Tuesday, 20 October 2015

पेट में गैस का बनना : कारण और निवारण --- देशबंधु समाचार-पत्र

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पेट में गैस या वायु की बीमारी पेट की मंदाग्नि (पाचनशक्ति की कमजोरी या अपच) के कारण होती है। शरीर में यह बीमारी तीन भागों से हो जाती है। पहला- शाखा, दूसरा-मर्म, अस्थि और संधि तथा तीसरा- कोष्ठ (आमाशय)। वायु या गैस की बीमारी कोष्ठ से पैदा होती है। जब वायु (गैस) कोष्ठ में चलती है, तो मल-मूत्र का अवरोध, हृदय (दिल की बीमारी) रोग, गुल्म (वायु का गोला) और बवासीर आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
कारण : मनुष्य सेवन किया गया भोजन हजम नहीं कर पाता है तो उसका कुछ भाग शरीर के भीतर सड़ने लगता है। इस सड़न से गैस पैदा होती है। गैस बनने के अन्य कारण भी होते हैं, जैसे- यादा व्यायाम करना, यादा मैथुन करना, अधिक देर तक पढ़ना-लिखना, कूदना, तैरना, रात में जागना, बहुत परिश्रम करना, कटु, कषैला तथा तीखा भोजन खाना, लालमिर्च, इमली, अमचूर, प्याज, शराब, चाय, कॉफी, उड़द, मटर, कचालू, सूखी मछली, मैदे तथा बेसन की तली हुई चीजें, मावा, सूखे शाक व फल, मसूर, अरहर, मटर, लोबिया आदि की दालें खाने से भी पेट में गैस बन जाती है।
इसके अतिरिक्त मूत्र (पेशाब), मल, वमन (उल्टी), छींक, डकार, आंसू, भूख, प्यास आदि को रोकने से भी गैस बनती है। आमाशय में वायु के बढ़ने से हृदय (दिल), नाभि, पेट के बाएं भाग तथा हाथ-पैरों में दर्द होने से गैस बन जाती है।
लक्षण : रोगी की भूख कम हो जाती है। छाती और पेट में दर्द होने लगता है, बेचैनी बढ़ जाती है, मुंह और मल-द्वार से आवाज के साथ वायु निकलती रहती है। इससे  ले तथा हृदय के आस-पास भी दर्द होने लगता है। सुस्ती, ऊंघना, बेहोशी, सिर में दर्द, आंतों में सूजन, नाभि में दर्द, कब्ज, सांस लेने में परेशानी, हृदय (दिल की बीमारी), जकड़न, पित्त का बढ़ जाना, पेट का फूलना, घबराहट, सुस्ती, थकावट, सिर में दर्द, कलेजे में दर्द और चक्कर आदि लक्षण होने लगते हैं।
भोजन तथा परहेज: साग-सब्जी, फल और रेशेवाले खाद्य पदार्थो का सेवन करें। आटे की रोटी में चोकर मिलाकर खाएं। मूंग की दाल की खिचड़ी, मट्ठे के साथ और लौकी (घिया), तोरई, टिण्डे, पालक, मेथी आदि की सब्जी का, दही व मट्ठे का प्रयोग हितकर है। ोध (गुस्सा), ईर्षया (जलन) और प्यास के वेग को रोकना नहीं चाहिए। जैसे ोध आने पर ईश्वर के नाम का जाप करें। शारीरिक व्यायाम और पेट सम्बंधी योगासन करें।
चावल, अरबी, फूल गोभी और अन्य वायु पैदा करने वाले पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। मिर्च, मसाले, भारी भोजन, मांस, मछली, अण्डे आदि का सेवन न करें।
अदरकअदरक का रस एक चम्मच, नींबू का रस आधा चम्मच और शहद को डालकर खाने से पेट की गैस में धीरे-धीरे लाभ होता है।
सरसों का तेल
