Sunday 18 January 2015

बथुआ है गुणों की खान---आयुर्वेदिक चिकित्सा

इन दिनों दिनों बाज़ार में खूब बथुए का साग आ रहा है।
- बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से
जाना जाता है बथुआ एक
ऐसी सब्जी या साग है,
जो गुणों की खान होने पर
भी बिना किसी विशेष परिश्रम और
देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक
डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से
भरपूर है। बथुआ के परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते
हैं बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला,
शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह
तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन
करता है |

- विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित,
बवासीर तथा कृमियों पर अधिक
प्रभावकारी है |
- इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग
के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए
इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है .
- यह कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है .
-किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द
या सूजन हो ; तो इसके
बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग
भी लिया जा सकता है .
- सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके
बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .
- गर्भवती महिलाओं को बथुआ
नहीं खाना चाहिए .
- एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में
पानी मिलाकर पिलायें .
- अगर लीवर की समस्या है ,
या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर
10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें .
- पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध
करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के
पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त
की परेशानी हो , तब
भी इसका रस पीना लाभदायक
रहता है .
- सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और
कमजोरी में इसका साग
खाना हितकारी है।
- धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग
खाना लाभकारी है।
- बथुआ को साग के तौर पर खाना पसंद न
हो तो इसका रायता बनाकर खाएं।
- बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन
शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर
की शिथिलता मिटाता है। लिवर के आसपास
की जगह सख्त हो, उसके कारण
पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के
बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ
होता है।
- सिर में अगर जुएं हों तो बथुआ को उबालकर इसके
पानी से सिर धोएं। जुएं मर जाएंगे और सिर
भी साफ हो जाएगा।
- बथुआ को उबाल कर इसके रस में नींबू, नमक और
जीरा मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और
दर्द नहीं होता।
- यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने वाला पेट
की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को मधुर बनाने
वाला है।
- पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब
खुल कर आता है।
- इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है।
- कच्चे बथुआ के एक कप रस में थोड़ा सा नमक मिलाकर
प्रतिदिन लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

https://www.facebook.com/oldveda/posts/862494320469250 

Saturday 17 January 2015

प्रोस्टेट कैंसर के लिए घरेलू उपचार---आयुर्वेदिक चिकित्सा



घरेलू उपाय जीवनशैली का हिस्‍सा होते हैं। इनकी खास बात यह होती है कि आप इनका सेवन सामान्‍य चिकित्‍सा के साथ भी ले सकते हैं। प्रोस्‍टेट कैंसर में भी घरेलू उपाय चिकित्‍सीय सहायता से प्राप्‍त होने वाले लाभ को तो बढ़ाते ही हैं साथ ही आपके ठीक होने की गति में भी इजाफा करते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए घरेलू नुस्खे बहुत कारगर हो सकते हैं। प्रोस्टेट एक ग्रंथि होती है जो पेशाब की नली के ऊपरी भाग के चारों ओर स्थित होती है। यह ग्रंथि अखरोट के आकार जैसी होती है। आमतौर पर प्रोस्टेट कैंसर 50 साल की उम्र के बाद सिर्फ पुरुषों में होने वाली एक बीमारी है। प्रोस्टेट कैंसर की शुरूआती अवस्था में अगर पता चल जाए तो उपचार हो सकता है।
इसका इलाज रेक्टल एग्जाममिनेशन से होता है। इसके लिए सीरम पीएसए की खून में जांच व यूरीनरी सिस्टम का अल्ट्रासाउंड भी करवाया जाता है। इसके अलावा घरेलू नुस्खों को अपनाकर कुछ हद तक इस प्रकार के कैंसर का इलाज हो सकता है। आइए हम आपको प्रोस्टेट कैंसर के लिए घरेलू उपचार बताते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के लिए घरेलू नुस्खे:
एलोवेरा
अलोवेरा को प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त मरीजों को नियमित रूप से एलोवेरा का सेवन करना चाहिए। एलोवेरा में कैंसररोधी तत्व पाये जाते हैं जो कि कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकते हैं।
ब्रोकोली
ब्रोकोली के अंकुरों में मौजूद फायटोकेमिकल कैंसर की कोशाणुओं से लड़ने में सहायता करते हैं। यह एंटी ऑक्सीडेंट का भी काम करते हैं और खून को शुद्ध भी करते हैं। प्रोस्टेंट कैंसर होने पर ब्रोकोली का सेवन करना चाहिए।
ग्रीन टी
प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त आदमी को नियमित रूप से एक से दो कप ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए। ग्रीन टी में कैंसर रोधी तत्वे पाये जाते हैं।

