Monday, 19 January 2015

एलोवेरा*ग्वारपाठा*घृतकुमारी ( Aloe vera)-----आयुर्वेदिक ज्ञान



aloe vera juice
एलोवेरा*ग्वारपाठा*घृतकुमारी ( Aloe vera):
एक लोकप्रिय वनस्पति, औषधि और घर, बगीचे की शान एलोवेरा, ग्वार पाठा, घृतकुमारी और घीकुवांर कई नामों से जाना जाता है। अमृत जैसे गुणों वाली मानव कल्याण कारी इस औषधिय पोधे में सैकड़ो बीमारियों का उपचार करने की अद्भुत क्षमता है। यह एक साइलेंट हीलर, चमत्कारीक औषधि है। एलो वेरा जैसे गुण किसी अन्य जड़ी-बूटी में एक साथ मिलना मुश्किल है। एलोवेरा घर में एक तरह का फमेली डॉक्टर (वैध) है।
भारत वर्ष में एलोवेरा की लगभग 225 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इस का इतिहास हजारों साल पुराना है। एलोवेरा का जूस बहुत पौष्टिक होता है। इस का नियमित सेवन काया कल्प कर देता है। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है खून की कमी को दूर करता है। यह खून में हीमीग्लोबिन की मात्रा बढ़ाकर बुढापे को रोकने और शरीर का वजन नियंत्रित करता है। 25 -30 मी.ली. एलोवेरा का रस सुबह खाली पेट लेने से दिन-भर शरीर में शक्ति व चुस्ती-स्फूर्ति बनी रहती है। शरीर में लगभग 90 % बिमारियाँ लगातार ख़राब पाचन से आती है। और एलोवेरा में मौजूद सापोनिन और लिग्निन आँतों में जमे मैल को साफ़ करता है और इनको पौष्टिकता प्रदान करता है। एलोवेरा से करीब दो ढाई सौ बिमारियाँ ठीक हो जाती है एलोवेरा जैल 3 और 4 महिनों के नियमित सेवन से असाध्य कहे जाने वाली बिमारियाँ, गठिया, अस्थमा, डायेबिटीज, गैस की परेशानी, ह्रदयघात, ब्लड प्रशर, मोटापा, कब्ज, पेट की गैस, थायराइड, उर्जा का क्षय, शरीर में शक्ति की वृद्धि करने वाला मानसिक तनाव, बुखार, यकृत, प्लीहा की वृद्धि को कम करने वाला, त्वचा, खांसी, दमा, मासिक धर्म के दोष, अंडवृद्धि ,सूजन स्त्रियों की प्रसव सम्बन्धी समस्याए, कोलेस्ट्रोल, फोड़े फुंसियाँ, गुर्दे के रोग कमर दर्द, और बालों के रोग, तथा हाजमा को बढ़ाने वाला, पेट के कीड़ों को खत्म करने वाला, वीर्य की मात्रा को बढ़ाने वाला, खून को साफ करने वाला, सौन्दर्य निखारने वाला तथा आंखों के लिए गुणकारी, आमाशय को बल देने वाला, यादास्त बढ़ाने वाला, मूत्र और मासिक धर्म को नियमित करने वाला, बवासीर तथा हडि्डयों के जोड़ों के रोगों को ठीक करने वाला, आग से जले को ठीक करने वाला और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी में लाभदायक होता है। यह जहर को भी नष्ट करता है।