यदि पेट की नाभि अपने स्थान से हट जाती है तो पेट में गैस, दर्द और भूख नहीं लगती है। ऐसे में नाभि को सही बैठाने से और नाभि पर सरसों का तेल लगाने से लाभ होता है। यदि पेट में दर्द यादा हो रहा हो तो रूई का फोया सरसों के तेल में भिगोकर नाभि पर रखकर पट्टी भी बांध सकते हैं।
लौंग
 आधे कप पानी में 2 लौंग डालकर पानी में उबाल लें। फिर ठण्डा करके पानी पीने से लाभ होगा। 
2 लौंग पीसकर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें। फिर कुछ ठण्डा होने हर रोज 3 बार सेवन करने से पेट की गैस में फायदा मिलेगा। 
5 लौंग पीसकर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें। फिर कुछ ठण्डा होने पर तीन बार रोजाना पीने से पेट की गैस में राहत मिलती है। 
पोदीना
 4 चम्मच पोदीने के रस में एक नींबू का रस और 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से गैस के रोग में आराम आता है। 
सुबह एक गिलास पानी में 25 ग्राम पोदीना का रस और 31 ग्राम शहद मिलाकर पीने से गैस समाप्त हो जाती है। 
60 ग्राम पोदीना, 10 ग्राम अदरक और 8 ग्राम अजवायन को 1 गिलास पानी में डालकर उबाल लें। उबाल आने पर इसमें आधा कप दूध और स्वाद के अनुसार गुड़ मिलाकर पीएं अथवा चौथाई कप पोदीने का रस आधा कप पानी में आधा नींबू निचोड़कर सात बार उलट-उलटकर पीयें। इससे भी गैस से होने वाला पेट का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। 
20 ग्राम पोदीने का रस, 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम नींबू के रस को मिलाकर खाने से पेट के वायु विकार (गैस) समाप्त हो जाते हैं। 
पानी :
 एक गिलास पानी में 50 ग्राम पुदीना, 10 ग्राम अदरक के टुकड़े, 10 ग्राम अजवाइन को उबाल लें। बाद में थोड़ी-सी चीनी या गुड़ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में से 2 चम्मच काढ़ा रोजाना खाना खाने के बाद पीने से पेट की गैस दूर हो जाती है। 
अगर बदहजमी की शिकायत हो, खाना न पचता हो तो एक दिन के लिए भोजन बंद करके सिर्फ पानी ही पीने से लाभ होता है। 
एक गिलास गुनगुना पानी जितना पिया जा सके, लगातार कुछ सप्ताह तक खाना खाने के बाद पीते रहने से पेट की गैस में राहत मिलती है। 
अन्य उपचार
 सुबह जल्दी उठकर गर्म पानी में आधा नींबू को निचोड़कर पीयें। 
उपवास (व्रत) रखें। 
एनिमा लें। 
रोजाना कमर तक पानी में 10 से 15 मिनट तक बैठे रहें। 
10 से 15 मिनट तक पेट पर पानी की धार छोड़े और बाएं हाथ से पेट को मलें। 
गैस की बीमारी खत्म होने तक नियमित रूप से ठण्डे दूध के अलावा अन्य किसी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। 
रोगी को ठीक हो जाने पर भी 2 घण्टे के अंतर में एक बार कटे हुए फल खाने में देने चाहिए। 
तली हुई चीजें, चाय, कॉफी और ऐल्कोहल का बिल्कुल सेवन नहीं करना चाहिए। 
दर्द को नष्ट करने वाली और सूजन को रोकने वाली सारी औषधियां पूरी तरह बंद कर देनी चाहिए। 
चिकनाई रहित छाछ और दही का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। 

