Sunday, 30 March 2014

डॉ शुसलर की बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति ---विजय राजबली माथुर

30 मार्च स्मृति दिवस पर विशेष :

*बायोकेमिक चिकित्सा शरीर के कोशों में होने वाली चयापचयिक(मेटाबोलिक)प्रक्रियाओं को खनिज लवणों के माध्यम से मानव शरीर के क्रियाकलापों की सहायता करने के लिए अपरिहार्य होती है। 

*योरोपीय भौतिक विज्ञानियों द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि शरीर के कोषों और तंतुओं के वास्तविक घटक स्वास्थ्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रभावकारी होते हैं। बर्लिन के रूडोल्फ वरशु (1821-1902) ने अपनी अनुपम पुस्तक 'सैल्यूलर पैथोलॉजी" में इंगित किया है कि "अंततः प्रत्येक प्रकार का कष्ट (रोग) केवल कोषों में एक प्रकार की विकृति पर आधारित होता है। केवल कोष बीमार हो सकता है-कोष जो मानव शरीर की सबसे चोटी क्रियाकारी इकाई होता है। "

*जर्मन बायोकेमिस्ट और भौतिक विज्ञानी डॉ विल्हेम हेनरिक शुसलर (1821-1898) ने जैविक राख़ का विश्लेषण किया और इसमें 12 प्रमुख टिशु (खनिज) लवणों की पहचान की जो सभी प्राणियों में समान रूप से विद्यमान रहते हैं। ये टिशु  (खनिज) लवण कोषों, तंतुओं और अंगों के अकार्बनिक घटक होते हैं और शरीर की कार्य प्रणाली तथा चयापचयी क्रियाओं के लिए महात्व्पोर्ण होते हैं। डॉ शुसलर ने इन्हें फंक्शनल साल्ट या टिशु लवण" नाम दिया। 

*ये टिशु लवण शिलाओं और मिट्टी में आम पाये जाते हैं। ये लवण न केवल शरीर में खनिजों की कमी को पूरा करते हैं बल्कि भोजन में से इन लवणों के स्वांगीकरण को भी बढ़ाते हैं। 

*डॉ शुसलर ने आगे प्रतिपादित किया जीवित तंतुओं में  इन लवणों की कोषों में आवश्यक मात्रा में कमी से कोषों में मालिक्यूलर गति में जो अव्यवस्था उत्पन्न होती है उसको ही रोग कहते हैं। कमी वाले टिशु (खनिज ) लवण की सूक्ष्म मात्रा में आपूर्ती करने (खिलाने ) से अव्यवस्था को दुरुस्त करके स्वास्थ्य पुनर्स्थापित किया जा सकता है। 

*डॉ शुसलर ने शरीर में विद्यमान प्रत्येक टिशु (खनिज ) लवण के कार्य  और क्रियाकलाप का अन्वेषण किया और इनके आधार पर लक्षणों के अनुसार परीक्षणों द्वारा शानदार परिणाम पाये। 

*डॉ शुसलर का 30 मार्च 1898 को, 77 वर्ष की आयु में देहांत हुआ, लेकिन उनका शोध-कार्य सम्पूर्ण यूरोप तथा विश्व में आज भी जारी है। प्रथम बायोकेमिक परिषद ओलड़नबरी में 1885 में स्थापित हुआ। आज यह 96 शाखाओं में विभक्त है। 

डॉ शुसलर के सिद्धान्त :

*मनुष्य के शरीर में बारह विभिन्न टिशु (खनिज ) लवण विद्यमान होते हैं, अच्छे स्वस्थ्य और कोषों की सामान्य प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए इंका समुचित संतुलन बनाए रखना ज़रूरी होता है। 

*इस संतुलन में कोई भी कमी होने पर जो स्थिति उत्पन्न होती है उसे रोग कहा जाता है। 

*रोग की दशा में शरीर में कमी वाले 'लवणों' को पोटेन टाइज़ रूप में खिलाने से ये टिशु (खनिज ) लवण खून के प्रवाह के साथ तेजी से कोषों में पहुँच कर स्वास्थ्य का सामान्य संतुलन पुनर्स्थापित कर देते हैं। 

*डॉ शुसलर द्वारा आविष्कार की गई यह चिकित्सा विधि बायोकेमिक पद्धति कहलाई। 

*बायोकेमिक दवाएं होम्योपेथिक पद्धति के समान घर्षण करके तैयार की जाती हैं। 

*बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति टिशु (खनिज ) लवणों की कमी के आधार पर की जाती है,अतः होम्योपेथिक पद्धति के विपरीत इस पद्धति में एक से अधिक दवा मिश्रित करके उपयोग की जा सकती है। 

