Wednesday, 20 May 2015

औषधियों का खजाना है घर का किचन : घर का इलाज

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हमारे घर का किचन औषधियों का खजाना है। कई साधारण चीजें ऐसी हैं जिनका उपयोग करके हम छोटी-मोटी हेल्थ प्रॉब्लम्स को आसानी से ठीक कर सकते हैं। बस जरूरत है तो रसोई में या हमारे आसपास मौजूद इन चीजों के गुणों व उपयोगों की सही जानकारी की। हमारे पूर्वज प्राचीन समय से ही घरेलू चीजों का उपयोग इलाज के लिए करते आए है। चलिए आज जानते हैं कुछ ऐसे ही प्राचीन समय से घरेलू नुस्खों के बारे में जो कि दोहों के रूप में हैं.....
लहसुन की दो टुकड़े, करिए खूब महीन।
श्वेत प्रदर जड़ से मिटे, करिए आप यकीन।।

दूध आक का लगा लो, खूब रगड़ के बाद।
चार-पांच दिन में खत्म, होय पुराना दाद।।

चना चून बिन नून के, जो चौसठ दिन खाए।
दाद, खाज और सेहुआ, बवासीर मिट जाए।।


दूध गधी का लगाइए मुंहासों पर रोज।

खत्म हमेशा के लिए, रहे न बिल्कुल खाज।।
सरसो तेल पकाइए, दूध आक का डाल।
मालिश करिए छानकर, समझ खाज का काल।।

मूली रस में डालकर, लेओ जलेबी खाए।
एक सप्ताह तक खाइए, बवासीर मिट जाए।।

गाजर का पियो स्वरस नींंबू अदरक लाए।
भूख बढ़े आलस भागे, बदहजमी मिट जाए।।

जब भी लगती है तुम्हे भूख कड़ाकेदार।
भोजन खाने के लिए हो जाओ तैयार।।

सदा नाक से सांस लो, पियो न कॉफी चाय।
पाचन शक्ति बिगाड़कर भूख विदा हो जाए।।
प्रात:काल जो नियम से, भ्रमण करे हर रोज।
बल-बुद्धि दोनों बढ़ें, मिटे कब्ज का खोज।।

रस अनार की कली का, नाक बूंद दो डाल।
खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।

भून मुनक्का शुद्ध घी, सैंधा नमक मिलाए।
चक्कर आना बंद हों, जो भी इसको खाए।।

गरम नीर को कीजिए, उसमें शहद मिलाए।
तीन बार दिन लीजिए, तो जुकाम मिट जाए।
http://religion.bhaskar.com/news/JM-GN-STM-traditional-home-remedies-4996705-NOR.html
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इन प्वाइंट्स को दबा कर घर बैठे चिकित्सा हासिल की जा सकती है और औषद्धियों के दुष्प्रभाव से भी बचा जा सकता है :

http://www.yourstylishlife.com/the-real-cause-of-pain-how-the-spine-is-connected-with-all-organs/

