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Friday, 20 March 2015

ककड़ी ! और चिकित्सा

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ककड़ी ! 
ककड़ी को 'कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय' कहते हैं, जो "कुकुरबिटेसी"[1] वंश के अंतर्गत आती है। यह बेल पर लगने वाला फल है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ ककड़ी मानव के कई प्रकार के रोग दूर करने का कार्य भी करती है।
उत्पत्ति -
ऐसा माना जाता है कि ककड़ी की उत्पत्ति भारत में हुई थी। इसकी खेती की रीति बिलकुल तोरई के समान है, केवल इसके बोने के समय में अंतर है। यदि भूमि पूर्वी ज़िलों में हो, जहाँ शरद ऋतु अधिक कड़ी नहीं होती, तो अक्टूबर के मध्य में बीज बोए जा सकते हैं, नहीं तो इसे जनवरी में बोना चाहिए। ऐसे स्थानों में जहाँ सर्दी अधिक पड़ती हैं, इसे फ़रवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए।
भौगोलिक अवस्थाएँ - 
ककड़ी की फ़सल बलुई दुमट भूमियों से अच्छी होती है। इस फ़सल की सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। इसमें दो मुख्य जातियाँ होती हैं- एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। इनमें पहली को ही लोग पसंद करते हैं। ग्राहकों की पसंद के अनुसार फलों की चुनाई तरुणावस्था में अथवा इसके बाद करनी चाहिए। इसकी माध्य उपज लगभग 75 मन प्रति एकड़ है।[2]
गुण - 
1. कच्ची ककड़ी में आयोडिन पाया जाता है।
2. गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्द्धक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है।
3. ककड़ी स्वाद में मधुर, मूत्र कारक, वात कारक, स्वादिष्ट तथा पित्त का शमन करने वाली होती है।
4. उल्टी, जलन, थकान, प्यास, रक्त विकार, मधुमेह में ककड़ी फ़ायदेमंद हैं।
5. इसके अत्यधिक सेवन से अजीर्ण होने की शंका रहती है, परन्तु भोजन के साथ ककड़ी का सेवन करने से अजीर्ण का शमन होता है।
6. ककड़ी की ही प्रजाति खीरा व कचरी है। ककड़ी में खीरे की अपेक्षा जल की मात्रा ज़्यादा पायी जाती है।
7. इसके बीजों का भी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैर पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृद्धि होती है।
8. ककड़ी काटकर खाने या ककड़ी व प्याज का रस मिलाकर पिलाने से शराब का नशा उतर जाता है।
9. बेहोशी में ककड़ी काटकर सुंघाने से बेहोशी दूर होती है।
10. इसके बीजों को ठंडाई में पीसकर पीने से ग्रीष्म ऋतु में गर्मीजन्य विकारों से छुटकारा प्राप्त होता है।
11. ककड़ी के बीज पानी के साथ पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की त्वचा स्वस्थ व चमकदार होती है।
12. ककड़ी के रस में शक्कर या मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
13. मींगी मिश्री के साथ इसे घोंटकर पिलाने से पथरी रोग में लाभ पहुंचता है।

Saturday, 24 January 2015

ज्योतिष और चिकित्सा


नवरात्र प्रतिवर्ष ऋतु परिवर्तन काल में जड़ी-बूटियों के माध्यम से स्वास्थ्य रक्षा हेतु एहितियात-परहेज करने हेतु रखे गए थे। ज्योतिषियों  ने दो ग्रीष्म व शरद ऋतु के नवरात्र तो सार्वजनिक किए किन्तु दो को 'गुप्त' रखा जिनमें से एक का प्रारम्भ अभी 21 जनवरी 2015 से हुआ है और जो 28 जनवरी 2015 तक रहेगा। 'बसंत पंचमी' का पर्व इसी के मध्य पड़ता है। 'पौराणिक' पोंगा-पंडितों ने इन नवरात्र को विकृत करके अपने पेट भरने का माध्यम बना रखा है और जनहित को दरकिनार कर दिया है। कन्या-पूजन, रात्रि जागरण, ब्राह्मणों को भोजन कराने से स्वास्थ्य रक्षा कदापि संभव नहीं है।  नवरात्र के अवसर पर प्रस्तुत जड़ी-बूटियों को प्रयोग करना ही सर्वोत्तम स्वास्थ्य रक्षा का सूत्र है। जनता को जागरूक व सचेत होना चाहिए। :