Wednesday 20 August 2014

"भोजनान्ते विषं वारी":खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर है ---वाग्भट्ट






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खाना खाने के बाद पेट मे खाना पचेगा या खाना सड़ेगा
ये जानना बहुत जरुरी है ...


हमने रोटी खाई,हमने दाल खाई,हमने सब्जी खाई, हमने दही खाया
लस्सी पी ,
दूध,दही छाझ लस्सी फल आदि|,
ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया
ये सब कुछ हमको उर्जा देता है
और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है |
पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय"
उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"|
उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है
" epigastrium "|

ये एक थेली की तरह होता है
और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे
महत्वपूर्ण है
क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है।

ये बहुत छोटा सा स्थान हैं
इसमें अधिक से अधिक 350GMS खाना आ सकता है |
हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है|

आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे"जठराग्न"।
|ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है ।

ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी |
यह ऑटोमेटिक है,जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई|
ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना पचता है |

अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया|

और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है |

अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वो बुझ गयी|

आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी|

अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,

एक क्रिया है जिसको हम कहते हे "Digestion" और दूसरी है "fermentation"
फर्मेंटेशन का मतलब है सडना
और डायजेशन का मतलब हे पचना|

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा,खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा|

जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस,मज्जा,रक्त,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा|

ये तभी होगा जब खाना पचेगा|

यह सब हमें चाहिए|

ये तो हुई खाना पचने की बात

अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?

खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid )

|कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है,
मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है

तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ
यूरिक एसिड कम करो|

और एक दूसरा उदाहरण खाना

जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हे
LDL (Low Density lipoprotive)
माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol )|

जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP )

हाई-बीपी है आप पूछोगे कारण बताओ?

तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |

आप ज्यादा पूछोगे की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?

तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है |

इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष हे
वो है VLDL
(Very Low Density lipoprotive)|

ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।
अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता|

खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides|

जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ हे तो समज लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है |

तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे समझ लीजिए की ये
विष हे और ऐसे विष 103 है |

ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है |

मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है ,

कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप ! की आपका खाना पच नहीं रहा है |

कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे की खाना पच नहीं रहा है |

क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता|

खाना पचने पर जो बनता है वो है मांस,मज्जा,रक्त ,वीर्य,हड्डिया,मल,मूत्र,अस्थि

और

खाना नहीं पचने पर बनता है यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल
,LDL-VLDL|

और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है !

पेट मे बनने वाला यही जहर जब
ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है
*जिसे आप heart attack कहते हैं !

तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है
की जो हम खा रहे हे वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए
और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए|

क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं हे और खाना पकता भी नहीं है

महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है |

आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे।

खाना अच्छे से पचे इसके लिए वाग्भट्ट जी ने सूत्र दिया !!

"भोजनान्ते विषं वारी"
---------------
(मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर पीने के बराबर
है )

* इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी कभी मत पिये!*

अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना ???

तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !

अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं ??

बात ऐसी है !

जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि द्वारा सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं है !

पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट
का समय लगता है !

उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है !

(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत
धीमी हो जाती है )

पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की परिक्रिया शुरू होती है !

तब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती हैं ।

तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये !!

जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले ,रिक्शा खीचने वाले पत्थर तोड़ने वाले)

उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने
लगता है उनको घंटे बाद
पानी पीना चाहिए !

अब आप कहेंगे खाना खाने के पहले कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं ???

तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं !

अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation ????

बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं
तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !

और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है !

तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है !

तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये !
पानी ना पीये खाना खाने के बाद।
इसका जरूर पालन  करे !

Tuesday 19 August 2014

Papaya For Uric Acid/Gout Problem

https://www.facebook.com/india.cd/photos/a.417889443884.217393.7319903884/10152070085533885/?type=1&theater

http://www.india.cd/ask/

Papaya For Uric Acid/Gout Problem


First boil at least 3 liters of water, wash properly a green papaya of medium size, slice and remove the seeds, then cut into small cubes then place into the water and bring to boil, then add tea leaves (oolong) or green tea at least 5 bags similar to the tea making process. This is very effective for treatment of GOUT/URIC ACID. Frequently drinking this formula will heal the pain you've been suffering. Important point, skin of the papaya should be included !

Dosage: Drink frequently. About 3-4 glasses a day. After symptoms are cured, drink onc
e every week to maintain alkaline state of the body.
 
 

Tuesday 5 August 2014

स्वास्थ्य समस्याओं में लहसुन








लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है ।  औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खो के बारे में जानें जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।


1-- 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।


2-- लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।


3-- लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।


4-- खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।


5-- लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।


6-- लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।


7-- लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।


8-- लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।


9-- नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।


10-- लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।


11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।


12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।

13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।

लहसुन की बदबू-

अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।

Monday 28 July 2014

दालचीनी ,सोया,बादाम,बटर मिल्क तथा बगैर इंसुलिन की चिकत्सा

http://www.onlymyhealth.com/health-slideshow/health-benefits-of-dalchini-in-hindi-1385801960.html

बहुत गुणकारी है दालचीनी
दालचीनी का पौधा जितना छोटा है इसके गुण उतने ही बड़े हैं। दालचीनी की सूखी पत्तियां तथा छाल को मसालों के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसकी छाल थोड़ी मोटी, चिकनी तथा हल्के भूरे रंग की होती है। दालचीनी मोटापा कम करने के साथ-साथ कई बीमारियों को भी दूर करता है। यह रक्तशोधक भी है। शहद तथा दालचीनी को मिलाकर दिल की बीमारियों, कोलेस्ट्रॉल, त्वचा रोग, सर्दी जुकाम, पेट की बीमारियों के लिए फायदेमंद है।