*बायोकेमिक दवाएं सूक्ष्म मात्रा में निम्न पोटेनसी में यथा-1 x, 3 x, 6 x, 12 x, 30 x, 200 x में उपयोग की जाती हैं। ये दवाएं बच्चों, गर्भिणी महिलाओं,वृद्ध व्यक्तियों को भी सुरक्षित रोप से खिलाई जा सकती हैं। 

(साभार-व्हीजल होमयों फार्मा )
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आज डॉ विल्हेम हेनरिक शुसलर साहब की पुण्य तिथि पर उनका स्मरण करते हुये 'बायोकेमिक' दवाओं की जानकारी इसलिए भी दे सका हूँ क्योंकि बचपन से ही   अपने बाबाजी स्व.धनराजबली माथुर साहब,नानाजी स्व.डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब एवं बाबूजी स्व.ताजराजबली माथुर साहब को इंनका  प्रयोग करते हुये देखा है। उनकी पुस्तकों का भी अध्ययन किया है और 'आयुर्वेद रत्न' करने के बावजूद होम्योपेथी  व बायोकेमिक दवाओं को ही अच्छा फलप्रद पाया है। लगभग 22 वर्ष पूर्व 'पंजाब केसरी' में इन बारह बायोकेमिक औषद्धियों का ज्योतिष की बारह राशियों से सम्बन्धों पर भी ज्ञान -प्रकाश डाला गया था और अब मैं खुद भी ज्योतिष द्वारा मानव-कल्याण के कार्यों मेन संलग्न हूँ। अतः 'सूर्य' राशि क्रम से बारह बायोकेमिक दवाओं का क्रम प्रस्तुत करते हुये यह आशा करता हूँ कि इनसे सर्व-साधारण लाभान्वित हो सकेंगे। इसे कल दिनांक 31 मार्च 2014 से प्रारम्भ हो रहे विक्रमी संवत 2071 की शुभकामनाओं के रूप में भी ले सकते हैं। 





       

Sunday, 9 March 2014

मखाना किडनियों की भी रक्षा करता है

मखाना ----
"मखाना" संस्कृत के दो शब्द मख व अन्न से बना है। मख का मतलब यज्ञ होता है। अर्थात यज्ञ में प्रयुक्त होने वाला अन्न। जीवन काल से लेकर मृत्यु के बाद भी मखाना मिथिलांचल वासियों से जुड़ा रहता है।मखाने की खेती पूरे मिथिलांचल में होती है।दरभंगा में उत्पन्न होने वाला मखाना उत्तम कोटि का माना जाता है।
मखाने कमल के बीजों की लाही है।मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया | पूजा एवं हवन में भी यह काम आता है । इसे आर्गेनिक हर्बल भी कहते हैं । क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है । आचार्य भावमिश्र (1500-1600) द्वारा रचित भाव प्रकाश निघंटु में इसे पद्मबीजाभ एवं पानीय फल कहा गया है । इसके अनुसार मखाना बल, वाजीकर एवं ग्राही है ।
- इसे प्रसव पूर्व एवं पश्चात आई कमज़ोरी दूर करने के लिए दूध में पकाकर खिलाते हैं ।
- यह सुपाच्य है तथा आहार के रूप में इसका उपयोग किया जाता है । बच्चों को इसे घी या तेल से बघार कर चिवड़े की तरह नमकीन बना कर दे । वे इसे बहुत पसंद करते है । इसे खीर में भी मिला कर दे सकते है । इसे पंजीरी में , लड्डू में भी मिलाया जा सकता है ।
- इसके औषधीय गुणों के चलते अमरीकन हर्बल फूड प्रोडक्ट एसोसिएशन द्वारा इसे क्लास वन फूड का दर्जा दिया गया है । यह जीर्ण अतिसार, ल्यूकोरिया, शुक्राणुओं की कमी आदि में उपयोगी है ।
- यह एन्टीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है। इसलिए श्वसनतंत्र, मूत्राशय एवं जननतंत्र से संबंधित बीमारियों में यह लाभप्रद होता है।
- मखाना का नियमित सेवन करने से ब्लड प्रेशर, कमर और घुटने के दर्द को नियंत्रित रहता है।
- प्रसवपूर्व एवं महिलाओं में आई कमजोरी को दूर करने के लिए दूध में पका कर दिया यह जाता है।
- मखाना में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, कैल्सियम, फास्फोरस के अलावा लौह, अम्ल तथा विटामिन बी भी पाया जाता है।
- तीनों मूसलियों के साथ फूल मखाना, ताल मखाना, सालमपंझा तथा कुछ अन्य वनस्पतियों को मिलाकर तैयार की गई औषधि जच्चा के लिए लाभकारी होती है।आयुर्वेदिक गुणों के आधार पर सफेद मूसली व शतावर को ठंडा, जबकि काली मूसली को गर्म माना जाता है। ठंडी प्रकृति की होने की वजह से सफेद मूसली का प्रयोग अकेले (जैसा पश्चिम में किया जाता है) करने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि इससे पेशाब ज्यादा आती है और शरीर में पित्त ऊर्जा की कमी हो जाती है।
- दस्त लगने की समस्या उत्पन हो जाती है तो ताल मखाने का चुरा १ चम्मच दही के साथ खाए ।
- दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना शोध संस्थान के अनुसार भारत में लगभग 13,000 हैक्टर नमभूमि में मखानों की खेती होती है । यहां लगभग नब्बे हजार टन बीज पैदा होता है । देश का 80 प्रतिशत मखाना बिहार की नमभूमि से आता है । इसके अलावा इसकी छिटपुट खेती अलवर, पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, जम्मू-कश्मीर, मणीपुर और मध्यप्रदेश में भी की जाती है । परन्तु देश में तेजी से खत्म हो रही नमभूमि ने इसकी खेती और भविष्य में उपलब्धता पर सवाल खड़े कर दिए हैं ।