पेट पर चिकनी मिट्टी का लेप करें, जब मिट्टी सूख जाए तो उसे हटा दें। एक सप्ताह तक रोजाना मिट्टी से इलाज करें। इससे पेट में गैस बनना बंद हो जाएगी। मिट्टी को कपड़े की पट्टी पर लगाकर भी पेट से बांधा जा सकता है। इसे लगभग आधे घंटे तक अवश्य बांधा जा सकता है। फिर इसी पट्टी को सुबह या शाम को भी प्रयोग में लिया जा सकता है। ध्यान रहे कि खाना खाने के बाद या नाश्ता करने के बाद मिट्टी का प्रयोग न करें।

Friday, 16 October 2015

चेस्ट रोग विशेज्ञ डॉ सूर्यकांत जी की अच्छे स्वास्थ्य हेतु सलाह

**08/10/2015 को लखनऊ पुस्तक मेले के मंच से :



Yashwant Yash
3 hrs
कल 08/10/2015 को लखनऊ पुस्तक मेले के मंच से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत जी ने फेफड़े एवं श्वास रोगों से संबन्धित परिचर्चा के अंतर्गत स्वस्थ जीवन शैली हेतु कुछ महत्वपूर्ण बातें बतायीं उनका सारांश इस प्रकार है-
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 * 30 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के सभी व्यक्तियों को जिम जाने व ट्रेडमिल आदि के प्रयोग से बचना चाहिए। साईक्लिंग एक्सरसाइज़ ज़्यादा बेहतर है। बल्कि सबसे अच्छा तो यह है कि अपनी आयु के (क्षमता से)सामान्य से अधिक तेज़ गति से चलने की आदत डालनी चाहिए। धीमे धीमे टहलने से कोई लाभ नहीं है।
 * fast food (कोल्ड ड्रिंक नूडल्स,चाउमीन ,बर्गर,पेटीज,चाट आदि) के प्रयोग से बचें। केले से बेहतर कोई fast food नहीं हो सकता। केला अपनी diet में ज़रूर शामिल करें।
 * मधुमेह (sugar)के रोगी भी रोज़ एक केला खा सकते हैं।
 * अपनी रसोई में refined oil /dalda आदि के खाना बनाने मे प्रयोग से बचें। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। सबसे बेहतर सरसों का तेल है। सरसों के तेल में बना खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
 * चीनी का प्रयोग भी कम से कम करना चाहिये। यदि चीनी का प्रयोग करना ही है तो रसायनों से साफ की हुई अधिक सफ़ेद चीनी के बजाय कत्थई (brown) रंग की चीनी का प्रयोग करना चाहिए।
वैसे मिठास के लिए गुड़ से बेहतर स्वास्थ्यवर्धक और कोई चीज़ नहीं है।
 * नमक का प्रयोग भी कम से कम और सिर्फ दैनिक भोजन मे ही करना चाहिए।
( मूँगफली या खीरा अथवा भोजन के अतिरिक्त अन्य चीजों के साथ नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। )
 * अपनी क्षमतानुसार कोई भी एक मौसमी फल नियमित लेना चाहिए।
 * सिगरेट/शराब इत्यादि के सेवन बिलकुल न करें।
 * 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों को पूर्ण शाकाहार अपनाना चाहिए,यद्यपि कई चिकित्सा शोधों से यह प्रमाणित हुआ है कि शाकाहार सभी आयु वर्ग के लिए पूर्ण एवं हानि रहित है।
 * जो रोग (जैसे एलर्जी/मधुमेह/अस्थमा आदि) हमारे साथ जीवन भर रहने हैं, उन से संबन्धित उपचार/दवाओं आदि को अपना दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त मानना चाहिए।
 * नियमित,संयमित एवं उचित जीवन शैली ही अच्छे स्वास्थ्य का मूल आधार है।
( जनहित में प्रस्तुतकर्ता -Yashwant Yash)
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हाल ही में सम्पन्न लखनऊ पुस्तक मेले के एक जन-जागरण कार्यक्रम के अंतर्गत मेडिकल यूनिवर्सिटी के पलमोनरी विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत जी की सलाहें सुनने का सुअवसर मिला था। सार-संक्षेप में उनकी बातें उपरोक्त रूप में प्रस्तुत की जा चुकी हैं। लेकिन डॉ साहब द्वारा बताई और अनेक ऐसी बातें हैं जिनका हमारे स्वस्थ जीवन से गहरा संबंध है, उन पर भी प्रकाश डालना इस पोस्ट का उद्देश्य है। 

