Wednesday 12 November 2014

कढ़ी पत्ता के 8 फायदे और अन्य प्राकृतिक उपचार

लाइफस्टाइल डेस्क: हर भारतीय किचन में आसानी से मिल जाने वाले कढ़ी पत्ते का इस्तेमाल खासकर सब्जी व दाल में तड़का लगाने के लिए होता है। दक्षिण भारतीय खाने जैसे सांभर और रसम में इनका उपयोग अधिक होता है, फिर भी इस मसाले में स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ कई औषधीय गुण भी हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, प्रति सौ ग्राम कढ़ी पत्ते में 66 प्रतिशत मॉइश्चर, 6.1 प्रतिशत प्रोटीन, 1 प्रतिशत वसा, 16 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 6.4 प्रतिशत मिनरल पाया जाता है। इस तरह से कढ़ी पत्ता पेट के लिए काफी फायदेमंद है। आइए, इसके कुछ और उपयोग के बारे में जानते हैं।
1- डायबिटीज़ को कंट्रोल करता है:
कढ़ी पत्ते में एंटी-डायबिटिक एंजेट होते हैं। यह शरीर में इंसुलिन की गतिविधि को प्रभावित करके ब्लड शुगर लेवल को कम करता है। साथ ही, इसमें मौजूद फाइबर भी डायबिटीज़ के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।
कैसे करें इस्तेमाल- अपने भोजन में कढ़ी पत्ते की मात्रा बढ़ाएं या फिर रोज सुबह तीन महीने तक खाली पेट कढ़ी पत्ता खाएं तो फायदा होगा। कढ़ी पत्ता मोटापे को कम कर के डायबिटीज को भी दूर कर सकता है। 

2- दिल की बीमारियों से बचाता है:
स्टडी के अनुसार, कढ़ी पत्ते में ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाले गुण होते हैं, जिससे आप दिल की बीमारियों से बचे रहते हैं। यह एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल का ऑक्सीकरण होने से रोकते हैं। दरअसल, ऑक्सीकृत कोलेस्ट्रॉल बैड कोलेस्ट्रॉल बनाते हैं जो हार्ट डिसीज़ को न्योता देते हैं।
3-डायरिया को रोकता है:
कढ़ी पत्ते में कार्बाज़ोल एल्कालॉयड्स होते हैं, जिससे इसमें एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। ये गुण पेट के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। यह पेट से पित्त भी दूर करता है, जो डायरिया होने का मुख्य कारण है।
कैसे करें सेवन- अगर आप डायरिया से पीड़ित हैं तो कढ़ी के कुछ पत्तों को कस कर छाछ के साथ पिएं। ऐसा दिन में दो से तीन बार दोहराने से आराम मिलता है।
4-नाक और सीने से कफ का जमाव कम करता है:
अगर आपको सूखा कफ, साइनसाइटिस और चेस्ट में जमाव है तो कढ़ी पत्ता आपके लिए बेहद असरदार उपाय हो सकता है। इसमें विटामिन सी और ए के साथ एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल एजेंट होते हैं, जो जमे हुए बलगम को बाहर निकालने में मदद करते हैं। 
कैसे करें सेवन- कफ से राहत पाने के लिए एक चम्मच कढ़ी पाउडर को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस मिक्सचर को दिन में दो बार पिएं।
5-लिवर को सुरक्षित करता है:
अगर आप ज्यादा एल्कोहल का सेवन करते हैं या फिश ज्यादा खाते हैं तो कढ़ी पत्ता आपके लिवर को इससे प्रभावित होने से बचा सकता है। कढ़ी पत्ता लिवर को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाता है, जो हानिकारक तत्व जैसे मरकरी (मछली में पाया जाता है) और एल्कोहल की वजह से लिवर पर पड़ता है।
कैसे करें सेवन-  घर के बने हुए घी को गर्म करके उसमें एक कप कढ़ी पत्ते का जूस मिलाएं। इसके बाद थोड़ी-सी चीनी और पिसी हुई काली मिर्च मिलाएं। अब इस मिक्सचर को कम तापमान में गर्म करके उबाल लें और उसे हल्का ठंडा करके पिएं।  
6-एनीमिया रोगियों के लिए उपयोगी:
कढ़ी पत्ते में आयरन और फोलिक एसिड उच्च मात्रा में होते हैं। एनीमिया शरीर में सिर्फ आयरन की कमी से नहीं होता, बल्कि जब आयरन को अब्जॉर्ब करने और उसे इस्तेमाल करने की शक्ति कम हो जाती है, तो इससे भी एनीमिया हो जाता है। इसके लिए शरीर में फोलिक एसिड की भी कमी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि फोलिक एसिड ही आयरन को अब्जॉर्ब करने में मदद करता है।
कैसे करें सेवन- अगर आप एनीमिया से पीड़ित हैं तो एक खजूर को दो कढ़ी पत्तों के साथ खाली पेट रोज सुबह खाएं। इससे शरीर में आयरन लेवल ऊंचा रहेगा और एनीमिया होने की संभावना भी कम होगी।
7- पीरियड के दौरान होने वाले दर्द से राहत देता है:
मासिक धर्म के दिनों में होने वाली परेशानी व दर्द से निजात पाने के लिए कढ़ी पत्ता काफी असरदार होता है।
कैसे करें इस्तेमाल- इसके लिए मीठे नीम या कढ़ी के पत्तों को सुखाकर इनका बारीक पाउडर तैयार कर लें। अब एक छोटा चम्मच इस मिक्सचर को गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। सवेरे और शाम दिन में दो बार इसे लें। कढ़ी, दाल, पुलाव आदि के साथ कढ़ी पत्ते का नियमित सेवन बेहद फायदेमंद है।
8- बाल सफेद होने से रोकता है:
करी पत्ते में विटामिन बी1 बी3 बी9 और सी होता है। इसके अलावा, इसमें आयरन, कैल्शियम और फॉस्फोरस की भी भरपूर मात्रा होती है। इसके इस्तेमाल से बाल सफेद होने से बच सकते हैं।
कैसे करें इस्तेमाल- रातभर भीगे हुए बादाम को छीलकर पानी और 10-15 कढ़ी पत्ता के साथ पीस लें। इस पेस्ट को सिर की स्किन पर लगाकर मसाज करें। इसके बाद किसी अच्छे माइल्ड शैम्पू से बाल धो लें। ऐसा हफ्ते में एक बार करने से कुछ ही हफ्तों में रिज़ल्ट सामने होगा।