सर्दी जुकाम के लिए
सर्दी-जुकाम होने पर दालचीनी का प्रयोग करना चाहिए। एक चम्मच शहद में थोड़ा सा दालचीनी पाउडर मिलाकर सुबह-शाम लेने से खांसी-जुकाम में आराम मिलता है। हल्के गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर तथा एक चुटकी पिसी काली मिर्च शहद में मिलाकर पीने से जुकाम तथा गले की खराश दूर होती है। इसके पाउडर को पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बनाकर माथे पर लगाने से ठंडी हवा से होने वाले सिर दर्द में आराम मिलता है।
- See more at: http://www.onlymyhealth.com/health-slideshow/health-benefits-of-dalchini-in-hindi-1385801960-2.html#sthash.C71UmzG4.dpuf



सर्दी जुकाम के लिए
सर्दी-जुकाम होने पर दालचीनी का प्रयोग करना चाहिए। एक चम्मच शहद में थोड़ा सा दालचीनी पाउडर मिलाकर सुबह-शाम लेने से खांसी-जुकाम में आराम मिलता है। हल्के गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर तथा एक चुटकी पिसी काली मिर्च शहद में मिलाकर पीने से जुकाम तथा गले की खराश दूर होती है। इसके पाउडर को पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बनाकर माथे पर लगाने से ठंडी हवा से होने वाले सिर दर्द में आराम मिलता है।
- See more at: http://www.onlymyhealth.com/health-slideshow/health-benefits-of-dalchini-in-hindi-1385801960-2.html#sthash.C71UmzG4.dpuf


सर्दी जुकाम के लिए
सर्दी-जुकाम होने पर दालचीनी का प्रयोग करना चाहिए। एक चम्मच शहद में थोड़ा सा दालचीनी पाउडर मिलाकर सुबह-शाम लेने से खांसी-जुकाम में आराम मिलता है। हल्के गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर तथा एक चुटकी पिसी काली मिर्च शहद में मिलाकर पीने से जुकाम तथा गले की खराश दूर होती है। इसके पाउडर को पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बनाकर माथे पर लगाने से ठंडी हवा से होने वाले सिर दर्द में आराम मिलता है।
- See more at: http://www.onlymyhealth.com/health-slideshow/health-benefits-of-dalchini-in-hindi-1385801960-2.html#sthash.C71UmzG4.dpuf
 

Monday 21 July 2014

गुड़,दालचीनी के प्रयोग और आधा सीसी चिकित्सा

आधासीसी (माइग्रेन) -
आधासीसी या माइग्रेन दर्द अति कष्टकारी होता है | इसमें सिर के आधे भाग में दर्द होता है | माइग्रेन में रोगी की आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाता है सुबह उठते ही चक्कर आने लगते हैं | जी मिचलाना,उल्टी होना,अरुचि पैदा होना आदि आधासीसी रोग के लक्षण हैं | मानसिक व शारीरिक थकावट,चिंता करना,अधिक गुस्सा करना,आँखों का अधिक थक जाना,अत्यधिक भावुक होना तथा भोजन का ठीक तरह से न पचना आदि माइग्रेन रोग के कुछ कारण हैं| आज हम आपको माइग्रेन के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के विषय में बताएंगे -
१- एक चौथाई चम्मच तुलसी के पत्तों के चूर्ण को सुबह - शाम शहद के साथ चाटने से आधासीसी के दर्द में आराम मिलता है |
२- दस ग्राम सौंठ के चूर्ण को लगभग ६० ग्राम गुड़ में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें | इन्हे सुबह शाम खाने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
३- सिर के जिस हिस्से में दर्द हो उस नथुने में ४-५ बूँद सरसों का तेल डालने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जाता है |
४- सुबह खाली पेट आधा सेब प्रतिदिन सेवन करने से माइग्रेन में बहुत लाभ होता है |
५- सौंफ,धनिया और मिश्री सबको ५-५ ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें | इसे दिन में तीन बार लगभग ३-३ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
६- नियमित रूप से सातों प्राणायाम का अभ्यास करें , लाभ होगा |
माइग्रेन से पीड़ित रोगी को स्टार्च,प्रोटीन और अधिक चिकनाई युक्त भोजन नहीं करना चाहिए | फल,सब्जियां और अंकुरित दालों का सेवन लाभकारी होता है |




Sunday 20 July 2014

नींबू,पीपल एवं आयुर्वेदिक आहार




उलटी होने पर:
पहला प्रयोगः नींबू का शर्बत या सोडे का पानी लेने से अथवा तुलसी के पत्तों के 2 से 10 मिलिलीटर रस को उतने ही मिश्री अथवा शहद के साथ पीने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः प्याज का 2 से 10 मिलिलीटर रस पिलाने से उलटी दस्त में लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः धनियापत्ती अथवा अनार का रस थोड़ी-थोड़ी देर के अंतर में पीने से उलटी बंद होने लगती है। 


पीपल
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है |
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है|
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है |
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है |
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए |
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है|
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा |
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है |
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे |
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है |
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है |
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है |
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |


Saturday 19 July 2014

मूंग व लीची से उपचार






मूंग -
मूंग से हम सब बहुत अच्छी तरह परिचित हैं | मूंग की दाल द्विदल धान्य है और समस्त दलहनों में अपने विशेष गुणों के कारण अच्छी मानी जाती है | मूंग काले,हरे,पीले,सफ़ेद और लाल अनेक तरह की होती है | रोगियों के लिए मूंग बहुत श्रेष्ठ बताई जाती है | मूंग की दाल से पापड़,बड़ियां व पौष्टिक लड्डू भी बनाये जाते हैं | मूंग की दाल खाने में शीतल व पचने में हलकी होती है | 
विभिन्न रोगों में मूंग का उपयोग -
१- चावल और मूंग की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होता है | खिचड़ी में घी डालकर खाने से कब्ज दूर होकर दस्त साफ़ आता है |
२- मूंग को सेंककर पीस लें | इसमें पानी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर लेप की तरह शरीर पर मालिश करें | इससे ज्यादा पसीना आना बंद हो जाता है |
३- मूंग की छिलके वाली दाल को दो घंटे के लिए पानी में भिगो दें| इसके बाद इसे पीसकर गाढ़ा लेप दाद और खुजली युक्त स्थान पर लगाएं,लाभ होगा |
४- टाइफाइड के रोगी को मूंग की दाल बनाकर देने से लाभ होता है,लेकिन दाल के साथ घी और मसालों का प्रयोग बिलकुल न करें |
५- मूंग को छिलके सहित खाना चाहिए | बुखार होने पर मूंग की दाल में सूखे आंवले को डालकर पकाएं | इसे रोज़ दिन में दो बार खाने से बुखार ठीक होता है और दस्त भी साफ़ होता है |

