Friday 12 May 2017

पाचन तन्त्र,साइनस और साफ - सफाई

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Tuesday 9 May 2017

शरीर सुन्न होना : सूजन

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शरीर सुन्न हो जाने का कारण :
शरीर के किसी अंग के सुन्न होने का प्रमुख कारण वायु का कुपित होना है| इसी से वह अंग भाव शून्य हो जाता है| लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि खून के संचरण में रुकावट पैदा होने से सुन्नता आती है| यदि शरीर के किसी विशेष भाग को पूरी मात्रा में शुद्ध वायु नहीं मिलती तो भी शरीर का वह भाग सुन्न पड़ जाता है|

शरीर सुन्न हो जाने की पहचान :
जो अंग सुन्न हो जाता है, उसमें हल्की झनझनाहट होती है| उसके बाद लगता है कि वह अंग सुन्न हो गया है| सुई चुभने की तरह उस अंग में धीरे-धीरे लपकन-सी पड़ती है, लेकिन दर्द नहीं मालूम पड़ता|



शरीर सुन्न हो जाने का घरेलु उपचार - HOMEMADE REMEDIES FOR UMBNESS BODY

कभी-कभी बैठे-बैठे या काम करते हुए शरीर का कोई अंग या त्वचा सुन्न हो जाती है| कुछ लोग देर तक एक ही मुद्रा में बैठकर काम करते या पढ़ते-लिखते रहते हैं| इस कारण रक्तवाहिनीयों तथा मांसपेशियों में शिथिलता आ जाने से शरीर सुन्न हो जाता है|
शरीर सुन्न हो जाने का कारण :
शरीर के किसी अंग के सुन्न होने का प्रमुख कारण वायु का कुपित होना है| इसी से वह अंग भाव शून्य हो जाता है| लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि खून के संचरण में रुकावट पैदा होने से सुन्नता आती है| यदि शरीर के किसी विशेष भाग को पूरी मात्रा में शुद्ध वायु नहीं मिलती तो भी शरीर का वह भाग सुन्न पड़ जाता है|

शरीर सुन्न हो जाने की पहचान : 
जो अंग सुन्न हो जाता है, उसमें हल्की झनझनाहट होती है| उसके बाद लगता है कि वह अंग सुन्न हो गया है| सुई चुभने की तरह उस अंग में धीरे-धीरे लपकन-सी पड़ती है, लेकिन दर्द नहीं मालूम पड़ता|

शरीर सुन्न हो जाने के घरेलु नुस्खे इस प्रकार हैं:

पपीते या शरीफे के बीजों को पीसकर सरसों के तेल में मिलाकर सुन्न होने वाले अंगों पर धीरे-धीरे मालिश करें|

सोंठ, लहसुन और पानी :

सुबह के समय शौच आदि से निपट कर सोंठ तथा लहसुन की दो कलियों को चबाकर ऊपर से पानी पी लें| यह प्रयोग आठ-दस दिनों तक लगातर करने से सुन्न स्थान ठीक हो जाता है|

अजवायन, लहसुन और तिली तेल :

तिली के तेल में एक चम्मच अजवायन तथा लहसुन की दो पूतियां कुचलकर डालें| फिर तेल को पका-छानकर शीशी में भर लें| इस तेल से सुन्न स्थान की मालिश करें|

Homemade Remedies by Almond बादाम: 

बादाम का तेल मलने से सुन्न स्थान ठीक हो जाता है|बादाम घिसकर लगाने से त्वचा स्वाभाविक हो जाती है|

पीपल और सरसों :

पीपल के पेड़ की चार कोंपलें सरसों के तेल में मिलाकर आंच पर पकाएं| फिर छानकर इस तेल को काम में लाएं|

सोंठ, पीपल, लहसुन और पानी : 

सोंठ, पीपल तथा लहसुन - सभी बराबर की मात्रा में लेकर सिल पर पानी के साथ पीस लें| फिर इसे लेप की तरह सुन्न स्थान पर लगाएं|

कालीमिर्च और इलायची :

कालीमिर्च तथा लाल इलायची को पानी में पीसकर त्वचा पर लगाएं|

 नारियल और जायफल :

100 ग्राम नारियल के तेल में 5 ग्राम जायफल का चूर्ण मिलाकर त्वचा या अंग विशेष पर लगाएं|