 यदि स्वादिष्ट स्वास्थ्यवर्धक मखाना खाते रहना है तो देश की नमभूमियों को भी बचाना होगा । नमभूमियों को प्रकृति के गुर्दे भी कहते हैं और पता चलता है कि यहां उगा मखाना हमारी किडनियों की भी रक्षा करता है । तो बचाइए इन गुर्दो को। 

Friday, 7 March 2014

Drink water immediately after waking up every morning



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DRINK WATER ON EMPTY STOMACH

It is popular in Japan today to drink water immediately after waking up every morning. Furthermore, scientific tests have proven its value. We publish below a description of use of water for our readers. For old and serious diseases as well as modern illnesses the water treatment had been found successful by a Japanese medical society as a 100% cure for the following diseases:

Headache, body ache, heart system, arthritis, fast heart beat, epilepsy, excess fatness, bronchitis asthma, TB, meningitis, kidney and urine diseases, vomiting, gastritis, diarrhea, piles, diabetes, constipation, all eye diseases, womb, cancer and menstrual disorders, ear nose and throat diseases.

METHOD OF TREATMENT
1. As you wake up in the morning before brushing teeth, drink 4 x 160ml glasses of water

2. Brush and clean the mouth but do not eat or drink anything for 45 minute

3.. After 45 minutes you may eat and drink as normal.

4. After 15 minutes of breakfast, lunch and dinner do not eat or drink anything for 2 hours

5. Those who are old or sick and are unable to drink 4 glasses of water at the beginning may commence by taking little water and gradually increase it to 4 glasses per day.

6. The above method of treatment will cure diseases of the sick and others can enjoy a healthy life.

The following list gives the number of days of treatment required to cure/control/reduce main diseases:
1. High Blood Pressure (30 days)
2. Gastric (10 days)
3. Diabetes (30 days)
4. Constipation (10 days)
5. Cancer (180 days)
6. TB (90 days)
7. Arthritis patients should follow the above treatment only for 3 days in the 1st week, and from 2nd week onwards – daily..

This treatment method has no side effects, however at the commencement of treatment you may have to urinate a few times.
It is better if we continue this and make this procedure as a routine work in our life. Drink Water and Stay healthy and Active.

This makes sense .. The Chinese and Japanese drink hot tea with their meals not cold water. Maybe it is time we adopt their drinking habit while eating!!! Nothing to lose, everything to gain...

For those who like to drink cold water, this article is applicable to you.
It is nice to have a cup of cold drink after a meal. However, the cold water will solidify the oily stuff that you have just consumed. It will slow down the digestion.

Once this 'sludge' reacts with the acid, it will break down and be absorbed by the intestine faster than the solid food. It will line the intestine.
Very soon, this will turn into fats and lead to cancer. It is best to drink hot soup or warm water after a meal.

