Thursday 5 November 2015

WOMEN CONSUMED THIS BEVERAGE FOR TWO MONTHS; THE WEIGHT LOSS RESULTS WERE UNBELIEVABLE!

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WOMEN CONSUMED THIS BEVERAGE FOR TWO MONTHS; THE WEIGHT LOSS RESULTS WERE UNBELIEVABLE!

Experts from the University of Taiwan decided to do a simple experiment: a group of women of different ages and weight were given to drink one cup (250 ml) of tomato juice every day for two months.

The tested women were not changing their eating habits nor did they exercise. However, the results were visible already a few days – scientists who conducted the experiment reveal.

The fastest and most visible change was the loss of excess body weight. Experts say that it is not excess fluids that are ejected, but pure fat has been lost.

Women who participated in the experiment analyzed their blood at the beginning and in end of the study.

Lowering cholesterol and increased lycopene (tomato’s antioxidant that brings many benefits to health) have been noticed.

The experiment showed that just a glass of tomato juice a day strengthens the immune system, protects against heart disease, but also reduces the risk of developing cancer. Moreover, this refreshing beverage helps with problems with digestion, helps in the process of ejecting fluid from the body, and prevents diseases of the bladder, pancreas, liver and lungs.

Tomato juice is also great for skin and shiny complexion. It significantly reduces cough, prevents anemia, relieves rheumatic symptoms and improves blood counts.

If you are tired after a workout, drink a glass of tomato juice and the exhaustion will disappear. This juice is excellent for muscle cramps because it is a treasure trove of magnesium-containing 11 mg. of magnesium in 100 grams of tomato juice.

Since it is rich with potassium, calcium, soy proteins, carbohydrates and vitamin C you should start consuming this juice as soon as possible.

If you consume tomato juice bought from the store, then at least buy organic matter, otherwise the effect will not be the same. However, it is best to make the juice at home with familiar ingredients:

– 6 kg of tomatoes

– 4 tablespoons of sugar

– 2 tablespoons of salt

Method of preparation


Take the steams off, wash the tomatoes well with cold water, then chop and grind them and finally add the sugar and salt and bring the mixture to boil. Stir often so it does not burn. Once the mixture starts boiling, cook for another 10 minutes by constantly stirring. Put the hot cooked tomato juice in glass bottles and close the tightly. Once they cool, store the bottles in a cool place.
http://greatlifeandmore.com/index.php/2015/11/01/women-consumed-this-beverage-for-two-months-the-weight-loss-results-were-unbelievable/

Wednesday 4 November 2015

पाचन तंत्र में चाय की भूमिका और मसाला चाय

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सुबह सुबह गर्म चाय पीना  हमारी जीवनशैली का एक अहम् हिस्सा है। कुछ लोगों को खाने के साथ या खाने के बाद  चाय पीने की आदत होती है। खाने के साथ चाय पीना हमेशा से ही एक विवादास्पद विषय रहा है। जहाँ कुछ शोध का कहना है कि चाय पीना पाचन तंत्र के लिए सही होता है, वहीँ कुछ रिसर्च के अनुसार चाय में पाये जाने वाला पदार्थ कैफीन, हमारे पोषक तत्वों के अवशोषण में बाधा पहुंचाते हैं। आइये देखतें है कि यह कैसे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
पाचन तंत्र में चाय की भूमिका :
कुछ शोधों से पता चला है कि खाने के दौरान या उसके बाद चाय पीने से यह पेट में बनी गैस को बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे हमारा पाचन तंत्र सही रहता है। लेकिन यह बात हमेशा ध्यान में रखें कि हर तरह की चाय इन मामलों में फायदेमंद नही होती है। ग्रीन टी, हर्बल टी जैसे की अदरक वाली चाय जिनमें एंटीऑक्सीडेंटस और पोलीफेनोल(polyphenols) की मात्रा बहुत अधिक होती है, हमारे डाईजेशन सिस्टम के लिए बहुत फायदेमंद हैं।
चाय, हमारे पाचन तंत्र को साल्विया, पित्त और गैस्ट्रिक जूस को बनाने में सहायक का काम करती है। इनमे एंटीऑक्सीडेंटस की मात्रा अधिक होने के कारण ये शक्तिशाली एंटीइंफ्लेमेटरी की तरह काम करते हैं ,जो हमारे पाचन से जुडी कई खामियों को कम करता है। ग्रीन टी और हर्बल टी में कैटकिन (catechins) नाम का पालीफेनोलिक(polyphenolic) यौगिक पाया जाता है जो हमारे पाचक रस के कार्य क्षमता को बढ़ा देता है।
खाने के साथ चाय पीना क्यों सही नही है :
कुछ शोध बतातें हैं कि चाय में पाया जाने वाला फेनोलिक यौगिक, हमारी पेट के आँतों की आंतरिक परतों में आयरन काम्प्लेक्स को बनाकर, आयरन के अवशोषित  होने में बाधा डालता है। ऐसा कहा जाता है की यदि आप खाने के साथ ही चाय पीना चाहते हैं, तो अपने डाइट में आयरन और विटामिन सी से भरपूर चीजों को शामिल करिये जिससे ये आयरन के अवशोषण में होने वाले प्रभाव को कम कर देगा। इसीलिए आयरन की कमी से पीड़ित लोगों को खाने के साथ चाय नही लेना चाहिए। यह भी पाया गया है की खाने के दौरान चाय पीने से शरीर में कैटचिन की कमी हो जाती है। कैटकिन चाय में पाया जाने वाला एक यौगिक है जिसका हमारे कई साइकोलाजिकल कामों में महत्वपूर्ण रोल है।
इसलिए अगर आप खाने के साथ या उसके बाद में चाय पीना चाहते हैं तो आप ग्रीन टी या जिंजर टी में से चुन सकते हैं क्योंकि ये आपके पाचन में सहायक हैं। और जो लोग आयरन की कमी से पीड़ित हैं वो खाने के दौरान चाय का सेवन बिलकुल न करें या फिर किसी डॉक्टर कि सलाह लें।


