डाक्टर्स डे पर पूर्व प्रकाशित लेख एक बार फिर :
http://krantiswar.blogspot.in/2011/02/blog-post_28.html
चिकित्सा समाज सेवा है -व्यवसाय नहीं
जब
मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद से
आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ
था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण
रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब
प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क
दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर
बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी
जानने वालों को निशुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न
करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को
लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स
में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विशवास नहीं है.अतः होम्योपैथी और
आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.
एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है
और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा
ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी
कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा
वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत
हैं-
उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता
है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह
जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी
अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से
प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.
बवासीर-बवासीर रोग सूखा हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक
पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा
के लिए समाप्त होगा.
सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक
घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का
बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू
दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें
,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़
कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख
लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.
डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह
कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा
निर्मित औषधियां -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के
साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.
थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.
श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)
आज रोग और प्रदूषण वृद्धि क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि
नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब
सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये
हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका
उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के
-स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती
हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त
धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.
नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार
को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले
बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन
प्रनिओं का शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.
क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि
मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज
टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से
चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को
मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाटा
था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों
द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी
बढ़ते जा रहे हैं.
क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप
में चला रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों
में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना
किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते
हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.
विश्व देव के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं
आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट
,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.यह भूख
जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत
भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल कर खाने से लाभ होता है.
गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.
प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.
कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.
आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.
पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.
बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.
मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.
मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.
आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.
कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.
रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.
गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र
,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के
रूप में लाभ होता है.
आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.