आलोक भारती
June 2 ·
मेरी क्लीनिक के पास ही सेन्ट्रल जेल है तो अधिकांश जेलकर्मी मुझसे ही व दवा लेने आते हैं।परसों ही जेलर साहब हाथ में छड़ी लेकर लंगड़ाते हुए आए।आते ही उन्होंने x-ray report टेबुल पर रख दी।
क्या हुआ जेलर साहब ?मैंने पूछा.
अरे डाक्टर साहब 10 दिन पहले बाथरूम में फिसल गया था तब से पैर का दर्द नहीं जा रहा है।आर्थोपेड्रिक सर्जन को भी दिखाया पर राहत नहीं मिली तो सोचा आप से ही परामर्श लूं.जेलर साहब बोले।
मैंने x-ray देखा कोई विशेष चोट नहीं थी।मामूली सी जांघ की मसल्स पुल हुई थी जिसे सिर्फ पांच दिन में सही हो जाना था।इसके साथ उन्होंने अपने गिरने व उठ कर खड़े होने से लेकर आज तक का अपना दर्दनाक विवरण 15 मिनट तक लाइव सुनाया।
तभी सामने रोड पर एक बच्चे ने आवारा कुत्ते को भगाने के लिए उसके पैर पर पतली स्टिक मारी।कुत्ता चोटिल पैर उठाए हुए 5-6 मीटर भागा और फिर उसने चारो टांगो से तेज दौड़ लगाई और नजरों से ओझल हो गया।
मैंने जेलर साहब से कहा देखा आपने कुत्ते के पास भूलने की शक्ति है और उसने उसका कितना बेहतर उपयोग किया।5 मिनट में ही वह अपनी चोट भूल गया और दौड़ लगा दी।आपके पास भी विस्मृत करने की क्षमता है पर आपने उसका उपयोग ही नहीं करा।आप अभी तक दस दिन पुरानी घटना में ही जी रहे हैं।वक्त हर जख्म को भर देता है पर आप खुद ही उसे कुरेद कुरेद कर हरा बनाए हुए हैं।जाइए आराम कीजिए और अपने आप से बार बार बोलिए- जितना दर्द कल था उतना आज नहीं है और कल आज जितना भी नहीं रहेगा।बस यही इलाज मेरे पास है करना चाहें तो करें अन्यथा किसी और को दिखा लें।
क्लीनिक पर काम करने बाले लड़के ने बाद में बताया जेलर साहब बाहर निकल कर आसमान की तरफ देख कर बुदबुदाए थे अजीब अहमक डाक्टर है सिर्फ मंत्र दोहराने को बोल दिया।
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मेरी पत्नी की भी ऐसी ही आदत थी।जब भी उसके सर में दर्द होता वह हर 15 मिनट बाद बोलती थी बहुत तेज दर्द है।मैं उससे कहता था तुम्हें बार बार घोषणा नहीं करनी चाहिए तुम्हारे अवचेतन मन पर दर्द की चीत्कारें अंकित होती जा रहीं हैं तो दवा खा कर भी आराम नहीं होगा।दर्द को भुलाने की कोशिश करो ना कि उसे रटते जाओ।
पहले तो उसे यह तरीका अजीब लगा पर अब अपना लिया है।
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मुझे भी 2007 से 2010 तक cluster head के तेज अटैक पड़ते थे।इसमें माथे पर टीका लगाने की जगह पर तीव्र दर्द होता है आंखे सूज कर लाल व आसू चलने लगते हैं।इस दर्द का ना तो कारण पता है ना कोई दवा है पेनकिलर के अलावा।मैं सर को मफलर से कस कर बांध लेता था।इन चार सालों में एक भी पेनकिलर नहीं खाई।तेज दर्द क स्थिति में भी क्लीनिक अटेंड करी।पेशेंट देखता और उल्टी आने पर उल्टी कर फिर पेशेंट्स में लग जाता था क्योंकि उल्टी से थोड़ी राहत मिल जाती थी।पूरी तरह दर्द को भुलाने की कोशिश में लगा रहता था।मरीज तक कह उठते थे कोई दवा क्यों नहीं ले लेते आप।मेरा जबाव होता अब दर्द कम होना शुरु हो गया है थोड़ी देर में आराम हो जाएगा।विश्वास कीजिए दर्द ऐसी सोच के चलते कम होना शुरु हो जाता था।इसी तरह दर्द से लड़ते लड़ते वह कहां और कब चला गया पता नहीं जबकि मेडिकल साइंस के अनुसार इसे आजीवन मेरे साथ रहना था।
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. मेरे कहने का यह आशय कदापि नहीं कि डाक्टर से परामर्श ना लें।उसके द्वारा बताई दवा भी लें।पर अपने को इस जंग में एक योद्धा माने और रोग से लड़ने को हर पल मुस्तैद रहें।
मैं लड़ा भी जीता भी।
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. कर के देखिए अच्छा लगता है।
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