Photo: मूंग -
मूंग से हम सब बहुत अच्छी तरह परिचित हैं | मूंग की दाल द्विदल धान्य है और समस्त दलहनों में अपने विशेष गुणों के कारण अच्छी मानी जाती है | मूंग काले,हरे,पीले,सफ़ेद और लाल अनेक तरह की होती है | रोगियों के लिए मूंग बहुत श्रेष्ठ बताई जाती है | मूंग की दाल से पापड़,बड़ियां व पौष्टिक लड्डू भी बनाये जाते हैं | मूंग की दाल खाने में शीतल व पचने में हलकी होती है | 
विभिन्न रोगों में मूंग का उपयोग -
१- चावल और मूंग की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होता है | खिचड़ी में घी डालकर खाने से कब्ज दूर होकर दस्त साफ़ आता है |
२- मूंग को सेंककर पीस लें | इसमें पानी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर लेप की तरह शरीर पर मालिश करें | इससे ज्यादा पसीना आना बंद हो जाता है |
३- मूंग की छिलके वाली दाल को दो घंटे के लिए पानी में भिगो दें| इसके बाद इसे पीसकर गाढ़ा लेप दाद और खुजली युक्त स्थान पर लगाएं,लाभ होगा |
४- टाइफाइड के रोगी को मूंग की दाल बनाकर देने से लाभ होता है,लेकिन दाल के साथ घी और मसालों का प्रयोग बिलकुल न करें |
५- मूंग को छिलके सहित खाना चाहिए | बुखार होने पर मूंग की दाल में सूखे आंवले को डालकर पकाएं | इसे रोज़ दिन में दो बार खाने से बुखार ठीक होता है और दस्त भी साफ़ होता है |


लीची- 
लीची समस्त भारत में मुख्यतयः उत्तरी भारत,बिहार,आसाम,पश्चिम बंगाल,उत्तराखंड,आंध्र प्रदेश एवं नीलगिरि क्षेत्रों में इसको घरों व बगीचों में लगाया जाता है | इसके फल गोल,कच्ची अवस्था में हरे रंग के,पकने पर मखमली लाल रंग के होते हैं | फल के अंदर का गूदा सफ़ेद रंग का व मीठा होता है | फल के अंदर एक भूरे रंग का बड़ा सा बीज होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है | 
इसके फल में शर्करा, मैलिक अम्ल,साइट्रिक अम्ल,टार्टरिक अम्ल,विटामिन A ,B ,C तथा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं | गर्मियों में जब शरीर में पानी व खनिज लवणों की कमी हो जाती है तब लीची का रस बहुत फायदेमंद रहता है |लीची के औषधीय उपयोग -
१- लीची के फल का सेवन करने से आँतों की बिमारी तथा पेट दर्द में लाभ होता है |
२- लीची का सेवन करने से कमजोरी दूर होती है तथा शरीर पुष्ट होता है |
३- लीची खाने से पित्त की अधिकता कम होती है तथा कब्ज भी ख़त्म होती है |
५- गर्मी के मौसम में आधा कप लीची का रस प्रतिदिन पीने से हृदय को बल मिलता है |
६- बवासीर के रोगियों के लिए लीची का सेवन बहुत लाभकारी है |
७- लीची जल्दी पच जाती है| यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाने वाली तथा लीवर के रोगों में लाभकारी है |

Photo: लीची- 
लीची समस्त भारत में मुख्यतयः उत्तरी भारत,बिहार,आसाम,पश्चिम बंगाल,उत्तराखंड,आंध्र प्रदेश एवं नीलगिरि क्षेत्रों में इसको घरों व बगीचों में लगाया जाता है | इसके फल गोल,कच्ची अवस्था में हरे रंग के,पकने पर मखमली लाल रंग के होते हैं | फल के अंदर का गूदा सफ़ेद रंग का व मीठा होता है | फल के अंदर एक भूरे रंग का बड़ा सा बीज होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है | 
इसके फल में शर्करा, मैलिक अम्ल,साइट्रिक अम्ल,टार्टरिक अम्ल,विटामिन A ,B ,C तथा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं | गर्मियों में जब शरीर में पानी व खनिज लवणों की कमी हो जाती है तब लीची का रस बहुत फायदेमंद रहता है |लीची के औषधीय उपयोग -
१- लीची के फल का सेवन करने से आँतों की बिमारी तथा पेट दर्द में लाभ होता है |
२- लीची का सेवन करने से कमजोरी दूर होती है तथा शरीर पुष्ट होता है |
३- लीची खाने से पित्त की अधिकता कम होती है तथा कब्ज भी ख़त्म होती है |
५- गर्मी के मौसम में आधा कप लीची का रस प्रतिदिन पीने से हृदय को बल मिलता है |
६- बवासीर के रोगियों के लिए लीची का सेवन बहुत लाभकारी है |
७- लीची जल्दी पच जाती है| यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाने वाली तथा लीवर के रोगों में लाभकारी है |
 