कब्ज ,दस्त (अतिसार) उलटी तथा पेट और आंतो के रोगों से बचाव करता है। आंतो की बिना किसी दोष के सफाई करता है, और पोषण देता है। एलोवेरा में मोजूद तत्व शरीर में प्रोटीन को ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाते है। हाजमे की खराबी से पैदा हुआ उच्च अम्लपित को नियंत्रित करके विषैलेपन को दूर करता है, हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करता है। बदन दर्द मासपेशियो की जकड़न और गठिया रोगों में राम बाण है। एलोवेरा जूस की हर रोज नियमित 25 -30 मी.ली. की खुराक पीने से शरीर के प्रतिरोधक तन्त्र की (ईम्यूल सिस्टम) क्षमता को मजबूत करता है। एलोवेरा शरीर की मरमत और पोषण सम्बन्धी जरुरतॊं को पूरा करने वाला एक कुदरती, प्रभावशाली फ़ूड सप्लीमेंट, औषधि और टोनिक है। यह आलस और थकान को दूर करके भरपूर तन्दुरुस्ती लाता है, उर्जा का स्तर बढ़ाता है, वजन को नियंत्रित करता है। त्वचा को पोषक तत्व प्रदान करता है यह घावॊं, खरोंचो, जले, खाज खुजली को और धूप की जलन को शांत करने मे भी मदद करता है। दांत मूंह और मसूढों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है।
एलोवेरा मे अनेक प्रकार के घटक खनिज लवण विटामिन फ़ोलिक एसिड तथा नियासिन पाए जाते है। जिसका सर्जन और संग्रह शरीर द्वारा स्वयं नही किया जा सकता लेकिन शरीर को चुस्त दरुस्त और स्वस्थ रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है एलोवेरा मे विटामिन ए. बी1, बी 6, बी 12, सी पाये जाते है। और एलोवेरा के रस या जैल में, अनेक कुदरती तत्व है जो जोडों और मांसपेशियों को गति मान बनाए रखने मे भी मदद कर सकता है। एलोवेरा में प्रभावी एंटी-ओक्सिडैनट, एंटी-एजिड, एंटी-सप्टिक, एंटी-बैक्टेरियल, एंटी-कोलस्ट्रोल, एंटी-इन्फ्लेमेट्री, एंटि-बाइटिक और एंटी-शुगर प्रापर्टीज (गुण) है। एलोवेरा में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला सेपोनिन का गुण है की जो शरीर के रोगाणु को नष्ट करके अंदरूनी मरमत और सफाई करता है।
एलोवेरा के औषधिये गुण:
एलोवेरा का जूस जले हुए स्थान पर 2-3 बार लगाने से फफोले नहीं उठते, निशान नहीं रहते तथा जलन नहीं होती है जले हुए घाव भी जल्दी भर जाते हैं।
एक चम्मच एलोवेरा जूस में आधा चम्मच शहद मिलाकर जले हुए भाग पर लगाने से लाभ मिलता है।
25 मी. ली. अलोवेरा का रस दिन में 2 बार पीने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
गेहूं के आटे में एलोवेरा का रस मिलाकर रोटी बना लें, और इन रोटियों को देशी घी में डाल दें तथा इन्हें सुबह सवेरे 5 - 7 दिनों तक लगतार सेवन करने से हर तरह का सिर दर्द ठीक हो जाता है।
एलोवेरा के गूदे पर सेंधा नमक डालें इसे कुत्ते के काटे हुए स्थान पर दिन में 4 बार लगाये इस प्रयोग से लाभ मिलता है।
लाल पीले रंग के फूल वाले एलोवेरा के गूदे को स्प्रिट में मिला कर रख दे जब गल जाए इसे सर पर लेप करे तो गंजे सिर पर बाल उग आत़े हैं और बाल काले होने लगते हैं।
एक चुटकी भूनकर पीसा हुआ हींग और कुछ एलोवेरा की जड़ को कुचल कर उबालकर छान लें और इसे पीने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
20 ग्राम एलोवेरा के ताजे रस, 10 ग्राम शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर दिन में 2 बार सुबह और शाम पीने से पेट के हर प्रकार के रोग ठीक हो जाते है।