डॉ सूर्यकांत जी ने बताया कि प्राचीन काल में घर इस प्रकार बानए जाते थे कि उनमें सूर्य का प्रकाश सुगमता से पहुँच जाता था । सूर्य के प्रकाश में कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता तो होती ही है उससे 'विटामिन' 'A' और 'D ' भी प्राप्त होता है जो हड्डियों की मजबूती  व आँखों की रोशनी के लिए बेहद ज़रूरी है। डॉ साहब का कहना था कि उगते हुये सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा इसी लिए रखी गई थी कि इस प्रकार आँखों पर सूर्य की रश्मियों से आँखों को ऊर्जा मिलती रहेगी और वे स्वस्थ बनी रहेंगी। 
सूर्य का प्रकाश सीलन और घुटन से भी बचाता है। लेकिन अब भवन निर्माण इस प्रकार न होने से सूर्य के प्रकाश से शहरी आबादी दूर है जिस कारण TB रोग, श्वान्स संबंधी रोग और एलर्जी की समस्याएँ बढ़ रही हैं। डॉ साहब का कहना था कि किसी को छींक आना तो किसी की त्वचा में खुजली होना इसी एलर्जी का प्रभाव हो सकता है। धूप सेवन को उन्होने एक अच्छा उपचार बताया जिसे अपना कर स्वस्थ व्यक्ति भी रोगों से बचाव कर सकते हैं। कम से कम 10 मिनट और आध घाटे तक धूप का सेवन ऊर्जा से भर देता है। 
उन्होने बताया कि घर न तो अधिक पुराना और न ही अधिक आधुनिक होना चाहिए। अधिक पुराना होने से सीलन का भय रहेगा तो अधिक आधुनिक होने से उसमें टंगे पर्दे व बिछे कालीनों में जमी धूल की परतें 'एलर्जी' को उत्पन्न कर देती हैं। यदि पर्दों व कालीन का प्रयोग कर रहे हैं तो नियमित रूप से उनकी धूल साफ करते रहना चाहिए जिससे एलर्जी से बचा जा सके। 
डॉ साहब का कहना था कि धूम्रपान करने वाले को 30 प्रतिशत और उसके आस-पास उपस्थित लोगों को 70 प्रतिशत वह धुआँ नुकसान पहुंचाता है अतः धूम्रपान से बचना भी एलर्जी और TB से बचाव की एक शर्त है। मदिरा पान को भी लीवर व किडनी के लिए उन्होने घातक बताया और मांसाहार को भी। इनसे भी बचने की उन्होने सलाह दी। 
डॉ साहब का कहना था कि आजकल फर के खिलौने,  साफ्ट ट्वायाज़ और टेडी बियर भी धूल जमा होने से बच्चों में एलर्जी होने का कारण बन रहे हैं। बच्चों के स्वास्थ्य  के दृष्टिकोण से उनको इनसे दूर रखना चाहिए।
डॉ साहब का कहना था कि पहले घरों में पशु-पक्षियों के लिए अलग से बाड़ा बंनता था लेकिन अब घर बहुत छोटे होते हैं और लोग  बिल्ली,कुत्ता,तोता,चिड़िया आदि  अपने साथ ही पाल लेते हैं इनसे भी एलर्जी का प्रसार होता है। डॉ साहब का कहना था मनुष्यों के साथ पशु-पक्षी न रहें तो एलर्जी आदि अनेक रोगों से बचाव हो सकता है। 
TB के कीटाणु सिर्फ छींकने  या खाँसने से ही फैलते हैं इसलिए रोगी को अपने मुंह पर रूमाल रख कर खाँसना या छींकना चाहिए। उससे हाथ मिलाने व साथ खाने से कीटाणु नहीं फैलते हैं। TB का इलाज 6 माह से 2 वर्ष तक का होता है। डॉ की सलाह से पहले खुद ही इलाज बंद कर देना इस रोग को और भयानक बना देता है। यदि किसी को TB हो जाये तब 6 महीने तक उसका इलाज ज़रूर चलाना चाहिए उसके बाद डॉ हाल देख कर बंद करने को कहें तभी बंद करें। यह अब लाइलाज नहीं है और परहेज दवा के साथ चलाने से ठीक हो जाता है। 

डॉ साहब ने समुद्री नमक का प्रयोग न करने या कम से कम करने व इसके स्थान पर 'सेंधा नमक' प्रयोग करने की भी सलाह दी। 
उनका कहना था कि जिनको 'खुर्राटे' आने की समस्या हो उनको 'इन्हेलर' का प्रयोग करना चाहिए जिससे लाभ मिल सके। जिस प्रकार कमजोर आँख वाले 'चश्मा' लगाते हैं उसी प्रकार खुर्राटे वालों को इन्हेलर का प्रयोग करना सहायक रहता है। 
डॉ साहब ने कहा कि 'दस्त' रोग का उपचार केला फल का सेवन है। डायबिटीज़ वाले भी एक केला रोजाना खा सकते हैं। 6 केलों से पूर्ण पौष्टिक आहार प्राप्त हो जाता है , उन्होने फास्ट फूड के स्थान पर केलों का सेवन करने की सलाह दी। फास्ट फूड एलर्जी का जनक है। 

Monday, 12 October 2015

नौ औषद्धियों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा का पर्व है नवरात्र --- विजय राजबली माथुर

