के रूप में सामने आ रहा है। 

'वेद' मानव सभ्यता के उद्भव के साथ मानवता के उत्थान के लिए बनाए गए नियम हैं जो 'प्रकृति 'के अनुसार' आचरण करना सिखाते हैं। प्रकृति के विपरीत चलने के कारण दुखों का अंबार खड़ा हो गया है जो किसी न किसी रूप में सामने आता रहता है। 

मनुष्य का प्राकृतिक  नाम 'कृतु' है अर्थात कर्म करने वाला। कर्म तीन प्रकार के होते हैं- सदकर्म, दुष्कर्म व अकर्म। सदकर्म का अच्छा , दुष्कर्म का बुरा  फल मिलता है व अकर्म का भी 'दंड' मिलता है। अकर्म वह कर्म होता है जो किया जाना चाहिए था परंतु किया नहीं गया था। 

जिन कर्मों का फल इस जन्म में नहीं मिल पाता है वे आगामी जन्म के लिए  आत्मा के साथ 'सूक्ष्म' रूप से चलने वाले कारण शरीर के 'चित्त' में 'गुप्त' रूप से अंकित होकर संचित रहते हैं। व्यक्ति के जन्म समय की ग्रह-दशा से इसका आंकलन हो जाता है। जब किसी के जन्म के समय लग्न, षष्ठम , अष्टम भाव में किसी से भी 'शनि' व 'मंगल' ग्रह  का परस्पर संबंध हो तो 'कैंसर' रोग होने के संकेत मिल जाते हैं। अब यदि इन ग्रहों का वैज्ञानिक विधि से ( पोंगा पंडितों की लुटेरी पद्धति से नहीं ) शमन हो जाये तो कैंसर रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है। 

आयु का विज्ञान आयुर्वेद  है जो 'अथर्व वेद' का उपवेद है। इसको 'पंचम वेद' भी कहा जाता है। इसकी एक चिकित्सा पद्धति में नौ जड़ी-बूटियों से ऋतु-परिवर्तन के समय सेवन करके शरीर को नीरोग रखने की व्यवस्था की गई थी। दुर्भाग्य यह है कि पौराणिक-पोंगा-पंडितों ने स्वास्थ्य -रक्षा की इस विधि को अपनी आजीविका हेतु शोषण व लूट का एक माध्यम बना कर नया स्वांग रच डाला और इसके शरीर-विज्ञान से संबन्धित महत्व को समाप्त कर डाला है। नवरात्र के नाम पर ढोंग-स्वांग तो सब लोग खुशी-खुशी कर लेते हैं किन्तु उसके वेदोक्त -वैज्ञानिक महत्व को 'एथीज़्म'/मूल निवासी आंदोलन आदि-आदि के नाम पर ठुकरा देते हैं। जब कर्मों का परिणाम सामने आता है तो दिग्भ्रमित होकर अर्थ का और अनर्थ करते रह कर पीड़ित व दुखी होते रहते हैं लुटेरों से लुटना पसंद करते हैं किन्तु 'सत्य' को स्वीकार करना नहीं। 

आज के भीषण रोगों 'कैंसर' का वर्णन 'रक्तबीज' और AIDS का 'कीलक' के रूप में किया गया था। उपचार और समाधान भी दिया गया था किन्तु क्या सवर्ण क्या अवर्ण, क्या दलित क्या पिछड़े सभी पोंगा-पंडितों के बताए ढोंग के रूप में 'नवरात्र' मना कर जीवन को नष्ट कर रहे हैं। वास्तविकता को समझ कर उपचार करना किसी के एजेंडे में शामिल नहीं है। फिर भी  जन साधारण की सेवा में एक बार पुनः प्रस्तुत है :



Wednesday, 30 December 2015

सर्दी का मौसम : सफाई और स्वास्थ्य

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Monday, 28 December 2015

वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की वात पित्त कफ़ बीमारी के कारक हैं

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आँखों की रोशनी 







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मिश्री







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पुराने नुस्खे व मक्का का आटा



Tuesday, 22 December 2015

Honey treats the Bronchitis

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Bronchitis is lung inflammation which occurs as a result of viral infection, flu or cold. This condition leads to constant dry or wet cough which can bother you up to several weeks.

Fortunately, there is natural homemade remedy which can help you overcome even the most persistent cough, without having the need of additional therapy.

Ingredients needed:

– 250 grams of milk

– 1 tablespoon of honey

– 1 tablespoon of butter

– 1 egg yolk

– ¼ of a cup of baking soda

Method of preparation:

Boil the milk and let it cool until it gets 40 degrees. Afterwards, add the butter, honey and finally the egg yolk and baking soda. Mix the ingredients until you get homogeneous mixture.

This remedy should be consumed in the evening before you go to bed, for at least five days.

This is very efficient folk remedy which treats bronchitis, laryngitis and persistent cough in children and grownups.

Here is another recipe which will help you cleanse your lung of accumulated secretions.

Ingredients needed:

– 2 tablespoons of olive oil

– 2 tablespoons of lemon juice

– 2 tablespoons of water

– 1 tablespoon of honey


Mix all ingredients and drink the resulting mixture. This remedy should be consumed in the morning on an empty stomach for at least five days.


http://greatlifeandmore.com/index.php/2015/11/27/the-most-effective-recipe-for-treating-cough-and-bronchitis/

Via :
Dr.Archana Singh 


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