"चिकित्सा समाज सेवा है,व्यवसाय नहीं"
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Saturday, 25 April 2020
Saturday, 21 April 2018
Wednesday, 20 July 2016
नीम सबसे बड़ा हकीम ------ पूनम कुमारी
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"आँगन तुलसी ,द्वारे नीम -फिर क्यों आये वैद्य -हकीम " :
यह शीर्षक उस स्लोगन से लिया गया है जिसका प्रयोग एन .सी .ई .आर .टी .,पटना में कार्य -काल क़े दौरान हमारी टीम ग्रामीणों को समझाने में अपने ग्रुप क़े साथ करती थी । यह बात बिलकुल ठीक है कि नीम स्वंय हकीम है । नीम न केवल पर्यावरण शुद्ध करता है,बल्कि यह एक उच्च कोटि का रक्तशोधक भी है। त्वचा और वायु -प्रकोप में तो नीम राम -बाण औषधी ही है। इस सम्बन्ध में आयुर्वेद अध्यन में आये एक किस्से का वर्णन करना प्रासंगिक रहेगा.६०० ई .पूर्व हमारे देश क़े सुप्रसिद्ध वैद्य सुश्रुत (जो कि दिवोदास जी क़े शिष्य और सुश्रुत संहिता क़े रचयिता थे )की परीक्षा उनके समकालीन यूनानी हकीम पाईथागोरस ने अद्भुत तरीके से लेनी चाही। पाईथागोरस ने एक यात्री( जो भारत आ रहा था ) से कहा कि ,वहां जा कर सुश्रुत को मेरा सन्देश दे देना। जब उस यात्री ने सन्देश पूछा तो पाईथागोरस ने कह दिया कि कुछ नहीं ,बस तुम जाते समय रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना। उस यात्री ने ऐसा ही किया और सुश्रुत से जब मिला तो उनसे कहा पाईथागोरस ने आपके लिए सन्देश देने को कहा है पर कुछ बताया नहीं है। सुश्रुत ने पूछा कि फिर भी क्या कहा था ,उस यात्री ने जवाब दिया कि उन्होंने कहा था कि रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना और मैंने वैसा ही किया है। यह सुन कर सुश्रुत ने कहा कि ठीक है अब तुम लौटते में रोजाना नीम क़े पेड़ क़े नीचे सोते हुए जाना। उस यात्री ने अब वैसा ही किया। पाईथागोरस ने जब उस यात्री से सुश्रुत क़े बारे में पूंछा तो उसने कहा कि उन्होंने भी कुछ नहीं कहा सिवाए इसके कि लौटते में नीम क़े नीचे सोते हुए जाना।
पाईथागोरस ने सुश्रुत का लोहा मान लिया। कारण स्पष्ट है कि इमली क़े पेड़ क़े नीचे सोने से उस व्यक्ति में वात का प्रकोप हो गया था। लौटते में नीम क़े नीचे सोने से वह वात -प्रकोप नष्ट हो गया। सिर्फ वात -प्रकोप ही नहीं अनेक रोगों का इलाज नीम से होता है. :-
डायबिटीज़ -नीम,जामुन और बेल -पत्र की तीन -तीन कोपलें मिला कर प्रातः काल शौचादि क़े बाद मिश्री मिलकर चबाते रहने से डायबिटीज़ रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।
बवासीर -नीम की निम्बोली पकी होने पर गुठली समेत साबुत निगल लें.प्रातः काल ३ से शुरू करके २१ तक ले जाएँ पुनः घटाते हुए तीन पर लायें .इस प्रयोग से बवासीर रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।
रोग अनेक -औषद्धि एक -वात व पित्त क़े प्रकोप से होने वाले रोग ,बिगड़े हुए घाव ,कृमि जान रोग ,बवासीर तथा श्वास -कास सभी रोगों में 'नीम ' मिश्रित घृत (घी )लाभ करता करता ही है कुष्ठ रोग दूर करने में भी सहायक है इसे पञ्च तिक्त घृत क़े नाम से बाजार से भी खरीद सकते हैं।
निर्माण विधि -(१)नीम की छाल ,पटोल पत्र ,कटेरी पंचांग ,वासा का पंचांग ,गिलोय इन पाँचों को ५० -५० ग्रा .की मात्रा में लें और मोटा -मोटा कूट कर उबालें पानी लीटर लें.जब चौथाई भाग अर्थात ७४० मि .ली .बचे तो उतार कर कपडे से छान लें।
(२ )अब इसमें गाय का घी १५० ग्रा .और त्रिफला चूर्ण २० ग्रा .की मात्रा में मिला कर पुनः तब तक उबालें जब तक कि समस्त पानी जलकर मात्र घी न बच जाये।
(३ )एक चम्मच घृत मिश्री मिला कर चाटें और गुनगुना गर्म दूध पीयें.