एक कप गर्म चाय हर भारतीय की पहली पसंद होती है, चाहे वह अमीर हो या गरीब। आजकल लोग आम चाय के बदले ग्रीन टी पीना पसंद कर रहे हैं। और इसके फायदे भी अनेक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि देसी मसाला चाय भी समान रूप से हेल्दी होता है। हाँ, अगर टेस्ट के बारे में सोचे तो यह सादा ग्रीन टी की तुलना में ज़्यादा टेस्टी होता है। इसको बनाने के लिए जितने मसालों की ज़रूरत होती है वह सारे आपके किचन में ही मिल जायेंगे, जैसे- लौंग, इलायची,अदरक, दालचीनी, तुलसी और थोड़ी-सी चाय की पत्ती। यहाँ कुछ ऐसे चीजों के बारे में जानकारी दी जा रही है, जो इस चाय को अनोखा और स्वास्थ्यवर्द्धक बनाता है।
एन्टी इन्फ्लैमटोरी गुण होता है- इस मसाला चाय को बनाने के लिए जिन मसालों की ज़रूरत होती है, उन सब के अलग-अलग फायदें तो हैं ही साथ ही यह सब एक साथ मिलकर शरीर में किसी भी प्रकार के सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इस काम में सबसे ज़्यादा मदद अदरक करता है। नैशनल इन्स्टिटूट ऑफ हेल्थ के द्वारा प्रकाशित एक पत्र के अनुसार अदरक प्रोस्टोग्लैंडीस (prostaglandins) और ग्लूकोट्राइन (leukotriene) के संश्लेषण को रोकता है ( जो सूजन के प्रक्रिया में अहम् भूमिका निभाता है),जिससे सूजन से राहत मिलती है। लौंग भी इस कार्य में बहुत मददगार साबित होता है, क्योंकि इसमे यूजेनॉल नाम का यौगिक होता है जो मांसपेशियों के सूजन को कम करता है। यह दोनों मसालें विशेष रूप से पेनकिलर का काम करते हैं।
थकान दूर करता है- दिन भर के थकान को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है एक कप गर्म मसाला चाय। चाय में जो टैनीन होता है वह शरीर को स्फुर्ति प्रदान करता है। चाय में जो कैफ़ीन होता है वह उत्तेजक का काम करता है, लेकिन कॉफी के तुलना में इसमें कम कैफ़ीन की मात्रा होती है। इन मसालों का सम्मिश्रण थकान को दूर करने में मदद करता है।
सर्दी-खाँसी और फ्लू से लड़ता है- मसाला चाय में एन्टी-बैक्टिरियल, एन्टी फंगल, एन्टी पैरसिटिक (anti parasitic) गुण होते हैं जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता (immunity) को बढ़ाकर सर्दी-खाँसी या ज़ुकाम से राहत दिलाने में मदद करते हैं। इस काम में मुख्य रूप से लौंग, दालचीनी, इलायची और अदरक काम करते हैं।
हजम शक्ति को बढ़ाता है- आप सोच रहे होंगे ये कैसे हो सकता है? होलिस्टिक गुरू मिक्की मेहता के अनुसार मसाला चाय में लौंग, तुलसी, अदरक और इलायची डाला जाता है ,लेकिन इसका एसिडिक स्वभाव तब बदल जाता है जब इसमें दूसरे मसालों के साथ अदरक को डाल दिया जाता है। अदरक के कारण यह सुपाच्य बन जाता है। इसलिए जब आप एक कप चाय पीते हैं तब एक अलग ही प्रकार की ताजगी और शांति महसूस करने लगते हैं।
दिल के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी- ब्लैक टी जो मसाला चाय का एक तत्व होता है वह एन्टी-ऑक्सिडेंट का स्रोत होता है लेकिन इसके अलावा लौंग और इलायची बैड कोलेस्ट्रोल के मात्रा को कम करके शरीर में गुड कोलेस्ट्रोल के मात्रा को बढ़ाता है। इससे शरीर में गुड कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ती है। साथ ही यह धमनियों में प्लैक के उत्पत्ति को रोकता है और इसमें जो टैनीन होता है वह दिल के धड़कन को नियंत्रित और रक्त-वाहिका के प्रेशर को ठीक रखता है।
चयापचय (metabolism) को बढ़ाता है- यह चयापचय के दर को बढ़ाकर वज़न को घटाने में मदद करता है। साथ ही हजम शक्ति को बढ़ाता है। आयुर्वेद के अनुसार गर्म खाद्द पदार्थ शरीर के चयापचय दर को बढ़ाने में मदद करता है।
मधुमेह होने के संभावना को कम करता है- लौंग, दालचीनी और इलायची शरीर के ब्लड-शुगर को कम करके मधुमेह के संभावना को कम करता है। दालचीनी मानसिक स्वास्थ्य को सुधारकर अल्ज़ाइमर के संभावना को कम करता है। लौंग शरीर के शुगर का सही तरह से इस्तेमाल करता है।
माहवारी (period) के दर्द को कम करता है- इलायची, लौंग और दालचीनी पेनकिलर का काम करता है और पिरियड के दौरान दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है।
अनुवादक-  Mousumi Dutta

Tuesday 3 November 2015

डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर

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अगर आप डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर के मरीज़ हैं तो भूल जाइये कि आप अपनी पसंद का कोई भी खाना खा सकते हैं। इन बीमारियों के साथ जीने के लिए आपको काफी परहेज़ करना पड़ता है। और जिसको ये दोनों बीमारियां एक साथ हो जाएं उसके लिए मामला और मुश्किल हो जाता है। जिस खाने की चीज़ में नमक और ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज़्यादा होता है, वो आपके लिए बिल्कुल मना हो जाते हैं। ऐसे में चटपटे स्नैक्स जैसे नमकीन, पैकेट बंद चिप्स, फ्रेंच फ्राइज़ वगैरह तो आप भूल ही जाइये।
ऐसी स्थिति में आप कद्दू के बीज को स्नैक्स के रूप में खा सकते हैं। दिनभर में जब कुछ खाने का मन करे तो मुट्ठीभर कद्दू के बीज लिए और चबा लिये। अब आप सोचेंगे कद्दू के बीज ही क्यों? दरअसल, इन कद्दू के बीजों के शरीर पर एंटी-डायबिटिक और एंटी हाइपरटेंसिव प्रभाव पड़ते हैं। आइये जानें किस तरह।
ब्लड प्रेशर में लाभ
अगर आप अपना ब्लड प्रेशर कंट्रोल में लाइन के लिए एंटी-हाइपरटेंसिव दवाएं ले रहे हैं और फिर भी कुछ फायदा नहीं हो रहा तो आपको कद्दू के बीजों के तेल का इस्तेमाल करना चाहिए। एक अध्ययन के अनुसार, कद्दू के बीज में से तत्व होते हैं जो आपका ब्लड प्रेशर कम करते हैं, और दिल के लिए अच्छे होते हैं। कद्दू के बीज नाइट्रिक ऑक्साइड का उत्पादन करते हैं जो दिल की धड़कन को नियमित करता है, जिससे दिल की बीमारियों का जोखिम कम होता है।
डायिबिटीज़ में लाभ
अगर आप अपनी डायबिटीज़ को नैचुरली कंट्रोल में रखना चाहते हैं तो डायट में कद्दू के बीज खाना शुरू करें। एक अध्ययन में, ये बात सामने आई है कि कद्दू के बीज और अलसी के बीज का मिक्सचर डायबिटीज़ के दौरान शरीर में पैदा होने वाले कुछ एंजाइम स्तरों को कंट्रोल करता है, जिससे डायबिटीज़ कंट्रोल में आ जाती है।
अनुवादक – Shabnam Khan