Wednesday, 13 May 2015

कसरत करें, ब्रेस्ट कैंसर से बचें --- Tauseef Qureshi

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कसरत करें, ब्रेस्ट कैंसर से बचें :
भारत में ब्रेस्ट कैंसर के आधे मामलों का अंत मौत में होता है. अमेरिका और चीन में भारत से कई गुना अधिक मामले दर्ज किए जाते हैं लेकिन वक्त रहते इलाज मुमकिन होता है. ब्रेस्ट कैंसर से बचने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है।
भारत में स्तन कैंसर के मामलों में सबसे आगे है मुंबई. दूसरे नंबर पर है चेन्नई और उसके बाद बैंगलोर. यह बीमारी पिछले साल 70,000 से अधिक महिलाओं की मौत का कारण बनी. आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं जब तक इलाज के लिए डॉक्टर से संपर्क करती हैं, तब तक कैंसर आखिरी स्टेज तक पहुंच चुका होता है. देश में हर 28 में से एक महिला को स्तन कैंसर है. बड़े शहरों की बात करें, तो यह संख्या 22 है.
ब्रेस्ट कैंसर के इतने मामलों के बावजूद इसके बारे में जागरुकता की भारी कमी है. स्तन कैंसर औसतन 50 साल की उम्र की महिलाओं में ज्यादा देखा गया है. लेकिन चिंता की बात है कि यह उम्र अब घट कर 35 से 40 होती जा रही है. डॉक्टरों का कहना है कि आधुनिक जमाने की तेजी और पश्चिमी जीवनशैली इसके लिए जिम्मेदार हैं.
ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ के मौके पर जर्मनी की कैंसर संस्था ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि कसरत के जरिए स्तन कैंसर को रोका जा सकता है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो महिलाएं प्रतिदिन 30 से 60 मिनट कसरत करती हैं, उनमें कसरत ना करने वालों की तुलना में स्तन कैंसर का खतरा काफी कम होता है. बॉन स्थित इस गैर सरकारी संस्था ने रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि कसरत से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है और वह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने के लिए भी तैयार हो जाता है.
रिपोर्ट तैयार करने के लिए कसरत करने वालों की जीवनशैली पर ध्यान दिया गया. रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं नियमित रूप से कसरत करती हैं, वे शराब और सिगरेट का कम सेवन करती हैं. इसके अलावा वे संतुलित आहार लेने पर भी ध्यान देती हैं. इसके विपरीत कसरत ना करने वाली महिलाओं की जीवनशैली काफी अस्वस्थ होती है, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है और स्तन कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
वजन का ख्याल और नियमित व्यायाम
ब्रेस्ट कैंसर से बचने के 10 तरीके
वजन का ख्याल और नियमित व्यायाम
अपने शारीरिक भार को संतुलन में रखें. मोटापा अपने आप में एक बीमारी है और कई दूसरी बीमारियों को पैर पसारने का मौका भी देता है. हर दिन औसतन आधे से एक घंटा या फिर हफ्ते में कम से कम चार घंटे कसरत करने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम होता है. नियमित व्यायाम से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता और मेटाबोलिज्म भी मजबूत होता है।

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ज्योतिषीय उपचार : 
कैंसर का कारण 'मंगल' और 'शनि'ग्रह होते हैं। किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय यदि इन दोनों ग्रहों का परस्पर संबंध स्थापित होता है तो उस व्यक्ति को जीवन में कैंसर होने की संभावना रहती है। यदि शुरू से ही ज्ञात होने पर सतर्कता बरती जाये तो इससे बचाव संभव है। शरीर में कैंसर चाहे किसी भी अंग में हो चिकित्सा के साथ-साथ उसके लिए पश्चिम की ओर मुख करके और धरती से इंसुलेशन बनाते हुये (अर्थात लकड़ी, रेशम या पोलीथीन के आसन पर बैठ कर ) प्रतिदिन 108 बार इन मंत्रों का सस्वर पाठ करना चाहिए :
1)- ॐ अंग अंगारकाय नमः 
2)- ॐ शम शनेश्चराय नमः  
-----(विजय राजबली माथुर )

Friday, 8 May 2015

टी बी कारण और निवारण (भाग-2 ) --- विजय राजबली माथुर

गतांक से आगे :
http://vijaimathur05.blogspot.in/2015/03/blog-post.html 

ज्वर की तीव्रता में निम्न योग अच्छा है :

(1 ) मुक्ता पंचामृत                 - 1 रत्ती 
      पंचानन रस                    - 1 रत्ती 
     अमृता सत्व                   -2 रत्ती 
ऐसी दो मात्राएं मधु ( शहद ) से दें । 

( 2 ) शुद्ध नवसार              - 2 रत्ती 
      अमृतारिष्ट               - 1 टोला 
समान जल मिला कर भोजनोपरांत । 

(3 ) चंद्रामृत रस            -4 रत्ती 
      सितोपलादि           - 1 माशा 
शहद के साथ दें। 

इस अवस्था में 'सर्वज्वर लौह', चंदनादी लौह, कुमुदेश्वर रस का प्रयोग करा सकते हैं। 

रकतीष्ठीवन की अवस्था में निम्न औषद्ध योग लाभ करते हैं: 