पहले सड़कों क़े किनारे जो छायादार वृछ लगाये जाते थे उनमे नीम प्रमुख था ,तब वातावरण इसी कारण शुद्ध रहता था .क्या हम फिर उसी परंपरा को नहीं अपना कर सुखी रहने का अवसर खोते जा रहे हैं ?
साभार :
http://krantiswar.blogspot.in/2010/11/blog-post_23.html
"आँगन तुलसी ,द्वारे नीम -फिर क्यों आये वैद्य -हकीम " :
यह शीर्षक उस स्लोगन से लिया गया है जिसका प्रयोग एन .सी .ई .आर .टी .,पटना में कार्य -काल क़े दौरान हमारी टीम ग्रामीणों को समझाने में अपने ग्रुप क़े साथ करती थी । यह बात बिलकुल ठीक है कि नीम स्वंय हकीम है । नीम न केवल पर्यावरण शुद्ध करता है,बल्कि यह एक उच्च कोटि का रक्तशोधक भी है। त्वचा और वायु -प्रकोप में तो नीम राम -बाण औषधी ही है। इस सम्बन्ध में आयुर्वेद अध्यन में आये एक किस्से का वर्णन करना प्रासंगिक रहेगा.६०० ई .पूर्व हमारे देश क़े सुप्रसिद्ध वैद्य सुश्रुत (जो कि दिवोदास जी क़े शिष्य और सुश्रुत संहिता क़े रचयिता थे )की परीक्षा उनके समकालीन यूनानी हकीम पाईथागोरस ने अद्भुत तरीके से लेनी चाही। पाईथागोरस ने एक यात्री( जो भारत आ रहा था ) से कहा कि ,वहां जा कर सुश्रुत को मेरा सन्देश दे देना। जब उस यात्री ने सन्देश पूछा तो पाईथागोरस ने कह दिया कि कुछ नहीं ,बस तुम जाते समय रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना। उस यात्री ने ऐसा ही किया और सुश्रुत से जब मिला तो उनसे कहा पाईथागोरस ने आपके लिए सन्देश देने को कहा है पर कुछ बताया नहीं है। सुश्रुत ने पूछा कि फिर भी क्या कहा था ,उस यात्री ने जवाब दिया कि उन्होंने कहा था कि रोजाना रात को इमली क़े पेड़ क़े नीचे सो जाया करना और मैंने वैसा ही किया है। यह सुन कर सुश्रुत ने कहा कि ठीक है अब तुम लौटते में रोजाना नीम क़े पेड़ क़े नीचे सोते हुए जाना। उस यात्री ने अब वैसा ही किया। पाईथागोरस ने जब उस यात्री से सुश्रुत क़े बारे में पूंछा तो उसने कहा कि उन्होंने भी कुछ नहीं कहा सिवाए इसके कि लौटते में नीम क़े नीचे सोते हुए जाना।
पाईथागोरस ने सुश्रुत का लोहा मान लिया। कारण स्पष्ट है कि इमली क़े पेड़ क़े नीचे सोने से उस व्यक्ति में वात का प्रकोप हो गया था। लौटते में नीम क़े नीचे सोने से वह वात -प्रकोप नष्ट हो गया। सिर्फ वात -प्रकोप ही नहीं अनेक रोगों का इलाज नीम से होता है. :-
डायबिटीज़ -नीम,जामुन और बेल -पत्र की तीन -तीन कोपलें मिला कर प्रातः काल शौचादि क़े बाद मिश्री मिलकर चबाते रहने से डायबिटीज़ रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।
बवासीर -नीम की निम्बोली पकी होने पर गुठली समेत साबुत निगल लें.प्रातः काल ३ से शुरू करके २१ तक ले जाएँ पुनः घटाते हुए तीन पर लायें .इस प्रयोग से बवासीर रोग जड़ से समाप्त हो जाता है।
रोग अनेक -औषद्धि एक -वात व पित्त क़े प्रकोप से होने वाले रोग ,बिगड़े हुए घाव ,कृमि जान रोग ,बवासीर तथा श्वास -कास सभी रोगों में 'नीम ' मिश्रित घृत (घी )लाभ करता करता ही है कुष्ठ रोग दूर करने में भी सहायक है इसे पञ्च तिक्त घृत क़े नाम से बाजार से भी खरीद सकते हैं।
