Thursday 7 February 2019

काली मिर्च से बढ़ायें आंखों की रोशनी ------ अतुल मोदी

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 हम अक्सर अपने व्यंजनों में नमक का उपयोग करते हैं जबकि काली मिर्च डालना भूल जाते हैं। लेकिन काली मिर्च के फायदे कहीं बेहतर हैं। काली मिर्च नाटकीय रूप से आपके व्यंजनों के स्वाद को बढ़ाती है और उनके स्‍वास्‍थ्‍य लाभ भी हैं। काली मिर्च का वैज्ञानिक नाम Piper nigrum है। सूखे फल को पेपरकॉर्न के रूप में जाना जाता है। पेपरकॉर्न और उनसे तैयार उत्‍पाद को काली मिर्च के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। 

कितनी मात्रा में करें काली मिर्च का सेवन :
काली मिर्च का सेवन सीमित मात्रा में किया जाना चाहिए। अधिक मात्रा में इसका सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह एक मसाला है। जब हल्दी, मेथी, दालचीनी और जीरा जैसी अन्य सामग्री के साथ उपयोग किया जाता है, तो यह मसालों का एक बड़ा संयोजन बनाता है। एक चम्मच (6 ग्राम) काली मिर्च में 15.9 कैलोरी, 4.1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और 0 ग्राम वसा और कोलेस्ट्रॉल होता है। सोडियम सामग्री लगभग 3 मिलीग्राम है, कार्बोहाइड्रेट 4 ग्राम हैं, और आहार फाइबर 2 ग्राम है। काली मिर्च में डाइट्री वैल्‍यू का लगभग 2% विटामिन सी,  3% कैल्शियम की मात्रा होती है जिसे आप आहार में सेवन कर सकते हैं। आयरन की मात्रा 10% और प्रोटीन 0.7 ग्राम होता है। 

काली मिर्च के फायदे :
1: आंखों के लिए फायदेमंद है कालीमिर्च
काली मिर्च आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए जाना जाता है। एक चुटकी काली मिर्च को शुद्ध देसी घी में मिलाकर रोजाना सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। आंखों से जुड़ी बीमारियां नहीं होती। इसके अलावा चश्‍मे से छुटकारा मिलता है। 

2: पाचन शक्ति को मजबूत करता है
काली मिर्च पाचन रस और एंजाइम को उत्तेजित करती है, जिससे पाचन को बढ़ावा मिलता है। यह सच है जब आप काली मिर्च का सेवन करते हैं, खासकर भोजन के साथ, जो आपके शरीर की क्षमता को बढ़ा सकता है और भोजन को पचा सकता है। शोध से पता चला है कि काली मिर्च का अग्नाशयी एंजाइमों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे पाचन प्रक्रिया पूरी होती है।  

3: कैंसर से बचाए 
अध्ययनों से पता चला है कि काली मिर्च में मौजूद पिपेरिन कैंसर के कई रूपों के खिलाफ सुरक्षात्मक गतिविधि करता है। पिपेरिन आपकी आंतों में सेलेनियम, कर्क्यूमिन, बीटा-कैरोटीन, और बी विटामिन जैसे अन्य पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाता है, जो कि पेट के स्वास्थ्य और कैंसर की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण हैं।
4: सर्दी-जुकाम से दे राहत 
प्राचीन चीनी चिकित्सा में भी इसके लिए काली मिर्च का उपयोग किया जाता था। काली मिर्च परिसंचरण और श्लेष्म प्रवाह को उत्तेजित करने के लिए जाना जाता है। जब आप इसे शहद के साथ मिलाते हैं, तो प्रभाव में वृद्धि होती है, चूंकि शहद एक प्राकृतिक कफ सप्रेसेंट के रूप में काम करता है। बस एक कप में 2 चम्मच शहद के साथ एक चम्मच पिसी हुई काली मिर्च मिलाएं। उबलते पानी के साथ कप भरें, इसे कवर करें और इसे लगभग 15 मिनट तक छोड़ दें। अब इसे छानकर पी जाएं। 
5: संक्रमण से बचाती है कालीमिर्च 

काली मिर्च के जीवाणुरोधी गुण बहुत अच्‍छा रोल प्‍ले करते हैं। एक दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन के अनुसार, काली मिर्च में पिपेरिन लार्विसाइडल प्रभाव और संक्रमण और बीमारी को फैलने से रोकने में मदद करता है।
https://www.onlymyhealth.com/5-amazing-benefits-of-black-pepper-or-kali-mirch-for-eyes-cold-cough-and-digestion-in-hindi-1549448033