एलोवेरा का रस और गाय का घी छ, छ ग्राम, और 1 ,1 ग्राम सेंधा नमक व हरीतकी का चूर्ण इन सब को एक साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें या एलोवेरा के गूदे को गर्म करके पिने से पेट में गैस की शिकायत दूर होती है।
एलोवेरा के गूदे का रस पेट पर लेप करने से आंतों में जमा कठोर मल ढीला होकर निकल जाएगा, कब्ज की समस्या दूर होगी और पेट के अन्दर की गांठे भी पिघल जाएगी तथा पेट दर्द भी ठीक हो जाएगा।
एक चम्मच एलोव्व्रा के रस में 2 चुटकी सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है।
कमर का दर्द 5 ग्राम एलोवेरा का रस 25 -25 ग्राम नागौरी असगंध व सोंठ में 2 लौंग मिलकर इन सबको पीस लें। सुबह 5 ग्राम चटनी का सेवन करें।
या शहद और सोंठ का चूर्ण एलोवेरा के 15 ग्राम जूस में मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन करने से दर्द ठीक हो जाता है।
या 10 ग्राम एलोवेरा के जूस में 1 ग्राम शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से ठण्ड से हुआ कमर दर्द ठीक होता है।
अथवा एलोवेरा का जूस मिला कर गेंहू के आटे को गूंथ कर रोटी बना ले इसमें गुड और घी मिला दें और लड्डू बना लें। इन लड्डुओं को खाने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
100 ग्राम एलोवेरा के पत्तों और 10 ग्राम सेंधा नमक के चूर्ण को एक मिट्टी के बर्तन में डालकर, जब तक पकाए कि ये सब जलकर राख बन जाएं इस राख का1 ग्राम चूर्ण में 5 - 10 मुनक्का के साथ खाने से श्वास रोग में अधिक लाभ मिलता है।
या एलोवेरा का 1/2 किलो जूस लेकर किसी साफ कपड़े से छान लें इसे कलईदार बर्तन में डालकर धीमी आंच पर पकाएं, जब यह अध पका हो जाए तब इसमें 15 ग्राम लाहौरी नमक का बारीक चूर्ण मिला दें तथा चम्मच से अच्छी तरह से घोट दें। जब सब पानी जलकर चूर्ण शेष रह जाये तो इसे ठंडा करें और इसका चूर्ण बना कर सीसे के बर्तन में भर ले। 1/4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से पुरानी से पुरानी खांसी, काली खांसी और दमा ठीक हो जाता है।
रोजाना सुबह-शाम 15 ग्राम एलोवेरा के जूस का सेवन करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।
बराबर मात्रा में एलोवेरा का जूस और गेहूं का आटा लेकर घी और चीनी मिलाकर हलुआ बना लें लगभग एक सप्ताह तक खाने से नपुंसकता दूर होती है।
10 ग्राम एलोवेराका जूस, 4 तुलसी के पत्ते और थोड़ी-सी सनाय के पत्ते मिलाकर पिस लें और खाना खाने के बाद इसका सेवन करें कब्ज की शिकायत खत्म हो जाती है।
छोटे बच्चों की नाभि पर साबुन के साथ एलोवेरा के गूदे का लेप करने से दस्त साफ होते हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
हरड़ के साथ 15 ग्राम एलोवेरा के रस का सेवन करने से या 25 ग्राम एलोवेरा में एक चुटकी काला नमक मिलाकर सुबह और शाम खाली पेट खाने से कब्ज दूर रहती है।और पाचन क्रिया भी दुरुश्त हो जाती है।