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कल से शुरू होने वाले नवरात्र में इन नौ औषद्धियों के प्रयोग से शरीर को नीरोग रखने का प्राविधान  था किन्तु 'विकास' के इस पूंजीवादी युग में 'पूंजी' की 'पूजा' होने लगी है। इन नौ दिनों में कान-फोडू भोंपू बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाएगा। लोगों को गुमराह करके व्यापारी वर्ग के हित साधे जाएँगे। पुजारी वर्ग जो ब्राह्मण जाति से आता है इन व्यापारियों का महिमा-मंडन करेगा। 'ढ़ोंगी' व 'एथीस्ट ' मिल कर इस पोंगा पंथ को 'धर्म ' की संज्ञा से नवाजेंगे । जनता उल्टे उस्तरे से मूढ़ी जाएगी उसका शोषण जारी रहेगा। कोई 'सत्य ' बोलना नहीं चाहता बल्कि सत्य कहने वाले का उपहास ज़रूर उड़ाते हैं खास तौर पर ढ़ोंगी व एथीस्ट।

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वस्तुतः ऋतु परिवर्तन के समय प्राचीन मनीषियों ने चार नवरात्र का प्राविधान किया था जिनमें से दो को ब्राह्मणों ने अपने लिए 'गुप्त' रूप से मनाने के लिए  सुरक्षित कर लिया था। शेष जनता के लिए  ग्रीष्म व शरद काल  के नवरात्र सार्वजनिक रूप से बताए गए थे। कल दिनांक 13 अक्तूबर से प्रारम्भ ये शरद कालीन नवरात्र हैं। ढ़ोंगी-पाखंडी पद्धति से ये मनाए जा रहे हैं। जगह-जगह रास्ता रोक कर 'देवी जागरण' के नाम पर जनता को ठगा जा रहा है। कुंवारी कन्याओं के पूजने का आडंबर किया जाता है परंतु समाज में उनकी स्थिति इस ढ़ोंगी पूजा की पोल खोल देती है। 

क्या होना चाहिए :

वास्तव में हवन-यज्ञ पद्धति ही पूजा की सही पद्धति है। क्यों? क्योंकि 'पदार्थ- विज्ञान ' (MATERIAL SCIENCE ) के अनुसार  हवन की आहुती  में डाले गए   पदार्थ अग्नि द्वारा  परमाणुओं  (ATOMS ) में विभक्त कर दिये जाते हैं। वायु  इन परमाणुओं को प्रसारित  कर देती है। 50 प्रतिशत परमाणु यज्ञ- हवन कर्ताओं को अपनी नासिका द्वारा शरीर के रक्त में प्राप्त हो जाते हैं। 50 प्रतिशत परमाणु वायु द्वारा बाहर प्रसारित कर दिये जाते हैं जो सार्वजनिक रूप से जन-कल्याण का कार्य करते हैं। हवन सामग्री की जड़ी-बूटियाँ औषद्धीय रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा का कार्य सम्पन्न करती हैं। यह   हवन 'धूम्र चिकित्सा' का कार्य करता है। अतः ढोंग-पाखंड-आडंबर-पुरोहितवाद छोड़ कर अपनी प्राचीन हवन पद्धति को अपना कर नवरात्र मनाए जाएँ तो व्यक्ति, परिवार, समाज, देश व दुनिया का कल्याण संभव है। काश जनता को जागरूक किया जा सके !

उदर समस्याओं के लिए सामाग्री मे 'बेल-पत्र' , टी बी के लिए 'बूरा', टायफायड के लिए गूगल मिला कर 'धूम्र -चिकित्सा' का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 

Tuesday, 6 October 2015

गुर्दे की बीमारी से कैसे बचा जाए? --- -अयोध्याप्रसाद भारती

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क्यों हो जाती है,किडनी की बीमारियां :


