Tuesday, 24 March 2015

टी बी कारण और निवारण --- विजय राजबली माथुर

विश्व टी बी दिवस पर विशेष :
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राज्यक्षमा शोष (PULMONARY TUBERCUOSIS ):

रस आदि धातुओं का शोषण करने के कारण यह शोष कहलाता है, शरीर की क्रियाओं का क्षय करने के कारण इसे क्षय कहते हैं।  राज्यक्षमा नाम से भी इसे जाना जाता है। इसकी उत्पति चार कारणों से होती है । :---
(1) वेग धारण - चरक के अनुसार वायु,मूत्र और मल के वेगों को रोकने से इस रोग का जन्म होता है। 
(2 ) साहस - शक्ति /क्षमता से अधिक कार्य करना साहस कहलाता है। अत्यंत बलवान व्यक्ति से मलयुद्ध करना, अत्यधिक भार उठाना, दौड़ते हुये बैल,घोड़े आदि पशुओं को रोकना, अत्यंत वेग से दौड़ना या साईकिल आदि चलाना, प्रदशनार्थ मोटर आदि वाहनों को रोकना अथवा घोड़े,हाथी आदि शरीर पर से निकालना - इस प्रकार के कार्य करने से फुफ्फ़ुसों पर अत्यधिक ज़ोर पड़ता है। जिससे फुफ्फ़ुस प्रसार ( EMPHYSEMA ) क्षत आदि रोग होकर अंततः राज्यक्षमाहो जाता है। 
(3) विषम भोजन - भोजन में गड़बड़ी होने से शरीर की प्रायः सभी क्रियाएँ विकृत हो जाती हैं। 
(4 ) क्षय - इसका आशय धातु क्षय से है। अति मैथुन,अनशन,रक्त-स्त्राव,वमन,विरेचन आदि संशोद्धन क्रियायों के अति योग, चिंता, भय, क्रोध,शोक,ईर्ष्या आदि से एवं प्रायः सभी रोगों के फलस्वरूप धातुओं का  धातु क्षय होता है। किसी एक धातु के क्षीण होने के फलस्वरूप अन्य धातुओं का क्षय होता है। 
कफ प्रधान दोषों के द्वारा रसवाही स्त्रोतों का अवरोध होने पर अथवा अत्यधिक मैथुन करने वाले व्यक्ति का वीर्य क्षीण हो जाने पर सभी धातुओं का क्षय होता है। इसलिए वह व्यक्ति सूखता है  अथवा शोश  रोग (राज्यक्षमा) को प्राप्त होता है। 
शोष रोग के पूर्व रूप - श्वास फूलना, अंगों में पीड़ा, कफ स्त्राव, तालू सूखना, वमन, मंदाग्नि, मद, पीनस, खांसी, निद्रा ये लक्षण शोश रोग उत्पन्न होने के पूर्व होते हैं और यह प्राणी सफ़ेद नेत्र वाला, मांस-प्रेमी और कामी हो जाता है। सपनों में वह कौवे, तोते, सेही, नीलकंठ, गिद्ध, बंदर और गिरगिट की सवारी करता है और वह जल हीं नदियां तथा वायु, धूम्र और दावानल से पीड़ित शुष्क वृक्षों को देखता है। 

राज्यक्षमा के लक्षण - कंधों, पार्श्वों, हाथों और पैरों में दाह एवं पीड़ा और सारे शरीर में ज्वर, ये राज्यक्षमा के लक्षण हैं। 

अरुचि, ज्वर, श्वान्स, कास, रक्त गिरना और स्वर-भेद ये छह लक्षण राज्यक्षमा के होते हैं। 
 स्वर-भेद कंधों और पार्श्वों में संकोच और शूल वात प्रकोप के कारण, ज्वर, दाह, अतिसार और रक्त-स्त्राव पित्त के प्रकोप के कारण और सिर में भारीपन, कास धसका  ( अथवा गला फटा हुआ सा प्रतीत करना ) कफ के प्रकोप के कारण समझना चाहिए। 