सुबह-शाम 3 ग्राम एलोवेरा के रस में सेंधा व समुंद्री नमक मिलाकर सेवन करने से यकृत की बीमारी ठीक होती है या आधा चम्मच एलोवेरा के रस में 1 -1 चुटकी सेंधा नमक और हल्दी का चूर्ण तीनों को मिलाकर पानी के साथ सेवन करने से यकृत स्वस्थ और बढ़ा हुआ जिगर भी ठीक हो जाता है।
एलोवेरा का रस गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर बांधे इससे या तो वह बैठ जाएगी या फिर पककर फूट जाएगी। एलोवेरा के गूदे में हल्दी मिलाकर घाव पर लगाए घाव भी जल्दी ही ठीक हो जाएगा।
25-30 मिलीलीटर ग्वारपाठे के जूस में एक चुटकी भुनी हींग के साथ सुबह शाम सेवन करने से स्त्रियों के रोगों में आराम मिलता है ।
पीलिया के रोग में एलोवेरा का 15-20 मिलीलीटर रस दिन में 2 से 3 बार पीने से आंखों का पीलापन और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। एलोवेरा का रस रोगी की नाक में डालने से नाक से निकलने वाले पीले रंग का स्राव होना बंद हो जाता है।
5 ग्राम एलोवेरा गूदे को मट्ठा के साथ सेवन करने से तिल्ली का बढ़ना, जिगर का बढ़ना, पेट में गैस बनने के कारण दर्द, तथा अन्य पाचन संस्थान के रोगों के कारण होने वाला पीलिया भी ठीक हो जाता हैं।
गूदा या रस निकले एलोवेरा के छिलके व समान मात्रा में नमक मिला कर मटकी में भर कर ढक्कन से मुहं को बंध करके कंडो की आग पर रख कर अन्दर के द्रव्य को जलकर भस्म होने दे ,इसे ठंडा करके शीशे के बर्तन में डालकर रख ले इस भस्म को 1 से 2 ग्राम दिन में दो बार रोगी को दे इससे पीलिया का रोग ठीक हो जाता है।
भोजन में एलोवेरा की सब्जी खाने से हाथ-पैर नहीं फटते हैं। 5 ग्राम एलोवेरा का गूदा लगभग १/४ ग्राम से १/२ ग्राम गूडूची के रस के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है।
मात्रा :-
एलोवेरा का रस या जैल 25 से 30 मिलीमीटर की मात्रा में लिया जा सकता है।
सावधानीयां:-
एलोवेरा तोड़ने के तीन घंटे बाद सेही इस का रस या जैल औषधिये व पौष्टिकता के गुण खोने लगता है, इसलिए इसका इस्तेमाल निर्धारित समय में ही करना चाहिए।
इसका डब्बा बंध जैल या जूस खोलने के बाद इसे फ्रिज में ही रखें ठीक से हिला कर इसका इस्तेमाल महीने डेढ़ महीने तक करना ही बेहतर रहता है।
एलोवेरा का इस्तेमाल सुबह खाली पेट ले इसके पहले और बाद एक घंटे तक कुछ न लें।
हानिकारक प्रभाव:-
स्किन एलर्जी से पीड़ित रोगी त्वचा पर जैल का इस्तेमाल न करें ।
निर्धारित मात्रा 25 से 30 मी. ग्राम से अधिक मात्रा में सेवन न करें।
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निषेद्ध : 
गर्भावस्था में एलोवेरा का इस्तेमाल बिल्कुल न करें।
प्रसूता स्त्रियों को स्तनपान के दौरान एलोवेरा का सेवन न करे।
माहवारी के दिनों में एलोवेरा का इस्तेमाल न करे।
दस्तो में एलोवेरा का इस्तेमाल न करे।

