30 मार्च स्मृति दिवस पर विशेष :
*बायोकेमिक चिकित्सा शरीर के कोशों में होने वाली चयापचयिक(मेटाबोलिक)प्रक्रियाओं को खनिज लवणों के माध्यम से मानव शरीर के क्रियाकलापों की सहायता करने के लिए अपरिहार्य होती है।
*योरोपीय भौतिक विज्ञानियों द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि शरीर के कोषों और तंतुओं के वास्तविक घटक स्वास्थ्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रभावकारी होते हैं। बर्लिन के रूडोल्फ वरशु (1821-1902) ने अपनी अनुपम पुस्तक 'सैल्यूलर पैथोलॉजी" में इंगित किया है कि "अंततः प्रत्येक प्रकार का कष्ट (रोग) केवल कोषों में एक प्रकार की विकृति पर आधारित होता है। केवल कोष बीमार हो सकता है-कोष जो मानव शरीर की सबसे चोटी क्रियाकारी इकाई होता है। "
*जर्मन बायोकेमिस्ट और भौतिक विज्ञानी डॉ विल्हेम हेनरिक शुसलर (1821-1898) ने जैविक राख़ का विश्लेषण किया और इसमें 12 प्रमुख टिशु (खनिज) लवणों की पहचान की जो सभी प्राणियों में समान रूप से विद्यमान रहते हैं। ये टिशु (खनिज) लवण कोषों, तंतुओं और अंगों के अकार्बनिक घटक होते हैं और शरीर की कार्य प्रणाली तथा चयापचयी क्रियाओं के लिए महात्व्पोर्ण होते हैं। डॉ शुसलर ने इन्हें फंक्शनल साल्ट या टिशु लवण" नाम दिया।
*ये टिशु लवण शिलाओं और मिट्टी में आम पाये जाते हैं। ये लवण न केवल शरीर में खनिजों की कमी को पूरा करते हैं बल्कि भोजन में से इन लवणों के स्वांगीकरण को भी बढ़ाते हैं।
*डॉ शुसलर ने आगे प्रतिपादित किया जीवित तंतुओं में इन लवणों की कोषों में आवश्यक मात्रा में कमी से कोषों में मालिक्यूलर गति में जो अव्यवस्था उत्पन्न होती है उसको ही रोग कहते हैं। कमी वाले टिशु (खनिज ) लवण की सूक्ष्म मात्रा में आपूर्ती करने (खिलाने ) से अव्यवस्था को दुरुस्त करके स्वास्थ्य पुनर्स्थापित किया जा सकता है।
*डॉ शुसलर ने शरीर में विद्यमान प्रत्येक टिशु (खनिज ) लवण के कार्य और क्रियाकलाप का अन्वेषण किया और इनके आधार पर लक्षणों के अनुसार परीक्षणों द्वारा शानदार परिणाम पाये।
*डॉ शुसलर का 30 मार्च 1898 को, 77 वर्ष की आयु में देहांत हुआ, लेकिन उनका शोध-कार्य सम्पूर्ण यूरोप तथा विश्व में आज भी जारी है। प्रथम बायोकेमिक परिषद ओलड़नबरी में 1885 में स्थापित हुआ। आज यह 96 शाखाओं में विभक्त है।
डॉ शुसलर के सिद्धान्त :
*मनुष्य के शरीर में बारह विभिन्न टिशु (खनिज ) लवण विद्यमान होते हैं, अच्छे स्वस्थ्य और कोषों की सामान्य प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए इंका समुचित संतुलन बनाए रखना ज़रूरी होता है।
*इस संतुलन में कोई भी कमी होने पर जो स्थिति उत्पन्न होती है उसे रोग कहा जाता है।
*रोग की दशा में शरीर में कमी वाले 'लवणों' को पोटेन टाइज़ रूप में खिलाने से ये टिशु (खनिज ) लवण खून के प्रवाह के साथ तेजी से कोषों में पहुँच कर स्वास्थ्य का सामान्य संतुलन पुनर्स्थापित कर देते हैं।
*डॉ शुसलर द्वारा आविष्कार की गई यह चिकित्सा विधि बायोकेमिक पद्धति कहलाई।
*बायोकेमिक दवाएं होम्योपेथिक पद्धति के समान घर्षण करके तैयार की जाती हैं।
*बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति टिशु (खनिज ) लवणों की कमी के आधार पर की जाती है,अतः होम्योपेथिक पद्धति के विपरीत इस पद्धति में एक से अधिक दवा मिश्रित करके उपयोग की जा सकती है।
*बायोकेमिक दवाएं सूक्ष्म मात्रा में निम्न पोटेनसी में यथा-1 x, 3 x, 6 x, 12 x, 30 x, 200 x में उपयोग की जाती हैं। ये दवाएं बच्चों, गर्भिणी महिलाओं,वृद्ध व्यक्तियों को भी सुरक्षित रोप से खिलाई जा सकती हैं।
(साभार-व्हीजल होमयों फार्मा )
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आज डॉ विल्हेम हेनरिक शुसलर साहब की पुण्य तिथि पर उनका स्मरण करते हुये 'बायोकेमिक' दवाओं की जानकारी इसलिए भी दे सका हूँ क्योंकि बचपन से ही अपने बाबाजी स्व.धनराजबली माथुर साहब,नानाजी स्व.डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब एवं बाबूजी स्व.ताजराजबली माथुर साहब को इंनका प्रयोग करते हुये देखा है। उनकी पुस्तकों का भी अध्ययन किया है और 'आयुर्वेद रत्न' करने के बावजूद होम्योपेथी व बायोकेमिक दवाओं को ही अच्छा फलप्रद पाया है। लगभग 22 वर्ष पूर्व 'पंजाब केसरी' में इन बारह बायोकेमिक औषद्धियों का ज्योतिष की बारह राशियों से सम्बन्धों पर भी ज्ञान -प्रकाश डाला गया था और अब मैं खुद भी ज्योतिष द्वारा मानव-कल्याण के कार्यों मेन संलग्न हूँ। अतः 'सूर्य' राशि क्रम से बारह बायोकेमिक दवाओं का क्रम प्रस्तुत करते हुये यह आशा करता हूँ कि इनसे सर्व-साधारण लाभान्वित हो सकेंगे। इसे कल दिनांक 31 मार्च 2014 से प्रारम्भ हो रहे विक्रमी संवत 2071 की शुभकामनाओं के रूप में भी ले सकते हैं।
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ReplyDeleteGurmukh Singh Salh:
Dhanyawaad Vijai RajBali Mathur Sahib is mahatvpurak jankari ke liye aur Nav-Varsh ki Shubh-Kamnaon ke liye, Naya Vikarmi Samvat 2071 aapke liye bhi parivar sahit bahut-bahut Shubh ho.
Thank you for sharing your precious experience.
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