Friday 18 July 2014

चिरौंजी,लहसुन,मिर्च,मूँगफली,दही से चिकत्सा

चिरौंजी [Calumpang -nut -Tree ]
चिरौंजी के पेड़ भारत के पश्चिम प्रायद्वीप एवं उत्तराखण्ड में 450 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है , महाराष्ट्र , नागपुर और मालाबार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं | इसके वृक्ष छाल अत्यन्त खुरदुरी होती है इसलिए संस्कृत में खरस्कन्द तथा इसकी छाल अधिक मोटी होती है ,इसलिए इसे बहुलवल्कल कहते हैं | इसके फल ८-१२ मिलीमीटर के गोलाकार कृष्ण वर्ण के ,मांसल , काले बीजयुक्त होते हैं | फलों को फोड़ कर जो गुठली निकाली जाती है उसे चिरौंजी कहते हैं | यह अत्यंत पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है | चिरौंजी एक मेवा होती है और इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाईयों में डाला है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी-मार्च तथा मार्च-मई तक होता है | इसके बीज एवं तेल में एमिनो अम्ल , लीनोलीक ,मिरिस्टीक , ओलिक , पॉमिटिक , स्टीएरिक अम्ल एवं विटामिन पाया जाता है | 
विभिन्न रोगों चिरौंजी से उपचार --------
१- पांच-दस ग्राम चिरौंजी पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है | 
२-चिरौंजी को गुलाब जल में पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहांसे ठीक होते हैं | 
३-दूध में चिरौंजी की खीर बनाकर खाने से शरीर का पोषण होता है | 
४-पांच -दस ग्राम चिरौंजी की गिरी को खाने से तथा चिरौंजी को दूध में पीसकर मालिश करने से शीतपित्त में लाभ होता है | 
५-चिरौंजी की ५-१० ग्राम गिरी को भूनकर ,पीसकर २०० मिलीलीटर दूध मिलाकर उबाल लें | उबालने के बाद ५०० मिलीग्राम इलायची चूर्ण व थोड़ी सी चीनी मिलाकर पिलाने से खांसी तथा जुकाम में लाभ होता है ।




Thursday 17 July 2014

पथरी(Stone) का इलाज

पथरी(Stone) का इलाज:-
आयुर्वेदिक इलाज !
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पखानभेद नाम का एक पौधा होता है ! उसे पथरचट भी कुछ लोग बोलते है ! उसके पत्तों को पानी मे उबाल कर काढ़ा बना ले ! मात्र 7 से 15 दिन मे पूरी पथरी खत्म !! और कई बार तो इससे भी जल्दी खत्म हो जाती !!!
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होमियोपेथी इलाज !
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अब होमियोपेथी मे एक दवा है ! वो आपको किसी भी होमियोपेथी के दुकान पर मिलेगी उसका नाम हे BERBERIS VULGARIS ये दवा के आगे लिखना है MOTHER TINCHER ! ये उसकी पोटेंसी हे|
वो दुकान वाला समझ जायेगा| यह दवा होमियोपेथी की दुकान से ले आइये|
(ये BERBERIS VULGARIS दवा भी पथरचट नाम के पोधे से बनी है बस फर्क इतना है ये dilutions form मे हैं पथरचट पोधे का botanical name BERBERIS VULGARIS ही है )
अब इस दवा की 10-15 बूंदों को एक चौथाई (1/ 4) कप गुन गुने पानी मे मिलाकर दिन मे चार बार (सुबह,दोपहर,शाम और रात) लेना है | चार बार अधिक से अधिक और कमसे कम तीन बार|इसको लगातार एक से डेढ़ महीने तक लेना है कभी कभी दो महीने भी लग जाते है |
इससे जीतने भी stone है ,कही भी हो गालब्लेडर (gall bladder )मे हो या फिर किडनी मे हो,या युनिद्रा के आसपास हो,या फिर मुत्रपिंड मे हो| वो सभी स्टोन को पिगलाकर ये निकाल देता हे|
99% केस मे डेढ़ से दो महीने मे ही सब टूट कर निकाल देता हे कभी कभी हो सकता हे तीन महीने भी हो सकता हे लेना पड़े|तो आप दो महिने बाद सोनोग्राफी करवा लीजिए आपको पता चल जायेगा कितना टूट गया है कितना रह गया है | अगर रह गया हहै तो थोड़े दिन और ले लीजिए|यह दवा का साइड इफेक्ट नहीं है |
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ये तो हुआ जब stone टूट के निकल गया अब दोबारा भविष्य मे यह ना बने उसके लिए क्या??? क्योंकि कई लोगो को बार बार पथरी होती है |एक बार stone टूट के निकल गया अब कभी दोबारा नहीं आना चाहिए इसके लिए क्या ???
इसके लिए एक और होमियोपेथी मे दवा है CHINA 1000|
प्रवाही स्वरुप की इस दवा के एक ही दिन सुबह-दोपहर-शाम मे दो-दो बूंद सीधे जीभ पर डाल दीजिए|सिर्फ एक ही दिन मे तीन बार ले लीजिए फिर भविष्य मे कभी भी स्टोन नहीं बनेगा|

Tuesday 15 July 2014

कैंसर रोधी फल/बूटियाँ और छोटी ईलाईची से चिकित्सा







बड़े-बड़े गुणों से है भरपूर छोटी इलायची :

 

 इलायची का सेवन आमतौर पर मुख को शुद्ध करने के लिए अथवा मसाले के रूप में किया जाता है। हरी या छोटी इलायची मिठाइयों में खुशबू को तो बढ़ाती ही है साथ ही उसके स्वाद को भी लजीज बनाती है।अत्यधिक सुगन्ध और स्वाद की वजह से इसका इस्तेमाल न केवल अल्ग-अल्ग व्यंजनों में बल्कि  यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।

1.गर्मियों में धूप में निकलने से पहले छोटी इलायची को मुंह में डाले,यह हमें लू  से बचाती है।
  