Monday 2 November 2015

बवासीर में राहत दिलाए जीरे का इस्तेमाल

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क्या आप बवासीर यानी पाइल्स से परेशान हैं? इस समस्या में आराम पाने के लिए ट्राई करें जीरा! जीरे में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, सोडियम, पोटैशियम, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन सी और ए जैसे मिनरल्स और विटामिन्स होते हैं। जीरा एक ऐसा मसाला है जो आपके पूरे शरीर को फायदा पहुंचाता है।
जीरे में फाइबर और कार्मेटिव (carmative) तत्व मौजूद होते हैं जिससे कि पाचन क्रिया बेहतर होती है और मल (स्टूल) नर्म हो जाता है। इसके अलावा, ये खाने के पाचन तंत्र में ले जाने में पेट की मदद करता है और अगर आपको इंफेक्शन हो तो उन्हें दूर करता है।
बवासीर में इस्तेमाल का तरीका
थोड़े से जीरे को भून लें और फिर उसका पाउडर बनाएं। इस पाउडर को गर्म पानी में मिलाएं और हर रात सोने से पहले पियें। तीन से चार दिन में आपको पाइल्स की समस्या में आराम महसूस होगा।
 http://www.thehealthsite.com/hindi/diseases-conditions-articles-in-hindi-try-jeera-for-piles-problem-in-hindi-h915/





Sunday 1 November 2015

कब्ज़ का उपचार/जल प्रयोग की मात्रा

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Thursday 29 October 2015

सर्दी-जुकाम : घरेलू उपाय

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ज़ी मीडिया ब्यूरो
नई दिल्ली: सर्दी-जुकाम से तकलीफ बढ़ जाती है। हालांकि यह कोई गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन यह देखा जाता है कि इस बीमारी में दवाईयों का असर भी कम होता है। इसके लिए सबसे अच्छा होता है घरेलू यानी देसी नुस्खे का इस्तेमाल। घर में बनाए जाने वाले इन देसी नुस्खों से आप आसानी से सर्दी जुकाम को काबू में कर अपना इलाज कर सकते है। पेश है पांच घर में आसानी से बनाए जानेवाले घरेलू उपाय जिनकी मदद से आप सर्दी-जुकाम से चंद घंटों में निजात पा सकते हैं।
दूध और हल्दी: गर्म पानी या फिर गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाकर पीने से सर्दी जुकाम में तेजी से फायदा होता है। यह नुस्खा ना सिर्फ बच्चों बल्कि बड़ों के लिए भी कारगर साबित होता है। हल्दी एंटी वायरल और एंटी बैक्टेरियल होता है जो सर्दी जुकाम से लड़ने में काफी मददगार होता है।
अदरख की चाय: अदरख के यूं तो कई फायदे है लेकिन अदरख की चाय सर्दी-जुकाम में भारी राहत प्रदान करती है।  सर्दी-जुकाम या फिर फ्लू के सिम्टम में ताजा अदरख को बिल्कुल बारीक कर ले और उसमें एक कप गरम पानी या दूध मिलाए। उसे कुछ देर तक उबलने के बाद पीए। यह नुस्खा आपको सर्दी जुकाम से राहत पाने में तेजी से मदद करता है।
नींबू और शहद: नींबू और शहद के इस्तेमाल से सर्दी और जुकाम में फायदा होता है। दो चम्मच शहद में एक चम्मच नींबू का रस एक ग्लास गुनगुने पानी या फिर गर्म दूध में मिलाकर पीने से इसमें काफी लाभ होता है।
लहसुन: लहसुन सर्दी-जुकाम से लड़ने में काफी मददगार होता है। लहसुन में एलिसिन नामक एक रसायण होता है जो एंडी बैक्टेरियल, एंटी वायरल और एंटी फंगल होता है। लहसुन की पांच कलियों को घी में भुनकर खाए। ऐसा एक दो बार करने से जुकाम में आराम मिल जाता है। सर्दी जुकाम के संक्रमण को लहसुन तेजी से दूर करता है।
तुलसी पत्ता और अदरख: तुलसी और अदरख को सर्दी-जुकाम के लिए रामबाण माना जाता है। इसके सेवन से इसमें तुरंत राहत मिलती है। एक कप गर्म पानी में तुलसी की पांच-सात पत्तियां ले। उसमें अदरख के एक टुकड़े को भी डाल दे। उसे कुछ देर तक उबलने दे और उसका काढ़ा बना ले। जब पानी बिल्कुल आधा रह जाए तो इसे आप धीरे-धीरे पी ले। यह नुस्खा बच्चों के साथ बड़ों को भी सर्दी-जुकाम में राहत दिलाने के लिए असरदार होता है।

Wednesday 28 October 2015

The Joint Pain Will Disappear Immediately!

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POSTED BY ADMIN@SPORTONLINEGROUP.COM ON 27TH OCTOBER 2015 | 627 VIEWS
As we grow old the side effects of aging are becoming increasingly pronounced, especially if you are over 40. Some of the effects include joint pain, especially in the knees, shoulders, and elbows. In young people, this pain can occur due to arthritis, rheumatism, fractures, overload, or trauma. There are numerous pills and ointments which promise to reduce the pain, but no matter how long you use them, the pain is back.

Make This Ointment at Home The Joint Pain Will Disappear Immediately

Fortunately, the Russian folk medicine offers natural recipe that will help in reducing the pain, almost immediately after the first application. In addition, all the ingredients necessary for the preparation of this ointment are probably already in your kitchen.

Ingredients:

1 tbsp. of mustard;
1 tbsp. of honey;
1 tbsp. of water;
1 tbsp. of fine salt.

Method of preparation:

Mix all the ingredients well until you get a homogeneous mixture.
Place the prepared mixture in an empty box or some other packaging.
Application:

This procedure is best to be done before going to bed so that the joints can rest after the treatment.
Apply some of the mixture on the painful place, put a plastic bag over it, and tie with a warm scarf made of wool.
Leave thus for 1.5-2 hours. Wash the place in the morning.
Repeat the procedure 4-5 days, but you fill feel the improvements even after the first day.
You’ll be able to use the mixture for couple of days, so keep it in the fridge.
If the pain returns after some time, make a new mixture and repeat this method.
Mustard and its benefits

Mustard is made from herbs that provide numerous health benefits. In case of a burn, apply a thick layer of mustard on the area and the pain will soon disappear. In addition, if you catch a cold or have a scratchy throat, swallow 1 tablespoon of mustard. Even further, if you have a headache, apply some mustard on the forehead and the temples.
http://www.sportonlinegroup.com/make-this-ointment-at-home-the-joint-pain-will-disappear-immediately/




Tuesday 27 October 2015

फिटकरी स्वास्थ्य समस्याओं में विशेष लाभकारी

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फिटकरी एक ऐसी चीज है, जिसका इस्तेमाल सभी घरों में होता है। फिटकरी बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं में विशेष रूप से लाभकारी है।
  • 1

    फिटकरी एक फायदे कई

    फिटकरी एक ऐसी चीज है, जिसका इस्तेमाल सभी घरों में होता है। पुरुष इसे आफ्टरशेव के तौर पर इस्तमाल करते हैं। फिटकरी को पहले जमाने में महिलाएं चेहरे को टाइट बनाने के लिए प्रयोग करती थीं। यह दो प्रकार (लाल व सफेद रंग) की होती हैं। फिटकरी में कई सारे गुण होते हैं। यह एंटीबैक्टीरियल होती है, इसलिए इसे दंत रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रयोग करें। इसी तरह, फिटकरी बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं में विशेष रूप से लाभकारी है।
  • 2