Sunday 9 November 2014

मोटापा, पेट (तोंद)की चर्बी निवारण केकुदरती पदार्थों के उपचार

मोटापा, पेट (तोंद)की चर्बी निवारण के कुदरती पदार्थों के उपचार :
१) चर्बी घटाने के लियेव्यायाम बेहद आवश्यक उपाय है।एरोबिक कसरतें लाभप्रदहोती हैं। आलसी जीवन शैली सेमोटापा बढता है। अत:सक्रियता बहुत जरूरी है।
२) शहद मोटापा निवारण केलिये अति महत्वपूर्ण पदार्थ है।एक चम्मच शहद आधा चम्मच नींबूका रस गरम जल में मिलाकर लेतेरहने से शरीर की अतिरिक्तचर्बी नष्ट होती है। यह दिन में३ बार लेना कर्तव्य है।
३) पत्ता गोभी(बंद गोभी) में चर्बी घटाने के गुण होते हैं।:ज्यादा केलोरी का दहन होता है। इस प्रक्रिया मेंचर्बी समाप्त होकर मोटापा निवारण में मदद मिलती है।
४) पुदीना मेंमोटापा विरोधी तत्व पायेजाते हैं। पुदीना रस एक चम्मच २चम्मच शहद में मिलाकर लेते रहनेसे उपकार होता है।
५) सुबह उठते ही २५० ग्रामटमाटर का रस २-३ महीने तकपीने से शरीर की वसा मेंकमी होती है।
६) गाजर का रस मोटापा कमकरने में उपयोगी है। करीब ३००ग्राम गाजर का रस दिन मेंकिसी भी समय लेवें।
७) एक अध्ययन का निष्कर्ष आया है कि वाटर थिरेपी मोटापा की समस्या हल करने में कारगर सिद्ध हुई है। सुबह उठने के बाद प्रत्येक घंटे के फ़ासलेपर २ गिलास पानी पीते रहें।इस प्रकार दिन भर में कम से कम२० गिलास पानी पीयें। इससेविजातीय पदार्थ शरीर सेबाहर निकलेंगे और चयापचय प्रक्रिया(मेटाबोलिस्म) तेज होकर ज्यादा केलोरी का दहनहोगा ,और शरीर की चर्बी कमहोगी। अगर २ गिलास के बजाये३ गिलास पानी प्रति घंटेपीयें तो और भी तेजी सेमोटापा निवारण होगा।
८) कम केलोरी वाले खाद्यपदार्थों का उपयोग करें।जहां तक आप कम केलोरी वालेभोजन की आदतनहीं डालेंगे ,मोटापा निवारणदुष्कर कार्य रहेगा। अब मैं ऐसेभोजन पदार्थ निर्देशितकरता हूं जिनमें नगण्यकेलोरी होती है।
अपने भोजनमें ये पदार्थ ज्यादा शामिलकरें--नींबूजामफ़ल (अमरुद)अंगूर सेवफ़ल खरबूजा जामुन पपीता आम संतरा पाइनेपल टमाटर तरबूज बैर स्ट्राबेरी सब्जीयां जिनमें नहीं के बराबर केलोरी होती है--पत्ता गोभीफ़ूल गोभी ब्रोकोली प्याज मूली पालक शलजम सौंफ़
लहसुन
अदरक चाकू से बरीक काटलें ,एक नींबू की चीरें काटकरदोनो पानी में ऊबालें।सुहाता गरम पीयें।बढिया उपाय ह