2. छोटी इलायची खाने से गले का दर्द और गले में पैदा हो रही खराश से भी राहत मिलती है और अगर गले में सूजन हो तो छोटी इलायची को पीसकर,मूली के रस में मिलाकर इसका सेवन करने से सूजन कम होने लगती है।
3. छोटी इलायची को पीसकर शहद के साथ थोड़ा-थोड़ा खाने से यूरीन इंफैक्शन ठीक हो जाता है। 
4. छोटी इलायची पेट में बनी एसिडिटी को भी खत्म करने में सहायता करती है।
5. छोटी इलायची,तुलसी के पत्ते,अदरक का पेस्ट बनाकर खाने से सर्दी-खांसी और छींक से छुटकारा मिलता है।
6. छोटी इलायची,सौंफ,मिश्री तीनों को पीसकर मिला लें। रोज सुबह इस मिश्रण का  सेवन, दूध के साथ करने से आंखो की दृष्टि बढ़ती है ।
7.छोटी इलायची में एंटीआक्सीडेंट होता है,जिससे हमारे चेहरे में जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती और चेहरे में चमक बनी रहती है।
8.छोटी या हरी इलायची मिठाइयों की खुशबू बढ़ाती है। मेहमानों की आवभगत में भी इलायची का इस्तेमाल होता है।
9.छोटी इलायची को पीसकर माथे पर लगाने से सिरदर्द भी ठीक होता है।
10. इलायची व्यंजनों की खुशबू तो बढ़ाती ही है और साथ ही व्यंजनों को लजीज बनाने के लिए एक मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है।

 








http://www.punjabkesari.in/news/article-264066

Tuesday 1 July 2014

चिकित्सा समाज सेवा है : व्यवसाय नहीं---विजय राजबली माथुर

डाक्टर्स डे पर पूर्व प्रकाशित लेख एक बार फिर :
http://krantiswar.blogspot.in/2011/02/blog-post_28.html

Monday, February 28, 2011

चिकित्सा समाज सेवा है -व्यवसाय नहीं

 ब मैंने 'आयुर्वेदिक दयानंद मेडिकल कालेज,'मोहन नगर ,अर्थला,गाजियाबाद  से आयुर्वेद रत्न किया था तो प्रमाण-पत्र के साथ यह सन्देश भी प्राप्त हुआ था-"चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं".मैंने इस सन्देश को आज भी पूर्ण रूप से सिरोधार्य किया हुआ है और लोगों से इसी हेतु मूर्ख का ख़िताब प्राप्त किया हुआ है.वैसे हमारे नानाजी और बाबाजी भी लोगों को निशुल्क दवायें दिया करते थे.नानाजी ने तो अपने दफ्तर से अवैतनिक छुट्टी लेकर  बनारस जा कर होम्योपैथी की बाकायदा डिग्री हासिल की थी.हमारे बाबूजी भी जानने वालों को निशुल्क दवायें दे दिया करते थे.मैंने मेडिकल प्रेक्टिस न करके केवल परिचितों को परामर्श देने तक अपने को सीमित रखा है.इसी डिग्री को लेकर तमाम लोग एलोपैथी की प्रेक्टिस करके मालामाल हैं.एलोपैथी हमारे कोर्स में थी ,परन्तु इस पर मुझे भी विशवास नहीं है.अतः होम्योपैथी और आयुर्वेदिक तथा बायोकेमिक दवाओं का ही सुझाव देता हूँ.

एलोपैथी चिकित्सक अपने को वरिष्ठ मानते है और इसका बेहद अहंकार पाले रहते हैं.यदि सरकारी सेवा पा गये तो खुद को खुदा ही समझते हैं.जनता भी डा. को दूसरा भगवान् ही कहती है.आचार्य विश्वदेव जी कहा करते थे -'परहेज और परिश्रम' सिर्फ दो ही वैद्द्य है जो इन्हें मानेगा वह कभी रोगी नहीं होगा.उनके प्रवचनों से कुछ चुनी हुयी बातें यहाँ प्रस्तुत हैं-

उषापान-उषापान करके पेट के रोगों को दूर कर निरोग रहा जा जा सकता है.इसके लिए ताम्बे के पात्र में एक लीटर पानी को उबालें और ९९० मि.ली.रह जाने पर चार कपड़ों की तह बना कर छान कर ताम्बे के पात्र में रख लें इसी अनुपात में पानी उबालें.प्रातः काल में सूर्योदय से पहले एक ग्लास से प्रारम्भ कर चार ग्लास तक पियें.यही उषा पान है.

बवासीर-बवासीर रोग सूखा  हो या खूनी दस से सौ तक फिर सौ से दस तक पकी निम्बोली का छिलका उतार कर प्रातः काल निगलवा कर कल्प करायें,रोग सदा के लिए समाप्त होगा.

सांप का विष-सांप द्वारा काटने पर उस स्थान को कास कर बाँध दें,एक घंटे के भीतर नीला थोथा तवे पर भून कर चने के बराबर मात्रा में मुनक्का का बीज निकल कर उसमें रख कर निगलवा दें तो विष समाप्त हो जायेगा.
बिच्छू दंश-बिच्छू के काटने पर (पहले से यह दवा तैयार कर रखें) तुरंत लगायें ,तुरंत आराम होगा.दवा तैयार करने के लिये बिच्छुओं को चिमटी से जीवित पकड़ कर रेक्तीफायीड स्प्रिट में डाल दें.गलने पर फ़िल्टर से छान कर शीशी में रख लें.बिच्छू के काटने पर फुरहरी से काटे स्थान पर लगायें.

डायबिटीज-मधुमेह की बीमारी में नीम,जामुन,बेलपत्र की ग्यारह-ग्यारह कोपलें दिन में तीन बार सेवन करें अथवा कृष्ण गोपाल फार्मेसी ,अजमेर द्वारा निर्मित औषधियां  -(१)शिलाज्लादिव्री की दो-दो गोली प्रातः-सायं दूध के साथ तथा (२) दोपहर में गुद्च्छादिबूरीके अर्क के साथ सेवन करें.

थायराड-इस रोग में दही,खट्टे ,ठन्डे,फ्रिज के पदार्थों से परहेज करें.यकृतअदि लौह पानी के साथ तथा मंडूर भस्म शहद के सेवन करें.लाभ होगा.

