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Tuesday, 1 July 2025

अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था ------ डॉ. अनन्या सरकार

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यह कोई मज़ाक नहीं है...🙏
पढ़ें और यदि अच्छा लगे तो दूसरों को भी पढ़ने का अवसर दें!! ======   मुकेश माथुर 

!!!!! अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था !!!!!
डॉ. अनन्या सरकार

दो-तीन दिन बुखार रहा, दवा न लेते तो भी ठीक हो जाते, शरीर अपने आप कुछ दिनों में ठीक हो जाता। लेकिन आप डॉक्टर के पास गए। डॉक्टर साहब ने शुरुआत में ही ढेर सारे टेस्ट लिख दिए। टेस्ट रिपोर्ट में बुखार का कोई खास कारण तो नहीं मिला, लेकिन कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर थोड़े से बढ़े हुए पाए गए, जो सामान्य इंसानों में थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे होना आम बात है।

बुखार तो चला गया, लेकिन अब आप बुखार के मरीज नहीं रहे। डॉक्टर साहब ने बताया — आपका कोलेस्ट्रॉल ज़्यादा है और शुगर थोड़ी अधिक है, यानी आप ‘प्री-डायबेटिक’ हैं। अब आपको कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए दवाएं लेनी होंगी। साथ ही खाने-पीने में बहुत सारी पाबंदियाँ लगा दी गईं। आपने खाने में पाबंदियाँ भले न मानी हों, लेकिन दवाएं लेना नहीं भूले।

ऐसे तीन महीने बीते। फिर टेस्ट कराया गया। कोलेस्ट्रॉल कुछ कम हुआ, लेकिन अब ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ा हुआ पाया गया। उसे कंट्रोल करने के लिए एक और दवा दी गई। अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 3।

इतनी बात सुनने के बाद आपकी चिंता बढ़ने लगी। "अब क्या होगा?" — इसी चिंता में आपकी नींद उड़ने लगी। डॉक्टर ने नींद की दवा भी शुरू कर दी। अब दवाओं की संख्या 4 हो गई।

इतनी सारी दवाएं खाते ही अब आपको पेट में जलन शुरू हो गई। डॉक्टर बोले — खाने से पहले एक गैस की टैबलेट खाली पेट लेना होगा। दवाओं की संख्या बढ़कर 5 हो गई।

ऐसे ही छह महीने बीत गए। एक दिन सीने में दर्द हुआ तो आप भागे अस्पताल की इमरजेंसी में। डॉक्टर ने सब चेकअप करके कहा — "समय पर आ गए, नहीं तो बहुत बड़ा हादसा हो सकता था।" फिर कुछ विशेष जाँचों की सलाह दी गई।

कई महंगे टेस्ट के बाद डॉक्टर बोले — "पुरानी दवाएं तो चलती रहेंगी, अब हार्ट की दो दवाएं और जुड़ेंगी। साथ ही आपको एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (हार्मोन विशेषज्ञ) से भी मिलना होगा।" अब आपकी दवाओं की संख्या हो गई 7।

हार्ट स्पेशलिस्ट के कहने पर आप एंडोक्रिनोलॉजिस्ट के पास गए। उन्होंने शुगर के लिए एक और दवा और थायरॉइड थोड़ा बढ़ा होने पर एक और दवा जोड़ दी।

अब आपकी कुल दवाएं हो गईं 9।

अब आप अपने मन में यह मानने लगे कि आप बहुत बीमार हैं — हार्ट के मरीज, शुगर के मरीज, अनिद्रा के मरीज, गैस के मरीज, थायरॉइड के मरीज, किडनी के मरीज, आदि-आदि।

आपको यह नहीं बताया गया कि आप अपनी इच्छाशक्ति, आत्मबल और जीवनशैली सुधार कर स्वस्थ रह सकते हैं। बल्कि आपको बार-बार यह बताया गया कि आप एक "गंभीर रोगी" हैं, निर्बल हैं, असमर्थ हैं, एक टूटे हुए व्यक्ति हैं!

