Showing posts with label नौ औषद्धियाँ. Show all posts
Showing posts with label नौ औषद्धियाँ. Show all posts

Thursday, 7 April 2016

नवरात्र : फेस्टिवल आफ फिटनेस ------ किशोर चंद्र चौबे

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं








कल से नव - विक्रमी संवत का प्रारम्भ हो रहा है और  'नवरात्र  पर्व  ' भी। अब से दस लाख वर्ष पूर्व जब इस धरती पर 'मानव  जीवन  ' की सृष्टि  हुई तब  अफ्रीका, यूरोप व त्रि वृष्टि  (वर्तमान तिब्बत ) में  'युवा पुरुष' व 'युवा - नारी ' के रूप  में  ही। जहां प्रकृति ने राह दी वहाँ मानव बढ़ गया और जहां प्रकृति की विषमताओं ने रोका वहीं वह रुक गया। त्रि वृष्टि  का मानव अफ्रीका व यूरोप के मुक़ाबले अधिक विकास कर सका और हिमालय पर्वत पार कर दक्षिण में उस 'निर्जन' प्रदेश  में आबाद हुआ जिसे उसने 'आर्यावृत ' सम्बोधन दिया। आर्य शब्द  आर्ष  का अपभ्रंश था  जिसका अर्थ है 'श्रेष्ठ ' । यह न कोई जाति है न संप्रदाय  और न ही मजहब । आर्यावृत में  वेदों का सृजन  इसलिए हुआ था कि, मानव जीवन को उस प्रकार जिया जाये जिससे वह श्रेष्ठ बन सके। परंतु यूरोपीय व्यापारियों  ने मनगढ़ंत  कहानियों द्वारा आर्य को यूरोपीय  जाति के रूप में प्रचारित करके वेदों को गड़रियों के गीत घोषित कर दिया और यह भी कि, आर्य आक्रांता थे जिनहोने यहाँ के मूल निवासियों को उजाड़ कर कब्जा किया था। आज मूल निवासी आंदोलन उन मनगढ़ंत कहानियों के आधार पर 'वेद' की आलोचना करता है और तथाकथित  नास्तिक/ एथीस्ट भी जबकि पोंगापंथी  ब्राह्मण  ढोंग-पाखंड-आडंबर को धर्म के रूप में प्रचारित करते हैं व  पुराणों के माध्यम से जनता को गुमराह करके  वेद व पुराण को एक ही बताते हैं। 

चारों  वेदों  में जीवन के अलग-अलग  आयामों  का उल्लेख है। 'अथर्व वेद ' अधिकांशतः  'स्वास्थ्य  ' संबंधी आख्यान करता है। 'मार्कन्डेय चिकित्सा  पद्धति ' अथर्व वेद पर आधारित है  जिसका वर्णन  किशोर चंद्र चौबे जी ने किया है। इस वर्णन के अनुसार  'नवरात्र  ' में  नौ  दिन नौ औषद्धियों  का सेवन कर के  जीवन को स्वस्थ रखना था। किन्तु  पोंगा पंथी  कन्या -पूजन, दान , भजन, ढोंग , शोर शराबा करके वातावरण भी प्रदूषित कर रहे हैं व मानव  जीवन को विकृत भी।  क्या  मनुष्य बुद्धि, ज्ञान व विवेक द्वारा  मनन  ( जिस कारण 'मानव' कहलाता है ) करके   ढोंग-पाखंड-आडंबर का परित्याग करते हुये इन  दोनों नवरात्र  पर्वों को स्वास्थ्य रक्षा  के पर्वों  के रूप में पुनः नहीं मना सकता ?
(विजय राजबली माथुर )

*************************************************************
Facebook Comments :



Monday, 12 October 2015

नौ औषद्धियों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा का पर्व है नवरात्र --- विजय राजबली माथुर

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं




कल से शुरू होने वाले नवरात्र में इन नौ औषद्धियों के प्रयोग से शरीर को नीरोग रखने का प्राविधान  था किन्तु 'विकास' के इस पूंजीवादी युग में 'पूंजी' की 'पूजा' होने लगी है। इन नौ दिनों में कान-फोडू भोंपू बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाएगा। लोगों को गुमराह करके व्यापारी वर्ग के हित साधे जाएँगे। पुजारी वर्ग जो ब्राह्मण जाति से आता है इन व्यापारियों का महिमा-मंडन करेगा। 'ढ़ोंगी' व 'एथीस्ट ' मिल कर इस पोंगा पंथ को 'धर्म ' की संज्ञा से नवाजेंगे । जनता उल्टे उस्तरे से मूढ़ी जाएगी उसका शोषण जारी रहेगा। कोई 'सत्य ' बोलना नहीं चाहता बल्कि सत्य कहने वाले का उपहास ज़रूर उड़ाते हैं खास तौर पर ढ़ोंगी व एथीस्ट।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=955047921223851&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=3&theater

वस्तुतः ऋतु परिवर्तन के समय प्राचीन मनीषियों ने चार नवरात्र का प्राविधान किया था जिनमें से दो को ब्राह्मणों ने अपने लिए 'गुप्त' रूप से मनाने के लिए  सुरक्षित कर लिया था। शेष जनता के लिए  ग्रीष्म व शरद काल  के नवरात्र सार्वजनिक रूप से बताए गए थे। कल दिनांक 13 अक्तूबर से प्रारम्भ ये शरद कालीन नवरात्र हैं। ढ़ोंगी-पाखंडी पद्धति से ये मनाए जा रहे हैं। जगह-जगह रास्ता रोक कर 'देवी जागरण' के नाम पर जनता को ठगा जा रहा है। कुंवारी कन्याओं के पूजने का आडंबर किया जाता है परंतु समाज में उनकी स्थिति इस ढ़ोंगी पूजा की पोल खोल देती है। 

क्या होना चाहिए :

वास्तव में हवन-यज्ञ पद्धति ही पूजा की सही पद्धति है। क्यों? क्योंकि 'पदार्थ- विज्ञान ' (MATERIAL SCIENCE ) के अनुसार  हवन की आहुती  में डाले गए   पदार्थ अग्नि द्वारा  परमाणुओं  (ATOMS ) में विभक्त कर दिये जाते हैं। वायु  इन परमाणुओं को प्रसारित  कर देती है। 50 प्रतिशत परमाणु यज्ञ- हवन कर्ताओं को अपनी नासिका द्वारा शरीर के रक्त में प्राप्त हो जाते हैं। 50 प्रतिशत परमाणु वायु द्वारा बाहर प्रसारित कर दिये जाते हैं जो सार्वजनिक रूप से जन-कल्याण का कार्य करते हैं। हवन सामग्री की जड़ी-बूटियाँ औषद्धीय रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा का कार्य सम्पन्न करती हैं। यह   हवन 'धूम्र चिकित्सा' का कार्य करता है। अतः ढोंग-पाखंड-आडंबर-पुरोहितवाद छोड़ कर अपनी प्राचीन हवन पद्धति को अपना कर नवरात्र मनाए जाएँ तो व्यक्ति, परिवार, समाज, देश व दुनिया का कल्याण संभव है। काश जनता को जागरूक किया जा सके !

उदर समस्याओं के लिए सामाग्री मे 'बेल-पत्र' , टी बी के लिए 'बूरा', टायफायड के लिए गूगल मिला कर 'धूम्र -चिकित्सा' का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।