    उंगलियों की सूजन में आराम

    सर्दियों के समय में पानी में ज्यादा काम करने से हाथों की उंगुलियों में सूजन या खुजली हो जाती है। इस दर्दभरी समस्या से बचने के लिए हो थोड़े पानी में फिटकरी को डालकर उबाल लें और पानी को थोड़ा ठंडा कर इसमें कुछ देर उंगलियों को डुबोएं। ऐसा करने से उंगलियों की सूजन और खुजली में काफी आराम मिल जाता है।
  • 3

    चोट से खून बहना बंद

    यदि चोट या खरोंच लगकर घाव हो गया हो और उससे खून बह रहा हो घाव को फिटकरी के पानी से धोएं। उसके अलावा उस घाव पर फिटकरी का चूर्ण बनाकर छिड़क दें। ऐसा करने से खून बहना बंद हो जाता है।
  • 4

    टॉन्सिल्स की समस्या में आराम

    फिटकरी के इस्तेमाल से टॉन्सिल्स की समस्या में भी काफी राहत मिलती है। टॉन्सिल्स की समस्या होने पर गर्म पानी में चुटकी भर फिटकरी और नमक डालकर गरारे करें। इससे गले के दर्द और सूजन में जल्दी ही आराम मिल जाता है।
  • 5

    चेहरे की झुर्रियां मिटाएं

    चेहरे से झुर्रियों को मिटाने के लिए चेहरे को धो लें। फिर फिटकरी को ठंडे पानी से गीला करके चेहरे के आसपास हल्के से रगड़ें। अब इसे सूख जाने दें और फिर इसे हाथों से छुड़ाकर साफ कर लें। कुछ महीनों के प्रयोग के बाद आपका चेहरा चमकदार और त्वचा जवान बन जाएगी।
  • 6

    मुंह की समस्या

    अगर आपके दांतों में कीड़ा लगा है, या फिर मुंह से बदबू आती है तो आपके लिए फिटकरी एक अच्छा घरेलू नुस्खा साबित हो सकती है। हर रोज दोनों वक्त फिटकरी को गर्म पानी में घोलकर उस पानी से कुल्ला करें। ऐसा नियनित रूप से करने से आपके दातों का कीड़ा हट जाएगा और साथ ही बदबू आनी भी बंद हो जाएगी। इसके अलावा, दांत दर्द से बचने के लिए फिटकरी और काली मिर्च को पीसकर दांतों की जड़ों में मलने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है।
  • 7

    पसीने की समस्या

    जिन लोगों को शरीर से ज्यादा पसीना आने की समस्या होती है उन्हें फिटकरी का इस्तेमाल करना चाहिए। इस समस्या से ग्रस्त लोग नहाते समय पानी में फिटकरी को घोलकर उस पानी से नहाएं। ऐसा करने से पसीना आना कम हो जाता है।
  • 8

    कीड़े-मकौड़े के काटने पर

    कीड़े-मकौड़े के काट लेने पर फिटकरी के टुकड़े को उस जगह पर रगड़ें। ऐसा करने से काटने की जगह पर हुई सूजन, घाव और लालिमा दूर होती है।

Sunday 25 October 2015

पर्यावरण रक्षा और धूम्र चिकित्सा --- विजय राजबली माथुर

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वास्तव में हवन-यज्ञ पद्धति ही पूजा की सही पद्धति है। क्यों? क्योंकि 'पदार्थ- विज्ञान ' (MATERIAL SCIENCE ) के अनुसार  हवन की आहुती  में डाले गए   पदार्थ अग्नि द्वारा  परमाणुओं  (ATOMS ) में विभक्त कर दिये जाते हैं। वायु  इन परमाणुओं को प्रसारित  कर देती है। 50 प्रतिशत परमाणु यज्ञ- हवन कर्ताओं को अपनी नासिका द्वारा शरीर के रक्त में प्राप्त हो जाते हैं। 50 प्रतिशत परमाणु वायु द्वारा बाहर प्रसारित कर दिये जाते हैं जो सार्वजनिक रूप से जन-कल्याण का कार्य करते हैं। हवन सामग्री की जड़ी-बूटियाँ औषद्धीय रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा का कार्य सम्पन्न करती हैं। यह   हवन 'धूम्र चिकित्सा' का कार्य करता है। अतः ढोंग-पाखंड-आडंबर-पुरोहितवाद छोड़ कर अपनी प्राचीन हवन पद्धति को अपना कर नवरात्र मनाए जाएँ तो व्यक्ति, परिवार, समाज, देश व दुनिया का कल्याण संभव है। काश जनता को जागरूक किया जा सके ! 

http://vijaimathur05.blogspot.in/2015/10/blog-post_12.html

इसी प्रकार अन्य पर्वों पर भी पूजा की सही प्रक्रिया 'हवन'- यज्ञ ही है। आयुर्वेद जो 'अथर्व वेद' का ही एक भाग है में प्राचीन वैद्य रोगी को नासिका के माध्यम से औषद्धीय धूम्र प्रेषित करके उसके रक्त, मांस-पेशियों से विकारों का शमन कर देते थे और इस प्रकार रोगी शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर लेता था। वैसे भी हवन सामाग्री में मिलाये जाने वाले पदार्थ औषद्धीय गुणों से भरपूर होते हैं। यथा ---

1) - बूरा : इसमें क्षय TB के रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है। 
2) - गुग्गल : इसमें प्रकृतिक जन्य (RAW CALCIAM ) पाया जाता है। इसी लिए पहले जब बचपन से ही हवन करने की आदत होती थी तब लोगों की हड्डियाँ मजबूत होती थी। लेकिन आजकल हवन को त्याग कर मंदिर, मस्जिद, मज़ार, चर्च, गुरुद्वारा आदि-आदि अनेकानेक जगह जाने और उसे पूजा कहने का फैशन चल रहा है। इसीलिए बुढ़ापे में हड्डियों के टूटने विशेष कर कूल्हे की हड्डी के बहुत जल्दी टूटने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। राड, स्क्रू के सहारे से हड्डियों को जोड़ा जाता है। इस तकलीफ और खर्च को लोग खुशी-खुशी बर्दाश्त करते हैं लेकिन हवन करने को खुराफात समझा जाता है। 
3) - घी: शरीर में स्निग्धता बनाए रखने के लिए ज़रूरी होता है जब हवन करते थे इसके परमाणु नासिका के जरिये रक्त में मिल जाते थे जिससे अब वंचित हैं। मुख से लिए वसा पदार्थ यकृत -लीवर तथा गुर्दे-किडनी के लिए हानिकारक होते हैं । इसके अतिरिक्त उनसे चर्बी बढ्ने व शरीर के थुलथुल होने के मामले बढ़ रहे हैं। डायलेसिस पर अब निर्भरता बढ़ गई है। 
हवन में डाले गए घी के परमाणु वायु द्वारा प्रेषित किए जाने से बादलों के नीचे जम जाते थे जिनसे वर्षा होने में सहायता मिलती थी। लेकिन अब हवन का परित्याग किए जाने से 'अनावृष्टि' व 'अति वृष्टि' के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है जिससे खाद्यान का भी संकट खड़ा हो जाता है। 

