Saturday, 21 December 2013

अंकुरित भोजन काया कल्प करने वाला अमृत आहार

हेल्थ बनाने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर, मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो न सिर्फ यह बहुत फायदेमंद होता है क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन  इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे.....
* - अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।
* - अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।
* - अंकुरित भोजन क्लोरोफिल, विटामिन ,कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैगनीशियम, आयरन, जैसे खनिजों का अच्छा स्रोत होता है।
* - अंकुरित भोजन से काया कल्प करने वाला अमृत आहार कहा गया है यह शरीर को सुंदर व स्वस्थ बनाता है।
* - अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे मदद मिलती है। अंकुरित गेहुं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
* - अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुद्घ करता है। *अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर की कोशिकाएं शुद्घ होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन फायदेमंद है। 
*- अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी, सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं। 
*- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है।

Monday, 2 December 2013

सहजन,अनार,हरिश्रिंगार और छाले के उपचार

 
मुनगा / सहजन / ड्रम स्टिक:
फूल, पत्ती,जड़ और तना
इन अंगों से वृक्ष बना
किसी वृक्ष के फल बेहतर
फूल किसी पर हैं सुंदर.

इन सबमें “मुनगा” बेजोड़
कौन करेगा इससे होड़.
सभी अंग में शक्ति भरी
वाह ! प्रकृति की जादूगरी.

फूल , पत्तियाँ और फली
खाने में लगती हैं भली
जड़ और छाल से बने दवा
गोंद भी उपयोगी इसका.

सेवन में अति पोषक है
यह जल का भी शोधक है.
सभी स्वाद से पहचाने
कम ही इसके गुण जाने.

पत्ती में है विटामिन – सी
फाइबर ,आयरन, कैल्शियम भी
खनिज तत्व और फास्फोरस
पत्ती की भाजी दिलकश.

पत्ती का चूर्ण चमत्कारी
गर्भवती , प्रसूता नारी
करे जो सेवन दूध बढ़े
नई पीढ़ी बलवान गढ़े.

फूल की सब्जी बढ़िया बने
बेसन के संग भजिया छने.
मुनगा फली की तरकारी
करें पसंद सब नर – नारी.

सहजन क्या है जान भी लो
इसकी ताकत मान भी लो
अंडा दूध से दूना प्रोटीन
कौन भला सहजन से हसीन.

दूध से चार गुना कैल्शियम
केले से तीन गुना पोटैशियम.
विटामिन - सी है सात गुना
नारंगी से, अधिक सुना.

विटामिन ए का अद्भुत स्त्रोत
गाजर से चौगुना अति होत.
लौह – तत्व पालक से अधिक
मुनगा कितना है पौष्टिक.

कार्बोहाइड्रेट , बी काम्पलेक्स
इसमें है सब का समावेश.
बीज से इरेक्टाइल डिस्फन्क्शन
की दवा बने, बढ़े यौवन.

दक्षिण अफ्रीका में कुपोषण
देख कहे विश्व-स्वास्थ्य संगठन
सहजन इन्हें खिलाया जाय
कुपोषण का यह सही उपाय.

मुनगे की चटनी और अचार
कई रोगों का है उपचार
बढ़ा विदेशों में व्यापार
करता है निर्यात “ बिहार “

दूषित जल पीकर मरते जन
इसका भी उपचार है सहजन
जल - शोधन की क्षमता इसमें
जन – जीवन की ममता इसमें.

हींग , सोंठ, अजवाइन के संग
जड़ का काढ़ा लाता है रंग
साइटिका से मुक्ति दिलाता
जोड़ों की पीड़ा को भगाता.

इसका गोंद चमत्कारी है
जोड़ों का पीड़ाहारी है
मुनगा एक वायुनाशक है
पोषक और लाभदायक है.

बड़े बुजुर्गों ने कुछ मानी
कुछ विज्ञान ने है पहचानी
यहाँ – वहाँ पढ़ – सुन कर जानी
बात जरूरी थी बतलानी.