Tuesday 5 February 2019

गुर्दा , सिर दर्द , डिप्रेशन , कब्ज आदि का उपचार

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Saturday 2 February 2019

पीपल के पत्‍ते से अस्‍थमा और श्‍वसन संबंधी बीमारियों का उपचार ------ अतुल मोदी

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 By Atul Modi , ओन्‍ली माई हैल्‍थ सम्पादकीय विभाग / Feb 01, 2019
पीपल का पेड़ टैनिक एसिड, एसपारटिक एसिड, फ्लेवोनोइड्स, स्टेरॉयड, विटामिन, मेथिओनिन, ग्लाइसिन आदि से समृद्ध है। ये सभी सामग्रियां पीपल के पेड़ को एक असाधारण औषधीय पेड़ बनाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, पीपल के पेड़ के हर हिस्से - पत्ती, छाल, अंकुर, बीज, साथ ही फल के कई औषधीय लाभ हैं। इसका उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए प्राचीन काल से किया जा रहा है।

पीपल के पत्‍तों के लाभ क्‍या हैं?:
बुखार से राहत  :
पीपल के कुछ कोमल पत्ते लें, उन्हें दूध के साथ उबालें, चीनी डालें और फिर इस मिश्रण को दिन में लगभग दो बार पियें। इससे बुखार और सर्दी से राहत मिलती है।

अस्‍थमा का  खात्‍मा :
पीपल के कुछ पत्तों, या इसके पाउडर को लें और इसे दूध के साथ उबालें। फिर, चीनी मिलाएं और इसे एक दिन में लगभग दो बार पीएं। यह अस्थमा से पीड़ित लोगों की मदद करता है। 

नेत्र रोगों में  लाभकारी :
पीपल नेत्र दर्द के इलाज में कुशलता से मदद करता है। इसकी पत्तियों से निकला पीपल का दूध आंखों के दर्द से राहत दिलाने में मददगार है।

दांतों को मजबूती प्रदान करे :
पीपल के पेड़ की ताज़ी टहनियाँ या नई जड़ें लें, ब्रश के रूप में इसका इस्तेमाल न केवल दाग-धब्बों को दूर करने में मदद करता है बल्कि दांतों के आसपास मौजूद बैक्टीरिया को भी मारने में मदद करता है।

नकसीर में  फायदेमंद :
कुछ कोमल पीपल के पत्ते लें, उसमें से एक रस तैयार करें और फिर इसकी कुछ बूंदें नासिका में डालें। इससे नकसीर से राहत मिलती है।

पीलिया में है मददगार :
पीपल के पत्ते लें और कुछ मिश्री मिलाकर रस तैयार करें। इस रस को दिन में 2-3 बार पिएं। यह पीलिया और इसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

कब्‍ज से राहत :  
पीपल के पत्तों को बराबर मात्रा में सौंफ के बीज के पाउडर और गुड़ के साथ लें। सोने से पहले दूध के साथ ऐसा करें। इससे कब्ज से राहत मिलेगी।
ह्रदय रोगों का  नाश :
कुछ पीपल के पत्ते लें, उन्हें पानी के एक जार में भिगोकर रात भर छोड़ दें। पानी को डिस्टिल्ड करें और फिर इसे दिन में दो-तीन बार पिएं। यह दिल की धड़कन और दिल की कमजोरी से राहत प्रदान करने में मदद करता है।
ब्‍लड शुगर को रखे नियंत्रित :

पीपल शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए पाया जाता है। पीपल के फल के पाउडर को हरितकी फल के पाउडर के साथ लिया जाता है, जो त्रिफला के घटकों में से एक है, रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है।
https://www.onlymyhealth.com/peepal-is-an-excellent-remedy-for-asthma-diabetes-and-heart-diseases-in-hindi-1549005426?utm_source=izooto&utm_medium=push_notifications&utm_campaign=&utm_content=&utm_term=

Monday 28 January 2019

ग्लूकोमा क्या है और इसे साइलेंट किलर के रूप में क्यों जाना जाता है? ------ डॉक्‍टर शिबल भारतीय




ग्लूकोमा दुनिया भर में अंधापन के प्रमुख कारणों में से एक है। अकेले भारत में, करीब 12 मिलियन लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, लेकिन अच्छी खबर यह है कि अगर इस रोग का जल्दी पता चल जाए तो समस्या का समाधान किया जा सकता है। फोर्टिस हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट, ऑपथैल्मोलॉजी डॉक्‍टर शिबल भारतीय ने इस वीडियो में बीमारी को दूर करने के उपाय बताए हैं। :