(1 ) बसंत मालती             - 1 रत्ती 
     रक्तपित्त कुलकंडन रस - 1 रत्ती 
    शत मूल्यादी लौह           - 2 रत्ती 
    लाक्षा चूर्ण                     - 4 रत्ती 
   सितोपलादि चूर्ण            - 4 रत्ती 
तीन मात्राएं शहद के साथ दें। 

( 2 ) शुद्ध स्वर्ण गैरिक        - 2 रत्ती 
      दुग्ध पाषाण               - 4 रत्ती 
दो मात्राएं । 

( 3 ) उशीराशव              - 1 तोला 
समान जल मिला कर भोजनोपरांत । 
( 4 ) स्वर्ण माक्षिक भस्म     - 1 रत्ती 
      प्रवाल पिष्टि             - 2 रत्ती 
     वासवलेह                 - 1 तोला
रात को एक मात्रा बकरी के दूध से दें। 
( 5 ) एलादी बटी चूसने के लिए दें। 
(6 ) चंदनादि तैल या लाक्षादि तैल  का अभ्यंग (मालिश ) करें। 

यदि रोगी का श्वास फूलता हो तो श्वास कास चिंतामणि, श्वास चिंतामणि, बृहन्मृगांक बटी, महाश्वासारिलौह का प्रयोग करना चाहिए। 
ज्योतिषीय उपचार : 
चंद्र, मंगल व शनि के संयुक्त प्रकोप से TB रोग होता है अतः प्रतिदिन 108 बार पश्चिम की ओर मुख करके व पृथ्वी से इंसुलेशन बनाते हुये (लकड़ी, रेशम या पोलीथीन के आसान पर बैठ कर )इन मंत्रों का जाप करें: 
1- ॐ सों सोमाय नमः 
2- ॐ अंग अंगारकाय नमः 
3- ॐ शम शनेश्चराय नमः

Tuesday, 24 March 2015

टी बी कारण और निवारण --- विजय राजबली माथुर

विश्व टी बी दिवस पर विशेष :
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राज्यक्षमा शोष (PULMONARY TUBERCUOSIS ):

रस आदि धातुओं का शोषण करने के कारण यह शोष कहलाता है, शरीर की क्रियाओं का क्षय करने के कारण इसे क्षय कहते हैं।  राज्यक्षमा नाम से भी इसे जाना जाता है। इसकी उत्पति चार कारणों से होती है । :---
(1) वेग धारण - चरक के अनुसार वायु,मूत्र और मल के वेगों को रोकने से इस रोग का जन्म होता है। 
(2 ) साहस - शक्ति /क्षमता से अधिक कार्य करना साहस कहलाता है। अत्यंत बलवान व्यक्ति से मलयुद्ध करना, अत्यधिक भार उठाना, दौड़ते हुये बैल,घोड़े आदि पशुओं को रोकना, अत्यंत वेग से दौड़ना या साईकिल आदि चलाना, प्रदशनार्थ मोटर आदि वाहनों को रोकना अथवा घोड़े,हाथी आदि शरीर पर से निकालना - इस प्रकार के कार्य करने से फुफ्फ़ुसों पर अत्यधिक ज़ोर पड़ता है। जिससे फुफ्फ़ुस प्रसार ( EMPHYSEMA ) क्षत आदि रोग होकर अंततः राज्यक्षमाहो जाता है। 
(3) विषम भोजन - भोजन में गड़बड़ी होने से शरीर की प्रायः सभी क्रियाएँ विकृत हो जाती हैं। 
(4 ) क्षय - इसका आशय धातु क्षय से है। अति मैथुन,अनशन,रक्त-स्त्राव,वमन,विरेचन आदि संशोद्धन क्रियायों के अति योग, चिंता, भय, क्रोध,शोक,ईर्ष्या आदि से एवं प्रायः सभी रोगों के फलस्वरूप धातुओं का  धातु क्षय होता है। किसी एक धातु के क्षीण होने के फलस्वरूप अन्य धातुओं का क्षय होता है। 
कफ प्रधान दोषों के द्वारा रसवाही स्त्रोतों का अवरोध होने पर अथवा अत्यधिक मैथुन करने वाले व्यक्ति का वीर्य क्षीण हो जाने पर सभी धातुओं का क्षय होता है। इसलिए वह व्यक्ति सूखता है  अथवा शोश  रोग (राज्यक्षमा) को प्राप्त होता है। 
शोष रोग के पूर्व रूप - श्वास फूलना, अंगों में पीड़ा, कफ स्त्राव, तालू सूखना, वमन, मंदाग्नि, मद, पीनस, खांसी, निद्रा ये लक्षण शोश रोग उत्पन्न होने के पूर्व होते हैं और यह प्राणी सफ़ेद नेत्र वाला, मांस-प्रेमी और कामी हो जाता है। सपनों में वह कौवे, तोते, सेही, नीलकंठ, गिद्ध, बंदर और गिरगिट की सवारी करता है और वह जल हीं नदियां तथा वायु, धूम्र और दावानल से पीड़ित शुष्क वृक्षों को देखता है। 