मुनगे की महिमा क्या बतायें
शब्द बहुत कम हैं पड़ जायें.
कविता के गर सार में जायें
मुनगा सहजन को अपनायें.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
 
Health Advice (स्वास्थ्य सलाह) घरेलू नुस्खे

मुंह में अगर छाले हो जाएं तो जीना मुहाल हो जाता है। खाना तो दूर पानी पीना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन, इसका इलाज आपके आसपास ही मौजूद है। मुंह के छाले गालों के अंदर और जीभ पर होते हैं। संतुलित आहार, पेट में दिक्कत, पान-मसालों का सेवन छाले का प्रमुख कारण है। छाले होने पर बहुत तेज दर्द होता है।
मुंह के छालों से बचने के घरेलू उपचार–

शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें।

मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
छाले होने पर कत्था और मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों परलगाने चाहिए।

अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखिए। या केवल अमलतास के गूदे को मुंहमें रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।

अमरूद के मुलायम पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले से राहत मिलती है और छाले ठीक हो जाते हैं


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* रोज एक गिलास अनार का जूस पीजिए। अनार का रस पेट पर जमी चर्बी तथा कमर पर टायर की तरह लटकते मांस को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।

* अपच : यदि आपको देर रात की पार्टी से अपच हो गया है तो पके अनार का रस चम्मच, आधा चम्मच सेंका हुआ जीरा पीसकर तथा गुड़ मिलाकर दिन में तीन बार लें।

* प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं।

* दस्त तथा पेचिश में : 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग लें। दोनों को एक गिलास पानी में उबालें। फिर पानी आधा रह जाए तो दिन में तीन बार लें। इससे दस्त तथा पेचिश में आराम होता है।

* अनार कब्ज दूर करता है, मीठा होने पर पाचन शक्ति बढ़ाता है। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है।

* अत्यधिक मासिक स्राव में : अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण एक चम्मच फाँकी सुबह-शाम पानी के साथ लेने से रक्त स्राव रुक जाता है।

* मुँह में दुर्गंध : मुँह में दुर्गंध आती हो तो अनार का छिलका उबालकर सुबह-शाम कुल्ला करें। इसके छिलकों को जलाकर मंजन करने से दाँत के रोग दूर होते हैं।

* अनार आपका मूड अच्छा करता है और साथ ही याददाश्त बढ़ाता है। तनाव से भी आपको निजात दिलाता है।


हरसिंगार जिसे पारिजात भी कहते हैं, एक सुन्दर वृक्ष होता है, जिस पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है।

परिचय : यह 10 से 15 फीट ऊँचा और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक वृक्ष होता है और देशभर में खास तौर पर बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है। इसके फूल बहुत सुगंधित और सुन्दर होते हैं जो रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पारिजात, शेफालिका। हिन्दी- हरसिंगार, परजा, पारिजात। मराठी- पारिजातक। गुजराती- हरशणगार। बंगाली- शेफालिका, शिउली। तेलुगू- पारिजातमु, पगडमल्लै। तमिल- पवलमल्लिकै, मज्जपु। मलयालम - पारिजातकोय, पविझमल्लि। कन्नड़- पारिजात। उर्दू- गुलजाफरी। इंग्लिश- नाइट जेस्मिन। लैटिन- निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस।

गुण : यह हलका, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण है।

रासायनिक संघटन : इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1% होता है जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16% पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1%), मैनिटाल (1.3%), एक राल (1.2%), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं।

उपयोग : इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है।

गृध्रसी (सायटिका) : हरसिंगार के ढाई सौ ग्राम पत्ते साफ करके एक लीटर पानी में उबालें। जब पानी लगभग 700 मिली बचे तब उतारकर ठण्डा करके छान लें, पत्ते फेंक दें और 1-2 रत्ती केसर घोंटकर इस पानी में घोल दें। इस पानी को दो बड़ी बोतलों में भरकर रोज सुबह-शाम एक कप मात्रा में इसे पिएँ।

ऐसी चार बोतलें पीने तक सायटिका रोग जड़ से चला जाता है। किसी-किसी को जल्दी फायदा होता है फिर भी पूरी तरह चार बोतल पी लेना अच्छा होता है। इस प्रयोग में एक बात का खयाल रखें कि वसन्त ऋतु में ये पत्ते गुणहीन रहते हैं अतः यह प्रयोग वसन्त ऋतु में लाभ नहीं करता।

Sunday, 1 December 2013

गले में खराश हो तो क्या करें ?आँखों की रोशनी बढ़ाने को पपीता-बीज चबाएँ।!