ग्लूकोमा को आम भाषा में काला मोतिया भी कहा जाता है। हमारी आंख एक गुब्बारे की तरह होती है जिसके भीतर एक तरल पदार्थ भरा होता है। आंखों का यह तरल पदार्थ लगातार आंखों  के अंदर बनता रहता है और बाहर निकलता रहता है। आंखों के इस तरल पदार्थ के पैदा होने और बाहर निकलने की इस प्रक्रिया में जब कभी दिक्‍कत आती है तो आंखों में दबाव बढ जाता है। आंखों में कुछ ऑप्टिक नर्व भी होती हैं जिनकी मदद से किसी वस्तु के बारे में संकेत दिमाग को मिलता है। आंखों पर बढा दबाव इन ऑप्टिक नर्व को डैमेज करने लगता है और आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। अगर इसके शुरूआती लक्षणों का पता न चले तो आदमी अंधा हो सकता है।

ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण क्या हैं? :

ओपेन एंगल ग्लूककोमा का कोई लक्षण नहीं होता है, इसमें दर्द नहीं होता और न ही नजर में कोई कमी महसूस होती है। ग्लूकोमा के कुछ लक्षण ये हो सकते हैं : 
*चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव।
** पूरे दिन के काम के बाद शाम को आंख में या सिर में दर्द होना। 
*** बल्ब के चारों तरफ इंद्रधनुषी रंग दिखाई देना। 
**** अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर फोकस करने में परेशानी होना। ***** साइड विजन को नुकसान होना और बाकी विजन नॉर्मल बनी रहती हैं।

मोतियाबिंद किन कारणों से होता है? इसका निदान कैसे किया जा सकता है? : 

मोतियाबिंद का निदान मैन्युअल रूप से नहीं किया जा सकता है और यहां तक कि कारणों का पता नहीं लगाया जा सकता है। प्राथमिक मोतियाबिंद के लिए एकमात्र कारण आनुवंशिकता है। जबकि द्वितीयक मोतियाबिंद के कुछ विशेष कारण हैं जैसे आंख में चोट, स्टेरॉयड का उपयोग या सर्जरी के बाद का प्रभाव।

लोग अक्सर मोतियाबिंद और ग्लूकोमा के बीच भ्रमित होते हैं, दोनों में क्या अंतर है?

दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। मोतियाबिंद आंख के लेंस को प्रभावित करता है जबकि मोतियाबिंद आंख के ऑप्टिक तंत्रिका को प्रभावित करता है। मोतियाबिंद के कारण होने वाला अंधापन प्रतिवर्ती है जबकि मोतियाबिंद के कारण होने वाला अंधापन अपरिवर्तनीय है।

ग्लूकोमा विकसित होने का खतरा किसमें अधिक है? : 

ग्लूकोमा को आंख के अल्जाइमर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह उम्र बढ़ने से संबंधित है। लेकिन ग्लूकोमा का प्रकार भी एक कारक है, एंगल क्‍लोजर ग्‍लूकोमा युवाओं को भी प्रभावित कर सकता है और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में ओपन एंगल मोतियाबिंद अधिक पाया जाता है। नवजात ग्लूकोमा भी है।

अगर परिवार में मोतियाबिंद का इतिहास है तो इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?

यदि परिवार में मोतियाबिंद का इतिहास है, तो आप एक उच्च जोखिम में हैं। ऐसी स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपकी आंखों की हर साल जांच हो रही है या नहीं, क्योंकि आपका डॉक्टर प्रारंभिक अवस्था में बीमारी का पता लगा सकता है और अंधापन को रोक सकता है। आपको स्टेरॉयड के उपयोग से बचना चाहिए और जितना हो सके धूम्रपान से भी बचना चाहिए।

यदि ग्लूकोमा का निदान किया जाता है, तो उपचार की कौन सी बात है जिसका पालन करने की आवश्यकता है?

इसके लिए आपको विभिन्‍न परीक्षणों से गुजरना पड़ सकता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण चरण आंखों के दबाव और दृश्य क्षेत्रों का माप है। बाद में ऑप्टिक तंत्रिका की मोटाई मापने के लिए OCT किया जाता है।

आई ड्रॉप का उपयोग करते समय, क्या सावधानियां बरतनी चाहिए? : 


सबसे पहले, आपको अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और हमेशा ड्रॉप की एक्‍सपायरी डेट की जांच करनी चाहिए। इसके अलावा, सुनिश्चित करें कि आप अपने हाथों से आई ड्रॉप की नोक को कभी न छूएं। इसे सीधे अपने नंगे हाथों से स्पर्श करना आपको दूषित कर सकता है। बूंदों को डालने के लिए आपको पहले निचले ढक्कन को नीचे खींचना चाहिए और दवा को छोड़ देना चाहिए। अब अपनी आँखें बंद करें और टिसू की मदद से आंख के बाहर फैली दवाई को पोंछ लें। अब धीरे से आंख के बाएं कोने को दस सेकंड के लिए दबाएं।