लहसुन
लहसुन में औषधीय गुण होते हैं। लहसुन में बहुत ही शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं जैसे - एलीसिन, सेलेनियम, विटामिन सी, विटामिन बी। इसके कारण कैंसर से बचाव होता है और कैंसर होने पर लहसुन का प्रयोग करने से कैंसर बढ़ता नही है।
अंगूर
प्रोस्टे़ट कैंसर के उपचार के लिए अंगूर भी कारगर माना जाता है। अंगूर में पोरंथोसाइनिडीस की भरपूर मात्रा होती है, जिससे एस्ट्रोजेन के निर्माण में कमी होती है। इसके कारण प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में मदद मिलती है।
सोयाबीन
सोयाबीन से भी प्रोस्टेट कैंसर के उपचार में सहायता मिलती है। प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को रोज के खानपान के साथ सोयाबीन के अंकुर या पकाए हुए सोयाबीन का सेवन करना चाहिए। सोयाबीन में कुछ ऐसे एंजाइम पाये जाते हैं जो हर प्रकार के कैंसर से बचाव करते हैं।
अमरूद और तरबूज
प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए अमरूद और तरबूज भी बहुत कारगर हैं। अमरूद और तरबूज में लाइकोपीन तत्व ज्यादा मात्रा में पाया जाता है जो कि कैंसररोधी है। इसलिए प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को इन फलों का ज्यादा मात्रा में सेवन करना चाहिए।
व्हीटग्रास
प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए व्हीटग्रास बहुत लाभकारी होता है। व्हीसट ग्रास कैंसर युक्त कोशिकाओं को कम करता है। इसके अलावा व्हीटग्रास खाने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर से विषैले तत्व भी हटते हैं।
इसके अलावा प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को ताले फलों और सबिजयों का भी सेवन भरपूर मात्रा में करना चाहिए। प्रोस्टेट कैंसर के ये घरेलू उपाय चिकित्सीय सहायता के साथ साथ चल सकते हैं। कैंसर के लक्षण नजर आते ही आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। हां इन उपायों को आप अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना सकते हैं

https://www.facebook.com/oldveda/posts/857040097681339 

Friday 16 January 2015

ओरो- फीकल रूट का उपचार और लंच के बाद का विचार --- डॉ टी एस दराल

पेट की बहुत सी बीमारियां खाने पीने से होती हैं ! इसे हम ओरो- फीकल रूट कहते हैं ! यानि जब हम हाथ से खाना खाते हैं तो हाथ साफ ना होने पर संक्रमण हमारे पेट मे जाकर अपना प्रभाव छोड़ता है और कई तरह के रोग लग जाते हैं !
इसलिये हर बार खाने से पहले हाथ धोना आवश्यक होता है ! लेकिन सबसे ज्यादा आवश्यक होता है , टॉयलेट जाने के बाद !
आइये आपको हाथ धोने का सही तरीका बताते हैं ( बिल्कुल मुफ्त ) :
१) साबुन लगाकर पहले हथेलियों को रगड़िये !
२) अब हाथों के बैक साइड पर रगड़िये !
३) अब उंगलियों को आपस मे फंसाकर वेब्स को रगड़िये !
४ ) अब बारी बारी से एक हाथ के अंगूठे को दूसरे हाथ से गोल गोल रगड़िये !
५) अब बारी बारी से एक हाथ के नाखूनों को दूसरे हाथ की हथेली पर रगड़िये !
६) अंत मे दोनो हाथों को आपस मे घुमाकर रगड़िये !