श्वेत दाग-श्वेत्रादी रस एक-एक गोली सुबह -शाम बापुच्यादी चूर्ण पानी से सेवन करें.
(मेरी राय में इसके अतिरिक्त बायोकेमिक की साईलीशिया 6 X का 4 T D S  सेवन शीघ्र लाभ दिलाने में सहायक होगा)

आज रोग और प्रदूषण वृद्धि  क्यों?-आचार्य विश्वदेव जी का मत था कि नदियों में सिक्के डालने की प्रथा आज फिजूल और हानिप्रद है क्योंकि अब सिक्के एल्युमिनियम तथा स्टील के बनते हैं और ये धातुएं स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद हैं.जब नदियों में सिक्के डालने की प्रथा का चलन हुआ था तो उसका उद्देश्य नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना था.उस समय सिक्के -स्वर्ण,चांदी और ताम्बे के बनते थे और ये धातुएं जल का शुद्धीकरण करती हैं.अब जब सिक्के इनके नहीं बनते हैं तो लकीर का फ़कीर बन कर विषाक्त धातुओं के सिक्के नदी में डाल कर प्रदूषण वृद्धी नहीं करनी चाहिए.

 नदी जल के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण आचार्य विश्वदेव जी मछली -शिकार को भी मानते थे.उनका दृष्टिकोण था कि कछुआ और मछली जल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया और काई को खा जाते थे जिससे जल शुद्ध रहता था.परन्तु आज मानव इन प्रनिओं का शिकार कर लेता है जिस कारण नदियों का जल प्रदूषित रहने लगा है.

क्षय रोग की त्रासदी-आचार्य विश्वदेव जी का दृष्टिकोण था कि मुर्गा-मुर्गियों का इंसानी भोजन के लिये शिकार करने का ही परिणाम आज टी.बी.त्रासदी के रूप में सामने है.पहले मुर्गा-मुर्गी घूरे,कूड़े-करकट से चुन-चुन कर कीड़ों का सफाया करते रहते थे.टी.बी. के थूक,कफ़ आदि को मुर्गा-मुर्गी साफ़ कर डालता था तो इन रोगों का संक्रमण नहीं हो पाटा था.किन्तु आज इस प्राणी का स्वतंत्र घूमना संभव नहीं है -फैशनेबुल लोगों द्वारा इसका तुरंत शिकार कर लिया जाता है.इसी लिये आज टी. बी. के रोगी बढ़ते जा रहे हैं.

क्या सरकारी और क्या निजी चिकित्सक आज सभी चिकित्सा को एक व्यवसाय के रूप में चला  रहे हैं.आचार्य विश्वदेव जी समाज सेवा के रूप में अपने प्रवचनों में रोगों और उनके निदान पर प्रकाश डाल कर जन-सामान्य के कल्याण की कामना किया करते थे और काफी लोग उनके बताये नुस्खों से लाभ उठा कर धन की बचत करते हुए स्वास्थ्य लाभ करते थे जो आज उनके न रहने से अब असंभव सा हो गया है.

विश्व देव  के एक प्रशंसक के नाते मैं "टंकारा समाचार",७ अगस्त १९९८ में छपे मेथी के औषधीय गुणों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.अभी ताजी मेथी पत्तियां बाजार में उपलब्ध हैं आप उनका सेवन कर लाभ उठा सकते हैं.मेथी में प्रोटीन ,वसा,कार्बोहाईड्रेट ,कैल्शियम,फास्फोरस तथा लोहा प्रचुर मात्रा  में पाया जाता है.यह भूख जाग्रत करने वाली है.इसके लगातार सेवन से पित्त,वात,कफ और बुखार की शिकायत भी दूर होती है.
पित्त दोष में-मेथी की उबली हुयी पत्तियों को मक्खन में तल  कर खाने से लाभ होता है.

गठिया में-गुड,आटा और मेथी से बने लड्डुओं से सर्दी में लाभ होता है.


प्रसव के बाद-मेथी बीजों को भून कर बनाये लड्डुओं के सेवन से स्वास्थ्य-सुधार तथा स्तन में दूध की मात्र बढ़ती है.


कब्ज में-रात को सोते समय एक छोटा चम्मच मेथी के दाने निगल कर पानी पीने से लाभ होता है.यह
एसीडिटी ,अपच,कब्ज,गैस,दस्त,पेट-दर्द,पाचन-तंत्र की गड़बड़ी में लाभदायक है.

आँतों की सफाई के लिये-दो चम्मच मेथी के दानों को एक कप पानी में उबाल कर छानने के बाद चाय बना कर पीने से लाभ होता है.

पेट के छाले-दूर करने हेतु नियमित रूप से मेथी का काढ़ा पीना चाहिए.

बालों का गिरना-रोकने तथा बालों की लम्बाई बढ़ने के लिये दानों के चूर्ण का पेस्ट लगायें.

मधुमेह में-मेथी पाउडर का सेवन दूध के साथ करना चाहिए.
मुंह के छाले-दूर करने हेतु पत्ते के अर्क से कुल्ला करना चाहिए.

मुंह की दुर्गन्ध -दूर करने हेतु दानों को पानी में उबाल कर कुल्ला करना चाहिए.

आँखों के नीचे का कालापन -दूर करने के लिये दानों को पीस कर पेस्ट की तरह लगायें.

कान बहना-रोकने हेतु दानों को दूध में पीस कर छानने के बाद हल्का गर्म करके कान में डालें.

रक्त की कमी में-दाने एवं पत्तों का सेवन लाभकारी है.

गर्भ-निरोधक-मेथी के चूर्ण तथा काढ़े से स्नायु रोग,बहु-मूत्र ,पथरी,टांसिल्स,रक्त-चाप तथा मानसिक तनाव और सबसे बढ़ कर गर्भ-निरोधक के रूप में लाभ होता है.

आज के व्यवसायी करण के युग में निशुल्क सलाह देने को हिकारत की नजर से देखा जाता है.आप भी पढ़ कर नजर-अंदाज कर सकते हैं.