राज्यक्षमा के लक्षण - कंधों, पार्श्वों, हाथों और पैरों में दाह एवं पीड़ा और सारे शरीर में ज्वर, ये राज्यक्षमा के लक्षण हैं। 

अरुचि, ज्वर, श्वान्स, कास, रक्त गिरना और स्वर-भेद ये छह लक्षण राज्यक्षमा के होते हैं। 
 स्वर-भेद कंधों और पार्श्वों में संकोच और शूल वात प्रकोप के कारण, ज्वर, दाह, अतिसार और रक्त-स्त्राव पित्त के प्रकोप के कारण और सिर में भारीपन, कास धसका  ( अथवा गला फटा हुआ सा प्रतीत करना ) कफ के प्रकोप के कारण समझना चाहिए। 

*इन 11 लक्षणों अथवा कास, अतिसार, पार्श्व-वेदना, स्वर-भेद, अरुचि और ज्वर-इन छह लक्षणों से युक्त कास, श्वान्स और रक्त - स्त्राव, इन लक्षणों से पीड़ित शोष रोगी असाध्य होते हैं।   
*बलमांस का क्षय हो चुकने पर सब अर्थात 11 के आधे साढ़े पाँच अथवा छह अथवा तीन ही लक्षणों से युक्त रोगी भी असाध्य हैं। किन्तु इसके विपरीत होने अर्थात बलमांस का क्षय विशेष न हुआ हो तो सभी लक्षणों से युक्त रोगी चिकित्सा द्वारा ठीक हो सकते हैं। 
*जो बहुत भोजन करने पर भी क्षीण होता जाता हो, जो अतिसार से पीड़ित हो और जिसके उदर और अंडकोशों में शोथ हो ऐसे रोगी असाध्य होते हैं। 
*जिसके नेत्र सफ़ेद हो गए हों, भोजन से चिढ़ता हो, जो ऊर्ध्व श्वान्स से पीड़ित हो, जिसे कष्ट के साथ बहुत मूत्र होता हो भी असाध्य होते हैं। 
*वात व्याधि, अपस्मार, कुष्ठ, व्रण, जीर्ण-ज्वर, गुल्म, मधुमेह और राज्यक्षमा से पीड़ित व्यक्ति बलमांस का क्षय होने पर असाध्य हो जाते हैं। 
परहेज - इस रोग में औषद्धियों से ज़्यादा परहेज का महत्व है। रोगी को आवश्यकतानुसार प्रचुर मात्रा में दूध-मांस-अंडा-फल-मक्खन-घी आदि का तथा सुस्वादु भोजन का प्रयोग करना चाहिए। 
सामान्य उपचार :
(1 ) स्वर्ण बसंत मालती रस --- 1 रत्ती 
       श्रंगाराभ्र                       --- 1 रत्ती 
       प्रवाल पिष्टी                 --- 2 रत्ती 
       सितोपलादि                 --- 4 रत्ती 
( ऐसी तीन मात्राएं शहद में मिला कर दें )
(2 ) द्राक्षारिष्ट               ---     1 रत्ती 
( भोजनोपरांत समान जल मिला कर पिलाएँ )
(3 ) मृग शृंग भस्म         --- 1 तोला 
      प्रवाल भस्म             --- 1 रत्ती 
      च्यवनप्राश              --- 1 तोला 
( सोते समय बकरी के दूध के साथ)
(4) मचंदनादी तेल से मालिश करें। 
नोट- बसंत मालती के स्थान पर मृगाङ्क , राज मृगाङ्क हेमगर्भ रस का प्रयोग भी कर सकते हैं। यदि पीलापन हो तो सतमूलादी लौह अथवा यक्षमानतक लौह का प्रयोग करना चाहिए।  
क्रमशः ..........................................................         

