Wednesday, 20 July 2016

नीम सबसे बड़ा हकीम ------ पूनम कुमारी

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"आँगन तुलसी ,द्वारे नीम -फिर क्यों आये वैद्य -हकीम "  :

यह शीर्षक उस स्लोगन से लिया गया है जिसका प्रयोग एन .सी .ई .आर .टी .,पटना में कार्य -काल क़े दौरान हमारी  टीम  ग्रामीणों को समझाने में अपने ग्रुप क़े साथ करती थी  । यह बात बिलकुल ठीक है कि नीम स्वंय हकीम है । नीम न केवल पर्यावरण शुद्ध करता है,बल्कि यह एक उच्च कोटि का रक्तशोधक भी है। त्वचा और वायु -प्रकोप में तो नीम राम -बाण औषधी ही है। इस सम्बन्ध में आयुर्वेद अध्यन में आये एक किस्से का वर्णन करना प्रासंगिक रहेगा.६०० ई .पूर्व हमारे देश क़े सुप्रसिद्ध वैद्य सुश्रुत (जो कि दिवोदास जी क़े शिष्य और सुश्रुत संहिता क़े रचयिता थे )की परीक्षा उनके समकालीन यूनानी हकीम पाईथागोरस ने अद्भुत तरीके से लेनी चाही।  पाईथागोरस ने एक यात्री( जो भारत आ रहा था ) से कहा कि ,वहां  जा कर सुश्रुत को मेरा सन्देश दे देना। जब उस यात्री ने सन्देश पूछा तो पाईथागोरस ने कह दिया कि कुछ नहीं ,बस तुम जाते समय रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना।  उस यात्री ने ऐसा ही किया और सुश्रुत से जब मिला तो उनसे कहा पाईथागोरस ने आपके लिए सन्देश देने को कहा है पर कुछ बताया नहीं है। सुश्रुत ने पूछा कि फिर भी क्या कहा था ,उस यात्री ने जवाब दिया कि उन्होंने कहा था कि रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना और मैंने वैसा ही किया है। यह सुन कर सुश्रुत ने कहा कि ठीक है अब तुम लौटते में रोजाना नीम क़े पेड़ क़े नीचे सोते हुए जाना।  उस यात्री ने अब वैसा ही किया। पाईथागोरस ने जब उस यात्री से सुश्रुत क़े बारे में पूंछा तो उसने कहा कि उन्होंने भी कुछ नहीं कहा सिवाए इसके कि लौटते में नीम क़े नीचे सोते हुए जाना।  

पाईथागोरस ने सुश्रुत का लोहा मान लिया।  कारण स्पष्ट है कि इमली क़े पेड़ क़े नीचे सोने से उस व्यक्ति में वात का प्रकोप हो गया था। लौटते में नीम क़े नीचे सोने से वह वात -प्रकोप नष्ट हो गया। सिर्फ वात -प्रकोप ही नहीं अनेक रोगों का इलाज नीम से होता है. :-
डायबिटीज़ -नीम,जामुन और बेल -पत्र की तीन -तीन कोपलें मिला कर प्रातः काल शौचादि क़े बाद मिश्री मिलकर चबाते रहने से डायबिटीज़ रोग जड़ से समाप्त हो जाता है। 
बवासीर -नीम की निम्बोली पकी होने पर गुठली समेत साबुत निगल लें.प्रातः काल ३ से शुरू करके २१ तक ले जाएँ पुनः घटाते हुए तीन पर लायें .इस प्रयोग से बवासीर रोग जड़ से समाप्त हो जाता है। 
रोग अनेक -औषद्धि एक -वात व पित्त क़े प्रकोप से होने वाले रोग ,बिगड़े हुए घाव ,कृमि जान रोग ,बवासीर तथा श्वास -कास सभी रोगों में 'नीम ' मिश्रित घृत (घी )लाभ करता करता ही है कुष्ठ रोग दूर करने में भी सहायक है इसे पञ्च तिक्त घृत क़े नाम से बाजार से भी खरीद सकते हैं। 
निर्माण विधि -(१)नीम की छाल ,पटोल पत्र ,कटेरी पंचांग ,वासा का पंचांग ,गिलोय इन पाँचों को ५० -५० ग्रा .की मात्रा में लें और मोटा -मोटा कूट कर उबालें पानी लीटर लें.जब चौथाई भाग अर्थात ७४० मि .ली .बचे तो उतार कर कपडे से छान लें। 
(२ )अब इसमें गाय का घी १५० ग्रा .और त्रिफला चूर्ण २० ग्रा .की मात्रा में मिला कर पुनः तब तक उबालें जब तक कि समस्त पानी जलकर मात्र घी न बच जाये। 
(३ )एक चम्मच घृत मिश्री मिला कर चाटें और गुनगुना गर्म दूध पीयें.
पहले सड़कों क़े किनारे जो छायादार वृछ लगाये जाते थे उनमे नीम प्रमुख था ,तब वातावरण इसी कारण शुद्ध रहता था .क्या हम फिर उसी परंपरा को नहीं अपना कर सुखी रहने का अवसर खोते जा रहे हैं ?
साभार :
http://krantiswar.blogspot.in/2010/11/blog-post_23.html

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