हम किडनी फेल होने के दौर में हैं। जी हां, गुर्दे तेजी से साथ छोड़ रहे हैं। पहले आइए जानें कि किडनी या गुर्दे क्या बला हैं? रीढ़ की हड्डी के दोनों सिरों पर बीन की शक्ल के दो अंग होते हैं जिन्हें हम किडनी या गुर्दे के नाम से जानते हैं। हमारे शरीर के रक्त का काफी बड़ा हिस्सा गुर्दों से होकर गुजरता है। गुर्दों में मौजूद लाखों नेफ्रोन नलिकाएं रक्त छानकर शुध्द करती है। रक्त के अशुध्द भाग को मूत्र के रूप में अलग भेजती हैं। अगर गुर्दे स्वस्थ न हों, अर्थात वे ठीक से काम न कर रहे हों तो रक्त शुध्द न होगा और जब रक्त शुध्द न होगा तो हम बीमार पड़ जाएंगे और जल्दी ही हमारी मौत हो जाएगी। जब गुर्दे अपना काम ठीक से न कर पा रहे हों तो आदमी को डायलिसिस मशीन पर रखा जाता है। मशीन रक्त साफ करती हैं। गुर्दे खराब हो जाने की दशा में स्थायी इलाज यह होता है कि आदमी के गुर्दे बदल दिए जाएं। लेकिन गुर्दे बदलना आसान काम नहीं है। पहले तो गुर्दा आसानी से मिलता नहीं, मिले भी तो खर्च लाखों में आता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक किडनी की बीमारियों की शुरूआती अवस्था में पता नहीं चल पाता। इस कारण किडनी की बीमारियों से काफी अधिक मौतें होती हैं। किडनी के लिए मधुमेह, पथरी और हाईपरटेंशन अत्यंत जोखिम भरे हैं। इनमें किडनी के मामले में हाईपरटेंशन और मधुमेह लक्षण के रूप में सामने नहीं आ पाते। जब किडनी काफी खराब हो जाती है तब पता चलता है ऐसे में सामान्य इलाज कारगर नहीं रह पाता। तब जोखिम और जटिलता बढ़ जाती है। डायलेसिस पर कुछ समय तो आदमी को जिंदा रखा जा सकता है परंतु खर्च और परेशानियां अनंत है।
जानकारों के अनुसार, किडनी के मरीजों में से एक चौथाई में किडनी में गड़बड़ी का कोई कारण ज्ञात नहीं होता है। इस गड़बड़ी के कारणों में एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारकों का अत्यधिक इस्तेमाल भी हो सकता है। मधुमेह के शिकार लगभग 30 प्रतिशत लोगों को किडनी की बीमारी हो जाती है और किडनी की बीमारी से ग्रस्त एक तिहाई लोग मधुमेह पीड़ित हो जाते हैं। इससे यह तय है कि इन दोनों का आपस में कोई ताल्लुक है। इसके अलावा लंबे समय से हाईपरटेंशन के शिकार लोगों को किडनी की बीमारी का खतरा 3-4 गुना बढ़ जाता है। गुर्दों की बीमारी के लिए दूषित खान-पान और दूषित वातावरण मुख्य माना जाता है। दूषित मांस, मछली, अंडा, फल और भोजन तथा पानी गुर्दे की बीमारी की वजह बन सकते हैं। बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और वाहनों के कारण पर्यावरण प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया है। अधिक से अधिक पैसा कमाने या बेरोजगार हो जाने, भविष्य की चिंता में आज आदमी हर तरह के वातावरण में अधिक से अधिक समय तक काम करता है। बहुत से ऐसे हैं, जिन्हें हफ्तों-महीनों घर का शुध्द-स्वच्छ भोजन नसीब नहीं होता। वे होटलों-ढाबों पर दूषित भोजन खाते हैं। इस दौर में दूषित बाजारू पेय पदार्थों पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है। कोल्ड ड्रिंक्स, लस्सी, जूस, सादा पानी कोई भी पूर्ण सुरक्षित नहीं है। इनमें कीटाणुनाशकों, रासायनिक खादों, डिटरजेंट, साबुनों, औद्योगिक रसायनों के अंश पाए जाते हैं। ऐसे में फेफड़े और जिगर तथा गुर्दे सुरक्षित नहीं है इसलिए गुर्दों के मरीज बेतहाशा बढ़ गए हैं। गुर्दों के मरीज बढ़ने से गुर्दे चुराने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। गरीबी-बदहाली से त्रस्त लोग एक गुर्दा बेचने को तैयार हो जाते हैं। विदर्भ (महाराष्ट्र) के किसानों ने तो कर्जे उतारने के लिए गुर्दा बेचने का एक मेला लगाने का ऐलान कर उसके उद्धाटन हेतु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को निमंत्रित कर देश को चौंका दिया था।

अब प्रश्न है कि गुर्दे की बीमारी से कैसे बचा जाए? :