4) - अन्य उपचार  : रोगानुसार जड़ी-बूटियाँ आदि हवन सामाग्री में मिला कर रोग का शमन सुगमतापूर्वक कर लिया जाता था। जैसे कि उदर रोगों के लिए 'बेल पत्र' को मिला देते थे। नसों की सूजन विशेष कर मूत्र मार्ग की नसों की सूजन को दूर करने हेतु  धतूरे के बीज मिला देते थे। लेकिन आज इनको मंदिरों में व्यर्थ नष्ट कर दिया जाता है। परिणाम स्वरूप इलाज पर भारी भरकम खर्च करना व परेशानी उठाना पड़ता है। 
हृदय रोग के उपचार के लिए पीपल के पत्ते व अर्जुन की छाल मिला लेते थे। लेकिन अब हवन परित्याग से इसका स्थान एनजियो प्लास्टी/बेलूनिंग/ पेसमेकर  आदि ने ले लिया है ।  









Tuesday 20 October 2015

पेट में गैस का बनना : कारण और निवारण --- देशबंधु समाचार-पत्र

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पेट में गैस या वायु की बीमारी पेट की मंदाग्नि (पाचनशक्ति की कमजोरी या अपच) के कारण होती है। शरीर में यह बीमारी तीन भागों से हो जाती है। पहला- शाखा, दूसरा-मर्म, अस्थि और संधि तथा तीसरा- कोष्ठ (आमाशय)। वायु या गैस की बीमारी कोष्ठ से पैदा होती है। जब वायु (गैस) कोष्ठ में चलती है, तो मल-मूत्र का अवरोध, हृदय (दिल की बीमारी) रोग, गुल्म (वायु का गोला) और बवासीर आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
कारण : मनुष्य सेवन किया गया भोजन हजम नहीं कर पाता है तो उसका कुछ भाग शरीर के भीतर सड़ने लगता है। इस सड़न से गैस पैदा होती है। गैस बनने के अन्य कारण भी होते हैं, जैसे- यादा व्यायाम करना, यादा मैथुन करना, अधिक देर तक पढ़ना-लिखना, कूदना, तैरना, रात में जागना, बहुत परिश्रम करना, कटु, कषैला तथा तीखा भोजन खाना, लालमिर्च, इमली, अमचूर, प्याज, शराब, चाय, कॉफी, उड़द, मटर, कचालू, सूखी मछली, मैदे तथा बेसन की तली हुई चीजें, मावा, सूखे शाक व फल, मसूर, अरहर, मटर, लोबिया आदि की दालें खाने से भी पेट में गैस बन जाती है।
इसके अतिरिक्त मूत्र (पेशाब), मल, वमन (उल्टी), छींक, डकार, आंसू, भूख, प्यास आदि को रोकने से भी गैस बनती है। आमाशय में वायु के बढ़ने से हृदय (दिल), नाभि, पेट के बाएं भाग तथा हाथ-पैरों में दर्द होने से गैस बन जाती है।
लक्षण : रोगी की भूख कम हो जाती है। छाती और पेट में दर्द होने लगता है, बेचैनी बढ़ जाती है, मुंह और मल-द्वार से आवाज के साथ वायु निकलती रहती है। इससे  ले तथा हृदय के आस-पास भी दर्द होने लगता है। सुस्ती, ऊंघना, बेहोशी, सिर में दर्द, आंतों में सूजन, नाभि में दर्द, कब्ज, सांस लेने में परेशानी, हृदय (दिल की बीमारी), जकड़न, पित्त का बढ़ जाना, पेट का फूलना, घबराहट, सुस्ती, थकावट, सिर में दर्द, कलेजे में दर्द और चक्कर आदि लक्षण होने लगते हैं।
भोजन तथा परहेज: साग-सब्जी, फल और रेशेवाले खाद्य पदार्थो का सेवन करें। आटे की रोटी में चोकर मिलाकर खाएं। मूंग की दाल की खिचड़ी, मट्ठे के साथ और लौकी (घिया), तोरई, टिण्डे, पालक, मेथी आदि की सब्जी का, दही व मट्ठे का प्रयोग हितकर है। ोध (गुस्सा), ईर्षया (जलन) और प्यास के वेग को रोकना नहीं चाहिए। जैसे ोध आने पर ईश्वर के नाम का जाप करें। शारीरिक व्यायाम और पेट सम्बंधी योगासन करें।
चावल, अरबी, फूल गोभी और अन्य वायु पैदा करने वाले पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। मिर्च, मसाले, भारी भोजन, मांस, मछली, अण्डे आदि का सेवन न करें।
अदरकअदरक का रस एक चम्मच, नींबू का रस आधा चम्मच और शहद को डालकर खाने से पेट की गैस में धीरे-धीरे लाभ होता है।
सरसों का तेल
यदि पेट की नाभि अपने स्थान से हट जाती है तो पेट में गैस, दर्द और भूख नहीं लगती है। ऐसे में नाभि को सही बैठाने से और नाभि पर सरसों का तेल लगाने से लाभ होता है। यदि पेट में दर्द यादा हो रहा हो तो रूई का फोया सरसों के तेल में भिगोकर नाभि पर रखकर पट्टी भी बांध सकते हैं।
लौंग
 आधे कप पानी में 2 लौंग डालकर पानी में उबाल लें। फिर ठण्डा करके पानी पीने से लाभ होगा। 
2 लौंग पीसकर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें। फिर कुछ ठण्डा होने हर रोज 3 बार सेवन करने से पेट की गैस में फायदा मिलेगा। 
5 लौंग पीसकर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें। फिर कुछ ठण्डा होने पर तीन बार रोजाना पीने से पेट की गैस में राहत मिलती है। 
पोदीना
 4 चम्मच पोदीने के रस में एक नींबू का रस और 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से गैस के रोग में आराम आता है। 
सुबह एक गिलास पानी में 25 ग्राम पोदीना का रस और 31 ग्राम शहद मिलाकर पीने से गैस समाप्त हो जाती है। 
60 ग्राम पोदीना, 10 ग्राम अदरक और 8 ग्राम अजवायन को 1 गिलास पानी में डालकर उबाल लें। उबाल आने पर इसमें आधा कप दूध और स्वाद के अनुसार गुड़ मिलाकर पीएं अथवा चौथाई कप पोदीने का रस आधा कप पानी में आधा नींबू निचोड़कर सात बार उलट-उलटकर पीयें। इससे भी गैस से होने वाला पेट का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। 
20 ग्राम पोदीने का रस, 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम नींबू के रस को मिलाकर खाने से पेट के वायु विकार (गैस) समाप्त हो जाते हैं। 
पानी :
 एक गिलास पानी में 50 ग्राम पुदीना, 10 ग्राम अदरक के टुकड़े, 10 ग्राम अजवाइन को उबाल लें। बाद में थोड़ी-सी चीनी या गुड़ मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में से 2 चम्मच काढ़ा रोजाना खाना खाने के बाद पीने से पेट की गैस दूर हो जाती है। 
अगर बदहजमी की शिकायत हो, खाना न पचता हो तो एक दिन के लिए भोजन बंद करके सिर्फ पानी ही पीने से लाभ होता है। 
एक गिलास गुनगुना पानी जितना पिया जा सके, लगातार कुछ सप्ताह तक खाना खाने के बाद पीते रहने से पेट की गैस में राहत मिलती है। 
अन्य उपचार
 सुबह जल्दी उठकर गर्म पानी में आधा नींबू को निचोड़कर पीयें। 
उपवास (व्रत) रखें। 
एनिमा लें। 
रोजाना कमर तक पानी में 10 से 15 मिनट तक बैठे रहें। 
10 से 15 मिनट तक पेट पर पानी की धार छोड़े और बाएं हाथ से पेट को मलें। 
गैस की बीमारी खत्म होने तक नियमित रूप से ठण्डे दूध के अलावा अन्य किसी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। 
रोगी को ठीक हो जाने पर भी 2 घण्टे के अंतर में एक बार कटे हुए फल खाने में देने चाहिए। 
तली हुई चीजें, चाय, कॉफी और ऐल्कोहल का बिल्कुल सेवन नहीं करना चाहिए। 
दर्द को नष्ट करने वाली और सूजन को रोकने वाली सारी औषधियां पूरी तरह बंद कर देनी चाहिए। 
चिकनाई रहित छाछ और दही का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए। 