A serious note about heart attacks:

• Women should know that not every heart attack symptom is going to be the left arm hurting,
• Be aware of intense pain in the jaw line.
• You may never have the first chest pain during the course of a heart attack.
• Nausea and intense sweating are also common symptoms.
• 60% of people who have a heart attack while they are asleep do not wake up.
• Pain in the jaw can wake you from a sound sleep. Let's be careful and be aware. The more we know, the better chance we could survive...
A cardiologist says if everyone who gets this mail sends it to everyone they know, you can be sure that we'll save at least one life.
Please be a true friend and send this article to all your friends you care about.


PLEASE DON'T IGNORE SHARE IT. THIS MIGHT SAVE SOMEONE'S LIFE.

Tuesday, 4 March 2014

प्रकृति से संघर्ष व सहयोग / दूर करें दर्द घरेलू नुस्खों से
















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Prakash Jangid Pali 

 घरेलू नुस्खों से दूर करें दर्द -
जिस तरह का जीवन हम जी रहे हैं, उसमें
सिरदर्द होना एक आम बात है। लेकिन

यह दर्द हमारी दिनचर्या में शामिल
हो जाए तो हमारे लिए बहुत
कष्टदायी हो जाता है। दर्द से
छुटकारा पाने के लिए हम पेन किलर घरेलू
उपाय अपनाकर इसे दूर कर सकते हैं। इन
घरेलू उपायों के कोई साईड इफेक्ट
भी नहीं होते।

आयुर्वेदिक दोहे :
1.जहाँ कहीं भी आपको,काँटा को
लग जाय। दूधी पीस लगाइये,
काँटा बाहर आय।।
2.मिश्री कत्था तनिक सा,चूसें
मुँह में डाल। मुँह में छाले
हों अगर,दूर होंय
... तत्काल।।
3.पौदीना औ इलायची, लीजै
दो-दो ग्राम। खायें उसे उबाल
कर, उल्टी से आराम।।
4.छिलका लेंय
इलायची,दो या तीन गिराम।
सिर दर्द मुँह सूजना, लगा होय
आराम।।
5.अण्डी पत्ता वृंत पर,
चुना तनिक मिलाय। बार-बार
तिल पर घिसे,तिल बाहर आ
जाय।।
6.गाजर का रस पीजिये,
आवश्कतानुसार। सभी जगह
उपलब्ध यह,दूर करे अतिसार।।
7.खट्टा दामिड़ रस, दही,गाजर
शाक पकाय। दूर करेगा अर्श
को,जो भी इसको खाय।।
8.रस अनार की कली का,नाकबूँद
दो डाल। खून बहे जो नाक से,
बंद होय तत्काल।।
9.भून मुनक्का शुद्ध
घी,सैंधा नमक मिलाय। चक्कर
आना बंद
हों,जो भी इसको खाय।।
10.मूली की शाखों का रस,ले
निकाल सौ ग्राम। तीन बार
दिन में पियें,पथरी से
आराम।।
11.दो चम्मच रस प्याज
की,मिश्री सँग पी जाय।
पथरी केवल बीस दिन,में गल
बाहर
जाय।।
12.आधा कप अंगूर रस, केसर
जरा मिलाय। पथरी से आराम
हो, रोगी प्रतिदिन खाय।।
13.सदा करेला रस
पिये,सुबहा हो औ शाम।
दो चम्मच की मात्रा, पथरी से
आराम।।
14.एक डेढ़ अनुपात कप, पालक
रस चौलाइ। चीनी सँग लें बीस
दिन,पथरी दे न दिखाइ।।
15.खीरे का रस लीजिये,कुछ दिन
तीस ग्राम। लगातार सेवन करें,
पथरी से आराम।।
16.बैगन भुर्ता बीज
बिन,पन्द्रह दिन गर खाय।
गल-गल करके आपकी,पथरी बाहर
आय।।
17.लेकर कुलथी दाल
को,पतली मगर बनाय।
इसको नियमित खाय
तो,पथरी बाहर आय।।
18.दामिड़(अनार)
छिलका सुखाकर,पीसे चूर बनाय।
सुबह-शाम जल डालकम, पी मुँह
बदबू
जाय।।
19. चूना घी और शहद को, ले सम
भाग मिलाय। बिच्छू को विष
दूर हो, इसको यदि
लगाय।।
20. गरम नीर को कीजिये, उसमें
शहद मिलाय। तीन बार दिन
लीजिये, तो जुकाम मिट
जाय।।
21. अदरक रस मधु(शहद) भाग
सम, करें अगर उपयोग। दूर आपसे
होयगा, कफ औ खाँसी
रोग।।
22. ताजे तुलसी-पत्र का, पीजे
रस दस ग्राम। पेट दर्द से
पायँगे, कुछ पल का
आराम।।
23.बहुत सहज उपचार है,
यदि आग जल जाय। मींगी पीस
कपास की, फौरन जले लगाय।।
24.रुई जलाकर भस्म कर,
वहाँ करें भुरकाव।
जल्दी ही आराम हो, होय
जहाँ पर घाव।।
25.नीम-पत्र के चूर्ण मैं,
अजवायन इक ग्राम। गुण संग
पीजै पेट के, कीड़ों से
आराम।।
26.दो-दो चम्मच शहद औ, रस ले
नीम का पात। रोग
पीलिया दूर हो, उठे पिये जो
प्रात।।
27.मिश्री के संग पीजिये, रस ये
पत्ते नीम। पेंचिश के ये रोग में,
काम न कोई
हकीम।।
28.हरड
बहेडा आँवला चौथी नीम
गिलोय, पंचम जीरा डालकर
सुमिरन काया होय॥
29.सावन में गुड खावै, सो मौहर
बराबर पाव