लहसुन और पानी: :

एक गांठ लहसुन और एक गांठ शुंठी पीस लें| इसके बाद पानी में घोलकर लेप बना लें| इस लेप को त्वचा पर लगाएं|

 घी: 

रात को सोते समय तलवों पर देशी घी की मालिश करें| इससे पैर का सुन्नपन खत्म हो जाएगा|

 चोपचीनी, पीपरामूल, मक्खन और दूध :

5 ग्राम चोपचीनी, 2 ग्राम पीपरामूल और 4 ग्राम मक्खन - तीनों को मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करें|

 पीपल, चित्रक और दूध   : 

बेल की जड़, पीपल और चित्रक को बराबर की मात्रा में लेकर आधा किलो दूध में औटाएं| फिर रात को सोते समय उसे पी जाएं|

 सैन्धव तेल  :

सैन्धव तेल की मालिश से सुन्नपन में काफी लाभ होता है|

https://spiritualworld.co.in/homemade-remedies/symptoms-and-treatment-of-illness/numbness-body
अगर बार-बार होते हैं हाथ-पैर सुन्न तो अजमाएं ये घरेलू नुस्खा (Pix)

Sunday 7 May 2017

स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी है : :जीवन में सबकुछ पाने के लिए

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जीवन में सबकुछ पाने के लिए पहले आपका स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी है। याद रहे ये बातें।
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1. आजकल बढ़ रहे चर्म रोगों और पेट के रोगों का सबसे बड़ा कारण दूधयुक्त चाय और इसके साथ लिया जाने वाला नमकीन है.
2. कसी हुई टाई बाँधने से आँखों की रोशनी पर नकारात्मक प्रभाव होता है
3. अधिक झुक कर पढने से फेफड़े,रीढ़,और आँख की रौशनी पर बुरा असर होता है
4. अत्यधिक फ्रीज किये हुए ठन्डे पदार्थों के सेवन से बड़ी आंत सिकुड़ जाती है.
5. भोजन के पश्चात स्नान  से पाचन शक्ति मंद हो जाती है इसी प्रकार भोजन के तुरंत बाद मैथुन, बहुत ज्यादा परिश्रम करना एवं सो जाना पाचनशक्ति को नष्ट करता है.
6. पेट बाहर निकलने का सबसे बड़ा कारण खड़े होकर या कुर्सी मेज पर बैठ कर खाना और तुरंत बाद पानी पीना है. भोजन सदैव जमीन पर बैठ कर करें. ऐसा करने से आवश्यकता से अधिक खा नहीं पाएंगे. भोजन करने के बाद पानी पीना कई गंभीर रोगों को आमंत्रण देना है.
7. भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस (मीठा), मध्य में अम्ल, लवण रस (खट्टा, नमकीन) तथा अन्त में कटु, तिक्त, कषाय (तीखा, चटपटा, कसेला) रस के पदार्थों का सेवन करना चाहिए
8. भोजन के बाद हाथ धोकर गीले हाथ आँखों पर लगायें. यह आँखों को गर्मी से बचाएगा.
9. नहाने के कुछ पहले एक गिलास सादा पानी पियें. यह हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से बहुत हद तक दूर रखेगा.
10. नहाने की शुरुवात सर से करें. बाल न धोने हो तो मुह पहले धोये. पैरों पर पहले पानी डालने से गर्मी का प्रवाह ऊपर की ओर होता है और आँख मस्तिष्क आदि संवेदन शील अंगो को क्षति होती है.
11. नहाने के पहले सोने से पहले एवं भोजन कर चुकने के पश्चात मूत्र त्याग अवश्य कर्रें. यह अनावश्यक गर्मी, कब्ज और पथरी से बचा सकता है.
12. कभी भी एक बार में पूर्ण रूप से मूत्रत्याग न करें बल्कि रूक रुक कर करें. यह नियम स्त्री पुरुष दोनों के लिए है ऐसा करके प्रजनन अंगों से सम्बंधित शिथिलता से आसानी से बचा जा सकता है. (कीगल एक्सरसाइज)
13. खड़े होकर मूत्र त्याग से रीढ़ की हड्डी के रोग होने की सम्भावना रहती है. इसी प्रकार खड़े होकर पानी पीने से जोड़ों के रोग ऑर्थरिटिस आदि हो जाते हैं.
14. फल, दूध से बनी मिठाई, तैलीय पदार्थ खाने के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए. ठंडा पानी तो कदापि नहीं.
15. अधिक रात्रि तक जागने से प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है .
16. जब भी कुल्ला करें आँखों को अवश्य धोएं. अन्यथा मुह में पानी भरने पर बाहर निकलने वाली गर्मी आँखों को नुकसान पहुचायेगी.
17. सिगरेट तम्बाकू आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने से प्रत्येक बार मस्तिष्क की हजारों कोशिकाएं नष्ट हो जाती है इनका पुनर्निर्माण कभी नहीं होता.
18. मल मूत्र शुक्र खांसी छींक अपानवायु जम्हाई वमन क्षुधा तृषा आंसू आदि कुल 13 अधारणीय वेग बताये गए हं इनको कभी भी न रोकें. इनको रोंकना गंभीर रोगों के कारण बन सकते हैं .
19. प्रतिदिन उषापान करने कई बीमारियाँ नहीं हो पाती और डॉक्टर को दिया जाने वाला बहुत सा धन बच जाता है.उषापान दिनचर्या का अभिन्न अंग बनायें.
20. रात्रि शयन से पूर्व परमात्मा को धन्यवाद अवश्य दें. चाहे आपका दिन कैसा भी बीता हो. दिन भर जो भी कार्य किये हों उनकी समीक्षा करते हुए अगले दिन की कार्य योजना बनायें अब गहरी एवं लम्बी सहज श्वास लेकर शरीर को एवं मन को शिथिल करने का प्रयास करे. अपने सब तनाव, चिन्ता, विचार आदि परमपिता परमात्मा को सौंपकर निश्चिंत भाव से निद्रा की शरण में जाएँ.