ऐसे ही और छह महीने बीतने के बाद दवाओं के साइड इफेक्ट से आपको पेशाब की कुछ समस्याएं हुईं। फिर रूटीन चेकअप में पता चला कि आपकी किडनी में भी कुछ समस्या है। डॉक्टर ने फिर कई टेस्ट करवाए।

रिपोर्ट देखकर डॉक्टर बोले — "क्रिएटिनिन थोड़ा बढ़ा हुआ है, लेकिन दवाएं नियमित चलती रहीं तो चिंता की बात नहीं।" और दो दवाएं और जोड़ दी गईं।

अब आपकी कुल दवाओं की संख्या हो गई 11।

अब आप भोजन से ज्यादा दवा खा रहे हैं, और दवाओं के अनेक दुष्प्रभावों से आप धीरे-धीरे मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं!!

जबकि जिस बुखार की वजह से आप सबसे पहले डॉक्टर के पास गए थे, अगर डॉक्टर साहब कहते:

"चिंता की कोई बात नहीं। यह मामूली बुखार है, कोई दवा लेने की ज़रूरत नहीं। कुछ दिन आराम कीजिए, भरपूर पानी पिएं, ताजे फल-सब्जियाँ खाएँ, सुबह टहलने जाइए — बस, इतना ही काफी है। दवा की ज़रूरत नहीं।"

तो फिर डॉक्टर साहब और दवा कंपनियों का पेट कैसे भरता❓

और सबसे बड़ा सवाल: किस आधार पर डॉक्टर मरीजों को कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी, डायबिटीज, हार्ट डिज़ीज और किडनी डिज़ीज़ घोषित कर रहे हैं❓❓❓

ये मानदंड कौन तय करता है❓

आइए, थोड़ा विस्तार से जानें —
★ 1979 में जब ब्लड शुगर 200 mg/dl से ऊपर होता था, तभी व्यक्ति को डायबिटिक माना जाता था। उस समय दुनिया की सिर्फ 3.5% आबादी को टाइप-2 डायबिटिक माना जाता था।

★ 1997 में इंसुलिन बनाने वाली कंपनियों के दबाव में यह स्तर घटाकर 126 mg/dl कर दिया गया। इससे डायबिटिक मरीजों की संख्या 3.5% से बढ़कर 8% हो गई — यानी बिना किसी लक्षण के 4.5% और लोग रोगी बना दिए गए! 1999 में WHO ने भी इस पैमाने को मान लिया।

इंसुलिन कंपनियों ने जबरदस्त मुनाफा कमाया और नई फैक्ट्रियाँ खोलीं।

★ 2003 में ADA (American Diabetes Association) ने फास्टिंग ब्लड शुगर 100 mg/dl को डायबिटीज का मानक घोषित किया। इसके चलते बिना कारण 27% लोग डायबेटिक रोगी घोषित कर दिए गए।

★ अब ADA के अनुसार पोस्ट प्रांडियल (भोजन के बाद) 140 mg/dl को डायबिटीज का संकेत माना जाता है। इससे दुनिया की लगभग 50% आबादी डायबेटिक घोषित हो चुकी है — जबकि इनमें से कई वास्तविक मरीज नहीं हैं।

भारतीय दवा कंपनियाँ इसे और नीचे, 5.5% HbA1c पर लाने की कोशिश कर रही हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग मरीज बन जाएँ और दवा बिके।

जबकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि HbA1c 11% तक डायबिटीज नहीं मानी जानी चाहिए।

एक और उदाहरण:
2012 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रसिद्ध दवा कंपनी पर $3 बिलियन का जुर्माना लगाया। आरोप था कि उनकी डायबिटीज की दवा से 2007–2012 के बीच हार्ट अटैक के कारण मरीजों की मृत्यु दर 43% बढ़ गई थी।

कंपनी को यह पहले से पता था, लेकिन उन्होंने मुनाफे के लिए जानबूझकर इसे छुपाया। इसी अवधि में उन्होंने 300 बिलियन डॉलर का मुनाफा कमाया।

यही है आज की 'अति-आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था'!!
सोचिए... और सोचना शुरू कीजिए.