Sunday, 18 January 2015

बथुआ है गुणों की खान---आयुर्वेदिक चिकित्सा

इन दिनों दिनों बाज़ार में खूब बथुए का साग आ रहा है।
- बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से
जाना जाता है बथुआ एक
ऐसी सब्जी या साग है,
जो गुणों की खान होने पर
भी बिना किसी विशेष परिश्रम और
देखभाल के खेतों में स्वत: ही उग जाता है। एक
डेढ़ फुट का यह हराभरा पौधा कितने ही गुणों से
भरपूर है। बथुआ के परांठे और रायता तो लोग चटकारे लगाकर खाते
हैं बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला,
शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह
तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन
करता है |

- विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित,
बवासीर तथा कृमियों पर अधिक
प्रभावकारी है |
- इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग
के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए
इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है .
- यह कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है .
-किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द
या सूजन हो ; तो इसके
बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग
भी लिया जा सकता है .
- सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके
बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .
- गर्भवती महिलाओं को बथुआ
नहीं खाना चाहिए .
- एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में
पानी मिलाकर पिलायें .
- अगर लीवर की समस्या है ,
या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर
10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें .
- पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध
करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के
पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त
की परेशानी हो , तब
भी इसका रस पीना लाभदायक
रहता है .
- सामान्य दुर्बलता बुखार के बाद की अरुचि और
कमजोरी में इसका साग
खाना हितकारी है।
- धातु दुर्बलता में भी बथुए का साग
खाना लाभकारी है।
- बथुआ को साग के तौर पर खाना पसंद न
हो तो इसका रायता बनाकर खाएं।
- बथुआ लीवर के विकारों को मिटा कर पाचन
शक्ति बढ़ाकर रक्त बढ़ाता है। शरीर
की शिथिलता मिटाता है। लिवर के आसपास
की जगह सख्त हो, उसके कारण
पीलिया हो गया हो तो छह ग्राम बथुआ के
बीज सवेरे शाम पानी से देने से लाभ
होता है।
- सिर में अगर जुएं हों तो बथुआ को उबालकर इसके
पानी से सिर धोएं। जुएं मर जाएंगे और सिर
भी साफ हो जाएगा।
- बथुआ को उबाल कर इसके रस में नींबू, नमक और
जीरा मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और
दर्द नहीं होता।
- यह पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, भोजन में रुचि बढ़ाने वाला पेट
की कब्ज मिटाने वाला और स्वर (गले) को मधुर बनाने
वाला है।
- पत्तों के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से पेशाब
खुल कर आता है।
- इसका साग खाने से बवासीर में लाभ होता है।
- कच्चे बथुआ के एक कप रस में थोड़ा सा नमक मिलाकर
प्रतिदिन लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

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Saturday, 17 January 2015

प्रोस्टेट कैंसर के लिए घरेलू उपचार---आयुर्वेदिक चिकित्सा



घरेलू उपाय जीवनशैली का हिस्‍सा होते हैं। इनकी खास बात यह होती है कि आप इनका सेवन सामान्‍य चिकित्‍सा के साथ भी ले सकते हैं। प्रोस्‍टेट कैंसर में भी घरेलू उपाय चिकित्‍सीय सहायता से प्राप्‍त होने वाले लाभ को तो बढ़ाते ही हैं साथ ही आपके ठीक होने की गति में भी इजाफा करते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए घरेलू नुस्खे बहुत कारगर हो सकते हैं। प्रोस्टेट एक ग्रंथि होती है जो पेशाब की नली के ऊपरी भाग के चारों ओर स्थित होती है। यह ग्रंथि अखरोट के आकार जैसी होती है। आमतौर पर प्रोस्टेट कैंसर 50 साल की उम्र के बाद सिर्फ पुरुषों में होने वाली एक बीमारी है। प्रोस्टेट कैंसर की शुरूआती अवस्था में अगर पता चल जाए तो उपचार हो सकता है।
इसका इलाज रेक्टल एग्जाममिनेशन से होता है। इसके लिए सीरम पीएसए की खून में जांच व यूरीनरी सिस्टम का अल्ट्रासाउंड भी करवाया जाता है। इसके अलावा घरेलू नुस्खों को अपनाकर कुछ हद तक इस प्रकार के कैंसर का इलाज हो सकता है। आइए हम आपको प्रोस्टेट कैंसर के लिए घरेलू उपचार बताते हैं।
प्रोस्टेट कैंसर के लिए घरेलू नुस्खे:
एलोवेरा
अलोवेरा को प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त मरीजों को नियमित रूप से एलोवेरा का सेवन करना चाहिए। एलोवेरा में कैंसररोधी तत्व पाये जाते हैं जो कि कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकते हैं।
ब्रोकोली
ब्रोकोली के अंकुरों में मौजूद फायटोकेमिकल कैंसर की कोशाणुओं से लड़ने में सहायता करते हैं। यह एंटी ऑक्सीडेंट का भी काम करते हैं और खून को शुद्ध भी करते हैं। प्रोस्टेंट कैंसर होने पर ब्रोकोली का सेवन करना चाहिए।
ग्रीन टी
प्रोस्टेट कैंसर से ग्रस्त आदमी को नियमित रूप से एक से दो कप ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए। ग्रीन टी में कैंसर रोधी तत्वे पाये जाते हैं।