पपीता.....

कच्चा ताजा हरा पपीता
कई गुणों से भरा पपीता
सब्जी बना कर खाया जाता

सबके मन को बहुत है भाता.

जैसे - जैसे पकता जाये
पीले रंग में ढलता जाये.
विटामिन – सी बढ़ता जाये
मधुर स्वाद से सजता जाये.

प्रकृति का वरदान पपीता
औषधि गुण की खान पपीता
है अमृत के समान पपीता
कर देता बलवान पपीता.

इसमें ए बी सी डी विटामिन
थायमीन और रीबोफ्लेविन
एस्कोर्बिक एसिड और प्रोटीन
कार्पेसमाइन , बीटा केरोटीन.

तत्व सभी ये हैं हितकारी
करते दूर कई बीमारी
सब्जी , फल दोनों उपयोगी
रखें देह को सदा निरोगी.

इसके बीज भी गुणकारी हैं
और बड़े ही चमत्कारी हैं
बीज चबा - चबा जो खाये
आँखों की रोशनी बढ़ जाये.

ब्यूटीपार्लर न जाना चाहे
तन सुंदर भी बनाना चाहे
पके पपीते का पेस्ट बनाये
मालिश देह की वह कर जाये.

थोड़ी देर यूँ ही सुस्ताये
उसके बाद स्नान कर आये
जो भी ये युक्ति अपनाये
त्वचा नर्म कांतिवान हो जाये.

कच्चा पपीता माह भर खाये
मोटापा वह दूर भगाये.
यह चर्बी को कम है करता
और शरीर को चुस्त है रखता.

अगर त्वचा पर दाद हो जाये
कच्चे पपीते का दूध लगाये
शीघ्र ही अपना असर दिखाये
दाद खाज का नाश हो जाये.

पका पपीता पाचक होता
उदर रोग में लाभदायक होता
तन में शक्ति का स्त्रोत बढ़ाता
और नेत्र की ज्योत बढ़ाता.

गर्भवती स्त्री को बतायें
कच्चा पपीता कभी न खायें.
राय चिकित्सक की ले आयें.
तब ही कोई कदम बढ़ायें.

खाने में स्वादिष्ट पपीता
करता है आकृष्ट पपीता
सभी फलों में अच्छा पपीता
पका पपीता , कच्चा पपीता.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )


Health Advice (स्वास्थ्य सलाह) घरेलू नुस्खे

क्या आपके गले में हमेशा खराश बनी रहती है? :
 इसे हल्के में न लें। मौसम का बदलाव या सर्द-गर्म की वजह से इसे एक आम परेशानी न समझें। गले की खराश टॉन्सिल या गले का गंभीर संक्रमण भी हो सकता है। कैसे निबटें इस परेशानी से:-

मौसम बदलते ही गले में खराश होना आम बात है। इसमें गले में कांटे जैसी चुभन, खिचखिच और बोलने में तकलीफ जैसी समस्याएं आती हैं। ऐसा बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। कई बार गले में खराश की समस्या एलर्जी और धूम्रपान के कारण भी होती है। गले के कुछ संक्रमण तो खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इलाज की ही जरूरत पड़ती है। आमतौर पर लोग गले की खराश को आम बात समझ कर इस समस्या को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन गले की किसी भी परेशानी को यूं ही नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है।

गले में खराश गले का इंफेक्शन है, जिसमें गले से कर्कश आवाज, हल्की खांसी, बुखार, सिरदर्द, थकान और गले में दर्द खासकर निगलने में परेशानी होती है। हमारे गले में दोनों तरफ टॉन्सिल्स होते हैं, जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया और वायरस को हमारे गले में जाने से रोकते हैं, लेकिन कई बार जब ये टॉन्सिल्स खुद ही संक्रमित हो जाते हैं, तो इन्हें टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। इसमें गले के अंदर के दोनों तरफ के टॉन्सिल्स गुलाबी व लाल रंग के दिखाई पडम्ते हैं। ये थोड़े बड़े और ज्यादा लाल होते हैं। कई बार इन पर सफेद चकत्ते या पस भी दिखाई देता है। वैसे तो टॉन्सिलाइटिस का संक्रमण उचित देखभाल और एंटीबायोटिक से ठीक हो जाता है, लेकिन इसका खतरा तब अधिक बढ़ जाता है, जब यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकॉक्कस हिमोलिटीकस नामक बैक्टीरिया से होता है। तब यह संक्रमण हृदय एवं गुर्दे में फैलकर खतरनाक बीमारी को जन्म दे सकता है।