#निश्चित रूप से संग्रहित
सभी स्वस्थ रहें, खुश रहे

Monday, 7 January 2019

हल्दी का सेवन कितना ? ------ अनुराग गुप्ता

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हल्दी हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होती है, यह आप भी जानते हैं। हल्दी दर्द, सूजन और इंफेक्शन को दूर करती है। मसाले के अलावा हल्दी का प्रयोग कई तरह के घरेलू उपचारों में भी किया जाता है मगर क्या आप जानते हैं कि हल्दी का ज्यादा सेवन शरीर के लिए खतरनाक भी होता है। कई लोग हल्दी दूध के फायदों के कारण दूध में ढेर सारी हल्दी मिलाकर पीते हैं और सब्जी, दाल आदि में भी ढेर सारी हल्दी का इस्तेमाल करते हैं। मगर हल्दी का ज्यादा प्रयोग करने से इसके नुकसान भी होते हैं। आइए आपको बताते हैं क्या हैं ज्यादा हल्दी के सेवन के नुकसान और रोज कितनी हल्दी का सेवन है सुरक्षित।
पथरी का कारण बन सकती है ज्यादा हल्दी  : 

हल्दी में ऑक्सलेट की मात्रा होती है इसलिए अगर आप हल्दी का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, तो आपको पथरी होने का खतरा होता है। ये ऑक्सलेट शरीर में मौजूद कैल्शियम के साथ मिलकर कैल्शियम ऑक्सलेट बना लेता है, जो धीरे-धीरे किडनी में जमा होता रहता है और पथरी का कारण बनता है।
डायरिया और जी मिचलाना :
हल्दी में सबसे फायदेमंद तत्व कर्क्युमिन को माना जाता है, जो कई तरह के रोगों में फायदेमंद होता है। मगर शरीर में ज्यादा कर्क्युमिन होने पर ये डायरिया का कारण बन सकता है और इससे जी मिचलाने या उल्टी की समस्या भी हो सकती है।

शरीर से घटाता है आयरन : 

अगर आप ज्यादा हल्दी का सेवन करते हैं, तो आपके शरीर में आयरन की कमी भी हो सकती है। आयरन की कमी से एनीमिया जैसा खतरनाक रोग हो जाता है। दरअसल हल्दी में मौजूद तत्व आयरन को एब्जॉर्ब कर लेते हैं, जिससे शरीर में आयरन की कमी हो जाती है।

कितनी हल्दी का सेवन करें रोज : 

हल्दी में सबसे फायदेमंद तत्व कर्क्युमिन होता है। हमारे शरीर को रोजाना 500 से 800 मिलीग्राम तक कर्क्युमिन की जरूरत होती है। एक छोटे चम्मच हल्दी में 200 मिलीग्राम कर्क्युमिन होता है। इसलिए एक दिन में हमें 2 या 3 चम्मच से ज्यादा हल्दी का सेवन नहीं करना चाहिए। हल्दी दूध बनाने के लिए एक ग्लास दूध में एक छोटी चम्मच हल्दी का प्रयोग कर सकते हैं।
 (Anurag Gupta

 ओन्‍ली माई हैल्‍थ सम्पादकीय विभाग Jan 05, 2019 )

https://www.onlymyhealth.com/consuming-too-much-turmeric-causes-health-problems-know-how-much-amount-is-safe-in-hindi-1546597554?utm_source=izooto&utm_medium=push_notifications&utm_campaign=&utm_content=&utm_term=

Sunday, 7 October 2018

किडनी,टी बी, कैंसर के उपचार संबंधी डाक्टरी परामर्श ------

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Tuesday, 20 March 2018

किडनी ------ पूनम जैन

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Thursday, 9 November 2017

पानी ,मूँगफली,चश्मा ,केला के प्रयोग और स्वस्थ्य रक्षा

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Sunday, 13 August 2017

सर्जरी के बाद लापरवाही नहीं ------ शमीम खान / खांसी-जुकाम और भाप ------ रुचि शर्मा

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Friday, 23 June 2017

किडनी समय रहते संभालें ------ संत समीर

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Friday, 25 November 2016

किडनी का सिकुड़ना : एक इलाज – Nephrotic Syndrome Treatment in Ayurved ----- डॉ. योगेश गौतम

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दोस्तों किडनी फेलियर का एक सबसे बड़ा कारन है किडनी का सिकुड़ना। अगर किडनी सिकुड़ जाए तो क्या करें.

