Sunday, 1 December 2013

गले में खराश हो तो क्या करें ?आँखों की रोशनी बढ़ाने को पपीता-बीज चबाएँ।!


पपीता.....

कच्चा ताजा हरा पपीता
कई गुणों से भरा पपीता
सब्जी बना कर खाया जाता

सबके मन को बहुत है भाता.

जैसे - जैसे पकता जाये
पीले रंग में ढलता जाये.
विटामिन – सी बढ़ता जाये
मधुर स्वाद से सजता जाये.

प्रकृति का वरदान पपीता
औषधि गुण की खान पपीता
है अमृत के समान पपीता
कर देता बलवान पपीता.

इसमें ए बी सी डी विटामिन
थायमीन और रीबोफ्लेविन
एस्कोर्बिक एसिड और प्रोटीन
कार्पेसमाइन , बीटा केरोटीन.

तत्व सभी ये हैं हितकारी
करते दूर कई बीमारी
सब्जी , फल दोनों उपयोगी
रखें देह को सदा निरोगी.

इसके बीज भी गुणकारी हैं
और बड़े ही चमत्कारी हैं
बीज चबा - चबा जो खाये
आँखों की रोशनी बढ़ जाये.

ब्यूटीपार्लर न जाना चाहे
तन सुंदर भी बनाना चाहे
पके पपीते का पेस्ट बनाये
मालिश देह की वह कर जाये.

थोड़ी देर यूँ ही सुस्ताये
उसके बाद स्नान कर आये
जो भी ये युक्ति अपनाये
त्वचा नर्म कांतिवान हो जाये.

कच्चा पपीता माह भर खाये
मोटापा वह दूर भगाये.
यह चर्बी को कम है करता
और शरीर को चुस्त है रखता.

अगर त्वचा पर दाद हो जाये
कच्चे पपीते का दूध लगाये
शीघ्र ही अपना असर दिखाये
दाद खाज का नाश हो जाये.

पका पपीता पाचक होता
उदर रोग में लाभदायक होता
तन में शक्ति का स्त्रोत बढ़ाता
और नेत्र की ज्योत बढ़ाता.

गर्भवती स्त्री को बतायें
कच्चा पपीता कभी न खायें.
राय चिकित्सक की ले आयें.
तब ही कोई कदम बढ़ायें.

खाने में स्वादिष्ट पपीता
करता है आकृष्ट पपीता
सभी फलों में अच्छा पपीता
पका पपीता , कच्चा पपीता.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )


Health Advice (स्वास्थ्य सलाह) घरेलू नुस्खे

क्या आपके गले में हमेशा खराश बनी रहती है? :
 इसे हल्के में न लें। मौसम का बदलाव या सर्द-गर्म की वजह से इसे एक आम परेशानी न समझें। गले की खराश टॉन्सिल या गले का गंभीर संक्रमण भी हो सकता है। कैसे निबटें इस परेशानी से:-

मौसम बदलते ही गले में खराश होना आम बात है। इसमें गले में कांटे जैसी चुभन, खिचखिच और बोलने में तकलीफ जैसी समस्याएं आती हैं। ऐसा बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। कई बार गले में खराश की समस्या एलर्जी और धूम्रपान के कारण भी होती है। गले के कुछ संक्रमण तो खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इलाज की ही जरूरत पड़ती है। आमतौर पर लोग गले की खराश को आम बात समझ कर इस समस्या को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन गले की किसी भी परेशानी को यूं ही नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है।

गले में खराश गले का इंफेक्शन है, जिसमें गले से कर्कश आवाज, हल्की खांसी, बुखार, सिरदर्द, थकान और गले में दर्द खासकर निगलने में परेशानी होती है। हमारे गले में दोनों तरफ टॉन्सिल्स होते हैं, जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया और वायरस को हमारे गले में जाने से रोकते हैं, लेकिन कई बार जब ये टॉन्सिल्स खुद ही संक्रमित हो जाते हैं, तो इन्हें टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। इसमें गले के अंदर के दोनों तरफ के टॉन्सिल्स गुलाबी व लाल रंग के दिखाई पडम्ते हैं। ये थोड़े बड़े और ज्यादा लाल होते हैं। कई बार इन पर सफेद चकत्ते या पस भी दिखाई देता है। वैसे तो टॉन्सिलाइटिस का संक्रमण उचित देखभाल और एंटीबायोटिक से ठीक हो जाता है, लेकिन इसका खतरा तब अधिक बढ़ जाता है, जब यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकॉक्कस हिमोलिटीकस नामक बैक्टीरिया से होता है। तब यह संक्रमण हृदय एवं गुर्दे में फैलकर खतरनाक बीमारी को जन्म दे सकता है।


नमक के गुनगुने पानी से गरारे करें। इससे गले में आराम मिलेगा।

अदरक, इलायची और काली मिर्च वाली चाय गले की खराश में बेहद आराम पहुंचाती है। साथ ही इस चाय में जीवाणुरोधक गुण भी हैं। इस चाय को नियमित रूप से पीने से गले को आराम मिलता है और खराश दूर होती है।

धूम्रपान न करें और ज्यादा मिर्च-मसाले वाला भोजन न लें।

खान-पान में विशेष तौर पर परहेज बरतें। फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं, न ही अन्य ठंडी चीजें खाएं। एहतियात ही इस परेशानी का हल है।

गले का संक्रमण आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है। इसके अलावा फंगल इंफेक्शन भी होता है, जिसे ओरल थ्रश कहते हैं। किसी खाने की वस्तु, पेय पदार्थ या दवाइयों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। खानपान में त्रुटियां जैसे ठंडे, खट्टे, तले हुए एवं प्रिजर्वेटिव खाद्य पदार्थों को खाने और मुंह व दांतों की साफ-सफाई न रखने के कारण भी गले में सक्रमण की आशंका कई गुना बढ़ जाती है

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