लहसुन
लहसुन में औषधीय गुण होते हैं। लहसुन में बहुत ही शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं जैसे - एलीसिन, सेलेनियम, विटामिन सी, विटामिन बी। इसके कारण कैंसर से बचाव होता है और कैंसर होने पर लहसुन का प्रयोग करने से कैंसर बढ़ता नही है।
अंगूर
प्रोस्टे़ट कैंसर के उपचार के लिए अंगूर भी कारगर माना जाता है। अंगूर में पोरंथोसाइनिडीस की भरपूर मात्रा होती है, जिससे एस्ट्रोजेन के निर्माण में कमी होती है। इसके कारण प्रोस्टेट कैंसर के इलाज में मदद मिलती है।
सोयाबीन
सोयाबीन से भी प्रोस्टेट कैंसर के उपचार में सहायता मिलती है। प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को रोज के खानपान के साथ सोयाबीन के अंकुर या पकाए हुए सोयाबीन का सेवन करना चाहिए। सोयाबीन में कुछ ऐसे एंजाइम पाये जाते हैं जो हर प्रकार के कैंसर से बचाव करते हैं।
अमरूद और तरबूज
प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए अमरूद और तरबूज भी बहुत कारगर हैं। अमरूद और तरबूज में लाइकोपीन तत्व ज्यादा मात्रा में पाया जाता है जो कि कैंसररोधी है। इसलिए प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को इन फलों का ज्यादा मात्रा में सेवन करना चाहिए।
व्हीटग्रास
प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए व्हीटग्रास बहुत लाभकारी होता है। व्हीसट ग्रास कैंसर युक्त कोशिकाओं को कम करता है। इसके अलावा व्हीटग्रास खाने से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर से विषैले तत्व भी हटते हैं।
इसके अलावा प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को ताले फलों और सबिजयों का भी सेवन भरपूर मात्रा में करना चाहिए। प्रोस्टेट कैंसर के ये घरेलू उपाय चिकित्सीय सहायता के साथ साथ चल सकते हैं। कैंसर के लक्षण नजर आते ही आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। हां इन उपायों को आप अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना सकते हैं

https://www.facebook.com/oldveda/posts/857040097681339 

Friday, 16 January 2015

ओरो- फीकल रूट का उपचार और लंच के बाद का विचार --- डॉ टी एस दराल

पेट की बहुत सी बीमारियां खाने पीने से होती हैं ! इसे हम ओरो- फीकल रूट कहते हैं ! यानि जब हम हाथ से खाना खाते हैं तो हाथ साफ ना होने पर संक्रमण हमारे पेट मे जाकर अपना प्रभाव छोड़ता है और कई तरह के रोग लग जाते हैं !
इसलिये हर बार खाने से पहले हाथ धोना आवश्यक होता है ! लेकिन सबसे ज्यादा आवश्यक होता है , टॉयलेट जाने के बाद !
आइये आपको हाथ धोने का सही तरीका बताते हैं ( बिल्कुल मुफ्त ) :
१) साबुन लगाकर पहले हथेलियों को रगड़िये !
२) अब हाथों के बैक साइड पर रगड़िये !
३) अब उंगलियों को आपस मे फंसाकर वेब्स को रगड़िये !
४ ) अब बारी बारी से एक हाथ के अंगूठे को दूसरे हाथ से गोल गोल रगड़िये !
५) अब बारी बारी से एक हाथ के नाखूनों को दूसरे हाथ की हथेली पर रगड़िये !
६) अंत मे दोनो हाथों को आपस मे घुमाकर रगड़िये !