पेट पर चिकनी मिट्टी का लेप करें, जब मिट्टी सूख जाए तो उसे हटा दें। एक सप्ताह तक रोजाना मिट्टी से इलाज करें। इससे पेट में गैस बनना बंद हो जाएगी। मिट्टी को कपड़े की पट्टी पर लगाकर भी पेट से बांधा जा सकता है। इसे लगभग आधे घंटे तक अवश्य बांधा जा सकता है। फिर इसी पट्टी को सुबह या शाम को भी प्रयोग में लिया जा सकता है। ध्यान रहे कि खाना खाने के बाद या नाश्ता करने के बाद मिट्टी का प्रयोग न करें।

Friday 16 October 2015

चेस्ट रोग विशेज्ञ डॉ सूर्यकांत जी की अच्छे स्वास्थ्य हेतु सलाह

**08/10/2015 को लखनऊ पुस्तक मेले के मंच से :



Yashwant Yash
3 hrs
कल 08/10/2015 को लखनऊ पुस्तक मेले के मंच से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत जी ने फेफड़े एवं श्वास रोगों से संबन्धित परिचर्चा के अंतर्गत स्वस्थ जीवन शैली हेतु कुछ महत्वपूर्ण बातें बतायीं उनका सारांश इस प्रकार है-
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 * 30 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के सभी व्यक्तियों को जिम जाने व ट्रेडमिल आदि के प्रयोग से बचना चाहिए। साईक्लिंग एक्सरसाइज़ ज़्यादा बेहतर है। बल्कि सबसे अच्छा तो यह है कि अपनी आयु के (क्षमता से)सामान्य से अधिक तेज़ गति से चलने की आदत डालनी चाहिए। धीमे धीमे टहलने से कोई लाभ नहीं है।
 * fast food (कोल्ड ड्रिंक नूडल्स,चाउमीन ,बर्गर,पेटीज,चाट आदि) के प्रयोग से बचें। केले से बेहतर कोई fast food नहीं हो सकता। केला अपनी diet में ज़रूर शामिल करें।
 * मधुमेह (sugar)के रोगी भी रोज़ एक केला खा सकते हैं।
 * अपनी रसोई में refined oil /dalda आदि के खाना बनाने मे प्रयोग से बचें। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। सबसे बेहतर सरसों का तेल है। सरसों के तेल में बना खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
 * चीनी का प्रयोग भी कम से कम करना चाहिये। यदि चीनी का प्रयोग करना ही है तो रसायनों से साफ की हुई अधिक सफ़ेद चीनी के बजाय कत्थई (brown) रंग की चीनी का प्रयोग करना चाहिए।
वैसे मिठास के लिए गुड़ से बेहतर स्वास्थ्यवर्धक और कोई चीज़ नहीं है।
 * नमक का प्रयोग भी कम से कम और सिर्फ दैनिक भोजन मे ही करना चाहिए।
( मूँगफली या खीरा अथवा भोजन के अतिरिक्त अन्य चीजों के साथ नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। )
 * अपनी क्षमतानुसार कोई भी एक मौसमी फल नियमित लेना चाहिए।
 * सिगरेट/शराब इत्यादि के सेवन बिलकुल न करें।
 * 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों को पूर्ण शाकाहार अपनाना चाहिए,यद्यपि कई चिकित्सा शोधों से यह प्रमाणित हुआ है कि शाकाहार सभी आयु वर्ग के लिए पूर्ण एवं हानि रहित है।
 * जो रोग (जैसे एलर्जी/मधुमेह/अस्थमा आदि) हमारे साथ जीवन भर रहने हैं, उन से संबन्धित उपचार/दवाओं आदि को अपना दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त मानना चाहिए।
 * नियमित,संयमित एवं उचित जीवन शैली ही अच्छे स्वास्थ्य का मूल आधार है।
( जनहित में प्रस्तुतकर्ता -Yashwant Yash)
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हाल ही में सम्पन्न लखनऊ पुस्तक मेले के एक जन-जागरण कार्यक्रम के अंतर्गत मेडिकल यूनिवर्सिटी के पलमोनरी विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत जी की सलाहें सुनने का सुअवसर मिला था। सार-संक्षेप में उनकी बातें उपरोक्त रूप में प्रस्तुत की जा चुकी हैं। लेकिन डॉ साहब द्वारा बताई और अनेक ऐसी बातें हैं जिनका हमारे स्वस्थ जीवन से गहरा संबंध है, उन पर भी प्रकाश डालना इस पोस्ट का उद्देश्य है। 