निर्माण विधि -(१)नीम की छाल ,पटोल पत्र ,कटेरी पंचांग ,वासा का पंचांग ,गिलोय इन पाँचों को ५० -५० ग्रा .की मात्रा में लें और मोटा -मोटा कूट कर उबालें पानी लीटर लें.जब चौथाई भाग अर्थात ७४० मि .ली .बचे तो उतार कर कपडे से छान लें।
(२ )अब इसमें गाय का घी १५० ग्रा .और त्रिफला चूर्ण २० ग्रा .की मात्रा में मिला कर पुनः तब तक उबालें जब तक कि समस्त पानी जलकर मात्र घी न बच जाये।
(३ )एक चम्मच घृत मिश्री मिला कर चाटें और गुनगुना गर्म दूध पीयें.
पहले सड़कों क़े किनारे जो छायादार वृछ लगाये जाते थे उनमे नीम प्रमुख था ,तब वातावरण इसी कारण शुद्ध रहता था .क्या हम फिर उसी परंपरा को नहीं अपना कर सुखी रहने का अवसर खोते जा रहे हैं ?
साभार :
http://krantiswar.blogspot.in/2010/11/blog-post_23.html
Wednesday, 12 November 2014
कढ़ी पत्ता के 8 फायदे और अन्य प्राकृतिक उपचार
लाइफस्टाइल डेस्क: हर भारतीय किचन में आसानी से मिल जाने वाले
कढ़ी पत्ते का इस्तेमाल खासकर सब्जी व दाल में तड़का लगाने के लिए होता है।
दक्षिण भारतीय खाने जैसे सांभर और रसम में इनका उपयोग अधिक होता है, फिर
भी इस मसाले में स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ कई औषधीय गुण भी हैं। एक रिसर्च
के मुताबिक, प्रति सौ ग्राम कढ़ी पत्ते में 66 प्रतिशत मॉइश्चर, 6.1
प्रतिशत प्रोटीन, 1 प्रतिशत वसा, 16 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 6.4 प्रतिशत
मिनरल पाया जाता है। इस तरह से कढ़ी पत्ता पेट के लिए काफी फायदेमंद है।
आइए, इसके कुछ और उपयोग के बारे में जानते हैं।
1- डायबिटीज़ को कंट्रोल करता है:
कढ़ी पत्ते में एंटी-डायबिटिक एंजेट होते हैं। यह शरीर में इंसुलिन की
गतिविधि को प्रभावित करके ब्लड शुगर लेवल को कम करता है। साथ ही, इसमें
मौजूद फाइबर भी डायबिटीज़ के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।
कैसे करें इस्तेमाल- अपने भोजन में कढ़ी पत्ते की मात्रा
बढ़ाएं या फिर रोज सुबह तीन महीने तक खाली पेट कढ़ी पत्ता खाएं तो फायदा
होगा। कढ़ी पत्ता मोटापे को कम कर के डायबिटीज को भी दूर कर सकता है।
2- दिल की बीमारियों से बचाता है:
स्टडी के अनुसार, कढ़ी पत्ते में ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाले
गुण होते हैं, जिससे आप दिल की बीमारियों से बचे रहते हैं। यह
एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल का ऑक्सीकरण होने से
रोकते हैं। दरअसल, ऑक्सीकृत कोलेस्ट्रॉल बैड कोलेस्ट्रॉल बनाते हैं जो
हार्ट डिसीज़ को न्योता देते हैं।
3-डायरिया को रोकता है:
कढ़ी पत्ते में कार्बाज़ोल एल्कालॉयड्स होते हैं, जिससे इसमें
एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। ये गुण पेट के लिए