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Thursday 24 January 2019

गले लगाने से व्यक्ति की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है ------ अनुराग गुप्ता

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किसी से गले लगकर (हग करके) आपको खुशी होती है और सुकून मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? आमतौर पर जब आप खुश होते हैं, किसी को धन्यवाद देना चाहते हैं या अपनी खुशी किसी के साथ बांटना चाहते हैं, तो उसके गले लग जाते हैं। गले लगते ही आपको एक अलग तरह की मानसिक शांति मिलती है। इसके कई वैज्ञानिक कारण हैं। विज्ञान के अनुसार गले लगाने से आपको सिर्फ खुशी ही नहीं मिलती बल्कि किसी को गले लगाना आपकी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है और आपको कई गंभीर बीमारियों से भी बचाता है। आइए आपको बताते हैं गले लगाने के फायदे, ताकि हर खुशी के मौके पर आप भी अपने 'प्रिय' को गले लगकर सेहत का तोहफा दे सकें।
दूर होता है सारा तनाव (स्ट्रेस) : 
गले लगने से आपके शरीर में कॉर्टिसोल हार्मोन का स्राव कम होता है। कॉर्टिसोल हार्मोन को स्ट्रेस हार्मोन (तनाव लाने वाला हार्मोन) भी कहा जाता है। इसके अलावा जब आप किसी को गले लगाते हैं या किस करते हैं, तो आपके शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन का स्राव होता है। ऑक्सीटोसिन हार्मोन को लव हार्मोन (प्यार का हार्मोन) भी कहते हैं। ये हार्मोन तनाव (स्ट्रेस) और अवसाद (डिप्रेशन) से लड़ने में मदद करता है। इसलिए जब भी आप बहुत अधिक टेंशन में हों या स्ट्रेस से परेशान हों, अपने किसी भी प्रिय को गले लगाइए। शादी-शुदा जोड़ों और रिलेशन में रहने वाले जोड़ों को एक दूसरे से रोजाना गले लगना चाहिए, ताकि इन हार्मोन्स का स्राव बेहतर हो।
तनाव में ब्लड प्रेशर और दिल की धड़कन होती हैं कंट्रोल :
जब भी आप तनाव में होते हैं, तो आपके दिल की धड़कन बढ़ जाती है और ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता है। ऐसे में अगर आप किसी को गले लगाते हैं, तो आपके दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है और ब्लड प्रेशर भी घटकर सामान्य स्तर पर आ जाता है। ये रिसर्च 'यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कॉरिलोना' में किया गया था।

रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है :
जब भी आप किसी को गले से लगाते हैं, तो आपकी इम्यूनिटी अच्छी होती है। यानी गले लगाने से आपके शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बेहतर होती है इसलिए आप कम बीमार पड़ते हैं। ऐसे में गले लगाना आपके लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। अपने पार्टनर को अपनी बाहों में भरकर अपने पूरे दिन का हाल बताएं और उसकी भी सुनें। फिर देखें कि यह जादू की झप्‍पी क्‍या काम करती है।
डोपामाइन के रिलीज होने से मिलती है खुशी :
किसी को गले लगाने से आपके मस्तिष्क को कुछ खास संकेत मिलते हैं, जिससे ये डोपामाइन हार्मोन्स का स्राव शुरू कर देता है। डोपामाइन को प्लेजर हार्मोन (खुशी का हार्मोन) के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें कि ये वही हार्मोन है, जो किसी से शारीरिक संपर्क के दौरान आपका मस्तिष्क रिलीज करता है और आपको मानसिक सुकून मिलता है।
अच्छी नींद आती है : 

अगर आप रात में सोने से पहले अपने प्रिय को गले लगाते हैं या गले लगकर सोते हैं, तो आपको अच्छी नींद आती है। इसका कारण भी मस्तिष्क में रिलीज होने वाले ऑक्सिटोसिन और डोपामाइन हार्मोन्स हैं। साथ ही कॉर्टिसोल हार्मोन की कमी से मानसिक तनाव दूर हो जाता है इसलिए आपको गहरी, शांत और सुकूनभरी नींद आती है।
 by: Anurag Gupta

 ओन्‍ली माई हैल्‍थ सम्पादकीय विभाग 
https://www.onlymyhealth.com/5-scientific-reasons-why-hugging-your-loved-ones-is-good-for-your-health-in-hindi-1548159778?utm_source=izooto&utm_medium=push_notifications&utm_campaign=&utm_content=&utm_term=