हैंड वॉशिंग के ये ६ स्टेप्स डॉक्टरों द्वारा सुझाये जाते हैं ! यदि इनका पालन करेंगे तो पेट के रोगों से बचे रहने की उम्मीद ज्यादा रहेगी !
**********************************
लंच के बाद का विचार :
जिस तरह खाना खाने से पहले हाथ धोना आवश्यक होता है , उसी तरह खाने के बाद कुल्ला करना आवश्यक होता है ! लेकिन कुल्ला करना अनपढ़ और गांव के लोगों का काम माना जाता है ! खाने के बाद खाली एक घूँट पानी पीकर काम चलाने का ही नतीज़ा होता है कि पढ़े लिखे शहरी लोगों के दांतों मे भी डेंटल केरिज हो जाती है ! इसीलिये अक्सर शहरी लोगों के मूँह से भी दुर्गन्ध आती है !
ज़रा सोचिये , फैशन आवश्यक है या स्वास्थ्य !
https://www.facebook.com/tarif.daral/posts/10204084149247417 

Wednesday 14 January 2015

मकर -संक्रांति का वैज्ञानिक-चिकित्सकीय महत्त्व --- विजय राजबली माथुर

 
http://www.janadesh.in/InnerPage.aspx?Story_ID=6683

प्रति-वर्ष १४ जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व श्रद्धा एवं उल्लास क़े साथ मनाया जाता रहा है.परंतु अब पृथ्वी व सूर्य की गतियों में आए अंतर के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सांयकाल या उसके बाद होने के कारण प्रातः कालीन पर्व अगले दिन अर्थात १५ जनवरी को मनाए जाने चाहिए.अतः स्नान-दान,हवन आदि प्रक्रियाएं १५ ता.की प्रातः ही होनी चाहिए.परन्तु लकीर क़े फ़कीर लोग १४ जन.की प्रातः ही यह सब पुण्य कार्य सम्पन्न कर लेंगे.हाँ यदि १४ ता. की रात्रि में कहीं कोई कार्य होने हों तो करना ठीक है.जो लोग १४ ता. की प्रातः मकर संक्रांति मनायें वे ध्यान रखें कि,वे ऐसा धनु क़े सूर्य रहते ही कर रहे हैं,क्या यह वैज्ञानिक दृष्टि से उचित रहेगा?.मकर संक्रांति क़े  दिन से सूर्य उत्तरायण होना प्रारम्भ होता है.सूर्य लगभग ३० दिन एक राशि में रहता है.१६ जूलाई को कर्क राशि में आकर सिंह ,कन्या,तुला,वृश्चिक और धनु राशि में छै माह रहता है.इस अवस्था को दक्षिणायन कहते हैं.इस काल में सूर्य कुछ निस्तेज तथा चंद्रमा प्रभावशाली रहता है और औषधियों एवं अन्न की उत्पत्ति में सहायक रहता है.१४ जनवरी को मकर राशि में आकर कुम्भ,मीन ,मेष ,वृष और मिथुन में छै माह रहता है.यह अवस्था उत्तरायण कहलाती है.इस काल में सूर्य की रश्मियाँ तेज हो जाती हैं और रबी की फसल को पकाने का कार्य करती हैं.उत्तरायण -काल में सूर्य क़े तेज से जलाशयों ,नदियों और समुन्द्रों का जल वाष्प रूप में अंतरिक्ष में चला जाता है और दक्षिणायन काल में यही वाष्प-कण पुनः धरती पर वर्षा क़े रूप में बरसते हैं.यह क्रम अनवरत चलता रहता है.दक्षिण भारत में पोंगल तथा पंजाब में लोहिणी,उ.प्र.,बिहारऔर बंगाल में खिचडी क़े रूप में मकर संक्रांति का पर्व धूम-धाम से सम्पन्न होता है.इस अवसर पर छिलकों वाली उर्द की दाल तथा चावल की खिचडी पका कर खाने तथा दान देने का विशेष महत्त्व है.इस दिन तिल और गुड क़े बने पदार्थ भी दान किये जाते हैं.क्योंकि,अब सूर्य की रश्मियाँ तीव्र होने लगतीं हैं;अतः शरीर में पाचक अग्नि उदीप्त करती हैं तथा उर्द की दाल क़े रूप में प्रोटीन व चावल क़े रूप में कार्बोहाईड्रेट जैसे पोषक तत्वों को शीघ्र घुलनशील कर देती हैं,इसी लिये इस पर्व पर खिचडी  खाने व दान करने का महत्त्व निर्धारित किया गया है.गुड रक्तशोधन का कार्य करता है तथा तिल शरीर में वसा की आपूर्ति करता है,इस कारण गुड व तिल क़े बने पदार्थों को भी खाने तथा दान देने का महत्त्व रखा गया है.