डॉ सूर्यकांत जी ने बताया कि प्राचीन काल में घर इस प्रकार बानए जाते थे कि उनमें सूर्य का प्रकाश सुगमता से पहुँच जाता था । सूर्य के प्रकाश में कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता तो होती ही है उससे 'विटामिन' 'A' और 'D ' भी प्राप्त होता है जो हड्डियों की मजबूती  व आँखों की रोशनी के लिए बेहद ज़रूरी है। डॉ साहब का कहना था कि उगते हुये सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा इसी लिए रखी गई थी कि इस प्रकार आँखों पर सूर्य की रश्मियों से आँखों को ऊर्जा मिलती रहेगी और वे स्वस्थ बनी रहेंगी। 
सूर्य का प्रकाश सीलन और घुटन से भी बचाता है। लेकिन अब भवन निर्माण इस प्रकार न होने से सूर्य के प्रकाश से शहरी आबादी दूर है जिस कारण TB रोग, श्वान्स संबंधी रोग और एलर्जी की समस्याएँ बढ़ रही हैं। डॉ साहब का कहना था कि किसी को छींक आना तो किसी की त्वचा में खुजली होना इसी एलर्जी का प्रभाव हो सकता है। धूप सेवन को उन्होने एक अच्छा उपचार बताया जिसे अपना कर स्वस्थ व्यक्ति भी रोगों से बचाव कर सकते हैं। कम से कम 10 मिनट और आध घाटे तक धूप का सेवन ऊर्जा से भर देता है। 
उन्होने बताया कि घर न तो अधिक पुराना और न ही अधिक आधुनिक होना चाहिए। अधिक पुराना होने से सीलन का भय रहेगा तो अधिक आधुनिक होने से उसमें टंगे पर्दे व बिछे कालीनों में जमी धूल की परतें 'एलर्जी' को उत्पन्न कर देती हैं। यदि पर्दों व कालीन का प्रयोग कर रहे हैं तो नियमित रूप से उनकी धूल साफ करते रहना चाहिए जिससे एलर्जी से बचा जा सके। 
डॉ साहब का कहना था कि धूम्रपान करने वाले को 30 प्रतिशत और उसके आस-पास उपस्थित लोगों को 70 प्रतिशत वह धुआँ नुकसान पहुंचाता है अतः धूम्रपान से बचना भी एलर्जी और TB से बचाव की एक शर्त है। मदिरा पान को भी लीवर व किडनी के लिए उन्होने घातक बताया और मांसाहार को भी। इनसे भी बचने की उन्होने सलाह दी। 
डॉ साहब का कहना था कि आजकल फर के खिलौने,  साफ्ट ट्वायाज़ और टेडी बियर भी धूल जमा होने से बच्चों में एलर्जी होने का कारण बन रहे हैं। बच्चों के स्वास्थ्य  के दृष्टिकोण से उनको इनसे दूर रखना चाहिए।
डॉ साहब का कहना था कि पहले घरों में पशु-पक्षियों के लिए अलग से बाड़ा बंनता था लेकिन अब घर बहुत छोटे होते हैं और लोग  बिल्ली,कुत्ता,तोता,चिड़िया आदि  अपने साथ ही पाल लेते हैं इनसे भी एलर्जी का प्रसार होता है। डॉ साहब का कहना था मनुष्यों के साथ पशु-पक्षी न रहें तो एलर्जी आदि अनेक रोगों से बचाव हो सकता है। 
TB के कीटाणु सिर्फ छींकने  या खाँसने से ही फैलते हैं इसलिए रोगी को अपने मुंह पर रूमाल रख कर खाँसना या छींकना चाहिए। उससे हाथ मिलाने व साथ खाने से कीटाणु नहीं फैलते हैं। TB का इलाज 6 माह से 2 वर्ष तक का होता है। डॉ की सलाह से पहले खुद ही इलाज बंद कर देना इस रोग को और भयानक बना देता है। यदि किसी को TB हो जाये तब 6 महीने तक उसका इलाज ज़रूर चलाना चाहिए उसके बाद डॉ हाल देख कर बंद करने को कहें तभी बंद करें। यह अब लाइलाज नहीं है और परहेज दवा के साथ चलाने से ठीक हो जाता है। 

डॉ साहब ने समुद्री नमक का प्रयोग न करने या कम से कम करने व इसके स्थान पर 'सेंधा नमक' प्रयोग करने की भी सलाह दी। 
उनका कहना था कि जिनको 'खुर्राटे' आने की समस्या हो उनको 'इन्हेलर' का प्रयोग करना चाहिए जिससे लाभ मिल सके। जिस प्रकार कमजोर आँख वाले 'चश्मा' लगाते हैं उसी प्रकार खुर्राटे वालों को इन्हेलर का प्रयोग करना सहायक रहता है। 
डॉ साहब ने कहा कि 'दस्त' रोग का उपचार केला फल का सेवन है। डायबिटीज़ वाले भी एक केला रोजाना खा सकते हैं। 6 केलों से पूर्ण पौष्टिक आहार प्राप्त हो जाता है , उन्होने फास्ट फूड के स्थान पर केलों का सेवन करने की सलाह दी। फास्ट फूड एलर्जी का जनक है। 

Monday 12 October 2015

नौ औषद्धियों द्वारा स्वास्थ्य रक्षा का पर्व है नवरात्र --- विजय राजबली माथुर

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कल से शुरू होने वाले नवरात्र में इन नौ औषद्धियों के प्रयोग से शरीर को नीरोग रखने का प्राविधान  था किन्तु 'विकास' के इस पूंजीवादी युग में 'पूंजी' की 'पूजा' होने लगी है। इन नौ दिनों में कान-फोडू भोंपू बजा कर ध्वनि प्रदूषण फैलाया जाएगा। लोगों को गुमराह करके व्यापारी वर्ग के हित साधे जाएँगे। पुजारी वर्ग जो ब्राह्मण जाति से आता है इन व्यापारियों का महिमा-मंडन करेगा। 'ढ़ोंगी' व 'एथीस्ट ' मिल कर इस पोंगा पंथ को 'धर्म ' की संज्ञा से नवाजेंगे । जनता उल्टे उस्तरे से मूढ़ी जाएगी उसका शोषण जारी रहेगा। कोई 'सत्य ' बोलना नहीं चाहता बल्कि सत्य कहने वाले का उपहास ज़रूर उड़ाते हैं खास तौर पर ढ़ोंगी व एथीस्ट।

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वस्तुतः ऋतु परिवर्तन के समय प्राचीन मनीषियों ने चार नवरात्र का प्राविधान किया था जिनमें से दो को ब्राह्मणों ने अपने लिए 'गुप्त' रूप से मनाने के लिए  सुरक्षित कर लिया था। शेष जनता के लिए  ग्रीष्म व शरद काल  के नवरात्र सार्वजनिक रूप से बताए गए थे। कल दिनांक 13 अक्तूबर से प्रारम्भ ये शरद कालीन नवरात्र हैं। ढ़ोंगी-पाखंडी पद्धति से ये मनाए जा रहे हैं। जगह-जगह रास्ता रोक कर 'देवी जागरण' के नाम पर जनता को ठगा जा रहा है। कुंवारी कन्याओं के पूजने का आडंबर किया जाता है परंतु समाज में उनकी स्थिति इस ढ़ोंगी पूजा की पोल खोल देती है। 

क्या होना चाहिए :

वास्तव में हवन-यज्ञ पद्धति ही पूजा की सही पद्धति है। क्यों? क्योंकि 'पदार्थ- विज्ञान ' (MATERIAL SCIENCE ) के अनुसार  हवन की आहुती  में डाले गए   पदार्थ अग्नि द्वारा  परमाणुओं  (ATOMS ) में विभक्त कर दिये जाते हैं। वायु  इन परमाणुओं को प्रसारित  कर देती है। 50 प्रतिशत परमाणु यज्ञ- हवन कर्ताओं को अपनी नासिका द्वारा शरीर के रक्त में प्राप्त हो जाते हैं। 50 प्रतिशत परमाणु वायु द्वारा बाहर प्रसारित कर दिये जाते हैं जो सार्वजनिक रूप से जन-कल्याण का कार्य करते हैं। हवन सामग्री की जड़ी-बूटियाँ औषद्धीय रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा का कार्य सम्पन्न करती हैं। यह   हवन 'धूम्र चिकित्सा' का कार्य करता है। अतः ढोंग-पाखंड-आडंबर-पुरोहितवाद छोड़ कर अपनी प्राचीन हवन पद्धति को अपना कर नवरात्र मनाए जाएँ तो व्यक्ति, परिवार, समाज, देश व दुनिया का कल्याण संभव है। काश जनता को जागरूक किया जा सके !