*इन 11 लक्षणों अथवा कास, अतिसार, पार्श्व-वेदना, स्वर-भेद, अरुचि और ज्वर-इन छह लक्षणों से युक्त कास, श्वान्स और रक्त - स्त्राव, इन लक्षणों से पीड़ित शोष रोगी असाध्य होते हैं।   
*बलमांस का क्षय हो चुकने पर सब अर्थात 11 के आधे साढ़े पाँच अथवा छह अथवा तीन ही लक्षणों से युक्त रोगी भी असाध्य हैं। किन्तु इसके विपरीत होने अर्थात बलमांस का क्षय विशेष न हुआ हो तो सभी लक्षणों से युक्त रोगी चिकित्सा द्वारा ठीक हो सकते हैं। 
*जो बहुत भोजन करने पर भी क्षीण होता जाता हो, जो अतिसार से पीड़ित हो और जिसके उदर और अंडकोशों में शोथ हो ऐसे रोगी असाध्य होते हैं। 
*जिसके नेत्र सफ़ेद हो गए हों, भोजन से चिढ़ता हो, जो ऊर्ध्व श्वान्स से पीड़ित हो, जिसे कष्ट के साथ बहुत मूत्र होता हो भी असाध्य होते हैं। 
*वात व्याधि, अपस्मार, कुष्ठ, व्रण, जीर्ण-ज्वर, गुल्म, मधुमेह और राज्यक्षमा से पीड़ित व्यक्ति बलमांस का क्षय होने पर असाध्य हो जाते हैं। 
परहेज - इस रोग में औषद्धियों से ज़्यादा परहेज का महत्व है। रोगी को आवश्यकतानुसार प्रचुर मात्रा में दूध-मांस-अंडा-फल-मक्खन-घी आदि का तथा सुस्वादु भोजन का प्रयोग करना चाहिए। 
सामान्य उपचार :
(1 ) स्वर्ण बसंत मालती रस --- 1 रत्ती 
       श्रंगाराभ्र                       --- 1 रत्ती 
       प्रवाल पिष्टी                 --- 2 रत्ती 
       सितोपलादि                 --- 4 रत्ती 
( ऐसी तीन मात्राएं शहद में मिला कर दें )
(2 ) द्राक्षारिष्ट               ---     1 रत्ती 
( भोजनोपरांत समान जल मिला कर पिलाएँ )
(3 ) मृग शृंग भस्म         --- 1 तोला 
      प्रवाल भस्म             --- 1 रत्ती 
      च्यवनप्राश              --- 1 तोला 
( सोते समय बकरी के दूध के साथ)
(4) मचंदनादी तेल से मालिश करें। 
नोट- बसंत मालती के स्थान पर मृगाङ्क , राज मृगाङ्क हेमगर्भ रस का प्रयोग भी कर सकते हैं। यदि पीलापन हो तो सतमूलादी लौह अथवा यक्षमानतक लौह का प्रयोग करना चाहिए।  
क्रमशः ..........................................................         

Friday, 20 March 2015

ककड़ी ! और चिकित्सा

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ककड़ी ! 
ककड़ी को 'कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय' कहते हैं, जो "कुकुरबिटेसी"[1] वंश के अंतर्गत आती है। यह बेल पर लगने वाला फल है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ ककड़ी मानव के कई प्रकार के रोग दूर करने का कार्य भी करती है।
उत्पत्ति -
ऐसा माना जाता है कि ककड़ी की उत्पत्ति भारत में हुई थी। इसकी खेती की रीति बिलकुल तोरई के समान है, केवल इसके बोने के समय में अंतर है। यदि भूमि पूर्वी ज़िलों में हो, जहाँ शरद ऋतु अधिक कड़ी नहीं होती, तो अक्टूबर के मध्य में बीज बोए जा सकते हैं, नहीं तो इसे जनवरी में बोना चाहिए। ऐसे स्थानों में जहाँ सर्दी अधिक पड़ती हैं, इसे फ़रवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए।
भौगोलिक अवस्थाएँ - 
ककड़ी की फ़सल बलुई दुमट भूमियों से अच्छी होती है। इस फ़सल की सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। इसमें दो मुख्य जातियाँ होती हैं- एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। इनमें पहली को ही लोग पसंद करते हैं। ग्राहकों की पसंद के अनुसार फलों की चुनाई तरुणावस्था में अथवा इसके बाद करनी चाहिए। इसकी माध्य उपज लगभग 75 मन प्रति एकड़ है।[2]
गुण - 
1. कच्ची ककड़ी में आयोडिन पाया जाता है।
2. गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्द्धक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है।
3. ककड़ी स्वाद में मधुर, मूत्र कारक, वात कारक, स्वादिष्ट तथा पित्त का शमन करने वाली होती है।
4. उल्टी, जलन, थकान, प्यास, रक्त विकार, मधुमेह में ककड़ी फ़ायदेमंद हैं।
5. इसके अत्यधिक सेवन से अजीर्ण होने की शंका रहती है, परन्तु भोजन के साथ ककड़ी का सेवन करने से अजीर्ण का शमन होता है।
6. ककड़ी की ही प्रजाति खीरा व कचरी है। ककड़ी में खीरे की अपेक्षा जल की मात्रा ज़्यादा पायी जाती है।
7. इसके बीजों का भी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैर पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृद्धि होती है।
8. ककड़ी काटकर खाने या ककड़ी व प्याज का रस मिलाकर पिलाने से शराब का नशा उतर जाता है।
9. बेहोशी में ककड़ी काटकर सुंघाने से बेहोशी दूर होती है।
10. इसके बीजों को ठंडाई में पीसकर पीने से ग्रीष्म ऋतु में गर्मीजन्य विकारों से छुटकारा प्राप्त होता है।
11. ककड़ी के बीज पानी के साथ पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की त्वचा स्वस्थ व चमकदार होती है।
12. ककड़ी के रस में शक्कर या मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
13. मींगी मिश्री के साथ इसे घोंटकर पिलाने से पथरी रोग में लाभ पहुंचता है।