जैसा कि अक्सर हमारे ऋषियों ने वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित पर्वों को धार्मिकता का जामा पहना दिया है,मकर-संक्रांति को भी धर्म-ग्रंथों में विशेष महत्त्व दिया गया है.शिव रहस्य ग्रन्थ,ब्रह्म पुराण,पद्म पुराण आदि में मकर संक्रांति पर तिल दान करने पर जोर दिया गया है.हमारा देश कृषि-प्रधान रहा है और फसलों क़े पकने पर क्वार में दीपावली तथा चैत्र में होली पर्व मनाये जाते हैं.मकर संक्रांति क़े अवसर पर गेहूं ,गन्ना,सरसों आदि की फसलों को लहलहाता देख कर तिल,चावल,गुड,मूंगफली आदि का उपयोग व दान करने का विधान रखा गया है,जिनके सेवन से प्रोटीन,वसा,ऊर्जा तथा उष्णता प्राप्त होती है."सर्वे भवन्तु सुखिनः"क़े अनुगामी हम इन्हीं वस्तुओं का दान करके पुण्य प्राप्त करते हैं.

दान देने का विधान बनाने का मूल उद्देश्य यह था कि,जो साधन-विहीन हैं और आवश्यक पदार्थों का उपभोग करने में अक्षम हैं उन्हें भी स्वास्थ्यवर्धक  पदार्थ मिल सकें.यह एक दिन का दान नहीं बल्कि इस ऋतु-भर का दान था.लेकिन आज लोग साधन-सम्पन्न कर्मकांडियों को एक दिन दान देकर अपनी पीठ थपथपाने लगते हैं.जबकि,वास्तविक गरीब लोग वंचित और उपेक्षित  ही रह जाते हैं.इसलिए आज का दान ढोंग-पाखण्ड से अधिक कुछ नहीं है जो कि, ऋषियों द्वारा स्थापित विधान क़े उद्देश्यों को पूरा ही नहीं करता.क्या फिर से प्राचीन अवधारणा को स्थापित नहीं किया जा सकता ?
***************************
मूल रूप से यह लेख १३ जनवरी २०११ को पहली बार ब्लाग में प्रकाशित हुआ था।


(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)

Thursday 8 January 2015

हींग कई बीमारियों के लिए बहुत फायदेमंद होती है

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं
http://www.bhaskar.com/news/LIF-HNB-10-health-benefits-of-heeng-4864266-PHO.html 