बेहद फायदेमंद होते हैं। यह पेट से पित्त भी दूर करता है, जो डायरिया होने
का मुख्य कारण है।
कैसे करें सेवन- अगर आप डायरिया से पीड़ित हैं तो कढ़ी के कुछ पत्तों को कस कर छाछ के साथ पिएं। ऐसा दिन में दो से तीन बार दोहराने से आराम मिलता है।
4-नाक और सीने से कफ का जमाव कम करता है:
अगर आपको सूखा कफ, साइनसाइटिस और चेस्ट में जमाव है तो कढ़ी पत्ता
आपके लिए बेहद असरदार उपाय हो सकता है। इसमें विटामिन सी और ए के साथ
एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल एजेंट होते हैं, जो जमे हुए बलगम को बाहर
निकालने में मदद करते हैं।
कैसे करें सेवन- कफ से राहत पाने के लिए एक चम्मच कढ़ी पाउडर को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस मिक्सचर को दिन में दो बार पिएं।
5-लिवर को सुरक्षित करता है:
अगर आप ज्यादा एल्कोहल का सेवन करते हैं या फिश ज्यादा खाते हैं तो
कढ़ी पत्ता आपके लिवर को इससे प्रभावित होने से बचा सकता है। कढ़ी पत्ता
लिवर को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाता है, जो हानिकारक तत्व जैसे मरकरी
(मछली में पाया जाता है) और एल्कोहल की वजह से लिवर पर पड़ता है।
कैसे करें सेवन- घर के बने हुए घी को गर्म करके
उसमें एक कप कढ़ी पत्ते का जूस मिलाएं। इसके बाद थोड़ी-सी चीनी और पिसी हुई
काली मिर्च मिलाएं। अब इस मिक्सचर को कम तापमान में गर्म करके उबाल लें और
उसे हल्का ठंडा करके पिएं।
6-एनीमिया रोगियों के लिए उपयोगी:
कढ़ी पत्ते में आयरन और फोलिक एसिड उच्च मात्रा में होते हैं। एनीमिया
शरीर में सिर्फ आयरन की कमी से नहीं होता, बल्कि जब आयरन को अब्जॉर्ब करने
और उसे इस्तेमाल करने की शक्ति कम हो जाती है, तो इससे भी एनीमिया हो जाता
है। इसके लिए शरीर में फोलिक एसिड की भी कमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि
फोलिक एसिड ही आयरन को अब्जॉर्ब करने में मदद करता है।
कैसे करें सेवन- अगर आप एनीमिया से पीड़ित हैं तो एक
खजूर को दो कढ़ी पत्तों के साथ खाली पेट रोज सुबह खाएं। इससे शरीर में
आयरन लेवल ऊंचा रहेगा और एनीमिया होने की संभावना भी कम होगी।
7- पीरियड के दौरान होने वाले दर्द से राहत देता है:
मासिक धर्म के दिनों में होने वाली परेशानी व दर्द से निजात पाने के लिए कढ़ी पत्ता काफी असरदार होता है।
कैसे करें इस्तेमाल- इसके लिए मीठे नीम या कढ़ी के
पत्तों को सुखाकर इनका बारीक पाउडर तैयार कर लें। अब एक छोटा चम्मच इस
मिक्सचर को गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। सवेरे और शाम दिन में दो बार
इसे लें। कढ़ी, दाल, पुलाव आदि के साथ कढ़ी पत्ते का नियमित सेवन बेहद
फायदेमंद है।
8- बाल सफेद होने से रोकता है:
करी पत्ते में विटामिन बी1 बी3 बी9 और सी होता है। इसके अलावा, इसमें
आयरन, कैल्शियम और फॉस्फोरस की भी भरपूर मात्रा होती है। इसके इस्तेमाल से
बाल सफेद होने से बच सकते हैं।
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