Friday, 21 February 2014

प्राचीन भारतीय परम्पराएँ शुद्ध वैज्ञानिक हैं

यह बिलकुल सही है कि आजकल लोग प्राचीन भारतीय परम्पराओं का इसलिए मखौल उड़ाते हैं क्योंकि उनके आधुनिक विज्ञान के अध्यन में उनको शामिल नहीं किया गया है। आधुनिक विज्ञान पश्चिम से परावर्तित होकर आया है जबकि प्राचीन विज्ञान भारत से अरब होता हुआ पश्चिम पहुंचा था। खुद को श्रेष्ठ बताने हेतु पश्चिम के वैज्ञानिकों ने भारतीय वैज्ञानिक परम्पराओं को 'अवैज्ञानिक' घोषित कर दिया था और हमारे लोगों ने उसको ब्रह्म-वाक्य मान कर सिरोधार्य कर लिया था।लेकिन निम्नाकित स्कैन कापियों से सिद्ध होता है कि आज भी हमारी अपनी प्राचीन मान्यताएँ ही शुद्ध वैज्ञानिक हैं न कि आधुनिक वैज्ञानिक मान्यताएँ जैसा कि अब खुद आधुनिक वैज्ञानिक भी स्वीकारने लगे हैं। 

हमारे देश में प्राचीन कालीन नियम यह था कि सुबह का भोजन अधिकतम दिन के 12 बजे तक और रात्रि का भोजन सूर्यास्त से पहले कर लिया जाये और सूर्यास्त के बाद पानी न पिया जाये । इसके पीछे विज्ञान का यह नियम था कि शरीर का अग्नि तत्व सूर्य के प्रकाश में खाये  गए भोजन को पचा कर आवश्यक ऊर्जा संचय कर सके। रात्रि काल में चंद्रमा के प्रकाश में शरीर का जल तत्व प्रभावी रहता है अतः अतिरिक्त पानी पीने की आवश्यकता नहीं है।इसी प्रकार अन्य जीवनोपयोगी नियम निर्धारित थे और लोग उनका पालन कर सुखी थे। किन्तु जबसे इन नियमों की अवहेलना हुई देश और देशवासियों का पतन आरंभ हो गया और अंततः देश गुलाम हो गया। गुलामी में अपना अर्वाचीन सब कुछ ठुकरा दिया गया-भुला दिया गया जिसका नतीजा आज की वीभत्स समस्याएँ हैं।  

और  आधुनिक दक़ियानूसी वैज्ञानिकों ने इस प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक सत्यता को अवैज्ञानिक कह कर नकार दिया नतीजतन अब लोग सुबह का भोजन शाम के तीन-चार बजे तथा रात्री भोजन 10-11 बजे करते है और तमाम बीमारियों का शिकार होकर डॉ व अस्पताल के चक्कर काट-काट कर खुद को 'आधुनिक' व 'प्रगतिशील' होने का स्वांग रचते हैं। इस स्वांग को 'ढोंग' और अवैज्ञानिक -अंधविश्वास अब अत्याधुनिक खोजें ही सिद्ध कर रही हैं।

 अतः आज समय की मांग है कि इस धरती के हम सब प्राणी महर्षि स्वामी दयानंद 'सरस्वती' के इस आव्हान कि 'फिर से वेदों की ओर चलो' का अनुपालन करें तथा 'सर्वे भवन्तु सुखिना : ........ सर्वे भवन्तु निरामया : ' रहें।