Wednesday 19 April 2017

जिगर है तो जान है ------ राजलक्ष्मी

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Monday 10 April 2017

10 अप्रैल -महात्मा हैनीमेन की 263 वीं जयंती पर विशेष : विजय राजबली माथुर

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10 अप्रैल -महात्मा हैनीमेन जयंती पर विशेष : 

डॉ हैनीमेन का जन्म 10 अप्रैल सन 1755 ई .को जर्मन साम्राज्य के अंतर्गत सेकसनी प्रदेश के 'माइसेन 'नामक एक छोटे से गाँव मे हुआ था और 02 जूलाई सन 1843 ई .मे नवासी वर्ष की आयु मे उनका निधन हुआ। "कीर्तिर्यस्य स जीवति"= इस असार संसार को छोडने से पूर्व डॉ हैनीमेन 'चिकित्सा-विधान'मे एक अक्षय कीर्ति स्थापित कर गए। 

उपलब्ध जानकारी के अनुसार डॉ हैनीमेन जर्मनी के एक कीर्ति प्राप्त उच्च -पदवी धारी एलोपैथिक चिकित्सक थे। अनेकों बड़े-बड़े चिकित्सालयों मे बहुत से रोगियों का इलाज करते हुये उनके ध्यान मे यह बात आई कि अनुमान से रोग निर्वाचन (DIAGNOSIS) कर,और कितने ही बार अनुमान पर निर्भर रह कर दवा देने के कारण भयंकर हानियाँ होती हैं,यहाँ तक कि बहुत से रोगियों की मृत्यु तक हो जाया करती है। इन बातों से उन्हें बेहद वेदना हुई और अंततः उन्होने इस भ्रमपूर्ण चिकित्सा (एलोपैथी )द्वारा असत उपाय से धन-उपार्जन करने की लालसा ही त्याग दी एवं निश्चय किया कि अब वह पुस्तकों का अनुवाद करके अपना जीविकोपार्जन करेंगे। इसी क्रम मे एक दिन एक-'मेटिरिया मेडिका' का अनुवाद करते समय उन्होने देखा कि शरीर स्वस्थ रहने पर यदि सिनकोना की छाल सेवन की जाये तो 'कम्प-ज्वर'(जाड़ा-बुखार)पैदा हो जाता है और सिनकोना ही कम्प-ज्वर की प्रधान दवा है। यही बोद्ध डॉ हैनीमेन की नवीन चिकित्सा पद्धति के आविष्कार का मूल सूत्र हुआ। इसके बाद इसी सूत्र के अनुसार उन्होने अनेकों भेषज-द्रव्यों का स्वंय सेवन किया और उनसे जो -जो लक्षण पैदा हुये ,उनकी परीक्षा की । यदि किसी रोगी मे वे लक्षण दिखाई देते तो उसी भेषज-द्रव्य को देकर वह रोगी को 'रोग-मुक्त'भी करने लगे।