Friday 27 June 2014

रसोई से इलाज एवं मुलेठी के कुछ औषधीय गुण





!!====मुलेठी (यष्टीमधु )====!! ======================= मुलेठी से हम सब परिचित हैं | भारतवर्ष में इसका उत्पादन कम ही होता है | यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयातित की जाती है| मुलेठी की जड़ एवं सत सर्वत्र बाज़ारों में पंसारियों के यहाँ मिलता है | चरकसंहिता में रसायनार्थ यष्टीमधु का प्रयोग विशेष रूप से वर्णित है | सुश्रुत संहिता में यष्टिमधु फल का प्रयोग विरेचनार्थ मिलता है | मुलेठी रेशेदार,गंधयुक्त तथा बहुत ही उपयोगी होती है | यह ही एक ऐसी वस्तु है जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है | मुलेठी वातपित्तशामक है | यह खाने में ठंडी होती है | इसमें ५० प्रतिशत पानी होता है | इसका मुख्य घटक ग्लीसराइज़ीन है जिसके कारण ये खाने में मीठा होता है | इसके अतिरिक्त इसमें घावों को भरने वाले विभिन्न घटक भी मौजूद हैं | मुलेठी खांसी,जुकाम,उल्टी व पित्त को बंद करती है | यह पेट की जलन व दर्द,पेप्टिक अलसर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में भी बहुत उपयोगी है |
 ------------------------------------------------मुलेठी के कुछ औषधीय गुण  :- --------------------------------------------------------------------- १- मुलेठी चूर्ण और आंवला चूर्ण २-२ ग्राम की मात्रा में मिला लें | इस चूर्ण को दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह- शाम चाटने से खांसी में बहुत लाभ होता है |
 २- मुलेठी-१० ग्राम ,काली मिर्च -१० ग्राम ,लौंग -०५ ग्राम ,हरड़ -०५ ग्राम,मिश्री - २० ग्राम ऊपर दी गयी सारी सामग्री को मिलाकर पीस लें | इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी और जुकाम,गले की खराबी, सिर दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं |
 ३- एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण एक कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है |
 ४- मुलेठी को मुहं में रखकर चूंसने से मुहँ के छाले मिटते हैं तथा स्वर भंग (गला बैठना) में लाभ होता है |
 ५- एक चम्मच मुलेठी चूर्ण में शहद मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट और आँतों की ऐंठन व दर्द का शमन होता है |
 ६- फोड़ों पर मुलेठी का लेप लगाने से वो जल्दी पक कर फूट जाते हैं |

https://www.facebook.com/groups/healthcaretips.here/659785864113928/?notif_t=group_activity 

Friday 6 June 2014

मीठी नीम,काली मिर्च,मसालों आदि से चिकित्सा







कढ़ी पत्ता या मीठी नीम
अक्सर हम भोजन में से कढ़ी पत्ता निकाल कर अलग कर देते है | इससे हमें उसकी खुशबु तो मिलती है पर उसके गुणों का लाभ नहीं मिल पाता |कढ़ी पत्ते को धो कर छाया में सुखा कर उसका पावडर इस्तेमाल करने से बच्चे और बड़े भी भी इसे आसानी से खा लेते है ,इस पावडर को हम छाछ और निम्बू पानी में भी मिला सकते है | इसे हम मसालों में , भेल में भी डाल सकते है | इसकी छाल भी औषधि है | हमें अपने घरों में इसका पौधा लगाना चाहिए |
- कढ़ी पत्ता पाचन के लिए अच्छा होता है ,यह डायरिया , डिसेंट्री,पाइल्स , मन्दाग्नि में लाभकारी होता है | यह मृदु रेचक होता है |
- यह बालों के लिए बहुत उत्तम टॉनिक है , कढ़ी पत्ता बालों को सफ़ेद होने से और झड़ने से रोकता है |
- इसके पत्तों का पेस्ट बालों में लगाने से जुओं से छुटकारा मिलता है |
- कढ़ी पत्ता पेन्क्रीआज़ के बीटा सेल्स को एक्टिवेट कर मधुमेह को नियंत्रित करता है |
- हरे पत्ते होने से आयरन , जिंक ,कॉपर , केल्शियम ,विटामिन ए और बी , अमीनो एसिड ,फोलिक एसिड आदि तो इसमें होता ही है |
- इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होते है जो बुढापे को दूर रखते है और कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने नहीं देते .
- जले और कटे स्थान पर इसके पत्ते पीस कर लगाने से लाभ होता है .
- जहरीले कीड़े काटने पर इसके फलों के रस को निम्बू के रस के साथ मिलाकर लगाने से लाभ होता है |
- यह किडनी के लिए लाभकारी होता है |
- यह आँखों की बीमारियों में लाभकारी होता है इसमें मौजूद एंटी ओक्सीडेंट केटरेक्ट को शुरू होने से रोकते है ,यह नेत्र ज्योति को बढाता है .
- यह कोलेस्ट्रोल कम करता है |
- यह इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करता है |
- वजन कम करने के लिए रोजाना कुछ मीठी नीम की पत्तियाँ चबाये|
प्रतिदिन भोजन में कढ़ी पत्ते को दाल , सब्ज़ी में डालकर या चटनी बनाकर प्रयोग किया जा सकता है , जिस प्रकार दक्षिण भारत में किया जाता है |

Sunday 25 May 2014

आम के फायदे





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आम खाने के लाजवाब फायदे:
1. ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है
आम में प्रचूर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं, जिससे स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। हाई ब्लड प्रेशर के रोगी के लिए आम एक प्राकृति उपचार है, क्योंकि इसमें पोटेशियम (156 मिलीग्राम में 4 प्रतिशत) और मैग्निशियम (9 मिलीग्राम में 2 प्रतिशत) भारी मात्रा में पाए जाते हैं।

2. कैंसर के खतरे को कम करता है और कोलेस्ट्रोल की मात्रा घटाता है
आम में एक घुलनशील आहार संबंधी फाइबर पेक्टिन पाया जाता है। पेक्टिन ब्लड कोलेस्ट्रोल लेवल को कम करने में प्रभावी रूप से कार्य करता है। यह हमें ग्रंथि में होने वाले कैंसर से भी बचाता है।