उदर समस्याओं के लिए सामाग्री मे 'बेल-पत्र' , टी बी के लिए 'बूरा', टायफायड के लिए गूगल मिला कर 'धूम्र -चिकित्सा' का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 

Tuesday 6 October 2015

गुर्दे की बीमारी से कैसे बचा जाए? --- -अयोध्याप्रसाद भारती

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क्यों हो जाती है,किडनी की बीमारियां :


हम किडनी फेल होने के दौर में हैं। जी हां, गुर्दे तेजी से साथ छोड़ रहे हैं। पहले आइए जानें कि किडनी या गुर्दे क्या बला हैं? रीढ़ की हड्डी के दोनों सिरों पर बीन की शक्ल के दो अंग होते हैं जिन्हें हम किडनी या गुर्दे के नाम से जानते हैं। हमारे शरीर के रक्त का काफी बड़ा हिस्सा गुर्दों से होकर गुजरता है। गुर्दों में मौजूद लाखों नेफ्रोन नलिकाएं रक्त छानकर शुध्द करती है। रक्त के अशुध्द भाग को मूत्र के रूप में अलग भेजती हैं। अगर गुर्दे स्वस्थ न हों, अर्थात वे ठीक से काम न कर रहे हों तो रक्त शुध्द न होगा और जब रक्त शुध्द न होगा तो हम बीमार पड़ जाएंगे और जल्दी ही हमारी मौत हो जाएगी। जब गुर्दे अपना काम ठीक से न कर पा रहे हों तो आदमी को डायलिसिस मशीन पर रखा जाता है। मशीन रक्त साफ करती हैं। गुर्दे खराब हो जाने की दशा में स्थायी इलाज यह होता है कि आदमी के गुर्दे बदल दिए जाएं। लेकिन गुर्दे बदलना आसान काम नहीं है। पहले तो गुर्दा आसानी से मिलता नहीं, मिले भी तो खर्च लाखों में आता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक किडनी की बीमारियों की शुरूआती अवस्था में पता नहीं चल पाता। इस कारण किडनी की बीमारियों से काफी अधिक मौतें होती हैं। किडनी के लिए मधुमेह, पथरी और हाईपरटेंशन अत्यंत जोखिम भरे हैं। इनमें किडनी के मामले में हाईपरटेंशन और मधुमेह लक्षण के रूप में सामने नहीं आ पाते। जब किडनी काफी खराब हो जाती है तब पता चलता है ऐसे में सामान्य इलाज कारगर नहीं रह पाता। तब जोखिम और जटिलता बढ़ जाती है। डायलेसिस पर कुछ समय तो आदमी को जिंदा रखा जा सकता है परंतु खर्च और परेशानियां अनंत है।
जानकारों के अनुसार, किडनी के मरीजों में से एक चौथाई में किडनी में गड़बड़ी का कोई कारण ज्ञात नहीं होता है। इस गड़बड़ी के कारणों में एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारकों का अत्यधिक इस्तेमाल भी हो सकता है। मधुमेह के शिकार लगभग 30 प्रतिशत लोगों को किडनी की बीमारी हो जाती है और किडनी की बीमारी से ग्रस्त एक तिहाई लोग मधुमेह पीड़ित हो जाते हैं। इससे यह तय है कि इन दोनों का आपस में कोई ताल्लुक है। इसके अलावा लंबे समय से हाईपरटेंशन के शिकार लोगों को किडनी की बीमारी का खतरा 3-4 गुना बढ़ जाता है। गुर्दों की बीमारी के लिए दूषित खान-पान और दूषित वातावरण मुख्य माना जाता है। दूषित मांस, मछली, अंडा, फल और भोजन तथा पानी गुर्दे की बीमारी की वजह बन सकते हैं। बढ़ते औद्योगीकरण, शहरीकरण और वाहनों के कारण पर्यावरण प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया है। अधिक से अधिक पैसा कमाने या बेरोजगार हो जाने, भविष्य की चिंता में आज आदमी हर तरह के वातावरण में अधिक से अधिक समय तक काम करता है। बहुत से ऐसे हैं, जिन्हें हफ्तों-महीनों घर का शुध्द-स्वच्छ भोजन नसीब नहीं होता। वे होटलों-ढाबों पर दूषित भोजन खाते हैं। इस दौर में दूषित बाजारू पेय पदार्थों पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है। कोल्ड ड्रिंक्स, लस्सी, जूस, सादा पानी कोई भी पूर्ण सुरक्षित नहीं है। इनमें कीटाणुनाशकों, रासायनिक खादों, डिटरजेंट, साबुनों, औद्योगिक रसायनों के अंश पाए जाते हैं। ऐसे में फेफड़े और जिगर तथा गुर्दे सुरक्षित नहीं है इसलिए गुर्दों के मरीज बेतहाशा बढ़ गए हैं। गुर्दों के मरीज बढ़ने से गुर्दे चुराने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। गरीबी-बदहाली से त्रस्त लोग एक गुर्दा बेचने को तैयार हो जाते हैं। विदर्भ (महाराष्ट्र) के किसानों ने तो कर्जे उतारने के लिए गुर्दा बेचने का एक मेला लगाने का ऐलान कर उसके उद्धाटन हेतु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को निमंत्रित कर देश को चौंका दिया था।

अब प्रश्न है कि गुर्दे की बीमारी से कैसे बचा जाए? :

स्वच्छ खान-पान, शुध्द वायु (प्रात:काल) में सामान्य व्यायाम, तनाव से बचाव और पौष्टिक भोजन से आप ठीक रहेंगे। अगर आमदनी कम हो तो विलासिता की चीजों पर खर्चा न करें उसे बचाएं और उसे अच्छे खान-पान में लगाएं पर्याप्त नींद लें। पानी अशुध्द होने की आशंका हो तो ठीक से उबालकर पिएं। बाजारू तैयार खाद्य, पेय, पदार्थ व ढाबों इत्यादि में भोजन करने से बचें। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हर प्रकार के संक्रमण से बचें।

:(-अयोध्याप्रसाद भारती)
26 मई 2009 
साभार :