डॉ हैनीमेन अभी तक पहले की भांति एलोपैथिक अर्थात स्थूल मात्रा मे ही दवाओं का प्रयोग करते थे। परंतु उन्हे यह एहसास हुआ कि रोग,आरोग्य हो जाने पर भी कुछ दिन बाद रोगी मे दुबारा बहुत सारे अनेक लक्षण पैदा हो जाते हैं। जैसे किनाइन का सेवन करने पर ज्वर तो आरोग्य हो जाता है ,परंतु उसके बाद रोगी मे --रक्त हीनता,प्लीहा,यकृत,पिलई,शोथ (सूजन ),धीमा बुखार आदि अनेक नए-नए उपसर्ग पैदा होकर रोगी को एकदम जर्जर बना डालते हैं। बस उसी एहसास के बाद से उन्होने दवा की मात्रा घटानी आरम्भ कर दी। इससे उन्हें यह मालूम हुआ कि,परिमाण या मात्रा भले ही कम हो ,आरोग्य दायिनी शक्ति पहले की तरह ही मौजूद रहती है और दुष्परिणाम भी पैदा नहीं होते।

अन्त मे उन्होने दवा का परिमाण क्रमशः भग्नांश के आकार मे प्रयोग करना आरम्भ किया और वे भग्नांश दवाएं फ्रेंच स्प्रिट,दूध की चीनी (शुगर आफ मिल्क)और चुयाया हुआ पानी (डिस्टिल्ड वाटर)इत्यादि औषद्ध-गुण विहीन चीजों के साथ मिला कर प्रयोग करना शुरू किया। यही नियम इस समय -'सदृश्य-विधान' कहलाता है जिसे डॉ हैनीमेन के नाम पर 'होम्योपैथिक-चिकित्सा' कहा जाता है। 

होम्योपैथी का 'सदृश्य -विधान' हमारे देश के 'आयुर्वेद' के सदृश्य सिद्धान्त से मेल खाता है। होम्योपैथी दवाएं होती भी हैं बहुत कम कीमत की। पहले होम्योपैथी चिकितक कोई कनसलटेशन चार्ज या परामर्श शुल्क भी नहीं लेते थे। एलोपैथी चिकित्सकों की भांति होम्योपैथी चिकित्सक कोई गरूर या घमंड भी नहीं रखते थे। अधिकांश होम्योपैथी चिकित्सकों के पीछे यह स्लोगन लिखा होता था-I TREATS,HE CURES.तब यह चिकित्सा पद्धति जनता की प्रिय चिकित्सा पद्धति थी।

गत 4-5 वर्षों से एलोपैथी चिकित्सा क्षेत्र मे फैले कमीशन वाद ने इस जन-चिकत्सा पद्धति (होम्योपैथी )को भी अपनी गिरफ्त मे ले लिया है। अब डॉ को कमीशन की रकमे बढ़ा दी गई हैं और विदेश दौरे के पेकेज जैसे एलोपैथी डॉ को मिलते थे वैसे ही मिलने लगे हैं। बाजार वाद के प्रभाव ने इस चिकित्सा पद्धति को भी मंहगा बनाना प्रारम्भ कर दिया है। यह महात्मा हैनीमेन की सोच के विपरीत है। आज जब हम डॉ हैनीमेन की 263  वी जयंती मना रहे हैं तो एक बार इस बात का भी मनन करें कि जिस एलोपैथी चिकित्सा की बुराइयों से त्रस्त होकर डॉ हैनीमेन ने नई जनोपयोगी चिकित्सा पद्धति का सृजन किया था उसे पुनः एलोपैथी की बुराइयों मे फँसने से बचाया जाये। वही डॉ हैनीमेन को सच्ची श्रद्धांजली होगी।