Friday, 22 January 2016

आज रोग और प्रदूषण वृद्धि क्यों? ------ विजय राजबली माथुर

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Monday, February 28, 2011


चिकित्सा समाज सेवा है -व्यवसाय नहीं ------ विजय राजबली माथुर

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 ब मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद  से आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर  बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी जानने वालों को निशुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विशवास नहीं है.अतः होम्योपैथी और आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.


एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत हैं-

उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.

बवासीर-बवासीर रोग सूखा  हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.

सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें ,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़ कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.

डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां  -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.

थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.

श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S  सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)

आज रोग और प्रदूषण वृद्धि  क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.

 नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन  प्राणियों  का  शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.

क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाटा था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.

क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चालक रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.


विश्व देव  के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट ,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा  में पाया जाता है.यह भूख जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल  कर खाने से लाभ होता है.

गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.


प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.


कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.

आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.

पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.

बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.

मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.

मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.

आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.

कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.

रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.

गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.

आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.


Tuesday, 12 January 2016

special attention to the spine

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Often, problems with our spine cause pain in completely different parts of the body. Then, we begin to address and treat other symptoms and diseases, of course, to no avail.
Therefore, it’s necessary to pay special attention to the spine.
If you feel pain, it can be precisely determined which segment of the spine it originates from, and you can observe the anomalies and problems with specific organs.
This infographic above shows you how all our organs are connected to the spine.
According to osteopaths, about 70% of headaches originate from the spine.
Ringing in the ears, difficulty swallowing food, vision problems – all these symptoms can be due to a dysfunction in intervertebral discs and surrounding anatomy.
If you’re experiencing hand pain and numbing hands, a trained osteopath can check the cervical (neck) portion of your spine.
Problems within the upper thoracic region (chest) of the spine can lead to heart pain, stomach and intestinal issues.
Problems with the lumbar part of your spine can affect, not only the pain in your lower back, but it can manifest itself as hip pain, thigh pain, impairing the sensitivity of the legs, and also affects walking.
Therefore, treating and strengthening the spine will help you get rid of many symptoms directly associated with organs and other parts of the body.
 http://www.yourstylishlife.com/the-real-cause-of-pain-how-the-spine-is-connected-with-all-organs/

Thursday, 31 December 2015

निगेटिव एप्रोच, भ्रष्टाचार और कैंसर का इलाज

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विद्वान लेखक खुद ही लिख रहे हैं कि 22 लाख रुपए खर्च करके भी  वे बचे नहीं फिर निष्कर्ष दे रहे हैं " खूब भ्रष्टाचार करो और रुपया कमाओ। "

सबसे बड़ी बात तो यह है कि पाश्चात्य प्रभाव में 'मूल निवासी आंदोलन' के नाम पर 'चारों वेदों को भाड़ में झोंक दो' मुहिम चला कर इस देश की  जनता को गहरे गर्त में धकेला जा रहा है जिसका दुष्परिणाम अफरा-तफरी के रूप में सामने आ रहा है। 

'वेद' मानव सभ्यता के उद्भव के साथ मानवता के उत्थान के लिए बनाए गए नियम हैं जो 'प्रकृति 'के अनुसार' आचरण करना सिखाते हैं। प्रकृति के विपरीत चलने के कारण दुखों का अंबार खड़ा हो गया है जो किसी न किसी रूप में सामने आता रहता है। 

मनुष्य का प्राकृतिक  नाम 'कृतु' है अर्थात कर्म करने वाला। कर्म तीन प्रकार के होते हैं- सदकर्म, दुष्कर्म व अकर्म। सदकर्म का अच्छा , दुष्कर्म का बुरा  फल मिलता है व अकर्म का भी 'दंड' मिलता है। अकर्म वह कर्म होता है जो किया जाना चाहिए था परंतु किया नहीं गया था। 

जिन कर्मों का फल इस जन्म में नहीं मिल पाता है वे आगामी जन्म के लिए  आत्मा के साथ 'सूक्ष्म' रूप से चलने वाले कारण शरीर के 'चित्त' में 'गुप्त' रूप से अंकित होकर संचित रहते हैं। व्यक्ति के जन्म समय की ग्रह-दशा से इसका आंकलन हो जाता है। जब किसी के जन्म के समय लग्न, षष्ठम , अष्टम भाव में किसी से भी 'शनि' व 'मंगल' ग्रह  का परस्पर संबंध हो तो 'कैंसर' रोग होने के संकेत मिल जाते हैं। अब यदि इन ग्रहों का वैज्ञानिक विधि से ( पोंगा पंडितों की लुटेरी पद्धति से नहीं ) शमन हो जाये तो कैंसर रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है। 

आयु का विज्ञान आयुर्वेद  है जो 'अथर्व वेद' का उपवेद है। इसको 'पंचम वेद' भी कहा जाता है। इसकी एक चिकित्सा पद्धति में नौ जड़ी-बूटियों से ऋतु-परिवर्तन के समय सेवन करके शरीर को नीरोग रखने की व्यवस्था की गई थी। दुर्भाग्य यह है कि पौराणिक-पोंगा-पंडितों ने स्वास्थ्य -रक्षा की इस विधि को अपनी आजीविका हेतु शोषण व लूट का एक माध्यम बना कर नया स्वांग रच डाला और इसके शरीर-विज्ञान से संबन्धित महत्व को समाप्त कर डाला है। नवरात्र के नाम पर ढोंग-स्वांग तो सब लोग खुशी-खुशी कर लेते हैं किन्तु उसके वेदोक्त -वैज्ञानिक महत्व को 'एथीज़्म'/मूल निवासी आंदोलन आदि-आदि के नाम पर ठुकरा देते हैं। जब कर्मों का परिणाम सामने आता है तो दिग्भ्रमित होकर अर्थ का और अनर्थ करते रह कर पीड़ित व दुखी होते रहते हैं लुटेरों से लुटना पसंद करते हैं किन्तु 'सत्य' को स्वीकार करना नहीं। 

आज के भीषण रोगों 'कैंसर' का वर्णन 'रक्तबीज' और AIDS का 'कीलक' के रूप में किया गया था। उपचार और समाधान भी दिया गया था किन्तु क्या सवर्ण क्या अवर्ण, क्या दलित क्या पिछड़े सभी पोंगा-पंडितों के बताए ढोंग के रूप में 'नवरात्र' मना कर जीवन को नष्ट कर रहे हैं। वास्तविकता को समझ कर उपचार करना किसी के एजेंडे में शामिल नहीं है। फिर भी  जन साधारण की सेवा में एक बार पुनः प्रस्तुत है :



Wednesday, 30 December 2015

सर्दी का मौसम : सफाई और स्वास्थ्य

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Monday, 28 December 2015

वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की वात पित्त कफ़ बीमारी के कारक हैं

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आँखों की रोशनी 







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मिश्री







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पुराने नुस्खे व मक्का का आटा