Saturday, 14 March 2015

आयुर्वेद द्वारा मस्से,स्वाईन फ्लू आदि का उपचार

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मस्से:
मस्से सुंदरता पर दाग की तरह दिखाई देते हैं। मस्से
होने का मुख्य कारण पेपीलोमा वायरस है। त्वचा पर
पेपीलोमा वायरस के आ जाने से छोटे, खुरदुरे कठोर पिंड बन
जाते हैं, जिन्हें मस्सा कहा जाता है। पहले मस्से
की समस्या अधेड़ उम्र के लोगों में अधिक
होती थी, लेकिन आजकल युवाओं में
भी यह समस्या होने लगी है। यदि आप
भी मस्सों से परेशान हैं तो इनसे राहत पाने के लिए कुछ
घरेलू उपायों को अपना सकते हैं। आइए, जानते हैं कुछ ऐसे
ही घरेलू नुस्खों के बारे में....
1. बेकिंग सोडा और अरंडी तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर
इस्तेमाल करने से मस्से धीरे-धीरे खत्म
हो जाते हैं।
2.बरगद के पत्तों का रस मस्सों के उपचार के लिए बहुत
ही असरदार होता है। इसके रस को त्वचा पर लगाने से
त्वचा सौम्य हो जाती है और मस्से अपने-आप गिर
जाते हैं।
3. ताजा अंजीर मसलकर इसकी कुछ
मात्रा मस्से पर लगाएं। 30 मिनट तक लगा रहने दें। फिर गुनगुने
पानी से धो लें। मस्से खत्म हो जाएंगे।
4. खट्टे सेब का जूस निकाल लीजिए। दिन में कम से कम
तीन बार मस्से पर लगाइए। मस्से धीरे-
धीरे झड़ जाएंगे।
5. चेहरे को अच्छी तरह धोएं और कॉटन को सिरके में
भिगोकर तिल-मस्सों पर लगाएं। दस मिनट बाद गर्म
पानी से फेस धो लें। कुछ दिनों में मस्से गायब हो जाएंगे।
6. आलू को छीलकर उसकी फांक
को मस्सों पर लगाने से मस्से गायब हो जाते हैं।
7. कच्चा लहसुन मस्सों पर लगाकर उस पर
पट्टी बांधकर एक सप्ताह तक रहने दें। एक सप्ताह
बाद पट्टी खोलने पर आप पाएंगे कि मस्से गायब हो गए
हैं।
8. मस्सों से जल्दी निजात पाने के लिए आप एलोवेरा के
जैल का भी उपयोग कर सकते हैं।
9. हरे धनिए को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे
रोजाना मस्सों पर लगाएं।
10. ताजे मौसमी का रस मस्से पर लगाएं। ऐसा दिन में
लगभग 3 या 4 बार करें। मस्से गायब हो जाएंगे।
11. केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर
रखकर उसे एक पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में दो बार करें
और लगातार करते रहें, जब तक कि मस्से खत्म
नहीं हो जाते।
12. मस्सों पर नियमित रूप से प्याज मलने से भी मस्से
गायब हो जाते हैं।
13. फ्लॉस या धागे से मस्से को बांधकर दो से तीन
सप्ताह तक छोड़ दें। इससे मस्से में रक्त प्रवाह रुक जाएगा और
वह खुद ही निकल जाएगा।
14. अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगाएं।
इससे मस्से नरम पड़ जाएंगे और धीरे-धीरे
गायब हो जाएंगे।
15. अरंडी के तेल की जगह कपूर के तेल
का भी उपयोग कर सकते हैं।
 Reader:- Subin mishra
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