जब हमारी किडनी सिकुड़ जाती है तो किडनी की छोटी रचना जिसे हम नेफ्रॉन्स कहते है जो फ़िल्टर का कम करती है ये नेफ्रान्स दब जाते है और उनका फंक्शन ठीक से नहीं हो पता जिससे किडनी फ़िल्टर भी ठीक से नहीं हो कर पाती और वही बिषैला पदार्थ हमारे ब्लड में शरीर में जाने लगता है और Creatinine, urea ये सब ब्लड में बढ़ जाते है।


ऐसे मरीज जिनकी किडनी सिकुड़ गयी है और डॉक्टर ने बोल दिया है की इसका कोई इलाज नहीं है किडनी ट्रांस्प्लांट के आलावा वो मरीज निराश न हो। उनके लिए विशेष आयुर्वेदिक इलाज हैं .

जिन मरीजों की किडनी सिकुड़ गयी हो और डॉक्टर उनको किडनी ट्रांसप्लांट ही एक मात्र विकल्प बता रहें हों ऐसे मरीजो को करना क्या है के “मकोय” यह एक पौधा होता है जो पूरे भारत में पाया जाता है.

संस्कृत में इसको काकमाची, असमिया में पीचकटी, गुजरती में पीलूडी, बंगाली में काकमाची, गुडकमाई, तमिल में मन्टटकल्ली, तेलुगु में गजूचेट्टू, नेपाली में परे गोलभेरा, जंगली बिही, काकमाची, काली गेडी, पंजाबी में काकमाच, मराठी में कमोनी, काकमाची, मेको, मलयालम में क्रीन्टाकली कहते हैं.

इसका वानस्पतिक नाम Solanum americanum Mill है. इंग्लिश में इसको Common nightshade कहते हैं.

इसके फल छोटे छोटे होते है कुछ लोग इसे खाते भी है. इसका पूरा पौधा ले लीजिये इसको अच्छे से धुलाई कर के इसका रस निकाल लें, इस मकोय के रस को 20 ml दिन में दो बार पीना है तीन महीने तक लगातार.

3 महीने बाद सोनोग्राफी करवा के देखे किडनी के सिकुड़ने में यह बहुत ही लाभकारी है।

विशेष – मकोय की सब्जी भी बना कर खायी जाती है. इसके फल भी खाए जाते हैं. इसका अर्क भी आता है. जिस भी प्रकार से किडनी के रोगी इसका सेवन करें तो उनको लाभ होगा.

साभार : 
http://onlyayurved.com/major-disease/kidney/nephrotic-syndrome/nephrotic-syndrome-treatment-in-hindi/

Friday, 1 July 2016

जल ही जीवन है ------ विजय राजबली माथुर

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फोटो रमाशंकर बाजपेयी जी के सौजन्य से 

******जल निगम, लखनऊ: पेय जल ******
जल निगम,लखनऊ द्वारा सप्लाई किया जा रहा पेय जल कितना शुद्ध है इसकी जांच करने के लिए किसी प्रयोगशाला की ज़रूरत नहीं है। कोई भी अपने घर पर पानी को एक पात्र में उबालने रख दें और जब उबल जाये तो ठंडा होने पर उसकी तलहटी में जमें अशुद्ध पदार्थों से परिचित हो लें। 
ये अशुद्ध पदार्थ पानी के साथ-साथ उदर में पहुँच कर यकृत-लीवर और गुर्दा -किडनी को क्षति पहुंचाते हैं। चिकित्सक -डॉ से इलाज कराने पर वह तेज़ एंटी बायटिक देते हैं और पुनः लीवर व किडनी को क्षति बढ़ती है। 
एलोपैथिक डॉ सिर्फ नरसिंग होम के जरिये धन कमाने पर ही ज़ोर देते हैं। सरकारी अस्पतालों की लापरवाही ही इसीलिए है कि, जनता मजबूरी में निजी चिकित्सकों के जरिये लूटी जा सके। जनता को खुद ही जागरूक होना होगा और अपना चिकित्सक अपने आप खुद बनना होगा तभी कल्याण संभव है।

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1107723499289625