Friday 7 November 2014

कुदरती पदार्थों से करें कब्ज आदि का का इलाज::---भारतीय आयुर्वेद

कुदरती पदार्थों से करें कब्ज का इलाज::
१—कब्ज का मूल कारण शरीर मे तरल
की कमी होना है।
पानी की कमी से आंतों में मल
सूख जाता है और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है। अत:
कब्ज से परेशान रोगी को दिन मे २४ घंटे मे मौसम के
मुताबिक ३ से ५ लिटर पानी पीने
की आदत डालना चाहिये। इससे कब्ज रोग निवारण मे
बहुत मदद मिलती है।
२…भोजन में रेशे की मात्रा ज्यादा रखने से कब्ज निवारण
होता है।हरी पत्तेदार सब्जियों और फ़लों में प्रचुर
रेशा पाया जाता है। मेरा सुझाव है कि अपने भोजन मे
करीब ७०० ग्राम हरी शाक या फ़ल
या दोनो चीजे शामिल करें।
३… सूखा भोजन ना लें। अपने भोजन में तेल और
घी की मात्रा का उचित स्तर बनाये रखें।
चिकनाई वाले पदार्थ से दस्त साफ़ आती है।
४..पका हुआ बिल्व फ़ल कब्ज के लिये श्रेष्ठ औषधि है। इसे
पानी में उबालें। फ़िर मसलकर रस निकालकर नित्य ७ दिन
तक पियें। कज मिटेगी।
५.. रात को सोते समय एक गिलास गरम दूध पियें। मल आंतों में चिपक
रहा हो तो दूध में ३ -४ चम्मच केस्टर आईल
(अरंडी तेल) मिलाकर पीना चाहिये।
६..इसबगोल की की भूसी कब्ज
में परम हितकारी है। दूध या पानी के साथ
२-३ चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते
वक्त लेना फ़ायदे मंद है। दस्त खुलासा होने लगता है।यह एक
कुदरती रेशा है और
आंतों की सक्रियता बढाता है।
७..नींबू कब्ज में गुण्कारी है।
मामुली गरम जल में एक नींबू निचोडकर दिन
में २-३बार पियें। जरूर लाभ होगा।
८..एक गिलास दूध में १-२ चाम्मच घी मिलाकर रात
को सोते समय पीने से भी कब्ज रोग
का समाधान होता है।
९…एक कप गरम जल मे १ चम्म्च शहद मिलाकर पीने
से कब्ज मिटती है। यह मिश्रण दिन मे ३ बार
पीना हितकर है।
१०.. जल्दी सुबह उठकर एक लिटर गरम
पानी पीकर २-३ किलोमीटर घूमने
जाएं। बहुत बढिया उपाय है।
११..दो सेवफ़ल प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।
१२..अमरूद
और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये
अमॄत समान है। ये फ़ल दिन मे
किसी भी समय खाये जा सकते हैं। इन
फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और आंतों को शक्ति देते हैं। मल
आसानी से विसर्जीत होता है।
१२..अंगूर मे कब्ज निवारण के गुण हैं । सूखे अंगूर याने किश्मिश
पानी में ३ घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत
मिलती है और दस्त आसानी से
आती है। जब तक बाजार मे अंगूर मिलें नियमित रूप से
उपयोग करते रहें।
13..एक और बढिया तरीका है। अलसी के
बीज का मिक्सर में पावडर बनालें। एक गिलास
पानी मे २० ग्राम के करीब यह पावडर डालें
और ३-४ घन्टे तक गलने के बाद छानकर यह
पानी पी जाएं। बेहद
उपकारी ईलाज है।
१४.. पालक का रस या पालक कच्चा खाने से कब्ज नाश होता है।
एक गिलास पालक का रस रोज पीना उत्तम है।
पुरानी कब्ज भी इस सरल उपचार से मिट
जाती है।
१५.. अंजीर कब्ज हरण फ़ल है। ३-४
अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें। सुबह
खाएं। आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण होता है।
16.. मुनका में कब्ज नष्ट करने के तत्व हैं। ७ नग
मुनक्का रोजाना रात को सोते वक्त लेने से कब्ज रोग का स्थाई समाधान
हो जाता है।