हैंड वॉशिंग के ये ६ स्टेप्स डॉक्टरों द्वारा सुझाये जाते हैं ! यदि इनका पालन करेंगे तो पेट के रोगों से बचे रहने की उम्मीद ज्यादा रहेगी !
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लंच के बाद का विचार :
जिस तरह खाना खाने से पहले हाथ धोना आवश्यक होता है , उसी तरह खाने के बाद कुल्ला करना आवश्यक होता है ! लेकिन कुल्ला करना अनपढ़ और गांव के लोगों का काम माना जाता है ! खाने के बाद खाली एक घूँट पानी पीकर काम चलाने का ही नतीज़ा होता है कि पढ़े लिखे शहरी लोगों के दांतों मे भी डेंटल केरिज हो जाती है ! इसीलिये अक्सर शहरी लोगों के मूँह से भी दुर्गन्ध आती है !
ज़रा सोचिये , फैशन आवश्यक है या स्वास्थ्य !
https://www.facebook.com/tarif.daral/posts/10204084149247417 

Wednesday, 14 January 2015

मकर -संक्रांति का वैज्ञानिक-चिकित्सकीय महत्त्व --- विजय राजबली माथुर

 
http://www.janadesh.in/InnerPage.aspx?Story_ID=6683

प्रति-वर्ष १४ जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व श्रद्धा एवं उल्लास क़े साथ मनाया जाता रहा है.परंतु अब पृथ्वी व सूर्य की गतियों में आए अंतर के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सांयकाल या उसके बाद होने के कारण प्रातः कालीन पर्व अगले दिन अर्थात १५ जनवरी को मनाए जाने चाहिए.अतः स्नान-दान,हवन आदि प्रक्रियाएं १५ ता.की प्रातः ही होनी चाहिए.परन्तु लकीर क़े फ़कीर लोग १४ जन.की प्रातः ही यह सब पुण्य कार्य सम्पन्न कर लेंगे.हाँ यदि १४ ता. की रात्रि में कहीं कोई कार्य होने हों तो करना ठीक है.जो लोग १४ ता. की प्रातः मकर संक्रांति मनायें वे ध्यान रखें कि,वे ऐसा धनु क़े सूर्य रहते ही कर रहे हैं,क्या यह वैज्ञानिक दृष्टि से उचित रहेगा?.मकर संक्रांति क़े  दिन से सूर्य उत्तरायण होना प्रारम्भ होता है.सूर्य लगभग ३० दिन एक राशि में रहता है.१६ जूलाई को कर्क राशि में आकर सिंह ,कन्या,तुला,वृश्चिक और धनु राशि में छै माह रहता है.इस अवस्था को दक्षिणायन कहते हैं.इस काल में सूर्य कुछ निस्तेज तथा चंद्रमा प्रभावशाली रहता है और औषधियों एवं अन्न की उत्पत्ति में सहायक रहता है.१४ जनवरी को मकर राशि में आकर कुम्भ,मीन ,मेष ,वृष और मिथुन में छै माह रहता है.यह अवस्था उत्तरायण कहलाती है.इस काल में सूर्य की रश्मियाँ तेज हो जाती हैं और रबी की फसल को पकाने का कार्य करती हैं.उत्तरायण -काल में सूर्य क़े तेज से जलाशयों ,नदियों और समुन्द्रों का जल वाष्प रूप में अंतरिक्ष में चला जाता है और दक्षिणायन काल में यही वाष्प-कण पुनः धरती पर वर्षा क़े रूप में बरसते हैं.यह क्रम अनवरत चलता रहता है.दक्षिण भारत में पोंगल तथा पंजाब में लोहिणी,उ.प्र.,बिहारऔर बंगाल में खिचडी क़े रूप में मकर संक्रांति का पर्व धूम-धाम से सम्पन्न होता है.इस अवसर पर छिलकों वाली उर्द की दाल तथा चावल की खिचडी पका कर खाने तथा दान देने का विशेष महत्त्व है.इस दिन तिल और गुड क़े बने पदार्थ भी दान किये जाते हैं.क्योंकि,अब सूर्य की रश्मियाँ तीव्र होने लगतीं हैं;अतः शरीर में पाचक अग्नि उदीप्त करती हैं तथा उर्द की दाल क़े रूप में प्रोटीन व चावल क़े रूप में कार्बोहाईड्रेट जैसे पोषक तत्वों को शीघ्र घुलनशील कर देती हैं,इसी लिये इस पर्व पर खिचडी  खाने व दान करने का महत्त्व निर्धारित किया गया है.गुड रक्तशोधन का कार्य करता है तथा तिल शरीर में वसा की आपूर्ति करता है,इस कारण गुड व तिल क़े बने पदार्थों को भी खाने तथा दान देने का महत्त्व रखा गया है.