लाइफस्टाइल डेस्क: हींग कई बीमारियों के लिए बहुत फायदेमंद होती है। आंखों की बीमारी होने पर हींग का सेवन करना चाहिए। हींग बहुत ही अच्छा पाचक भी है। दिमाग की बीमारियों का इलाज हींग के इस्तेमाल से होता है। हींग कान के रोगों में भी फायदेमंद है। हींग कफ और वात को ठीक करती है। आइए, हम आपको हींग के औषधीय गुणों की जानकारी देते हैं।
हींग के लाभ:–
1-दांतों की समस्या के लिए हींग बहुत फायदेमंद है। दांतों में कीड़ा लग जाने पर रात में सोते वक्त दांतों में हींग दबाकर सोएं। ऐसा करने से कीड़े अपने-आप निकल जाएंगे। यदि शरीर के किसी हिस्से में कांटा चुभ गया हो, तो उस स्थान पर हींग का घोल भर दीजिए। इससे पीडा भी समाप्त होगी और कांटा अपने-आप निकल जाएगा।
2-दाद, खाज, खुजली जैसे चर्म रोगों में हींग बहुत फायदेमंद है। चर्म रोग होने पर हींग को पानी में घिसकर उन स्थानों पर लगाने से फायदा होता है।
3-बवासीर की समस्या होने पर हींग का प्रयोग करना फायदेमंद होता है। बवासीर होने पर हींग का लेप लगाने से आराम मिलता है।
4-कब्ज की शिकायत होने पर हींग के चूर्ण में थोडा-सा मीठा सोडा मिलाकर रात में सोने से पहले लीजिए। इससे पेट साफ हो जाएगा और कब्ज की शिकायत समाप्त होगी।
5-पेट में दर्द व ऐंठन होने पर अजवाइन और नमक के साथ हींग का सेवन करने से फायदा होता है।
पेट में कीड़े हो जाने पर हींग को पानी में घोलकर एनीमा लेने से पेट के कीड़े शीघ्र निकल आते हैं।
अगर किसी खुले जख्म पर कीड़े पड़ गए हों, तो उस जगह पर हींग का चूर्ण लगाने से कीड़े समाप्त हो जाते हैं।

8-खाने से पहले घी में भुनी हुई हींग एवं अदरक का एक टुकड़ा मक्खन के साथ में लेने से भूख ज्यादा लगती है।
9-पीलिया होने पर हींग को गूलर के सूखे फलों के साथ खाना चाहिए। पीलिया होने पर हींग को पानी में घिसकर आंखों पर लगाने से फायदा होता है।
10-कान में दर्द होने पर तिल के तेल में हींग को पकाकर उस तेल की बूंदों को कान में डालने से दर्द समाप्त हो जाता है।
11-उल्टी आने पर हींग को पानी में पीसकर पेट पर लगाने से फायदा होता है।
12-सिरदर्द होने पर हींग को गर्म करके उसका लेप लगाने से फायदा होता है।
ईरानी मूल की मानी जाने वाली हींग खांसी, सूखी खांसी, इन्फ्लुएंजा, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी बीमारियों को दूर करने में भी काफी मददगार है। दाल, सांभर व अन्य किसी रसदार सब्जी में हींग का इस्तेमाल किया जाता है।  

1 3-घी के साथ सेवन करें
देसी घी में हींग के पाउडर को भून लें। इससे खांसी और सांस से जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है।

थोड़ी-सी हींग में एक चम्मच शहद और आधा चम्मच सफेद प्याज का रस मिला लें। साथ ही, इसमें आधा चम्मच सुपारी का रस और सूखी अदरक मिला लें। सांस से जुड़ी समस्याओं से बचने के लिए रोज इस मिश्रण का थोड़ी मात्रा में सेवन करें। 
4- हींग और शहद

5-गर्म पानी के साथ हींग

गर्म पानी में एक चुटकी हींग डाल लें। इस मिश्रण को पीने से गंभीर ब्रोंकाइटिस में राहत मिलती है। यह उपाय करने में आसान है। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि हींग की तासीर गर्म होती है, इसलिए इसका ज़्यादा सेवन न करें।