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प्याज़ :

हम सभी प्रायः प्याज़ का प्रयोग सलाद के रूप में तथा दाल -सब्ज़ी का स्वाद बढ़ाने के लिए करते हैं , आइये आज जानते हैं इसके कुछ सरल औषधीय प्रयोग -
१- यदि जी मिचला रहा हो तो प्याज़ काटकर उसपर थोड़ा काला -नमक व थोड़ा सेंधा -नमक डालकर खाएँ , लाभ होगा |
२-पेट में अफ़ारा होने पर दिन में तीन बार निम्न औषधि का प्रयोग किया जा सकता है - प्याज़ का रस -२० ml ; काला -नमक -१ ग्राम व हींग -१/४ ग्राम लें ,इन सबको मिलाकर रोगी को पिलाएँ |
३-हिचकी की समस्या होने पर १० ग्राम प्याज़ के रस में थोड़ा सा काला -नमक व सेंधा -नमक मिलकर लेने से लाभ होता है |
४- प्रातःकाल उठकर खाली पेट १ चम्मच प्याज़ का रस पीने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है |
५- यदि किसी के चेहरे पर काले दाग़ हों तो उनपर प्याज़ का रस लगाने से कालापन दूर होता है तथा चेहरे की चमक भी बढ़ती है |
६-एसिडिटी की समस्या में भी प्याज़ उपयोगी है | ३० ग्राम दही लें , उसमे ६० ग्राम सफ़ेद प्याज़ का रस मिलाकर खाएँ , यह प्रयोग दिन में तीन बार करें तथा कम से कम लगातार सात दिन तक करें , लाभ होगा |

https://www.facebook.com/AcharyaBalkrishanJi/photos/a.194502733927647.51226.192639277447326/784065578304690/?type=1&theater 

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Saturday 1 November 2014

शौच-विज्ञान ---Kamal Patel Patel


सहजता से मलत्याग न होने पर कुछ लोग जोर
लगाकर शौच करते हैं किंतु ऐसा करना ठीक नहीं है।

उषःपान (प्रातः जल सेवन) के बाद कुछ देर भ्रमण करने से मलत्याग सरलता से होता।
यदि कब्ज रहता हो तो रात
को पानी में भिगोकर रखे मुनक्के सुबह
उबालकर उसी पानी में मसल लें।
बीज निकाल कर मुनक्के खा लें और बचा हुआ पानी पी लें।

अथवा रात्रि भोजन के बाद पानी साथ त्रिफला चूर्ण लेने पर भी कब्ज दूर होता है।
साधारणतया सादा, हल्का आहार लेने
तथा दिन भर में पर्याप्त मात्रा में
पानी पीते रहने से कब्ज मिट
जाता है।

सिर व कान ढँक जाये ऐसी गोल
टोपी पहनके, मौनपूर्वक बैठकर मल-मूत्र
का त्याग करना चाहिए। इस समय दाँत भींचकर
रखने से वे मजबूत बनते हैं।
शौच व लघुशंका के समय मौन रहना चाहिए।

मल-विसर्जन के समय बायें पैर पर दबाव रखें। इस प्रयोग
से बवासीर रोग नहीं होता।

पैर के पंजों के बल बैठकर पेशाब करने से मधुमेह
की बीमारी नहीं होती।

भोजन के बाद पेशाब करने से पथरी का डर
नहीं रहता।

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