Friday, 20 March 2015

ककड़ी ! और चिकित्सा

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ककड़ी ! 
ककड़ी को 'कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय' कहते हैं, जो "कुकुरबिटेसी"[1] वंश के अंतर्गत आती है। यह बेल पर लगने वाला फल है। स्वादिष्ट होने के साथ-साथ ककड़ी मानव के कई प्रकार के रोग दूर करने का कार्य भी करती है।
उत्पत्ति -
ऐसा माना जाता है कि ककड़ी की उत्पत्ति भारत में हुई थी। इसकी खेती की रीति बिलकुल तोरई के समान है, केवल इसके बोने के समय में अंतर है। यदि भूमि पूर्वी ज़िलों में हो, जहाँ शरद ऋतु अधिक कड़ी नहीं होती, तो अक्टूबर के मध्य में बीज बोए जा सकते हैं, नहीं तो इसे जनवरी में बोना चाहिए। ऐसे स्थानों में जहाँ सर्दी अधिक पड़ती हैं, इसे फ़रवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए।
भौगोलिक अवस्थाएँ - 
ककड़ी की फ़सल बलुई दुमट भूमियों से अच्छी होती है। इस फ़सल की सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। इसमें दो मुख्य जातियाँ होती हैं- एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। इनमें पहली को ही लोग पसंद करते हैं। ग्राहकों की पसंद के अनुसार फलों की चुनाई तरुणावस्था में अथवा इसके बाद करनी चाहिए। इसकी माध्य उपज लगभग 75 मन प्रति एकड़ है।[2]
गुण - 
1. कच्ची ककड़ी में आयोडिन पाया जाता है।
2. गर्मी में पैदा होने वाली ककड़ी स्वास्थ्यवर्द्धक तथा वर्षा व शरद ऋतु की ककड़ी रोगकारक मानी जाती है।
3. ककड़ी स्वाद में मधुर, मूत्र कारक, वात कारक, स्वादिष्ट तथा पित्त का शमन करने वाली होती है।
4. उल्टी, जलन, थकान, प्यास, रक्त विकार, मधुमेह में ककड़ी फ़ायदेमंद हैं।
5. इसके अत्यधिक सेवन से अजीर्ण होने की शंका रहती है, परन्तु भोजन के साथ ककड़ी का सेवन करने से अजीर्ण का शमन होता है।
6. ककड़ी की ही प्रजाति खीरा व कचरी है। ककड़ी में खीरे की अपेक्षा जल की मात्रा ज़्यादा पायी जाती है।
7. इसके बीजों का भी चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। ककड़ी का रस निकालकर मुंह, हाथ व पैर पर लेप करने से वे फटते नहीं हैं तथा मुख सौंदर्य की वृद्धि होती है।
8. ककड़ी काटकर खाने या ककड़ी व प्याज का रस मिलाकर पिलाने से शराब का नशा उतर जाता है।
9. बेहोशी में ककड़ी काटकर सुंघाने से बेहोशी दूर होती है।
10. इसके बीजों को ठंडाई में पीसकर पीने से ग्रीष्म ऋतु में गर्मीजन्य विकारों से छुटकारा प्राप्त होता है।
11. ककड़ी के बीज पानी के साथ पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की त्वचा स्वस्थ व चमकदार होती है।
12. ककड़ी के रस में शक्कर या मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
13. मींगी मिश्री के साथ इसे घोंटकर पिलाने से पथरी रोग में लाभ पहुंचता है।