स्वच्छ खान-पान, शुध्द वायु (प्रात:काल) में सामान्य व्यायाम, तनाव से बचाव और पौष्टिक भोजन से आप ठीक रहेंगे। अगर आमदनी कम हो तो विलासिता की चीजों पर खर्चा न करें उसे बचाएं और उसे अच्छे खान-पान में लगाएं पर्याप्त नींद लें। पानी अशुध्द होने की आशंका हो तो ठीक से उबालकर पिएं। बाजारू तैयार खाद्य, पेय, पदार्थ व ढाबों इत्यादि में भोजन करने से बचें। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हर प्रकार के संक्रमण से बचें।

:(-अयोध्याप्रसाद भारती)
26 मई 2009 
साभार : 


Monday, 5 October 2015

घुटनों का दर्द और गठिया का घरेलू उपचार --- प्रस्तोता डॉ आरती कुलश्रेष्ठ

डॉ आरती कुलश्रेष्ठ


घुटनों के दर्द का घरेलू उपचार :

. एक चम्मच हल्दी में एक चम्मच बूरा एवं थोड़ा सा चूना मिलाकर पानी की सहायता से एक लेप तैयार कर लीजिये। यह लेप रात को घुटनों पर लगा कर सो जाये एवं सुबह धो लीजिये। इससे घुटनों का दर्द जल्द ही समाप्त हो जाएगा।

2. एक चम्मच सोंठ के पाउडर अर्थात सुखी अदरक के पाउडर में एक चम्मच सरसो का तेल डालकर एक लेप तैयार कर लीजिये। इसे कुछ देर घुटनों पर लगाने से आपको जल्द दर्द से राहत मिल सकती है।
3. चार पांच बादाम,चार पांच काली मिर्च, एवं दस एग्यारह मुन्नक्का चबा चबा कर खाए उसके साथ एक गिलास दूध पी लीजिये। इससे जल्द आपको घुटनों के दर्द से राहत मिलेगी।
यदि आपके घुटने स्वस्थ रहेंगे तभी आब ज़िन्दगी की भागदौड़ में कामयाब हो पाएंगे । अतः इन नुस्खों को अपनाएं और घुटने के दर्द को भूल जाएँ । 

क्या आपको है अर्थराइटिस? करें खानपान में ये 6 बदलाव--- आहार विशेषज्ञ नैनी सीतलवाड़:

1-अर्थराइटिस की समस्या में हेल्दी फैट्स खाना भी बहुत जरूरी होता है। ये फैट्स आपके जोड़ों में चिकनाई लाते हैं (या उन्हें लुब्रिकेट करते हैं)। अगर आपको अर्थराइटिस है तो अखरोट, काजू, पिस्ता, सूरजमुखी के बीज, अलसी के बीज, तिल आदि ज़रूर खाएं। अपनी रोटियों में थोड़ा घी भी लगाएं।

2-अगर आप अर्थराइटिस के तकलीफ से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको अपने खाने में लहसुन, अदरक और प्याज़ शामिल करना चाहिए। साथ ही, हरी मिर्च से लेकर शिमला मिर्च तक, हर तरह की मिर्च का सेवन करना चाहिए। लौंग व इलायची भी अर्थराइटिस में फायदेमंद होता है।

3-टमाटर, नींबू, आंवला, इमली, डेयरी उत्पाद आदि से परहेज़ करें। ये चीज़ें आपके जोड़ों का दर्द बढ़ा सकती हैं। हालांकि इसका एक नुकसान भी है, इनके परहेज़ से आपको विटामिन सी की कमी हो सकती है। विटामिन सी की कमी से बचने के लिए रोज़ अमरूद और कोकम खाएं। ये आपके शरीर की सूजन को भी दूर करेंगे।

4-अपनी रोटी के आटे में ज्वार, रागी, बाजरा आदि का आटा भी मिलाएं। इन अनाजों में ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो आपके जोड़ों को अर्थराइटिस से राहत पहुंचा सकते हैं।

5 -मैदा, वाइट शुगर और साधारण नमक का परहेज़ करना भी ज़रूरी है। आप खजूर और गुड़ जैसी मीठी चीज़ें खा सकते हैं। साथ ही, साधारण नमक के बजाय समुद्री नमक लें। इस नमक में ऐसे मिनरल होते हैं जो दर्द दूर करने के लिए जाने जाते हैं।

6 -अर्थराइटिस होने पर, विटामिन बी 12 और डी 3 स्तर पर नज़र रखना ज़रूरी है। अगर दोनों के स्तर कम है, तो डॉक्टर से परामर्श करके आप सप्लीमेंट लें। आमतौर पर अर्थराइटिस में इन दोनों के स्तर कम ही होते हैं।