जैसा कि अक्सर हमारे ऋषियों ने वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित पर्वों को धार्मिकता का जामा पहना दिया है,मकर-संक्रांति को भी धर्म-ग्रंथों में विशेष महत्त्व दिया गया है.शिव रहस्य ग्रन्थ,ब्रह्म पुराण,पद्म पुराण आदि में मकर संक्रांति पर तिल दान करने पर जोर दिया गया है.हमारा देश कृषि-प्रधान रहा है और फसलों क़े पकने पर क्वार में दीपावली तथा चैत्र में होली पर्व मनाये जाते हैं.मकर संक्रांति क़े अवसर पर गेहूं ,गन्ना,सरसों आदि की फसलों को लहलहाता देख कर तिल,चावल,गुड,मूंगफली आदि का उपयोग व दान करने का विधान रखा गया है,जिनके सेवन से प्रोटीन,वसा,ऊर्जा तथा उष्णता प्राप्त होती है."सर्वे भवन्तु सुखिनः"क़े अनुगामी हम इन्हीं वस्तुओं का दान करके पुण्य प्राप्त करते हैं.

दान देने का विधान बनाने का मूल उद्देश्य यह था कि,जो साधन-विहीन हैं और आवश्यक पदार्थों का उपभोग करने में अक्षम हैं उन्हें भी स्वास्थ्यवर्धक  पदार्थ मिल सकें.यह एक दिन का दान नहीं बल्कि इस ऋतु-भर का दान था.लेकिन आज लोग साधन-सम्पन्न कर्मकांडियों को एक दिन दान देकर अपनी पीठ थपथपाने लगते हैं.जबकि,वास्तविक गरीब लोग वंचित और उपेक्षित  ही रह जाते हैं.इसलिए आज का दान ढोंग-पाखण्ड से अधिक कुछ नहीं है जो कि, ऋषियों द्वारा स्थापित विधान क़े उद्देश्यों को पूरा ही नहीं करता.क्या फिर से प्राचीन अवधारणा को स्थापित नहीं किया जा सकता ?
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मूल रूप से यह लेख १३ जनवरी २०११ को पहली बार ब्लाग में प्रकाशित हुआ था।


(इस ब्लॉग पर प्रस्तुत आलेख लोगों की सहमति -असहमति पर निर्भर नहीं हैं -यहाँ ढोंग -पाखण्ड का प्रबल विरोध और उनका यथा शीघ्र उन्मूलन करने की अपेक्षा की जाती है)