नमक के गुनगुने पानी से गरारे करें। इससे गले में आराम मिलेगा।

अदरक, इलायची और काली मिर्च वाली चाय गले की खराश में बेहद आराम पहुंचाती है। साथ ही इस चाय में जीवाणुरोधक गुण भी हैं। इस चाय को नियमित रूप से पीने से गले को आराम मिलता है और खराश दूर होती है।

धूम्रपान न करें और ज्यादा मिर्च-मसाले वाला भोजन न लें।

खान-पान में विशेष तौर पर परहेज बरतें। फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं, न ही अन्य ठंडी चीजें खाएं। एहतियात ही इस परेशानी का हल है।

गले का संक्रमण आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है। इसके अलावा फंगल इंफेक्शन भी होता है, जिसे ओरल थ्रश कहते हैं। किसी खाने की वस्तु, पेय पदार्थ या दवाइयों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। खानपान में त्रुटियां जैसे ठंडे, खट्टे, तले हुए एवं प्रिजर्वेटिव खाद्य पदार्थों को खाने और मुंह व दांतों की साफ-सफाई न रखने के कारण भी गले में सक्रमण की आशंका कई गुना बढ़ जाती है

Saturday, 30 November 2013

दर्द भगाये प्याज और कद्दू में हैं औषधीय गुन: इसमें होता बीटा केरोटिन



कद्दू......

सब्जी लेने गये थे दद्दू
लेकर आये बड़ा सा कद्दू.
बच्चे देखके मुँह बिचकाये

उनको कद्दू तनिक न भाये.

दद्दू ने तब स्थिति भाँपी
तुरत निकाली जेब से टॉफी.
बच्चे खुश हो पास में आये
दद्दू , दद्दू कह चिल्लाये.

सब बच्चों ने टॉफी खाई
मुनिया थोड़ी सी झुंझलाई.
बोली दद्दू दियो बताये
ऐसा क्या जो कद्दू लाये.

तब दद्दू जी जरा मुस्काये
और गोद में उसे उठाये
बोले मुनिया बिटिया सुन
कद्दू में हैं औषधीय गुन.

इसमें होता बीटा केरोटिन
जो देता हमें ‘ए’ विटामिन
कम करता है यह कोलेस्ट्राल
हृदय को रखता खूब सम्भाल.

शर्करा की मात्रा रखे नियंत्रित
पेंक्रियाज को करे परिवर्द्धित
गड़बड़ी पेट की करता दूर
मूत्रवर्धक भी है भरपूर.

यह सुपाच्य ठंडक पहुँचाता
मंगल काज नें खाया जाता
जब उपवास करे नर-नारी
सेवन करते हैं फलाहारी.

सब्जी या फिर हल्वा बनाओ
इसके फूल का भजिया खाओ.
छिलका भी इसका लाभदायक
दूर करे ये रोग संक्रामक.

जब उन्तीस सितम्बर आये
कई देश पंपकिन डे मनाये.
कद्दू की महिमा यूँ सुनाई
बात समझ बच्चों के आई.

एक साथ सब बोले दद्दू !
इतना गुणकारी है कद्दू
आज से हम इसको खायेंगे
चलिये हल्वा बनवायेंगे.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
 

प्याज :

प्याज (कांदा ) दांत दर्द के लिए एक उत्तम घरेलू उपचार है। जो व्यक्ति रोजाना कच्चा प्याज खाते हैं उन्हें दांत दर्द की शिकायत होने की संभावना कम रहती है क्योंकि प्याज में कुछ ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो मुंह के जर्म्स, जीवाणु एवं बैकटीरिया को नष्ट कर देते हैं। अगर आपके दांत में दर्द है तो प्याज के टुकड़े को दांत के पास रखें अथवा प्याज चबाएं। ऐसा करने के कुछ हीं देर बाद आपको आराम महसूस होने लगेगा।