3. वजन बढ़ाने में मददगार
आम का सेवन करना वजन बढ़ाने का सबसे आसान तरीका है। 150 ग्राम आम में करीब 86 कैलोरी ऊर्जा होती है, जो हमारे शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर ली जाती है। इतना ही नहीं, आम में स्टार्च पाया जाता है, जो सूगर में परिवर्तित होकर अंतत: वजन को बढ़ाता है।

4. पाचन प्रक्रिया में सहायक
आम अपच और एसीडीटी जैसी समस्याओं को भी दूर करता है। आम में पाए जाने वाले एंजाइम्स भोजन को पचाने में मदद करते हैं।

5. एनीमिया का उपचार
जो लोग एनियामा से ग्रसित हैं, उनके लिए आम काफी फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें प्रचूर मात्रा में आइरन पाया जाता है। नियमित और पर्याप्त रूप से आम का सेवन शरीर में खून की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे एनीमिया जैसी बीमारी दूर रहती है।

6. गर्मवती महिला के लिए लाभदायक
गर्मवती महिला को आयरन की विशेष जरूरत होती है। इसलिए उनके लिए आम काफी लाभदायक होता है। यूं तो डॉक्टर आयरन की गोली लेने की सलाह देते हैं, पर अगर आप चाहें तो आयरन से भरपूर आम के जूस का सेवन भी कर सकते हैं।

7. मुंहासे को रखे दूर
आम त्वचा पर होने वाले मंहासे पर भी प्रभावी रूप से असर करता है। यह मुंहासे के बंद पड़े छिद्रों को खोल देता है। एक बार जब यह छिद्र खुल जाते हैं, तो मुंहासों का निर्माण अपने-आप बंद हो जाता है। देखा जाए तो त्वचा के बंद पड़े छिद्रों को खोलना ही मुंहासों से छुटकारा पाने से सबसे अच्छा तरीका है। पर इसके लिए आपको नियमित आम खाने की जरूरत नहीं है। आप आम के गूदे को त्वचा पर लगाएं और 10 मिनट बाद धो लें।

8. समय से पहले बुढ़ापे को रोकता है
आम में बड़ी मात्रा में विटामिन A और विटामिन C पाए जाते हैं, जो कि शरीर के अंदर कोलाजेन प्रोटीन के निर्माण में सहायक होते हैं। कोलाजेन ब्लड वेसल और शरीर के कनेक्टिव टिशू को सुरक्षित रखता है, जिससे त्वचा की उम्र ढलने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

9. मस्तिष्क को बनाए स्वस्थ्य
आम में विटामिन B-6 प्रचूर मात्रा में पाया जाता है, जो कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाता है।

10. शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है
गाजर की तरह आम में भी बीटा-केरोटीन और कार्टेन्वाइड उच्च मात्रा में पाया जाता है। आम में पाए जाने वाले यह तत्व शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बेहतर और मजबूत बनाते हैं।

Saturday 24 May 2014

जौ(Barley),इमली से लू का बचाव :कपूर से दर्द भगाएँ





जौ(Barley) -----
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प्राचीन काल से जौ का उपयोग होता चला आ रहा है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों का आहार मुख्यतः जौ थे। वेदों ने भी यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकार किया है। गुणवत्ता की दृष्टि से गेहूँ की अपेक्षा जौ हलका धान्य है। उत्तर प्रदेश में गर्मी की ऋतु में भूख-प्यास शांत करने के लिए सत्तू का उपयोग अधिक होता है। जौ को भूनकर, पीसकर, उसके आटे में थोड़ा सेंधा नमक और पानी मिलाकर सत्तू बनाया जाता है। कई लोग नमक की जगह गुड़ भी डालते हैं। सत्तू में घी और चीनी मिलाकर भी खाया जाता है।
जौ का सत्तू ठंडा, अग्निप्रदीपक, हलका, कब्ज दूर करने वाला, कफ एवं पित्त को हरने वाला, रूक्षता और मल को दूर करने वाला है। गर्मी से तपे हुए एवं कसरत से थके हुए लोगों के लिए सत्तू पीना हितकर है। मधुमेह के रोगी को जौ का आटा अधिक अनुकूल रहता है। इसके सेवन से शरीर में शक्कर की मात्रा बढ़ती नहीं है। जिसकी चरबी बढ़ गयी हो वह अगर गेहूँ और चावल छोड़कर जौ की रोटी एवं बथुए की या मेथी की भाजी तथा साथ में छाछ का सेवन करे तो धीरे-धीरे चरबी की मात्रा कम हो जाती है। जौ मूत्रल (मूत्र लाने वाला पदार्थ) हैं अतः इन्हें खाने से मूत्र खुलकर आता है।
जौ को कूटकर, ऊपर के मोटे छिलके निकालकर उसको चार गुने पानी में उबालकर तीन चार उफान आने के बाद उतार लो। एक घंटे तक ढककर रख दो। फिर पानी छानकर अलग करो। इसको बार्ली वाटर कहते हैं। बार्ली वाटर पीने से प्यास, उलटी, अतिसार, मूत्रकृच्छ, पेशाब का न आना या रुक-रुककर आना, मूत्रदाह, वृक्कशूल, मूत्राशयशूल आदि में लाभ होता है।

औषधि-प्रयोगः
धातुपुष्टिः एक सेर जौ का आटा, एक सेर ताजा घी और एक सेर मिश्री को कूटकर कलईयुक्त बर्तन में गर्म करके, उसमें 10-12 ग्राम काली मिर्च एवं 25 ग्राम इलायची के दानों का चूर्ण मिलाकर पूर्णिमा की रात्रि में छत पर ओस में रख दो। उसमें से हररोज सुबह 60-60 ग्राम लेकर खाने से धातुपुष्टि होती है।
गर्भपातः 
जौ के आटे को एवं मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर खाने से बार-बार होने वाला गर्भपात रुकता है।